संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों चांद पर
पहुंचने की हमारी लालसा तो पूरी हो रही है।अपनी इच्छाओं की पूर्ती के लिए आज हम हर
वो कार्य कर रहे हैं,जिससे हमे सुख और संपन्नता मिले।लेकिन क्या आज के इस आधुनिक
भारत में हमें ऐसा नहीं लगता कि हम आधुनिक तो जरुर हो गए लेकिन आज भी देश की आधी
आबादी (नारी) कहीं ना कहीं महज तीसरी दुनिया है।जी हां बम बात कर रहे हैं भारतिय
नारी के संबंध में। उस नारी के संबंध में,जो जननी है,माता है,प्रेयसी है,लज्जा
है,संकोच है,क्षमा भी और दया भी है।वो सब कुछ है हम जिस रुप में उसे पाना चाहते
हैं।
नारी का मन अत्यधिक
कोमल होता है,अपेक्षाकृत पुरुषों के ये अधिक भावुक और संवेदनशील होती हैं।इनका
ह्रदय अताह समुद्र की गहराईयों के समान विशाल होता है।जरा सोचिए,एक पत्नी के रुप
में ही अगर हम किसी नारी के समर्पण की बात करें तो कितना निश्छल प्रेम होता है
इनका।अपना सबकुछ अर्पीत कर देती है नारी अपने पती और परिवार के लिए।उसका हर सुख,हर
सफलता,हर खुशी,हर उपलब्धी सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार के लिए होती है।सामान्यत:ऐसी ही होती है नारी।खासकर भारतीय नारी।।
इतिहास साक्षी
है-भक्ति के क्षेत्र में मीराबाई,मां के रुप में जगरानी देवी और जीजाबाई,आज़ादी की
लड़ाई में लक्ष्मीबाई,नर्तकी होकर भई अजीज़न बाई,त्याग में पन्ना धाय,राजनीति में
इंदिरागांधी,खेल के मैदान में पी टी उषा,अंतरीक्ष में कल्पना चावला,पावनता में
जगतजननी माता सीता,पतिव्रता में सावित्री और प्रशासन में जहां किरण वेदी हैं तो वहीं
साहित्य के क्षेत्र में महादेवी वर्मा,सुभद्रा कुमारी चौहान.......। ये कुछ ऐसे
नाम हैं, जिन्हें हम झुठला नहीं सकते और ना ही राष्ट्र निर्माण में इनके अभूतपूर्व
योगदान को ही।
बावजूद इसके आज भी
नारी सम्मान के साथ साथ कहीं ना कहीं उपेक्षा की शिकार है।पुरुष प्रधान समाज में
आज हम नारी के सात कदम से कदम मिलाकर चलते तो हैं,लेकिन फिर भी हमारी नजर,सोच उनके
प्रति तिरस्कार के ही रुप में होता है।आज भी गांवो,दिहातो में जहां वास्तविक
हिन्दुस्तान निवास करता है,वहां सभी संसाधन होते हुए भी लड़कियों को शिक्षा से
वंचित रखा जाता है।घर में लड़की का जन्म लेना पाप समझा जाता है।
जरुरत है एक
सम्बृद्ध शक्तिशाली,विकसीत और सुंदर हिन्दुस्तान के निर्माण की।जो तभी संभव है,जब
कदम दर कदम स्त्री-पुरुष एक साथ चलें।जरुरत है-नारी को सेवीका ना समझें,उसे अपना
सहयोगी मित्र माने।यकीन मानिए वो हर कठीनाईयों में मार्गदर्शक,शिक्षिका,सहयोगी तथा
आपका सच्चा मित्र साबित होगी।।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।(ऋगवेद)
कहने का भाव है कि जिस कुल में नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास
होता है। जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहां सब काम निष्फल होते हैं।यह कथन आज के नहीं सदियों पहले वैदिक काल में कहे गए थे। तब से लेकर आज
तक मानव समाज का सांस्कृतिक और बौद्धिक स्तर निरंतर बदला है।हर क्षेत्र में खुब
विकास हुआ है। हमारे डिजिटल समाज में नारी के महत्व का अंदाजा ससे भी लगाया जा
सकता है कि आज भी लक्ष्मी माता,
संतोषी
माता, वैष्णो देवी, सरस्वती माता, दुर्गा माता, काली मैया, छठी मैया, की पूजा आराधना बड़े ही धूमधाम से की जाती है। हम 21वीं सदी में जी रहे हैं,
जो अब तक का सबसे
हाईटेक सदी है। डिजिटल भारत की
कल्पना कर रहे हैं,ऐसे में क्या इस सदी में भेदभाव करते हुए हम आगे बढ़ सकते हैं।नहीं,कभी
नहीं।।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु
यत्रैता वर्धते तद्धि
सर्वदा ।
भावार्थ-जिस कुल में नारी का सम्मान नहीं होता,वो दु:खी रहती हैं, वह परिवार जल्दी ही विनास की कगार पर खड़ा
हो जाता है । जहां नारी को सम्मान मिलता है,वहीं सुख सम्बृद्धी आती है।।
महान ऋषी मनीषियों ने भी कहा है- "नारी जीवन की सुलझाने वाली संतान है और
उसकी चरम सार्थकता मातृत्व में है।इसलिए शक्तिस्वरुपा है नारी,ममता की अविरल धआरा है
नारी। नारी सदा श्रद्धा और भक्ति की अथाह सागर की तरह धीर,वीर और गम्भीर है।"
कविवर जयशंकर प्रसाद जी ने भी ने कहा है-
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग-पग-तल में ,
पीयुष श्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में।"
देश को आगे बढ़ाना है तो निश्चित तौर पर सोच बदलनी होगी,क्योंकि सियासत तो
होती थी, होती रहेगी।ऐसे में नारी की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।यही वो
ताकत है जिसमें बंजर जमीन को हरा भरा करने की शक्ति है।।भारत माता की जय।।
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