Wednesday, 18 November 2015

बनारस: है क्या कहीं ऐसा अल्हड़ मस्त शहर...?


संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों आप चाहे कहीं रहते हैं,कितने ही सुख साधनो के साथ रहते हों,लेकिन बनारस के आगे सब फीका है।ये जो बनारस है ना,बडा ही अल्हड़ शहर है,और बनारस के लोगो के क्या कहने,मस्त,बिंदास,बेबाक,फक्कड़ी।आप जो चाहे कहें,लेकिन बनारस तो बिल्कुल भोले बाबा की ही तरह है....बोले तो बिंदास।कल की फिकर नहीं,आज को खोना नहीं और कल को याद करके काहें टेंशनियाएं....।अईसा है बनारस भईया।कवनो चिंता फिकर नाहीं महराज।हम तो एक्के बात कहेंगे कि एक बार बनारस आपउ धूम आईए...मउज है गुरु बनारस में।हां एक बात जरुरे कहेंगे,कि अस्सी जरुर जईहो,कांहे कि तन्नी गुरु कभी वहीं बैठकर चौकड़ी जमाया करते थे।एक अलगे आनंद मिलिहें आप सबका अस्सी के घाट पर।

एगो कविता के कुछ अंश देखिए,आपको पता लगी जईहें कि कईसन है बनारस-
कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्‍यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं भी है.
            बनारस पर लिखी केदारनाथ सिंह जी की कविता के से सादर -,


अब तो भईया आप बुझी गए होंगे कि अईसे ही नहीं हम कह रहे थे कि बनारस में रस नही मिश्री घुला है जी। बिंदास मस्ती,आ जुबान में शब्दों कि जादूगरी, गुरुऔर राजाका हर बात में संबोधन, और तो और तारीफ भी बेहतरीन गालियों से करना।सुबह हो या शाम या दोपहर कभी  चाय की दुकान पर बैठ जाईए साब...क्या हालीवुड,क्या बालीवुड...सारे हिरो हिरोईन को सबकी समीक्षा हो जाती है और राजनीति की कौन कहे।संसद जईसे यहीं चलती हो।कहना गलत नहीं होगा कि बतकही के उस्तादों का शहर है बनारस। भक्ति भाव का शहर है बनारस, भोले के भक्तों का तांता और बाबा विश्वनाथ तक पहुंचने की तंग गलियां यहां आने वाले लोगों को एक अलग-सी अनुभूति देते हैं।गंगा मैया के घाट पर एक अजीब सी शांति और सुकून मानो मनुष्य की सभी परेशानीयों को बहा ले जाता है, क्योंकि यहां आकर हर शख्स पिघल सा जाता है।

बनारस अपने इसी अंदाज और अल्हड़पन के लिए विश्व प्रसिद्ध है,इतना ही नहीं तमाम हिन्दी और अंग्रेजी फिल्मो का केंद्र भी रहा है बनारस।कभी कभी अफसोस भी होता है कि बनारस की इस ठेंठ सादगी और अल्हड़पन को फिल्मों और अन्य माध्यमो से यहां की संस्कृति को गाहे बगाहे बनमाम करने की कोशिश भी की जाती रही है! अब बनारस के अस्सी घाट को ही ले लें आप तो ये बाबा विश्वनाथ की नगरी का ऐसा हिस्सा है,एक ऐसा मोहल्ला है जो गंगा जी के छोर पर बसा है।क्या विदेशी पर्यतक और क्या पठन-पाठन करने वाले छात्र,पंडा, पंडित,पुरोहित जजिमानों की ज्यादातर संख्या इस मोहल्ले में रहती है।

भोलेभाले बनारसी मानते हैं कि बाबा विश्वनाथ तो उनके अपने हैं,घर के हैं । दोस्तों बनारस में एक अलग तरह का अल्हड़पन है, जो बाबा विश्वनाथ की नगरी को दूसरे शहरों से अलग करता है। लेकिन अगर इसे फूहड़पन की नजरों से देखा जाएगा तो बनारसियों को दर्द होगा! कहते हैं, जहां का खाक भी है पारस, ऐसा शहर है बनारस!

साथियों मुझसे कोई कहे तो मैं कहुंगा की बनारस एक ऐसा शहर है,जिसका कोई रंग नहीं,कोई एक धर्म नहीं,कोई एक जाति नहीं और कोई एक बोली भी नहीं। सभी धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों, संस्कृतियों ने बनारस को साप्तरंगी और सात सुरों से सजाया। कहते हैं विश्व का सबसे प्राचीन नगर है बनारस,जिसे शिव जी ने अपने त्रिशूल पर बसाया है।आदि देव महादेव सिर्फ यहां के मंदिरों में नहीं बसने बल्कि यहां के लोगों की रग-रग में बसते हैं। यहां को बोलचाल,रहन-सहन,अंदाज,चालढाल में महादेव रचेबसे हैं। मां गंगा सिर्फ नदी नहीं बनारसियों के जीवन जीने का तरीका है।यही वो पवित्र शहर है जहां पावन,निर्मल और अविरल गंगा के किनारे पंचगंगा घाट पर घंटे, घड़ियाल और धरहरा मस्जिद में अज़ान की बेहतरीन जुगलबन्दी होती है।बनारस ही वो शहर है, जहां बाबा विश्वनाथ के दरबार में बिस्मिल्ला खां साब की सुमधुर शहनाई गूंजती रही है।

बनारस ही वो शहर है जहां महात्मा बुद्ध ने पहला उपदेश दिया।यहीं पर कबीर, तुलसी और रैदास ने कविता के द्वारा ज्ञान की गंगा बहाई। जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर प्रेमचंद और नज़ीर बनारस की पहचान है।बीएचयू में होने वाली समसामयिक चर्चाएं,गंगा के घाटों पर बैठे पंडे और पानी को चीरते मल्लाह बनारस की पहचान है। यहां बनारसी साड़ी के बुनकर हैं तो यहां हिन्दुस्तानी संगीत को निराला ठाठ देता बनारस घराना भी है। सादगी ही तो भाईयों बनारस का स्वभाव है,जिसका झूठ और फरेब से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है।दरअसल में बनारस अपने बाशिंदो का प्यारा है दुलारा है।तभी तो यहां के लोग कहते हैं कि बना रहे बनारस

अंतत: इतना ही कहुंगा कि एक बार आप भी बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस हो आईए,भूल नही पाईएगा इतना तो पक्का कहते हैं और ठेंठ बनारसी अंदाज में कविवर काशिनाथ सिंह जी की कविता की चंद पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम देते हैं-

किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्‍य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर!

।।मैं बनारस हूं।। 

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