संदीप
कुमार मिश्र : नवरात्र का पहला दिन। इस दिन माँ
दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के
यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।देवी शैलपुत्री
अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुर्इ थीं। उस जन्म
में वह अपने पति शिव को पिता के यज्ञ में आमंत्रित न किये जाने तथा उनके प्रति तिरस्कार
देखकर क्रोध से योगाग्नि द्वारा उन्होंने अपने प्राणों को आहुतीकर दिया । लेकिन अगले
जन्म में शैलपुत्री के रूप में पुन: भगवान शंकर की अर्द्धागिनी बनीं । शैलपुत्री को
माता पार्वती का रूप भी माना जाता है। नवरात्री पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा
और उपासना की जाती है। इनके दर्शन हेतु सुबह से हज़ारों महिलाओं एवं पुरुषों की भिड़
माता के मंदिरों पर लग जाती है। देवी का दिव्य रूप माँगलिक सौभाग्यवर्धक आरोग्य प्रदान
करने वाला एवं कल्याणकारी है।इनके पूजन-अर्चन से भय का नाश एवं किर्ति,धन,विद्या,यश
आदि की प्राप्ति होती है। ये मोक्ष प्रदान करने वाली देवी हैं।
माता
शैलपुत्री की पूजा अर्चना करते समय उनका ध्यान इस मंत्र से करें-
शैलपुत्री की ध्यान :
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
इसके बाद माता शैलपुत्री का ध्यान करते हुए स्तोत्र का पाठ
और कवच का पाठ भी अवश्य करें...यह पाठ अतिशीध्र फलदायी है-
शैलपुत्री की स्तोत्र पाठ:
प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह: विनाशिन।
मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
शैलपुत्री की कवच :
ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥
इसके अलावा नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं....जो
अत्यन्त हितकारी है।।जय माता दी।।
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