संदीप कुमार मिश्र : दोस्तों यूं तो हर
किसी को जहन में चंबल घाटी का नाम आते ही मन में जो ख्याल आता है वो है खुंखार
डाकुओं का,जिसे आप दहशत का दूसरा नाम भी कहते हैं। लेकिन चंबल के बिहड़ों में एक
जगह ऐसी भी है,जहां पुलिस की नाक में दम करने वाले खूंखार डकैत भी अपना माथा टेकने
आते है।मित्रों ये किसी दस्यु सरदार का अड्डा नहीं बल्कि संकटमोचक महाबली हनुमान
जी महाराज का मन्दिर है।जिसे पिलुआ महावीर मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
दरअसल यमुना के किनारे दूर-दूर तक फैली घाटियां।जहां का
सन्नाटा भी इंसानों के रोंगटे खड़े कर देता है।दहशत जहां का दूसरा नाम है।उसी चंबल
घाटी में है पिलुआ महावीर मंदिर,जहां संकट मोचन बजरंगी की ऐसी प्रतिमा है जो पूरी
दुनिया में कहीं और नहीं है।कहा जाता है कि पिलुआ का यह चमत्कारिक मंदिर चौहान वंश
के अंतिम राजा हुक्म देव प्रताप की रियासत में बनाया गया था।यहां पर महाबली हनुमान
जी की प्रतिमा लेटी हुई है और लोगों की माने तो ये मूर्ति सांस भी लेती है और
भक्तो के प्रसाद भी खाती है।यहां की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में महाबली
हनुमान जी की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित नहीं है।कहा जाता है यहां हनुमान जी खुद
जीवित रूप में विराजमान हैं।
साथियों चंबल के बीहड़ में बसा है पिलुआ महावीर का मन्दिर।जो लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।अगर इसे
ऐतिहासिक नज़रिये से भी देखा जाए तो ये काफी अहम है।कहा जाता है कि महाभारत काल के
दौरान कुन्ती पुत्र भीम यमुना नदी के पास से निकल रहे थे तभी वहां अचानक उनके
रास्ते में आराम कर रहे हनुमान की पूंछ आ गई।जिसे हटाने का भीम ने खूब प्रयास किया,
लेकिन अपने बाहुबल के नशे में चूर भीम नाकाम रहे।पूंछ हटाने में पस्त भीम को जब
हनुमान जी की हकीकत का पता चला तो वो नतमस्तक हो गये और फिर उन्होंने शुरू की अपने
बड़े भाई हनुमान की सेवा।तब जाकर भीम से खुश होकर हनुमान जी ने उन्हें एक वरदान दिया,जिसकी
वजह से राजसूर्य यज्ञ में जरासंध को मारने में भीम को कामयाबी मिली।
अंजनी के लाल हनुमान जी महाराज केवल
भीम के लिए ही नहीं बल्कि उन सबके लिए संकटमोचक बन जाते है जो मुसीबत में होते है।ऐसे
में ये मन्दिर भी संकट से घिरे लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।पिलुआ मन्दिर की ऊंची-ऊंची दीवारें
पवन पुत्र के प्रति लोगों की आस्था की कहानी बयां करती है। इस मन्दिर में जो भी
अपनी मुराद लेकर आता है बजरंग बली के दर से खाली नहीं लौटता। यही वजह है कि यहां
हर मंगलवार को श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। इस मन्दिर में हनुमान
के साथ अन्य देवी-देवता की भी मूर्तियां लगी है।लेकिन चंबल के राजा कहे जाने वाले
बागियों में तो महाबली हनुमान जी महाराज की ही आस्था है।वे भी चोरी छिपे मन्दिर
में आकर माथा टेकते है और मन्नत मांगकर दबे पांव ही लौट जाते हैं।
इस मन्दिर की खास बात ये है कि डाकुओं ने यहां कभी उत्पात
मचाने की हिम्मत नहीं की।जिसकी वजह से यहां आने में श्रद्धालुओं के पैर कभी नहीं
कांपे।उनका मानना है कि श्रद्धालुओं के साथ कुछ ग़लत करने वालों को गदाधारी,महाबली
हनुमान जी ही सजा दे देते है। राम भक्त बजरंगी के
इस दरबार में वैसे तो हर मंगलवार को श्रद्धालुओं की भीड़ उमडती है।लेकिन भादो के
महीने में पड़ने वाले चारों मंगलवार को लगने वाला मेला देखते ही बनता है।मन्दिर के
पुजारी भी मानते है कि पवन पुत्र की शरण में आने के बाद श्रद्धालुओं की ना केवल
मुराद पूरी होती है,बल्कि उन्हें एक अद्भूत शांति भी मिलती है।
चंबल
घाटी के किनारे बसा पिलुआ महावीर का मंदिर।जहां ना तो बागियों का राज चलता है और
ना ही आम लोगों की हुकूमत।यहां तो राज चलता है पवन पुत्र हनुमान का। पिलुआ महावीर
के मंदिर में अंजनी पुत्र आराम फरमाते नजर आते हैं।हांलाकि हनुमानजी की लेटी हुई
एक ऐसी प्रतिमा इलाहाबाद के संगम तट के आलावा आपको और कहीं नहीं देखने को मिलेगी। इलाहाबाद
के संगम पर लगी हनुमान जी की मूर्ति भले ही पिलुआ के हनुमान जी के समान दिखती है, लेकिन
पिलुआ के हनुमान जी की मूर्ति इससे काफी अलग है।यहां के हनुमान भले ही लेटे हुए है
लेकिन उनका मुंख खुला हुआ है।ऐसी प्रतिमा शायद ही आपको देश दुनिया में कहीं देखने
को मिले।
मंदिर
आने वाले श्रद्धालू भगवान को भोग लगाते हैं,जिसे भगवान खाते भी है। आज तक इस बात का
कोइ सुराग तक नहीं लगा पाया है कि आखिर हनुमान जी महाराज द्वारा खाया हुआ प्रसाद
जाता कहां है।जो कि आज भी शोध का विषय बना हुआ है।बहरहाल अब तो सभी इसे भगवान की
अपार लीला ही समझते हैं।इस मंदिर में केवल लड्डुओं का ही भोग नहीं लगता बल्कि भक्त
जो भी स्वेच्छा से हनुमानजी को खिलाना चाहें वो उसे ही स्वीकर कर लेते हैं।
यहां लगी हनुमान जी की मूर्ति केवल भक्तों के चढ़ावे के लिए
ही नहीं बल्कि इसकी एक और भी खासियत है।ये
दिन के उजाले मे तो भक्तों की फरियाद सुनकर उनकी मुराद पूरी करते है तो दूसरी ओर
रात के सन्नाटे में खुद अपने इष्टदेव रामजी को याद करते है।जिसे यहां के लोग कहते
हैं कि साफ सुना जा सकता है।इस इलाके से गुजरने वाला हर शख्स पिलुआ महावीर के इस
मंदिर के दर्शन करने से नहीं चूकता।फिर वो चाहे डाकू हो या फिर आम आदमी।
अंतत: हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि हरि अनंत हरि कथा अनंता।आस्था और
भक्ति का कोई अंत नहीं है और हनुमान जी महाराज के संबंध में तो ऐसे भी कहा जाता है
कि,संकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।
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