Monday 30 November 2015

ISIS : 21वीं सदी का भस्मासुर...!


संदीप कुमार मिश्र: आतंक का ISIS  रुपी दानव आज विश्वभर में मानवता के लिए चिंता का सबब बना हुआ है।भस्मासुर के रुप में ISIS अपना जाल फैलाता जा रहा है,जिससे मानवता कराह रही है।मानवता का दुश्मन बन गया है ISIS। आखिर कब लगेगी लगाम,कैसे होगा इस भस्मासुर का खात्मा।क्योंकि जब तक इसका अंत नहीं होगा तब तक लोग यूं ही मरते रहेंगे,दहशत में जीते रहेंगे,और उपरवाले से फरियाद करते रहेंगे।क्योंकि पिधले दिनो फ्रांस के पेरिस में 13 नवंबर को जिस तरह से रात हुए आतंकवादी हमलों के बाद विश्व के सभी देश ISIS  से निपटने के लिए संकल्प ले रहे हैं।उससे आप आसानी से ये समझ सकते हैं कि ISIS विश्व के लिए कितना बड़ा खतरा बन चुका है।

दरअसल ISIS को 21वीं सदी का भस्मासुर कहने के पीछे कई कारण है। ISIS एक चरमपंथी संगठन है। इसके मंसूबे कितने ज्यादा खतरनाक हैं आप इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।आपको जानकर हैरानी होगी कि ISIS ने , इराक, यमन, सऊदी अरब, अल्जीरिया, इजिप्ट, लीबिया, पाकिस्तान अफगानिस्तान, सीरिया को अपना राज्य घोषित किया है। ISIS अब सीरिया और इराक में अपने मंसुबे मे कामयाब होकर यूरोप में भी दस्तक देने लगा है। फ्रांस में अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने से पहले ISIS के एक सहयोगी संगठन ने सिनाई में आत्मघाती हमला किया था जिसमें चार पुलिसकर्मी मारे गए थे ।

वहीं 31 अक्टूबर को सिनाई में ही रूसी विमान को मार गिराना,जिसमें 224 लोगों की जान गई,साथ ही 12 नवंबर को बेरूत में दोहरे बम विस्फोट, जिसमें 43 लोगों की गई जान। पहले पश्चिम एशिया और अब यूरोप में खूनी खेल खेलना ISIS ने शुरू कर दिया है।जहां ISIS नहीं पहुंच पाता वहां उससे प्रेरित संगठन आतंक फैला रहे हैं।ये भस्मासुर गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों, और बच्चों के साथ इतनी निर्दयता से पेश आ रहे हैं,उनकी हत्याएं कर रहे हैं,जिसे देखकर मानवता भी कांप जाए। धर्म और मजहब के नाम पर मानवता को बांटने वाले इन दानवों का कोई धर्म और मजहब नहीं है।

अब समय आ गया है कि मानवता के दुश्मन ISIS का खात्मा करने किए विस्व समुदाय एक हों और निर्दयता से इनका दमन करे,जिससे हर तरफ चैनओ सूकून कायम हो सके।इसके लिए जरुरी है कि विश्व पटल पर योजनाएं और रणनीति बनाई जाए। विश्व के सभी शक्तिशाली देशों को आतंकवादी संगठन ISIS के खात्मे के लिए एकजुट होकर वैश्विक प्रयास करने होंगे जो काफी हद तक अब किये जा रहे हैं।अब सभी राष्ट्र ये समझने लगे हैं कि ISIS से निपटना किसी एक देश के बस की बात नहीं है और इसके लिए एकजुट प्रयास ही सफल हो पाएंगे।अमेरिका, रुस, फ्रांस और ब्रिटेन लगातार ISIS के ठीकानों पर हवाई हमले कर रहे हैं बावजूद इसके ISIS का दायरा बढ़ता जा रहा है।जिसके लिए कड़ी से कड़ी रणनीति बनानी होगी और आक्रामक होना पड़ेगा।

आज विश्व को लगने लगा है कि बैड टैररिजम और गुड टैररिजम नहीं होता....टेररिजम तो सिर्फ टैररिजम होता है...उसका कोई इमान धर्म नहीं होता।भारत लगातार आतंकवाद पर बोलता रहा है और जी-20 सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र को आतंकवाद को परिभाषित करने की जरूरत है।आतंकवाद का पूरजोर विरोध करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने दुनिया को एक आवाज में आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने और उन देशों को अलग-थलग करने के लिए कहा जो आतंकवादियों को पनाह देते हैं।

बड़ा सवाल उठता है कि ISIS को पैदा करने का जिम्मेदार कौन..?ये बात जानते सभी हैं लेकिन आवाज कोई नहीं उठाता,क्योंकि अपनी ताकत का एहसास और क्षेत्रीय प्रभुत्व जमाने के साथ ही अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ देश ने ही ISIS रुपी भस्मासुर को पैदा किया। मीडिया रिपोर्टों पर विश्वास करें तो ISIS के वजूद के पीछे कोई और नहीं बल्कि अमेरिका ही है।अब तो अमेरिका भी मानता है कि इजरायल तक तेल की पाइपलाइन बिछाने के लिए सीरिया में असद सरकार को सत्ता से हटना जरूरी है। उसने जो बोया है आज दुनिया उसे काट रही है। वहीं कहना गलत नहीं होगा कि ISIS को खड़ा करने में कुत और राष्ट्र जैसे टर्की, सऊदी अरब के सात कतर की भूमिका को भी हम नकारा नहीं सकते।जी-20 के सम्मेलन में जब रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ये कहते हैं कि जी-20 के कुछ देश भी ISIS को फायदा पहुंचा रहे हैं तो उनके इस दावे में सच्चाई भी नजर आती है क्योंकि पुतिन ने कहा है कि ISIS तेल का गैरकानूनी कारोबार करता है। जिसे खत्म करने की जरूरत है। तभी विश्व से ISIS रुपी भस्मासुर का खात्मा हो पाएगा।


अंतत: कहना गलत नहीं होगा कि ISIS विश्व का सबसे निर्दयी,खूंखार आतंकी संगठन बन चुका है।जिसे जड़ से खत्म करना बेहद जरुरी हो गया है,और ये तभी संभव है जब सभी ताकतवर देश अपने व्यक्तिगत हीतों से उपर उठकर सोचेंगे। और आतंकवाद को दो तराजू से ना तौल कर एक ही सांचे मे रखकर देखना होगा।क्योंकि लहू का रंग लाल ही होता है,चाहो वो गोरे का हो,काले का हो या फिर किसी धर्म,मजहब,सम्प्रदाय का हो। मानवता की कराह और दर्द को जब तक मिलकर नहीं सोचेंगे तब तक यूं ही मौत का तांडव ISIS मचाता रहेगा।इसलिए जरुरी है कि ISISका समूचा विश्व मिलकर डट कर मुकाबला करे।

गिरफ्त में ISI के नापाक एजेंट

संदीप कुमार मिश्र: आज विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां आतंकी गतिविधियां ना संचालित हो रही हो।भारत आजादी के बाद से ही इसका शिकार रहा है।पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के नापाक मंसुबों से लगातार देश संघर्ष कर रहा है।और इसके पाकिस्तान देश में बैठे गद्दारों से लगातार संपर्क बनाए हुए है।लेकिन सीमा पर खड़े इस देश के वीर सपूतों नें पड़ोसी मुल्क के नापाक मंसुबों को हर बार विफल कर दिया और कर रहे हैं।
दरअसल भारत की जासूसी के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI  व्हाटसएप और वाइबर नेटवर्क के जरिए सूचनाएं भारत भेजता था। वहीं ISI के एजेंट कैफीयतुल्ला खान और अब्दुल रशिद ईमेल, व्हाट्सएप के साथ ही वाइबर के जरिए खुफिया जानकारी पाकिस्तान तक पहुंचाता था।आपको बता दें कि ये दोनों जासूस भारत के नागरिक हैं, लेकिन काम पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के लिए कर रहे थे।लेकिन इनके नापाक मंसुबों का पर्दाफाश हो गया और अब इन दोनो एजेंट्स को गिरफ्तार करने के बाद पूछताछ के लिए दिल्ली लाया गया है।
आप सोच सकते हैं कि जब देश में ही गद्दार भरे पड़े हों तो बाहरी आक्रमणकारीयों को कितनी आसानी हो सकती है..खैर पुलिस इन गद्दारों से और भी जानकारीयां हासिल करने की कोशिश कर रही है,कि अब तक इन गद्दारों के जरिए किस किस प्रकार की जानकारी ISI को प्रदान की गई है सात ही पुलिस अब्दुल रशिद के अब तक लिए गए सिम कार्ड्स की जानकारी भी खंगाल रही है।
आपको जानकर अचंभा होगा कि विगत 2 साल में ही इन दोनों ने देश में जासूसों की लंबी फौज खड़ी कर दी थी, जो हमारे देश के हर हिस्से में गद्दारी का काम कर रहे थे।आपको बता दें कि 2013 में पहली बार कैफीयतुल्ला पाकिस्तान गया था और वहां से लौटने के बाद देश के साथ गद्दारी का काम शुरु कर दिया ।इन दोनो गद्दारों ने चंद रुपयों पैसे की खातिर सैन्य बलों और भारतीय सेना से जुड़ी खुफिया सूचनाएं साझा करने लगे से अब दोनो ने स्विकार भी कर लिया ।

दरअसल खुफिया जानकारीयों को पहले अब्दुल राशिद,अपने साथी  कैफीयतुल्ला को देता था और फिर कैफीयतुल्ला उन जानकारीयों को ISI को बताता था।जैसे कि भारतीय सीमा पर बीएसएफ के कितने पोस्ट है ?,साथ ही  किस पोस्ट पर कितने सैनिक रहते हैं?,इसके अलावा ये भी कि पोस्ट पर कैसी सुरक्षा व्यवस्था है ?, सैनिकों के पास किस तरह के हथियार हैं ?, एयर ऑपरेशन की भी जानकारी अब्दुल राशिद,और कैफीयतुल्ला देते थे।
राष्ट्र की सुरक्षा के साथ इस प्रकार से किसी को गद्दारी करने का अधिकार नहीं है। लेकिन एक बीएसएफ कर्मी और चार संदिग्ध ISI एजेंटों की गिरफ्तारी के साथ दो अलग-अलग घटनाओं में जम्मू और कोलकाता में ISI से जुड़े जासूसी गिरोह का पर्दाफाश किया गया। एक ओर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दिल्ली और राजौरी से ISI के लिए काम करने वाले दो एजेंटों को पकड़ा, तो दूसरी तरफ कोलकाता में भी 3 एजेंटों का धर दबोचा गया।आपको जानकर जरा भी हैरानी होगी कि कोलकाता से जो ISI  के 3 एजेंट पकड़े गए उनमें से एक पिता-पुत्र हैं तो तीसरा उनका ही रिश्तेदार निकला।कुथ और पहले नजर ड़ालें तो मेरठ से एक ISI एजेंट और कोलकाता से पहले भी 2 जासूसों को पकड़ा गया था ।

अंतत: आप सोच सकते हैं कि जब देश में गद्दारों की फौज खड़ी हो तो सबसे पहले किसका दमन करने की जरुरत है...?,क्योंकि कोई भी राष्ट्र तभी सशक्त बन सकता है जब वहां के नागरीक देश के प्रति इमानदार हों।सरकार को इस तरह के देश विरोधी तत्वों से कड़ाई से पेस आना चाहिए और ऐसी ताकतों का मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।क्योंकि तभी सशक्त भारत का निर्माण होगा और एक भारत श्रेष्ठ भारत बन पाएगा।


Sunday 29 November 2015

बेटे की चाह ही क्यों..! आखिर कब बदलेगी भारतीय सोच.?



संदीप कुमार मिश्र: जमाना बदल रहा है,मिजाज भी बदल रहा है,तरक्की की राह पर अग्रसर दे के लोगों का जीवन स्तर भी बेहतर हो गया है। हमारा देश भारत लगातार आर्थिक तरक्की कर रहा है, लेकिन बेहद अफसोस की आज भी लोगों की सोच वही है जहां सिर्फ बेटे की चाहत रखी जाती है!क्या लड़कियां किसी मामले में कम हैं लड़को के..? या फिर उका समर्पण परिवार के प्रति कम होता है...?क्या सिर्फ कहने के लिए हम आधुनिक हो रहे हैं लेकिन ख्यालात पुराने ढर्रे पर ही है आज भी...? 

दरअसल किसी जमाने में हमारे देश में ये कहा जाता था कि साक्षरता के अभाव में लोग बेटियों को गर्भ में मारते थे और बेटे की चाहत रखते थे।लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आंकड़े कुछ और ही बयां करते हैं।दरअसल भारत की साक्षरता में पिछले एक दशक के दौरान 11 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई, लेकिन लड़कियों के प्रति इस देश का नजरिया वहीं का वहीं रह गया है।मतलब साफ है कि 21 वीं सदी के भारत में भी लोगों में बेटों की चाहत बरकरार है। बेटियों को जन्म देना आज भी हमारे समाज में मजबूरी समझा जाता है।

ज्यादा अफसोस तो तब होता है कि हम जानते है कि एक पढ़ी लिखी,साक्षर बेटी दो परिवारों को शिक्षित बनाती है, मां पत्नी और बहन के रुप में,हर कदम पर लड़कियां जिंदगी के हर मोड़ पर, हर जंग में पुरुषों का साथ हर कदम पर निभाती है।तभी तो सदियों से,युगों-युगों से सनातन संस्कृति के संवाहक देश भारत में नारी को नारायणी माना जाता है ,देवी माना जाता है।उसकी पूजा की जाती है। उन्हें गृहलक्ष्मी माना जाता है। लेकिन क्या हकीकत में स्त्री को यह सम्मान मिल रहा है हमारे समाज में ?यकिनन जवाब है, नहीं। आज भी हमारे सोच की धूरी में लड़का ही है,क्योंकि 21 वीं सदी में रहने पर भी हमें यही लगता है कि बुढ़ापे का सहारा बनने और अपने वंश को आगे ले जाने के लिए तो बेटा ही चाहिए।
  

हमारे समाज में बेटियों के प्रति बड़ा ही उदासीन रवईया अपनाया जाता है,और बेटों को ही तवज्जो दी जाती है। हमारे देश में साक्षरता का स्तर और संपन्नता का ग्राफ बढ़ रहा है,लेकिन सोच अब भी वही है। हाल ही में आए परिवार के आकार और लिंगानुपात के आंकड़ों की माने तो बेटा पाने की चाहत में आज भी लोग गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करवाने और बार-बार गर्भधारण जैसे तरीके अपना रहे हैं। इसके मुताबिक बड़े परिवारों में लिंगानुपात में कम अंतर नजर आया. इससे पता चलता है कि जिन परिवारों में बेटे कम थे या नहीं थे वहां बार-बार प्रेग्नेंसी को चुना गया।या यूं कहें कि तब तक बार-बार गर्भधारण किया जाता है, जब तक कि बेटा पैदा न हो जाए। यही वजह है कि ऐसे परिवारों की संख्या 9 लाख थी,जिनमें सभी 6 लड़कियां थीं जबकि सभी 6 बेटों वाले परिवारों की संख्या महज 3 लाख ही थी।

थोड़ी और गहराई मे जाएं तो पता चलता है कि जिन महिलाओं के एक ही बच्चे थे,उनमें से 2.2 करोड़ महिलाएं ही बेटियों की मां थीं, जबकि ऐसी 2.85 करोड़ महिलाओं के पास बेटे थे।इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि लड़कियों की तुलना में कहीं ज्यादा संख्या में लड़के पैदा हुए। इतना ही नहीं जिन महिलाओं के दो बच्चे थे,उनमें से 2.6 करोड़ महिलाओं के दो बेटों थे,जबकि इससे लगभग आधी संख्या यानी कि 1.33 करोड़ महिलाएं ही ऐसी थी, जिनकी दो बेटियां थीं। कुछ ऐसी ही स्थिति उन परिवारों की भी है,जिनके तीन बच्चे हैं। ऐसे परिवारों में भी सभी तीन लड़के या दो लड़के और एक लड़कियों की संख्या उन परिवारों से ज्यादा थी, जहां तीनों लड़कियां थीं या दो लड़कियां और एक लड़का था।

वहीं लिंग जांच न करवाने वाले बड़े परिवारों में तो और भी चौंकाने वाली बात सामने आती है। इन परिवारों में बेटों की चाह में बार-बार गर्भधारण करने का चलन दिखता है।यही कारण है कि  जिन परिवारों में 6 बच्चे थे,उनमें छह लड़कों की बजाय छह लड़कियों के होने की संभावना ज्यादा थी।आंकड़ों की माने तो परिवार के बड़े होने पर लड़कियों के बचने की संभावनाएं घटती जाती हैं।जिन परिवारों में एक ही बच्चा है उनमें लड़कियों के लड़के मुकाबले बचने की संभावनाएं ज्यादा होती है, क्योंकि लड़कियों की प्राकृतिक शिशु मृत्युदर लड़कों से कम होती है।दो बच्चों वाले परिवारों में लड़कियों के बचने की संभावनाएं काफी घट जाती है, लेकिन 6 बच्चों के परिवारों में तो लड़कियों के बचने की संभावनाएं सबसे कम होती हैं।


शायद यही वजह है कि तमाम प्रयासों के बावजूद अब भी देश में महिला और पुरुष लिंगानुपात में जबर्दस्त अंतर है। खासकर 0-6 वर्ष की उम्र के बच्चों का लिंगानुपात वर्ष 2001 के प्रति एक हजार लड़कों पर 923 लड़कियों के मुकाबले घटकर वर्ष 2011 में प्रति एक हजार लड़कों पर 919 रह गया।जिससे पता चलता है कि भारतीयों की पढ़ी-लिखी आबादी भी बच्चियां पैदा करने से न सिर्फ हिचकता है,बल्कि उन्हें गर्भ में मारा भी जा रहा है।यूनीसेफ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर रोज लड़कों की तुलना में 7 हजार लड़कियां कम पैदा होता हैं, जबकि ब्रिटिश मेडिकल जनरल लैंसेट के मुताबिक देश में हर साल 5 लाख लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है।

अंतत: हम भारतियों को ये जानना और मानना होगा कि लड़कियां किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं है,जरुरत है तो उन्हें प्रोत्साहित कर आगे लाने की,शायद ही आज देश का कोई ऐसा क्षेत्र हो,जिसमें इस देश की बेडियां अग्रणी भूमिका ना निभा रही हों...।देश को विकास की रफ्तार देनी है तो बेटियों को उनका हक देना होगा,धरती पर आने देना होगा,शिक्षित बनाना होगा।यकिन मानिए भाईयों बेटियां ईश्वर का दिया हुआ ऐसा उपहार हैं जिनके बीना सृष्टी की कल्पना ही नहीं की जा सकती।



फारूख साब क्या बोल गए आप...?

संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों एक बात तो आप मानेंगे ही कि हमारे देश में नेता जी की श्रेणी में आने वाले सम्माननिय कुछ भी बोल सकते हैं,उनकी जुबान पर कोई लगाम नही हैं।ना ही उन्हें कोई रोक सकता है।जिसका एक नजारा पेश किया फारुख अब्दुल्ला साब ने..।जिन्हे मालूम ही नहीं की क्या बोलना चाहिए,क्या नहीं।मन में आया बोल दिया।पुराने बुद्धिजीवी नेता है फारुख साब।अफसोस की बोलते बोलते कभी इतना ज्यादा बोल जाते हैं कि 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के दायरे से बाहर निकलकर देश हित का भी ख्याल नहीं रखते जनाब फारूक साब...


दरअसल फारुख साब को नहीं मालूम की मीडिया को खोजी कैमरा कुछ और तलास करे ना करे लेकिन आप जैसे बयानवीरों को जरुर खोजता रहता है और आपको बाकायदे टीवी पर बिना मिर्च मसाले के परोसता है क्योंकि पहले ही आप इतना बोल चुके होते हैं कि मिर्च मसाला की जरुरत नहीं पड़ती।और आपके विरोधी तो हैं ही आपकी बातों को लपकने के लिए...।
फारुख साब बुरा मत मानिएगा...इस बार आपने बहुत गलत बयानबाजी की। किसी मुद्दे पर भारत के स्टैंड के लिहाज से यह बिल्कुल शुभ नहीं है,हां ये अलग बात है कि कुछ दिनों पहले ही आमिर खान ने जब कहा कि उनकी पत्नी किरण राव डरी हुई महसूस कर रही थी, तो जबर्दस्त हंगामा मचा। सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहों पर लोग आमिर खान को कोसते नजर आए।लेकिन जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्लाह साब इस मामले में भाग्यशाली रहे।क्योंकि फिलहाल हंगामा नहीं बरपा उनके बयान पर,शायद इसलिए कि संसद का शीत सत्र शुरु होने वाला है।
आप भी जान लें दोस्तों कि आखिर फारूक अब्दुल्ला ने कैसे बोले नापाक बोल-
फारूख के नापाक बोल नंबर-1
पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) हमेशा पाकिस्तान का हिस्सा रहेगा, जबकि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है। साथ ही मियां फारूक साब ने यह भी कहा कि हम न जाने कितने वर्षों से यह कहते आ रहे हैं, कि कश्मीर भारत का हिस्सा है, लेकिन इसके अलावा हमने क्या किया. क्या हम पीओके को भारत में मिलाने में कामयाब रहे?
फारूख के नापाक बोल नंबर-2
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पीओके पाक को सौंपने को तैयार हो गए थे, लेकिन तत्कालीन पाक राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ इसपर राजी नहीं हुए।
फारूख के नापाक बोल नंबर-3
चाहे हिंदुस्तान की सारी फौज जम्मू-कश्मीर में लगाई जाए, तब भी सरकार हमें आतंकवादियों से नहीं बचा सकती।

फारुख साब हम देशवासी जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पुराना है। हालांकि यह भी सच है कि भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर कभी बहुत एग्रेसिव मूड नहीं दिखाया।बावजूद इसके हमारी सरकारें लगातार इस बात को कहती रही हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। यही नहीं 22 फरवरी, 1994 को देश की दोनों सदनों ने भी  ध्वनिमत से पारित एक प्रस्ताव में पीओके पर अपना हक जताते हुए कहा था कि ये भारत का अटूट अंग है और पाकिस्तान को कश्मीर के उस भाग को छोड़ना होगा जो उसके कब्जे में है।

अफसोस भी होता है कि भारत का यह 20 साल पुराना संकल्प अबतक अधूरा है।सरकारें आती और जाती रही, लेकिन पीओके को लेकर क्या कोशिश हुई, आज भी तस्वीर साफ नहीं है।फिर भी, फारूक साब को भारत की संसद की ओर से पारित प्रस्ताव का ख्याल तो रखना ही चाहिए था और सोचसमझ कर बयान देने चाहिए थे।

अंतत: अब ये तो मालुम नहीं कि फारुख अब्दुल्ला अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए और खबरों में बने रहने के लिए इस तरह के मुद्दे को उठा रहे हैं,या फिर भूलने की बीमारी से ग्रस्त हैं या फिर जानबूझकर इस तरह के बयान दे रहे हैं ताकि अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए खबरों में बने रहें।बहरहाल नेता चाहे कितने भी बड़े क्यों ना हो,देश की एकता,अखण्डता और अस्मिता पर नापाक बयानबाजी करने का किसी को हक नहीं,खासकर बात जब जम्मू-कश्मीर की हो तो समझौते की कोई गुंजाईश ही नहीं,क्योंकि पूर्व में जो गलतीयां हो चुकी हैं अब देश उसे कतई नहीं दोहराएगा और देश के नापाक दुश्मनो का मुंहतोड़ जवाब देगा...।



बिग बॉस या बकवास बॉस का घर...?


संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों क्या बिग बॉस का ये सीजन आपको पसंद आ रहा है..? क्या आपको एसा नहीं लग रहा है कि इस बार के सभी प्रतिभागी अव्वल दर्जे के बकवास हैं..?क्या ऐसा नहीं लगता कि बिग बॉस में अब खानापूर्ती हो रही है..? क्या अब बिग बॉस ऊंची दुकान फीकी पकवान वाली कहावत को ही आगे बढ़ा रहा है...?
अब भई हम आप बिग बॉस क्यों देखते हैं...? मनोरंजन के लिए ही ना...।लेकिन क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इस बार का ये सीजन मनोरंजन की जगह पर अश्लिलता परोस रहा है।जितने भी सदस्य बिग बॉस के घर में है उनके द्वारा की जाने वाली गंदी हरकतें और शो के प्रति उनकी बेवफाई नाकाबिले बर्दास्त है..?या फिर सब टीआरपी का फंड़ा है...?

खैर ऐसे भी बिग बॉस का विवादों से चोली दामन का संबंध रहा है,लेकिन इस बार तो खास तौर पर लगता है कि कास्टिंग डायरेक्टर ने सही लोगो का चयन ही नहीं किया है।और यही वजह है कि इस बार का बिग बॉस अपनी गंदी बातों की वजह से बहुत ज्यादा नाकाबिले बर्दाश्त हो गया है।
अब आप ही सोचिए कैसा भी टास्क चल रहा हो,इसका मतलब क्या कि पैंट में ही लधुशंका कर दिया जाएगा और तो और प्रताड़ित करने के लिए लधुशंका का खेल खेला जा रहा है।इतना ही नही लघुशंका एक-दूसरे पर फेंका भी जा सकता है।अब शो में किश्वर और प्रिया लघुशंका(सू सू) से खूब खेलीं।जरा सोचिए कि इसे आप क्या कहेंगे,ये कौन सा खेल,जिसे नेशनल चैनल पर खुलेआम दिखाया जा रहा है।वहीं खाने में थूकना कौन सा खेल है,गेम ही सही लेकिन ऐसा गंदा गेम खेलने की क्या जरुरत।खैर ऐसे प्रतियोगियों की सलमान खान ने अच्ची क्लास ली। लेकिन क्या ये भी कोई खेल है।

जरा सोचिए कि अगर खेल में दिलचस्पी नहीं है और आप ठीक से नहीं खेल सकते तो पागल कुत्ते ने काटा था कि खेल में आप आएं,इससे तो सिर्फ बिग बॉस के सदस्यों की दुषित मानसीकता ही सामने आती है।अब रिमी सेन को ही लिजिए जो शो में खुद को इस तरह से प्रतुत कर रही हैं जैसे दर्शकों पर एहसान कर रही हों, और उन्हें वोट देने वाले लोग उन्हें शो में रखकर खुद अपने आप पर एहसान कर रहे हैं।उधर दिगंगना जी हैं जिन्हें शो में आने से पहले ये पता ही नहीं था कि वो सिर्फ 18 साल की हैं।भई तो वे शो में आई ही क्यों..? नन्हीं बच्ची और गुडिया बनकर तो आप घर पर ही रह सकती थी। बिग बॉस के सभी सदस्य जमकर हिंदी की जगह अंग्रेजी का इस्तेमाल कर रहे हैं।हिंदी भी ऐसी बोल रहे हैं कि जैसे हिंदी पर एहसान कर रहे हो।अब तो बिग बॉस के सदस्य मनोरंजन से मोह भंग करवा रहे हैं।

कहना गलत नहीं होगा कि बिग बॉस से जहां स्वस्थ मनोरंजन की उम्मीद की जाती थी वो अब उतना ही बड़ा सिरदर्द बनता जा रहा है। घर का शायद ही कोई ऐसा सदस्य हो जो दर्शकों को बांध कर रखने में कामयाब हो सके।इस पुरे शो में कोई आत्ममोह (प्रिंस, रिषभ)का शिकार है, तो कोई जानता है कि लड़कर ही (मंदाना)गुजारा हो सकता है, सीखा-सिखाया खिलाड़ी (प्रिया), ये कहां आ गए हम (दिगंगगना और रिमी) और पेड हनीमून (किशवर-सुयश) पर आया हुआ है।


अंतत: भाईयों हो सकता है कुछ लोगो को ये शो अच्छा भी लगता हो।लेकिन कम से कम मेरी नजर में इसे स्वस्थ मनोरंजन नहीं कहा जा सकता,जिसे आप सपरिवार बैठकर घर में देख सकें,माना की शो में जीतने के लिए साम दाम दंड भेद की जरुरत होती है लेकिन फिर स्तर और मर्यादा का ख्याल तो रखना ही चाहिए क्योंकि देश देख रहा है।लिखने की जरुरत भी तभी पड़ी की अब तक जितनी भी प्रतिक्रिया मिली, हर किसी में नकारात्मकता ही नजर आयी।खैर ख्याल रखें आप भी और बिग बास के आका भी जो इस शो को संचालित कर रहे हैं,क्योंकि जरुरी है अश्लिलता परोसने की बजाय आप मनोरंजन का व्यापार करें....। 

Saturday 28 November 2015

संसद का शीत सत्र : ठंडी में गरमी का एहसास...!


संदीप कुमार मिश्र: बिहार चुनाव संपन्न हो गया...महागठबंधन की सरकार बन गयी।माहौल शांत हुआ।शोरशराबा थम गया। केंद्रीय टीम भी वापस दिल्ली आ गयी। अब आगामी अन्य राज्यों के होने वाले चुनाव में थोड़ा वक्त है।आप उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ दिन बयानो का दौर शायद थमा रहेगा।लेकिन 26 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो गया ।सन 1949 में 26 नवम्बर के दिन ही हमारे देश में संविधान को क्रियान्वित किया गया था।18 महिने पहले मई 2014 में लोकसभा में शानदार बहुमत के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार द्वारा जमीनी तौर पर ऐसा कोई भी कार्य देखने को नही मिला जिसे अच्छे दिन का संकेत माना जाए।जनहीत के तमाम महत्वपूर्ण बिल जैसे जीएसटी, भूमि बिल को अब भी संसद से हरी झंडी का इंतजार हैं।

दरअसल जिस प्रकार से संसद में हो हंगाम होता आ रहा है और नेताओं की जिसप्रकार से प्रतिक्रियाएं देकने को मिल रही है,उसे देखकर तो यही लगता है कि जैसे तमाम महत्वपुर्ण विधेयकों को शीत सत्र में भी पास कराने में भी सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। दरअसल मोदी सरकार के लिए एक बड़ी अड़चन राज्यसभा में बहुमत ना होना भी है।जिसकी वजह से निकट भविष्य में मुश्किलें खड़ी होती नजर आ रही है।

सत्र के शुरुआती दो दिन तो संविधान रचयिता बाबा साहेब अंबेडकर के सम्मान में निकल गया,संसद में प्रधानमंत्री ने आइडिया आफ इंडिया पर जोरदार और शानदार भाषण दिया। जिसपर विपक्ष ने भी शांति का सहयोग दिया।जिसे देखकर उम्मीद लगाया जा सकता है कि संसद चल सकती है।क्योंकि प्रधानमंत्री ने चाय पर पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांदी से मुलाकात की।ऐसे में एक बार लगा कि संसद चल सकती है,लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो इस वक्त लोकसभा में करीब आठ और राज्यसभा 11 विधेयक लंबित पड़े हैं। पिछले मॉनसून सत्र में तमाम नियम-कायदों को माखौल उड़ते हम संसद में देख चुके हैं।अब आप जरा गौर करें तो पिछला सत्र तो ललित मोदी प्रकरण, व्यापम घोटाला और विवादित बयानों पर तकरार के चलते जनता के 250 करोड़ रुपये की बली चढ़ गया।जिसके बाद अब शीतकालीन सत्र में कामकाज ठीक ढ़ंग से चल पाएगा उम्मीद कम ही नजर आ रही है।

दरअसल शीत सत्र में भी 'असहिष्णुता' को लेकर विपक्ष संसद में हंगामा कर सकता है। कहना गलत नहीं होगा कि संसद के शीत सत्र में भी गरमी का एहसास देखने को मिले।एक बार फिर वही शोर मचाते नेता जी, कागज फाड़ते और तख्तियां लहराते सांसदगण, बात-बात पर इस्तीफे की मांग करती दूर्भाग्यपूर्ण आवाजें।माना कि इस्तीफे की मांग करने में कोई बुराई नहीं।क्योंकि हमारे भारतीय लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि विपक्ष अपनी आवाज मजबूती से उठा सकता है।लेकिन क्या कभी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा हुआ है इस देश में।शायद ऐसे उदाहरण कम ही आपको देखने को मिलेंगे।

अब जिस तरह से बिहार में चुनाव हुए और महागठबंधन की ऐतिहासिक जीत हुई और बीजेपी को मिली करारी हार। उससे कहीं ना कहीं विपक्ष के हौंसले बुलंद हैं।ऐसे में जिस प्रकार से  राहुल गांधी लगातार एक के बाद एक हमले सरकार पर कर रहे हैं,उससे संसद में गरमी बढ़ने के आसार ज्यादा ही लगते हैं। सवाल उठता है कि क्या विपक्ष की ही जिम्मेदारी है कि सदन की गरिमा भंग ना हो,क्या जरुरू नहीं कि सत्ता पक्ष भी मनसा वाचा कर्मणा विपक्ष की भावनाओं को नजरअंदाज ना करते हुए जनहित का ख्याल करे।क्योंकि संसद लोकतंत्र का मंदिर है और मंदिर में किसी भी अपद्रव्य को आने की जरुरत नहीं है लेकिन अफसोस कि हमाओं के झोंके किसी एक के लिए नहीं होते और उस लहर में हर कोई पार उतर जाता है,शायद कुछ ऐसा ही हुआ 2014 लोकसभा चुनाव में भी।और ऐसी नापाक जुबान के धनी पक्ष और विपक्ष दोनो दलों में है जो कहते तो खुद को जनप्रतिनिधि हैं लेकिन लगता है कि मानवता के सबसे बड़े शत्रु वही हैं।


अंतत: देश की जनता को उम्मीद और इंतजार है विकास का,वहीं किसानों को इंतजार है कृषि संबंधी मसलों के समाधान का,साथ ही जिस युवा शक्ति के नाम पर मोदी जी देश को महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर लगातार बताते रहते हैं उसे इंतजार है ऐसी सम्मानजनक नौकरी का; जिसका वेतन किसी को बताते समय यूवाओं को शर्म महसूस ना हो।उम्मीद ही नहीं आशा और विश्वास भी है कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी स्वच्छ भारत अभियान की नई शुरुआत खुद की पार्टी से ही करेंगे,साथ ही विपक्षी दिग्गज भी अपने बुरे दिनो को ध्यान में रखते हुए जनहीत का ख्याल रखेंगे और तमाम जनहित के महत्वपूर्ण बिल संसद में पेश करने में सहयोग करेंगे।वरना जनता तो तैयार ही है शीत सत्र में गर्मी का एहसास करने के लिए।