Saturday 31 October 2015

चलो सम्मान लौटाएं,सुर्खियां पाएं...!


संदीप कुमार मिश्र: माफ कीजिएगा साब लेकिन सुर्खियां पानी हो तो नया रास्ता तलाश करना पड़ता ही है,टीवी,समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर जगह पानी हो तो कुछ तो ऐसा करना होगा जिससे लोगों की नजर में बने रहें।कुछ ऐसा ही हो रहा है इस समय हमारे देश में।सम्मान वापस करने की सोच को आप क्या कहेंगे-देश के हालात पर आहत या सियासत।निश्चित तौर पर आहत तो नहीं,मेरी नजर में सिर्फ और सिर्फ सियासत, सियासत,सियासत।अरे भाई सम्मान वापस ही करना था तो लिया क्यों।क्या सोचा था सम्माननियों की शासन बदलेगा तो लोकतंत्र की परिभाषा बदल जाएगी या फिर संविधान बदल जाएगा।या ये सोचा था कि सत्ता किसी की जागीर है कि जीवन भर एक ही पाले में रहेगी।अजी साब देश के नागरीक होने की बात करते हैं और देश के सम्मान को वापस करते है।सत्ता से लगाव नहीं सम्मान से लगाव तो है,उसका ही शर्म कर लेते कि किस अरमान से आपको सम्मान दिया गया था।या फिर सम्मान भी जुगाड़ से लिया था और अब तकलीफ हो रही है।क्योंकि शायद सम्मान मिलते वक्त इतनी पापुलर्टी नहीं मिली थी जितनी अब मिल रही है।अरे मेरे सम्मानीत साहित्यकारों,इतिहासकारों,फिल्मकारों,और जो भविष्य में सम्मान वापस करन वाले हैं वो सभी सम्मानीतगण,आपका मर्मस्पर्शी,ह्रदयस्पर्शी,कोमल मन तब कहां था जब 1984 के दंगों में देश जल रहा था।तब आपकी पीड़ा कहां गयी थी जब कश्मीर से भोलेभाले मासूम कश्मीरी पंडितों को उनके घर से बेदखल कर दिया गया।और दर दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया गया।बड़े देस भक्त निकले साब आप तो।इससे पहले देश में क्या मौतें नहीं हुई,दंगे नहीं हुए,या बीफ पर बवाल नहीं मचा।आप बड़े आहत है...!वाह जी साब।आहत होने की नई परिभाषा आज पता चली।

सम्माननिय कहते हैं कि उनका दम घुटता है इस देश में।अच्छा जी साब,इससे पहले आपका दम नहीं घुटा जब सैकड़ों की तादाद में इस देश में घपले और घोटाले हुए,सरेराह निर्भया की इज्जत तार तार हुई,गुड़िया के दरिंदे खुली हवा में सांस ले रहे थे, विदर्भ में किसान भूख और सूखे से मर रहे थे।और क्या-क्या याद दिलाएं साब।माफ कीजिएगा लेकिन आप सम्मानियों की सोच कुंए के मेढ़क की तरह है जो कार्पोरेट और पेज थ्री पार्टीयों तक ही सीमित है,अब छोड़िए साब जुबान खुली तो ना जाने कैसी-कैस और कौन कौन सी सच्चाई सामने आएगी लेकिन दिल पर हाथ रखकर अगर इमान है तो उसकी कसम खाकर कहें कि सम्मान क्यों वापस लौटाया।देस की यूवा पीढ़ी आपके पदचिन्हों पर चलती है आपकी लेखनी पर गौरवान्वित महसूस करती है,उन्हें आप क्या सीक देना चाहते हैं।एक हकिकत जान लें साब,इस देश की सत्तर प्रतिशत जनता गांव दिहातों में रहती है और मेरा दावा है कि आपका टारगेट वो भोलीभाली जनता तो कतई नहीं है जिनकी मूल आवश्यकता सिर्फ और सिर्फ दो वक्त की रोटी,तन ढंकने के लिए कपड़ा और सिर छुपाने के लिए एक मकान है।
जानते हैं जनाब बिहार की राजधानी पटना से मात्र 50-55 किमी की दुरी पर एक गांव है,कहने के लिए तो जिला मुख्यालय से मात्र धंटे भर की दूरी पर है लेकिन बेहद अफसोस की बात आज तक वो गांव बुनियादी सुविधाओं से महरुम है,देश के सबसे बड़े सूबे में उन दलित परिवारों की तरफ आपकी नजर नहीं है जो आज भी दबंगो की दरिंदगी का शिकार हैं,आदीवासीयों की उस हालत से आप आज भी महरुम हैं जिसे तन ढंकने के लिए कपड़े तक नहीं हैं।जिवन दायिनी मां गंगा की स्वच्छता पर आपकी कलम नहीं बोलती है,ना ही आपकी जुबान।बोलेगी भी क्यों...?आखिर इससे क्या मिलना है आपको....सम्मान तो मिलने से रहा।हां बीफ पार्टी पर रोक लगने से आपकी आजादी छिन जाती है,आपकी स्वतंत्रता का हनन होता है,आपका इस देश और इस शासन में दम घुटता है। वाह रे तथाकथित सम्मानितजन।करोड़ों देशवासी जिसे मां कहकर सम्बोधित करते हैं,जिसकी पूजा करते हैं,जो सनातन धर्म की पहचान है,उस गौ माता की हत्या तकन से रोक लगाने पर आपको तकलीफ होती है,क्योंकि आपकी पार्टी की रौनक नहीं बनती,मजा नहीं आता ना आपको।
एक बात बताईएगा साब,आपकी कलम और जुबान और जो सम्मान आप वापस कर रहे हैं वो तब क्यों नहीं किया जब गुजरात में कत्लेआम हुआ,अयोध्या में कारसेवकों पर निर्मम गोलियां बरसाई गई।बात तो आप सर्वधर्म समभाव की करते हैं,लेकिन इसका भाव भी जानते हैं आप।विरोध करने के इस तरिके में ही खोट नजर आता है जनाब।अब लोगों को लगने लगा है आपकी इस हरकत पर कि दुकानदारी नहीं चल रही तो सम्मान लौटा रहे हैं,या फिर राजनीति से प्रेरीत होकर सम्मान लौटा रहे हैं।बेहद अफसोस और शर्मनाक।ये देश जितना अकलाक की मौत पर गमजदा है उतना किसी अन्य के भी।जो गलत है वो गलत ही है।लेकिन विरोध करने का तरीका ऐसा होना चाहिए,जिससे समाज नहीं सरकार आहत हो,जिससे लेखनी और मजबूत हो,जिससे जनता का मनोबल बढ़े,।ना की ऐसी हो कि सियासत की बू आए,और ओछापन झलके।विरोध का बहुत सारे तरीके हैं आपको तो पता ही होगा,क्योकि आप तो कलम के सिपाही हैं, या आपकी सारी समझ सियासत पर ही टिकी है। पहले 33 साहित्यकार साहित्य अकादमी का सम्मान वापस करते हैं,फिर और 5 साहित्यकार,इसके बाद 12 फिल्मकार, 50 इतिहासकार,और वैज्ञानिक।मेरी गिनती गलत हो सकती है,ये फेहरिस्त और आगे बढ़ेगी...।क्योंकि ये लोग सम्माननिय जो है।

लेकिन साब एक बात और जान लिजिए,आप सम्मानित हैं तो देश की आवाम जनता जनार्दन महासम्मानित,वंदनीय और पूज्यनीय है।और उसी महासम्मानित जनता ने 2014 के आम चुनाव में सत्ता परिवर्तन किया तो आपको उस जनता का भी सम्मान करना होगा।लेकिन आप तो सरकार विरोधी की तरह पेश आ रहे हैं और ऐसा विरोध सियासी या फिर सियासी मोहरे ही करते हैं।अब आप निर्धारीत करें की आप क्या हैं...? कौन है...?और आपको किसकी परवाह है...?
जरा  निखिल दाधीच की इस कवीता को भी पढ़ लें-

याद करो नौखाली जब कितने हिन्दू सर काटे थे।
हिन्दू अस्मत नीलाम हुई,क्यूँ बोल ना मुंह से फूटे थे।
गांधी नेहरू से ठेकेदार भी जब मांद में छुपकर बैठे थे।
तब कितनों ने आवाज उठाई ? कितनो ने सम्मान लौटाया ?

जब इंदिरा ने आपात लगाया तब क्यूँ देश नजर ना आया?
सिसक रहा था लोकतंत्र काली अंधियारी रातों में।
आजादी थी बंधक और बेड़ी थी जेपी के पाँवो में।
तब कितनों ने आवाज उठाई? कितनों ने सम्मान लौटाया ?

चौरासी में सिखों को जब मौत के घाट उतारा था।
एक तानाशाह की मौत के बदले कितने निर्दोषो को मारा था।
उन खून सने हाथो से लेकर तमगा, तूम मन में फूले थे।
लेकिन बतलाओ तब कितनों ने आवाज उठाई और कितनों ने सम्मान लौटाया?

नब्बे की काली रातों में जब बेघर हिन्दू रोये थे।
ना जाने कितनी माँओ ने आँख के तारे खोये थे।
जब घाटी के चौराहो पर बहनों की अस्मत लूटी थी
तब कितनों ने आवाज उठाई ? कितनों ने सम्मान लौटाया ?

मुलायम ने डायर बनकर जब रामभक्तों को मारा था।
यूपी पुलिस की बंदूको से, बरसा मौत का लावा था।
सरयू का पानी लाल हुआ और मौत का मातम पसरा था ।
तब कितनों ने आवाज उठाई ? कितनों ने सम्मान लौटाया ?

शोक मनाओ बेशक तुम बिसहड़ा के पंगो पर
क्यों बोल नहीं निकले थे मुंह से भागलपुर के दंगो पर।
जब हत्यारों ने मासूमों के खून से होली खेली थी
तब कितनों ने आवाज उठाई ? कितनों ने सम्मान लौटाया ?

एक दादरी याद रहा क्यों मूडबिडरी भूल गए ?
एक हिन्दू की हत्या पर होंठ क्यों सबके चिपक गए ?
गौ माता के देश में जब हिन्दू गौरक्षक मरते है
कितनों ने आवाज उठाई ? कितनों ने सम्मान लौटाया ?
माफ किजिएगा लेकिन पहल आप पर नहीं आपकी बात पर नही,आपकी सोच पर नहीं,बल्कि इस बात पर होनी चाहिए कि हमारा देश सर्वधर्म समभाव की भावना के साथ कैसे आगे बढ़े,और उसे बढ़ाने के लिए हमारी क्या जिममेदारी है,हम क्या कुछ ऐसा करें कि देश का संविधान,सम्मान,समाज गौरवान्वित हो।

एक कविता है जी कि हमारा देश कैसा हो-
सबके दिल में प्यार बसा हो,
सुखी जहां हर इंसान चाहिए।
ऐसा हिन्दुस्तान चाहिए।
जहां जायसी प्रेमचंद हों,सुर रहीम निराला,
जहां पर आंसू हो प्रसाद का,हो मिरा का प्याला,
घर घर में फेरी जाती हो तुलसी जी की माला,
तन में तुलसी बसे जहां पर,रोम रोम रसखान चाहिए।
ऐसा हिन्दुस्तान चाहिए।
जहां खुदा मस्जिद में रहते, मंदिर में भगवान चाहिए।
ऐसा हिन्दुस्तान चाहिए।


बहरहाल मेरे सम्माननियों, तथाकथितों,वरिष्ठो,सियासतदानो इस महान श्रेणी में जो छुट गए हों उन सभी सम्मानितजनो से मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हुं कि इस पूरी लेखनी में जो ठीक लगे वो आपके लिए है और जो ना लगे वो सिर्फ मेरे लिए है....एक बात और ये लिखने की हिम्मत इसलिए कर पाया हुं कि मैं भी इस देश का नागरीक हुं और उतना ही लिखने के लिए स्वतंत्र हुं जितना आप सम्मान वापस करने के लिए,और विरोध करने के लिए...। 

दीवाली पर दुर्लभ संयोग, घर में श्रीयंत्र की करें स्थापना


संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों माता लक्ष्मी ऐश्वर्य की देवी हैं,धन की देवी हैं।हमारे सभी कार्यों को सिद्ध करने के लिए,हमारे सपनों और उम्मीदों को पंख लगाने के लिए माता लक्ष्मी की कृपा हम पर होना अति आवश्यक है।इस बार दीवाली पर एक बेहद दुर्लभ योग बन रहा है और ये योग जन साधारण को विशेष और शुभ फल देने वाला है। इस बार दीवाली 11 नवंबर को पड़ रही है और इस दिन के योग में गुरू और राहु के साथ रहते हुए सौभाग्य, बुधादित्य और धाता योग बनेगा।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माने तो इस योग में माता लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन-संपति की वृद्धि होगी इतना ही नहीं आपको व्यापार में भी सफलता मिलेगी।
ज्योतिषविद् पं शिव कुमार शुक्ल के अनुसार वर्तमान समय में गुरु, सिंह राशि और राहु, कन्या राशि में भ्रमण कर रहे हैं। दीवाली पर विशाखा नक्षत्र में इन दोनों के साथ सौभाग्य, बुधादित्य और धाता योग बन रहा है। इन योगों में मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
साल 1884 में बना था ऐसा योग
कहा जा रहा है कि जैसा योग इस बार बन रहा है। साल 1884 में भी वैसा ही योग बना था।इस दीवाली के बाद पून: यह योग साल 2145 में बनेगा। इस योग के कारण लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए गए काम और उपायों से सफलता मिलती है। इसके साथ दीवाली में सौभाग्य योग भी है,जिसमें लक्ष्मी कारक हैं और सौभाग्य योग में दीवाली पड़ने से यह अधिक शुभ होगी।कहते हैं कि इस अतिशुभ योग के कारण सोना, चांदी, खाद्य पदार्थ और वाहन आदि के व्यापार में तेजी आने की भी संभावना रहेगी।


मित्रों मां लक्ष्मी का प्रतीक श्रीयंत्र को माना जाता है।कहा जाता है कि श्रीयंत्र में माता लक्ष्मी का वास होता है। श्रीयंत्र को घर में रखने मात्र से धन धान्य की वृद्धि होती है। आपको बताते हैं कि दीवाली के शुभ अवसर पर हम श्रीयंत्र का खास रूप से उपयोग करें तो हमारी दीवाली और भी खास बन सकती है।मित्रों हमें स्वर्ण, रजत, ताम्र या फिर पत्थर के समतल आधार पर ही श्रीयंत्र का निर्माण करना चाहिए।साथ ही श्रीयंत्र को दीवाली के दिन अपने पूजा गृह में हमें स्थापित करना चाहिए जिससे की इसका विशेष फल प्राप्त हो सके। हमारे धर्म शास्त्रों में श्रीयंत्र का अभिषेक(स्नान कराना) श्रेष्ठ माना गया है। दीपावली की रात में श्रीसूक्त और देव्यथर्वशीर्ष का पाठ करते हुए जो साधक श्रीयंत्र का अभिषेक करते हैं, उन्हें कई प्रकार की सिद्धियां मिल जाती हैं।

श्रीयंत्र का किस प्रकार से मिलता है लाभ
हमें श्रीयंत्र का अभिषेक-
शहद से करने पर सौभाग्य
दूध से करने पर आरोग्य
पंचामृत से करने पर ऐश्वर्य
नारियल के जल से करने पर पारिवारिक मान-सम्मान
हिमजल से करने पर राजनीति में सफलता
ललिता सह्स्त्रनाम से रोली चढाने से सर्व कार्य सिद्धी
और श्रीयंत्र का निर्माण केसर, सिंदूर, गेरू, लाह, सिंगरक, सफेद चंदन और लाल चंदन से करना श्रेष्ठ माना गया है। हमें इन द्रव्यों के द्वारा भोज पत्र पर श्रीयंत्र का निर्माण करना चाहिए। और फिर श्रीयंत्र को पूजा स्थान में रखकर उसकी पंचोपचार पूजा करनी चाहिए साथ ही श्रीयंत्र पर गुलाब का पुष्प चढ़ाना चाहिए। इससे मां भगवती लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी करती हैं।

हम तो यही कामना करते हैं कि इस बार दीवाली आपके जीव में हर प्रकार खुशियां और उन्नती लोकर आए,माता लक्ष्मी आपके अरमानो को पंख लगाएं।संबोधन की तरफ से आप सभी चाहने वालों को शुभ दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई।।



दीवाली पर माता लक्ष्मी की सबसे सरल पूजा विधि


संदीप कुमार मिश्र:  दोस्तो मां लक्ष्मी की कृपा से कुछ भी संभव है।ऐसे में दीवाली में माता लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे सुलक्ष और आसान तरिके से आपको अवगत कराना चाहता हुं।जिससे की आप मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर सके।दरअसल माता लक्ष्मी की पूजा हमें प्रदोष काल में ही करनी चाहिए जो नियमत: सूर्य देव के अस्त होने के बाद प्रारंभ होती है और लगभग 2 घंटे 24 मिनट तक रहती है। गृहस्थजन के लिए  प्रदोष काल का मुहूर्त हमारे शास्त्रों में सबसे उपयुक्त बताया गया है।

महान ज्योतिषविद् पं शिव कुमार शुक्ल जी कहते हैं कि लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल का ही होता है, यानि कि जब स्थिर लग्न प्रचलित हो। शास्त्रों में कहा गया है कि स्थिर लग्न में माता लक्ष्मी की पूजा करने से मां का वास,निवास हमारे घर में होता है,और वो हमारे यहां ठहर जाती हैं।मित्रों यानि की हम सबके लिए लक्ष्मी पूजा का उपयुक्त समय प्रदोष काल ही है।एक मुख्य बात आप सब और जान लें कि वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है, और दीवाली के पावन त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।

आईए अब आपको बताते हैं दीवाली पर पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है-
मां लक्ष्मी की पूजा का शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त -05:42 से 07:38
अवधि – 1 धंटा 55 मिनट्स
प्रदोष काल -05:25 से 08:05
वृषभ काल = 05:42 से 07:38
अमावस्या तिथि प्रारम्भ = 10 नवम्बर 2015 को 09:23 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त = 11नवम्बर2015 को 11:16 बजे

मां लक्ष्मी की पूजा विधि और मंत्र
मित्रों अक्सर हम पूजा भाव से करते हैं लेकिन भाव के साथ अगर मंत्रों की शक्ति भी निहित हो जाए तो उसका फल दोगूना हो जाता है।आईए जानते हैं दीपावली पर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए हमे क्या करना चाहिए और पूजा कैसे प्रारंभ करनी चाहिए।दीपावली में माता लक्ष्मी की हमे नई प्रतिमा खरीकर पूजा करनी चाहिए। मां लक्ष्मी की पूजा विधि को हमारे सनातन धर्म में षोडशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है।
मां लक्ष्मी का पूजा विधान-

मां लक्ष्मी का ध्यान
दीवाली में माता लक्ष्मी का ध्यान हमें अपने सामने प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी जी की नई प्रतिमा में करना चाहिए।
ध्यान मंत्र
या सा पद्मासनस्था पिपुला-कटि-तटि पद्म-पत्रायताक्षी,
गम्भीरार्तव-नाभि: स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।
या लक्ष्मीर्दिव्य-रुपैर्मणि-गण-खचितै: स्वापिता हेम-कुम्भै:,
सा नित्यं पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व मांगल्य-युक्ता।।
अर्थात- कमल के आसन पर विराजमान, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े नेत्रोंवाली, विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली जिनकी नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई हैं और जो सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं,और जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता मां क्षगवती लक्ष्मी सदा सभी मंगलों सहित मेरे यहां (घर) में निवास करें।

आवाहन
(Aavahan)
श्रीभगवती मां लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद,हमें मंत्रों के द्वारा श्रीलक्ष्मी जी की प्रतिमा के सामने उनका आवाहन करना चाहिए।
आवाहन मंत्र
आगच्छ देव-देवेशि!तेजोमयि महा-लक्ष्मि!
क्रियमाणां मया पूजां,गृहाण सुर-वन्दिते!
।।श्री लश्र्मी-देवी आवाहयामि।।
अर्थात- हे देवताओं की ईश्वरि! तेज-मयी हे महा-देवि लक्ष्मि! देव-वन्दिते! आइए, आप मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें।
॥मैं माता भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ॥


पुष्पाञ्जलि आसन
(Pushpanjali Asana)
आवाहन करने के बाद मां को आसन देने के लिए पांच पुष्प अपने सामने छोड़े।
पुष्पांजलि आसन
नाना-रत्न-समायुक्तं,कार्त-स्वर-विभूषितम्।
आसनं देव-देवेश!प्रीत्यर्थं प्रति-गृह्यताम्।।
।।श्री लक्ष्मी-देव्यै आसनार्थे पंच-पुष्पाणि समर्पयामि।।
अर्थात- हे देवताओं की ईश्वरि! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ॥

स्वागत
मां लक्ष्मी को आसन देने के बाद,हमें हाथ जोड़कर भगवती मां श्रीलक्ष्मी का स्वागत करना चाहिए।
स्वागत मंत्र
श्री लक्ष्मी-देवी!स्वागतम्।
अर्थात- हे देवि, लक्ष्मि! आपका स्वागत है।

पाद्य
(Padya)
माता लक्ष्मी का पाद्य यानी चरण धोने के लिए जल समर्पित करें।
पाद्य मंत्र
पाद्यं गृहाण देवेशि,सर्व-क्षेम-समर्थे,भो:!
भक्त्या समर्पितं देवि,महालक्ष्मि!नमोस्तुते।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै पाद्यं नम:।।
अर्थात- सब प्रकार के कल्याण करने में समर्थ हे देवेश्वरि! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है, स्वीकार करें। हे महा-देवि, लक्ष्मी! आपको बारंबार नमस्कार है।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को पैर धोने के लिए यह जल है-उन्हें नमस्कार॥

अर्घ्य
(Arghya)
पाद्य समर्पण के बाद मां को अर्घ्य यानि शिर के अभिषेक के लिए जल समर्पित करना चाहिए।
अर्घ्य  मंत्र
नमस्ते देव-देवेशि! नमस्ते कमल धारिणि!
नमस्ते श्री महालक्ष्मि,धनदा-देवि!अर्धयं गृहाण।
गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं,फल-द्रव्य-समन्वितम्।
गृहाण तोयमघ्यर्थं,परमेश्वरि वत्सले!
।।श्री लक्ष्मी-देव्यै अर्घयं स्वाहा।।
अर्थात- हे मां श्री लक्ष्मि! आपको नमस्कार। हे कमल को धारण करनेवाली देव-देवेश्वरि! आपको नमस्कार। हे धनदा देवि, श्रीलक्ष्मि! आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिए यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपा-मयि परमेश्वरि! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिये स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये अर्घ्य समर्पित है॥

स्नान
(Snana)
अर्घ्य के बाद मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी जी को जल से स्नान कराएं।
स्नान मंत्र
गंगासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलै:।।
स्नापितासी मया देवि तथा शान्तिं कुरुष्व मे।
आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्व:
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मी:
।।श्री लक्ष्मी-देव्यै जलस्नानं समर्पयामि।।

पञ्चामृतस्नान
(Panchamrita Snana)
मंत्रोच्चार करते हुए श्रीलक्ष्मी मां को पञ्चामृतस्नान से स्नान कराएं।
पञ्चामृतस्नान मंत्र
दधि मधु घ्रतश्चैव पयश्च शर्करायुतम्।।
ऊं पंचानद्य: सरस्वतीमपियन्ति सस्त्रोतस:
सरस्वती तु पंचधासोदेशेभवत् सरित्।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै पंअचामृतस्नानं स्र्पयामि।।

गन्धस्नान
(Gandha Snana)
मंत्रोच्चार करते हुए श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएं।
गन्धस्नान मंत्र
ऊं मलयाचलसम्भूतम् चन्दनागरुसम्भवम्।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै गन्धस्नानं समर्पयामि।।

शुद्ध स्नान
(Shuddha Snana)
मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
शुद्ध स्नान मंत्र
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।।


वस्त्र
(Vastra)
मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।
वस्त्र मंत्र
दिव्यांबरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्।
दीयमानं मया देवि गृहाण जदगम्बिके।
उपैतु मां देवसख:कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धि ददातु मे।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै वस्त्रं समर्पयामि।।

मधुपर्क
(Madhuparka)
माता श्री लक्ष्मीजी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें।
मधुपर्क मंत्र
ऊं कापिलं दधि कुन्देंदुधवलं मधुसंयुतम्।
स्वर्णपात्रस्थितं देवि मधुपर्कं गृहाण भो:
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै मधुपर्कम् समर्पयामि।।

आभूषण
(Abhushana)
मधुपर्क के बाद मंत्रोच्चार कर आभूषण चढ़ायें।
आभूषण मंत्र
रत्नकंकड़ वैदूर्यमुक्ताहारयूतानी च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व मे।
क्षुप्तिपपासामलां ज्येष्ठामहालक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वान्निर्णुद में ग्रहात्।
श्रीलक्ष्मी-देव्यै आभूषणानि समर्पयामि।।


रक्तचन्दन
(Raktachandana)
आभूषण के बाद निम्न मंत्र पढ़ कर श्री लक्ष्मी जी को लाल चन्दन चढ़ायें।
रक्तचन्दन मंत्र
ऊं रक्तचंदनसंमिश्रं पारिजातसमुद्रवम्।
मया दत्तंगृहाणाशु चन्दनं गन्धसंयुतम्।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै रक्तचंदनं समर्पयामि।।

सिन्दुर
(Sindoor)
मंत्रोच्चार करते हुए श्रीलक्ष्मी जी को तिलक करें और सिन्दूर चढ़ायें।
सिन्दुर मंत्र
ऊं सिन्दुरम् रक्तवर्णश्च सिन्दूरतिलकप्रिये।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दुरम् प्रतिगृह्यताम्।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै सिन्दुरम् समर्पयामि।।


कुङ्कुम
(Kumkuma)
अब मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी जी को अखण्ड सौभाग्यरूपी कुङ्कुम चढ़ायें।
कुङ्कुम मंत्र
ऊं कुंकुंम कामदं दिव्यं कुंकुंम कामरुपिणम्।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुंमं प्रतिगृह्यताम्।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै समर्पयामि।।


अबीरगुलाल
(Abira-Gulala)
श्रीलक्ष्मी जी को अबीरगुलाल चढ़ायें।
अबीरगुलाल मंत्र
अबीरश्च गुलालं च चोवा-चन्दनमेव च।
श्रृंगारार्थं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै अबीरगुलालं समर्पयामि।।


सुगन्धितद्रव्य
(Sugandhitadravya)
मंत्रोच्चार करते हुए श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य चढ़ायें।
सुगन्धितद्रव्य मंत्र
ऊं तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै सुगन्धित तैलं समर्पयामि।।

अक्षत
मां भगवती श्रीलक्ष्मी को अक्षत चढ़ायें।
अक्षत मंत्र
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ता:सुशोभिता:
मया निवेदिता भक्तया पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै अक्षतान् समर्पयामि।।


गन्ध-चन्दन समर्पण
(Gandha-Chandan Samarpan)
अब मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी मां को चन्दन समर्पित करें।
गंध मंत्र
श्री-खण्ड- चन्दनं दिव्यं,गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं महा-लक्ष्मि!चन्दनं प्रति-गृह्यताम्।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै चन्दनं समर्पयामि।।
अर्थात- हे महा-लक्ष्मि! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने हेतु ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ॥

पुष्प समर्पण
(Pushpa Samarpan)
मां श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।
पुष्प-समर्पण मंत्र
यथा-प्राप्त-ऋतु-पुष्पै:,विल्व-तुलसी-दलैश्च।
पूजयामि महा-लक्ष्मि!प्रसीद में सुरेश्वरी!
श्रीलक्ष्मी-देव्यै पुष्पं समर्पयामि।।

अर्थात- हे महा-लक्ष्मि! ऋतु के अनुसार प्राप्त पुष्पों और विल्व तथा तुलसी-दलों से मैं आपकी पूजा करता हूँ। हे देवेश्वरि! मुझ पर आप प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये पुष्प समर्पित करता हूँ॥

अङ्ग पूजन
(Anga Pujan)
मंत्रोच्चार करते हुए भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिए। बाएँ हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन लेकर प्रत्येक मन्त्र काउच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से श्री लक्ष्मी की मूर्ति के पास छोड़ें।
अङ्ग-पूजन मंत्र
ऊं चपलायै नम:पादौ पूजयामि।
ऊं चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि।
ऊं कमलायै नम: कटिं पूजयामि।
ऊं कात्यायन्यै नम: नाभिं पूजयामि।
ऊं जगन्मात्रै नम: जठरं पूजयामि।
ऊं विश्व-वल्लभायै नम:हस्तौ पूजयामि।
ऊं कमल-पत्राक्ष्यै नम: नेत्र-त्रयं पूजयामि। ऊं श्रियै नम: शिर: पूजयामि।


अष्ट सिद्धि पूजा
(Ashta Siddhi Puja)
अङ्ग-देवताओं की पूजा करने के बाद पुनः बाएँ हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों की पूजा करें।
अष्ट-सिद्धि मंत्र
ऊं अणिम्ने नम:।ऊं महिम्ने नम:
ऊं गरिम्णे नम:।ऊं लधिम्ने नम:
ऊं प्राप्त्यै नम:।ऊं प्राकाम्यै नम:
ऊं ईशितायै नम:।ऊं वशितायै नम:

अष्ट लक्ष्मी पूजा
(Ashta Lakshmi Puja)
अष्ट-सिद्धियों की पूजा के बाद उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन और पुष्प से करें।
अष्ट-लक्ष्मी मंत्र
ऊं आद्य लक्ष्म्यै नम:।ऊं विद्या-लक्ष्म्यै नम:
ऊं सौभाग्य-लक्ष्म्यै नम:।ऊं अमृत-लक्ष्म्यै नम:
ऊं कमलाक्ष्यै नम:।ऊं सत्य-लक्ष्म्यै नम:
ऊं भोग-लक्ष्म्यै नम:।ऊं योग-लक्ष्म्यै नम:

धूप समर्पण
(Dhoop Samarpan)
मां भगवती श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें।
धूप-समर्पण मंत्र
वनस्पति-रसोद्रूतो गन्धाड्य: सुमनोहर:
आध्रेय: सर्व-देवानां,धूपोयं प्रति-ग्रह्यताम्।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै धूपं समर्पयामि।।
अर्थात- अर्थात्-वृक्षों के रस से बनी हुई, सुन्दर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूँघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं धूप समर्पित करता हूँ॥
दीप समर्पण
(Deep Samarpan)
मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें।
दीप समर्पण मंत्र
साज्यं वर्ति-संयुक्तं च,वह्निना योजितं मया,
दीपं गृहाण देवेशि!त्रैलोक्य-तिमिरापहम्।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि,श्रीलक्ष्म्यै परात्परायै।
त्राहि मां निरयाद् धोराद्, दीपोयं प्रति-गृह्यताम्।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै दीपं समर्पयामि।।
अर्थात- हे देवेश्वरि! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनों लोकों के अँधेरे को दूर करनेवाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परात्परा श्रीलक्ष्मी-देवी को दीपक प्रदान करता हूँ। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूँ॥
नैवेद्य समर्पण
(Naivedhya Samarpan)
इस प्रकार आगे बढ़ते हुए अब मंत्रों के माध्यम से मां श्रीलक्ष्मी जी को नैवेद्य समर्पित करें।
नैवेद्य समर्पण मंत्र
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि,दधि-क्षीर-घृतानि च।
आहारो भक्ष्य-भोज्यं च,नैवेद्यं प्रति-गृह्यताम्।
।।यथांशत: श्रीलक्ष्मी-देव्यै नैवेद्यं समर्पयामि-ऊं प्राणाय स्वाहा।ऊं अपानाय स्वाहा।
ऊं समानाय स्वाहा।ऊं उदानाय स्वाहा।ऊं व्यानाय स्वाहा।।
अर्थात- शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
॥यथा-योग्य रूप भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूँ - प्राण के लिये, अपान के लिये, समान के लिये, उदान के लिये और व्यान के लिये स्वीकार हो॥

आचमन समर्पण
 (Achamana Samarpan )
अब आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें।
आचमन मंत्र
तत: पानीयं समर्पयामि इति उत्तरापोशनम्।
हस्त-प्रक्षलानं समर्पयामि।मुख-प्रक्षालनं।
करोद्वर्तनार्थें चनदनं समर्पयामि।
अर्थात- नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिये, हाथ धोने के लिये, मुख धोने के लिये जल और हाथों में लगाने के लिये चन्दन समर्पित करता हूँ।
ताम्बूल समर्पण
(Tambool Samarpan)
श्रीलक्ष्मी मां को ताम्बूल यानि कि पान, सुपारी समर्पित करें।
ताम्बूल समर्पण मंत्र
पूगी-फलं महा दिव्यं,नाग-वल्ली-दलैर्युतम।
कर्पूरैला-समायुक्तं,ताम्बुलं प्रति-गृह्यताम्।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै मुख-वासार्थं,पूगी-फलं-युक्तं ताम्बूलं समर्पयामि।।
अर्थात- पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुन्दर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ॥
दक्षिणा
(Dakshina)
अब बारी है दक्षिणा की,तो मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी जी को दक्षिणा समर्पित करें।
दक्षिणा मंत्र
हिरण्य-गर्भ-गर्भस्थं,हेम-वीजं विभावसो:
अनन्त-पुण्य-फलदमत:शान्तिं प्रयच्छ में।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै सुवर्ण-पुष्प-दक्षिणां समर्पयामि।।
अर्थात- असीम पुण्य प्रदान करनेवाली स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शान्ति प्रदान करिये।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ॥
प्रदक्षिणा
(Pradakshina)
अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा बाएं से दाएं ओर की परिक्रमा के साथ निम्न-लिखित मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी जी को फूल समर्पित करें।
प्रदक्षिणा मंत्र
यानि यानि च पापानि,जन्मान्त-कृतानि च।
तानि तानि विनश्यन्ति,प्रदक्षिणं पदे पदे।।
अन्यथा शरणं नास्ति,त्वमेव शरणं देवि!
तस्मात् कारुण्य-भावेन,क्षमस्व परमेश्वरि।।
।।श्रीलक्ष्मी-देव्यै प्रदक्षिणं समर्पयामि।।
अर्थात- पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरण-दात्री हो। अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ॥
वन्दना, पुष्पाञ्जलि
(Vandana Pushpanjali)
अब वन्दना करे और मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी मां को पुष्प समर्पित करें।
वन्दना,पुष्पाञ्जलि मंत्र
कर-कृतं वा कायजं कर्मजं वा,
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विदितमविदितं वा, सर्वमेतत् क्षमस्व,
जय जय करुणाब्धे,श्रीमहा-लक्ष्मि त्राहि।
।। श्रीलक्ष्मी-देव्यै मन्त्र-पुष्पांजलिं समर्पयामि ।।
अर्थात- हे दया-सागर, श्रीलक्ष्मि! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो। मेरी रक्षा करें।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ॥
साष्टाङ्ग प्रणाम
(Sashtanga Pranam)
मां श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम मतलब ऐसे प्रणाम जिससे शरीर के आठ अङ्गों के साथ किया जाता है,इस प्रकार नमस्कार करें।
साष्टाङ्ग प्रणाम मंत्र
ऊं भवानि!त्वं महा-लक्ष्मी: सर्व-काम-प्रदायिनी।
प्रसन्ना सन्तुष्टा भव देवि!नमोस्तु ते।
।। अनेन पूजनेन क्षीलक्ष्मी-देवी प्रीयताम, नमो नम: ।।
अर्थात- हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महा-लक्ष्मी हैं। हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों। आपको नमस्कार।
॥इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार॥
क्षमा प्रार्थना
(Kshama Prarthana)
मंत्रोच्चार करते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।
क्षमा प्रार्थना मंत्र
आवाहनं न जानामि,न जानामि विसर्जनम्।।
पूजा-कर्म न जानामि,क्षमस्व परमेश्वरि।।
मंत्र-हीनं क्रिया-हीनं,भक्ति-हीनं सुरेश्वरि!
मया यत्-पूजितं देवि!परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अनेन यथा-मिलितोपचार-द्रव्यै:कृत-पूजनेन श्रीलक्ष्मी-देवी प्रीयताम्
।। श्रीलक्ष्मी-देव्यै अर्पणमसस्तु ।।
अर्थात- न मैं आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
॥भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन समर्पित है॥
इस प्रकार मित्रों मां की पूजा सम्पन्न होती है,सपरिवार मां से प्रार्थना करें कि जाने अनजाने में हमसे कोई भी गलती हुई हो तो अबोध,अज्ञानी समझकर हमे क्षमा करें और हमारे परिवार में सुख,शांती,और सम्बृद्धी का वास हो,आप हम पर ऐसी कृपा करें।।

।।जय मां लक्ष्मी।।