Tuesday 28 March 2017

चैत्र नवरात्र : माँ दुर्गा के नौ दिव्य, मनोरम व कल्याणकारी स्वरूप...!!!

संदीप कुमार मिश्र: जिस प्रकार सृष्टि या संसार का सृजन ब्रह्मांड के गहन अंधकार के गर्भ से नवग्रहों के रूप में हुआ , उसी प्रकार मनुष्य जीवन का सृजन भी माता के गर्भ में ही नौ महीने के अन्तराल में होता है। मानव योनि के लिए गर्भ के यह नौ महीने नवरात्रों के समान होते हैं, जिसमें आत्मा मानव शरीर धारण करती है।
 नवरात्र का अर्थ शिव और शक्ति के उस नौ दुर्गाओं के स्वरूप से भी है , जिन्होंने आदिकाल से ही इस संसार को जीवन प्रदायिनी ऊर्जा प्रदान की है और प्रकृति तथा सृष्टि के निर्माण में मातृशक्ति और स्त्री शक्ति की प्रधानता को सिद्ध किया है। दुर्गा माता स्वयं सिंह वाहिनी होकर अपने शरीर में नव दुर्गाओं के अलग-अलग स्वरूप को समाहित किए हुए है।
चैत्र नवरात्र में इन सभी नव दुर्गाओं को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक पूजा जाता है।चैत्र नवरात्र से ही नव संवत,नव वर्ष का प्रारंभ भी सनातन धर्म में माना जाता है। महर्षि मार्कण्डेय को ब्रह्मा जी द्वारा नव दुर्गा को इस क्रम के अनुसार संबोधित किया है-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।
कलश स्थापना
अपने घर के पूजा स्थान में मां दुर्गा का चित्र रखें. उसके सामने शुभ समय में कलश की स्थापना करें. कलश के पास वेदी बनाकर जौ बोयें, दीप जलाकर पूजा का आरम्भ करें, पूजा के बाद मां दुर्गा की आरती अवश्य करें।
 प्रथम दुर्गा शैलपुत्री : देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।शैलराज हिमालय की कन्या ( पुत्री ) होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप 'शैलपुत्री' कहलाया है।  ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं।  नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल , दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू - कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है , वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है , उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है ! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: |
द्वितीय ब्रह्मचारिणी : नवदुर्गाओं में दूसरी दुर्गा का नाम ब्रह्मचारिणी है। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना आदि विद्याओं की ज्ञाता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता है। इसका स्वरूप सफेद वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है , जिसके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल विराजमान है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्नन विद्या देकर विजयी बनाती है ।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: |
 तृतीय चन्द्रघंटा : शक्ति के रूप में विराजमान चन्द्रघंटा मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए हुए है। माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है। नवरात्र के तीसरे दिन इनकी पूजा-अर्चना भक्तों को जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्त कर इहलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है। देवी स्वरूप चंद्रघंटा बाघ की सवारी करती है। इसके दस हाथों में कमल , धनुष-बाण , कमंडल , तलवार , त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र हैं। इसके कंठ में सफेद पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। अपने दोनों हाथों से यह साधकों को चिरायु आरोग्य और सुख सम्पदा का वरदान देती है।
 चतुर्थ कूष्मांडा : नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है।त्रिविध तापयुत संसार में कुत्सित ऊष्मा को हरने वाली देवी के उदर में पिंड और ब्रह्मांड के समस्त जठर और अग्नि का स्वरूप समाहित है। कूष्माण्डा देवी ही ब्रह्मांड से पिण्ड को उत्पन्न करने वाली दुर्गा कहलाती है। दुर्गा माता का यह चौथा स्वरूप है। इसलिए नवरात्रि में चतुर्थी तिथि को इनकी पूजा होती है। लौकिक स्वरूप में यह बाघ की सवारी करती हुई अष्टभुजाधारी मस्तक पर रत्नजड़ित स्वर्ण मुकुट वाली एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा है। इसके अन्य हाथों में कमल , सुदर्शन , चक्र , गदा , धनुष-बाण और अक्षमाला विराजमान है। इन सब उपकरणों को धारण करने वाली कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग शोक और विनाश से मुक्त करके आयु यश बल और बुद्धि प्रदान करती है।
 पंचम स्कन्दमाता : नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। श्रुति और समृद्धि से युक्त छान्दोग्य उपनिषद के प्रवर्तक सनत्कुमार की माता भगवती का नाम स्कन्द है। अतः उनकी माता होने से कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को पांचवीं दुर्गा स्कन्दमाता के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि में इसकी पूजा-अर्चना का विशेष विधान है। अपने सांसारिक स्वरूप में यह देवी सिंह की सवारी पर विराजमान है तथा चतुर्भज इस दुर्गा का स्वरूप दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनत्कुमार को थामे हुए है। यह दुर्गा समस्त ज्ञान-विज्ञान , धर्म-कर्म और कृषि उद्योग सहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाती है।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ||
 षष्टम कात्यायनी : माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह दुर्गा देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के स्वरूप पालन पोषण किया साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। यह दानवों और असुरों तथा पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है। वैदिक युग में यह ऋषिमुनियों को कष्ट देने वाले प्राणघातक दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थी। सांसारिक स्वरूप में यह शेर यानी सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी कहलाती है। इसके बाएं हाथ में कमल और तलवार दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: |
सप्तम कालरात्रि : माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है। विनाशिका होने के कारण इसका नाम कालरात्रि पड़ गया। आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानी काले रंग रूप की अपनी विशाल केश राशि को फैलाकर चार भुजाओं वाली दुर्गा है , जो वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती है। इसकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड़क तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि सचमुच ही अपने विकट रूप में नजर आती है। इसकी सवारी गंधर्व यानी गधा है , जो समस्त जीवजंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। कालरात्रि की पूजा नवरात्र के सातवें दिन की जाती है। इसे कराली भयंकरी कृष्णा और काली माता का स्वरूप भी प्रदान है , लेकिन भक्तों पर उनकी असीम कृपा रहती है और उन्हें वह हर तरफ से रक्षा ही प्रदान करती है।
 अष्टम महागौरी : माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। नवरात्र के आठवें दिन आठवीं दुर्गा महागौरी की पूजा-अर्चना और स्थापना की जाती है। अपनी तपस्या के द्वारा इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था। अतः इन्हें उज्जवल स्वरूप की महागौरी धन , ऐश्वर्य , पदायिनी , चैतन्यमयी , त्रैलोक्य पूज्य मंगला शारिरिक , मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया है। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की आयु की होने के कारण नवरात्र के आठवें दिन पूजने से सदा सुख और शान्ति देती है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए इसके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। यह धन-वैभव और सुख-शान्ति की अधिष्ठात्री देवी है। सांसारिक रूप में इसका स्वरूप बहुत ही उज्जवल , कोमल , सफेदवर्ण तथा सफेद वस्त्रधारी चतुर्भुज युक्त एक हाथ में त्रिशूल , दूसरे हाथ में डमरू लिए हुए गायन संगीत की प्रिय देवी है , जो सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार है।
 नवम सिद्धिदात्री : माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यह देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान है और हाथों में कमल शंख गदा सुदर्शन चक्र धारण किए हुए है। देव यक्ष किन्नर दानव ऋषि-मुनि साधक विप्र और संसारी जन सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नवें दिन करके अपनी जीवन में यश बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री देवी उन सभी महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां भी प्रदान करती हैं , जो सच्चे हृदय से उनके लिए आराधना करता है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा उपासना करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करके जो भक्त नवरात्र का समापन करते हैं , उनको इस संसार में धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है , जो सफेद वस्त्रालंकार से युक्त महा ज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती है। नवें दिन सभी नवदुर्गाओं के सांसारिक स्वरूप को विसर्जन की परम्परा भी गंगा , नर्मदा , कावेरी या समुद्र जल में विसर्जित करने की परम्परा भी है। नवदुर्गा के स्वरूप में साक्षात पार्वती और भगवती विघ्नविनाशक गणपति को भी सम्मानित किया जाता है।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: |

माता शेरावाली आपसभी की मनोकामनाएं पूर्ण करें।।।जय माता दी।।।

Wednesday 22 March 2017

ये देश राम का है


संदीप कुमार मिश्र: समय का चक्र निरंतर चलता रहता है,स्थितियां,परिस्थितियां बनती और बिगड़ती रहती है।लेकिन राम करोड़ो-करोड़ो जनमानस के आस्था और विश्वास का केंद्र बिन्दु हैं। संपूर्ण मानव जाति मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम को अनुसरण करती है।जिससे मोहरुपी संसार में रहते हुए भी धर्म-संस्कृति-सभ्यता की रक्षा की जा सके।क्योंकि 21वीं सदी के इस संसार में सब कुछ तो है लेकिन विलुप्त हो रही है तो वो है मानवता,संस्कार,आचरण और मर्यादा...क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति हम पर हावी होती जा रही है और हम स्वयं उस रास्ते पर चल पड़े हैं जिसका अंतिम पड़ाव अंधकार रुपी गहरी खाई है,जिससे निकल पाना संभव नहीं,इसलिए आवश्यक है कि अनुसरण और वरण उस विचार का किया जाय जिससे स्वयं संग समाज का उत्थान हो सके,ना कि कार्य ऐसा करें जिससे भविष्य पतन की ओर अग्रसर हो....ऐसे में नि:संदेह अनुसरण और धारण करने योग्य कोई है तो वो हैं प्रभु श्री राम...।यहां कहना जरुरी है-
जय श्री राम
ये देश राम का है,परिवेश राम का है।
अरी का संहार करना आदेश राम का है,
हनुमान ने जब बनाई थी राख सर्व लंका,
तो राम जन्म भू को क्या सोच क्या शंका।
हो राम का मुखातिब और भारती भी हो,
संभव नहीं कभी भी कह दो बजा के डंका,
भारत वसुंधरा क्या ये संसार जानता है,
ये देश अयोध्यापति मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्री राम का है।
ऐसे में तनिक भी संदेश किसी भी भारतवासी चाहे वो किसी भी धर्म संप्रदाय का हो उसके मन में नहीं होना चाहिए कि रामलला कहीं और विराजमान होंगे।अवधपति प्रभु श्री राम अवधधाम में अपने जन्मस्थान पर ही विराजमान होंगे।क्योंकि ये सिर्फ जनभावना की बात नहीं,ये तो संस्कृति मर्यादा की भी बात है कि जिस रामराज्य की कल्पना हम करते हैं वो राम जी के बगैर कैसे पूरी हो सकती है।जय श्री राम ।
प्रभु श्रीराम का चरित्र तो मानव जाति के लिए तेजोमय दीप स्तंभ है। वस्तुतः भगवान राम मर्यादा के परमादर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्रीराम सदैव कर्तव्यनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं।उन्होंने कभी भी लोक-मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रकट नहीं होने दिया।इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं -
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा।
एक राम का सकल पसारा, एक राम है सबसे न्यारा॥
इस प्रकार प्रभु श्रीराम के चार रूप बताए गए हैं-मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ-नंदन, अंतर्यामी, सौपाधिक ईश्वर तथा निर्विशेष ब्रह्म।लेकिन इन सबमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पूजनीय है,सर्वोपरि है प्रभु श्री राम का अवतार।


।।जय श्री राम।।

Thursday 16 March 2017

यूपी-उत्तराखण्ड की जीत है प्रचंड: बीजेपी का बढ़ रहा जनाधार

संदीप कुमार मिश्र: एक के बाद एक लगातार प्रचंड जीत हासील कर बीजेपी लगातार अपना जनाधार बढ़ा रही है।तकरिबन देश के आधे भूभाग पर बीजेपी की सरकारे हैं।सियासत और दिल्ली की सत्ता का रास्ता जिस प्रदेश से होकर जाता है उसे उत्तर प्रदेश कहते है,2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में भी बीदेपी ने देश की आजादी के बाद से अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल कर विपक्ष को करीब करीब खत्म ही कर दिया है।2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से बीजेपी ने जात धर्म पंथ और भेदभाव की दीवार को तोड़कर पूर्ण बहुमत हासिल किया था यकिनन 3 साल बाद लोकतंत्र के अर्ध कुंभ में उसकी पूनर्रावृति कर अपने जनाधार को निरंतर आगे बढ़ाया है और जनता के विश्वास को कायम रखा है।वास्तव में लोकतंत्र के लिए ये एक शुभ संकेत है।

ये जीत इतनी आसान नहीं थी।अब जरा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के बारे में कुछ आंकड़े भी जान लें...लगभग 10 करोड़ से ज्यादा बीजेपी के सक्रिय सदस्य। 55 लाख 20 हजार से ज्यादा स्वयंसेवक,और देश भर में 56 हजार 859 शाखायें। वहीं 28 हजार 500 विद्यामंदिर।जिसमें पढ़ाने वाले 2 लाख 20 हजार आचार्य और पढ़ने वाले 48 लाख 59 हजार छात्र । इतना ही नहीं 83 लाख 18 हजार के लगभग मजदूर बीएमएस के सदस्य। 589 प्रकाशन सदस्य,4 हजार पूर्ण कालिक सदस्य,एक लाख पूर्वसैनिक परिषद, 6 लाख 85 हजार वीएचपी-बंजरंग दल के सदस्य हैं। ये आंकड़े कम या ज्यादा हो सकते हैं,लेकिन देश भक्ति की विचारधारा को जनमानस तक पहुंचाने के लिए सवा सौ करोड़ के देश में मायने तो रखते ही हैं।

कहने का मतलब है कि सवा सौ करोड़ के देश में सामाजिक और सांगठनिक तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनगिनत संगठन और भारतीय जनता पार्टी यानि बीजेपी का राजनीतिक विस्तार किस रुप में हो चुका है, हम सहज ही समझ सकते हैं। यकिनन यही वजह है कि सियासत में सत्ता पाने के लिए जिस सामाजिक सांगठनिक हुनर की आवश्यकता होती है वो बीजेपी के अलावा देश के किसी अन्य पार्टी में नहीं है।स्वाभाविक है कोई दूसरा राजनीतिक दल संघ-बीजेपी के इस विस्तार के आगे कैसे टिक पाएगा।


बहरहाल कहना गलत नहीं होगा कि संयम, संघर्ष और साफ नियत की ही देन है कि देश के 13 राज्यों में बीजेपी की अपने बलबूते सरकार है।वहीं 4 राज्यों में गठबंधन की सरकार है। जिसका परिणाम है कि मौजूदा वक्त में सिर्फ बीजेपी के 1489 विधायक हैं तो संसद में 283 सांसद हैं। अंतत: देश की सभी सियासी दलों और जनमानस के मन में भी ये सवाल स्वाभाविक तौर पर आ सकता है कि संघ-बीजेपी का ये विस्तार देश के 17 राज्यो में जब अपनी पैठ जमा चुका हो तो फिर आने वाले समय में कर्नाटक-तमिलनाडु और केरल यानी दक्षिण भारत का रास्ता नापने में बीजेपी कितना वक्त लगाएगी।।। 

Wednesday 15 March 2017

केजरी की झाड़ू और EVM


जब तक मिलती थी जीत, तब तक सबकुछ अच्छा था,
हार गए तो,EVM की वजह से हारे जी
दांव लगाए उसपर जिसका कोई मान ना हो
हारोगे अब दिल्ली,जनता जान गयी है जी
कहते हैं,
गोवा और पंजाब में, सब साजिश रची गयी थी जी
मिला साथ हाथी पंजा का,टूट गई है साइकिल जी
होगा और पतन अब इनका,नहीं कोई बाधा है जी
जनता अब जान गई है सबको,नहीं बचा कोई चारा जी,
जनता पर शासन,जनता के लिए,
जनता ही जनार्दन, अब समझो जी
जी जी जी जी जी जी जी जी..........।