संदीप कुमार मिश्र: आखिरकार आतंक का पर्याय रहा छोटा राजन पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया।किसी ने सच
ही कहा है कि कानुन से कोई भाग तो सकता है लेकिन बच नहीं सकता,और छोटा राजन के साथ
भी कुछ ऐसा ही हुआ।बड़ा सवाल ये उठता है कि मुंबई की संकरी गलियों में पैदा हुआ एक
साधारण बालक,मजदूर का बेटा डान बना कैसे..?कहते हैं अंत भला तो सब
भला,खैर इंडोनेशिया से पुलिस की गिरफ्त में आए छोटा राजन से अब उम्मीद की जा सकती
है कि गुनाह की दुनिया के उन तमाम काले चेहरों से नकाब हटाने में मदद मिलेगी जिनकी
सिक्का मायानगरी पर चलता है।
दरअसल किस्मत भी कब
तक गुनहगार का साथ देती। कुछ ऐसा ही हुआ राजेंद्र सदाशिव निखलांजे उर्फ छोटा राजन उर्फ मोहन
कुमार के साथ। मुंबई के चेंबूर में तिलक नगर में पैदा हुआ राजन बदलते समय के साथ
कब छोटा रजन बन गया पता ही नहीं चला,और जब पता चला तब तककाफी देर हो चुकी थी
।मुंबई उसके आतंक से पांप रही थी,कत्लेआम और धन उगाही का अड्डा बन चुकी थी माया
नगरी।मुंबई के सिनेमाघरों में राजेंद्र सदाशिव टिकटों की कालाबाजारी करता था।लेकिन
आगे बढ़ने की कमीनी चाहत ने धिरे धिरे शराब का काला कारोबार भी सिखा दिया। ऐसे
छोटे मोटे काम से भी वो मकाम हासिल नही होना था सो सदाशिव उस समय के जान में शुमार
राजन नायर उर्फ बड़ा राजन के संपर्क में आया और कम समय में ही उसका विश्वासपात्र
बन गया। एक गैंगवार में नायर की हत्या के बाद उसके सभी काले कारोबार को छोटा राजन
नें बखुबी संभाला और बड़े राजन के हत्यारे को मौत के घाट उतारा।
इस प्रकार से सदाशिव
बन गया छोटा राजन।अब छोटा राजन और उसके गुर्गों का सिक्का मुंबई पर चलने लगा
था।लेकिन गुनाह की दलदल ऐसी थी की किससे निकलना उतना ही मुश्किल है जितना घुसना
आसान।एक तर छोटा राजन तो दुसरी तरफ एक और गैंग बड़ी ताकत के रुप में अस्सी के दशक
में अपने पांव पसार चुका था,हर गुनाह में उसका बड़ा हिस्सा था।तस्करी से लेकर गैर
कानुनी वसूली,मर्डर करना उसके गैंग के लिए बड़ा ही आसान था।जी हां दाउद
इब्राहीम।ये वही शख्स है जिसके उपर ना जाने कितने मुकद्दमे हैं,ना जाने कितने
बेगुनाहों के खुन से जिसका दामन दागदार है।अमन चान और शांती के मुल्क का ये दुश्मन
अस्सी के दशक में अपने काले मंसूबों को लगातार फैलाता जा रहा था। दाउद अपने चोटे
छोटे कामों को छोटा राजन को देने लगा।समय का फेर देखिए कि दाउद और राजन इतने करीब
आ गए कि मुंबई में इनका एकाधिपत्य राज हो गया।
जब दाऊद दुबई फरार हुआ तब मुंबई पर राजन की तूती बोलने लगी।यही कारण था कि
राजन मुंबई पुलिस की आंखों की किरकिरी बन गया। शायद यही कारण था कि 1990 के आस पास
पुलिस का शिकंजा बदमासों पर बढ़ने लगा।कुछ का इनकाउंटर हुआ तो कुछ अंडरग्राउंड हो
गए। आकिरकार छोटा राजन भी मुंबई को अलविदा कह कर दुबई रवाना हो गया,और हम सब जानते
हैं कि दुबई से मुफीद जगह भाईलोगों के लिए कहीं नहीं है।इस दौरान सबसे दिलचस्प बात
जो रही वो ये कि दुबई से ही भाईगिरी बखूबी चलने लगी,और दाउद और राजन के गुर्गे
मुंबई में काम को अंजाम देने लगे।लेकिन हकिकत तो ये है कि पैसे से बड़ी जरुरत भी
नहीं होती और दुश्मन भी नहीं होता।कुछ ऐसा ही हुआ दाउद और राजन के बीच भी।दोनो
गैंग के लोग एक दूसरे के खास लोगों पर हमला करने लगे।छोटे गुंडे दाउद का खास होने
में दिलचस्पी लेने लगे।
कहते हैं तभी दाउद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के संपर्क
में आया।जिसका परिणाम इतना भयानक होगा,जिसकी कल्पना भर से रुह कांप जाती है।आईएसआई
और दाउद ने मिलकर 1993 में मुंबई में बम धमाके करवाए और तभी से छोटा राजन और दाउद
के संबंधों में खटास आ गयी,जिसका परिणाम हुआ की दोनो में दूरियां बढ़ गई। शार्प शूटर
छोटा शकील दाउद का खास हो गया,जिस वजह से राजन ने अपना ठिकाना बदल कर मलेशिया की
सरजमीं पर कदम रखा और वहीं से अपने काम को अंजाम देने लगा।राजन के निशाने पर खासतौर
पर दाउद के गुर्गे थे,जिन्हें राजन नें ठोंकना शुरु किया।
दोनो गैंग में खुब
लड़ाईंया होने लगी,मुंबई से लेकर दुबई,मलेशिया और फिर नेपाल तक गैंगवार चलता रहा
और सन2000 में दाउद के गुर्गों ने राजन पर जानलेवा हमला किया,जिसमें वो बाल बाल बच
निकला। और अब वो और खतरनाक हो गया। एक तरफ तो दाउद ने अपना ठिकान दुबई से बदलकर
पाकिस्तान की गोद में जा बैठा।जहां पाकिस्तानी आकाओं ने उसे पूरी सुरक्षा मुहैया
करा दी वहीं छोटा राजन पर अब मनी लांड्रिंग और हथियारों की तस्करी का आरोप लगा।कहते हैं गुजरात
में साल 2005 में पकड़े गए बब्बर खालसा के आतंकियों को हथियार बेचने के मामले में छोटा
राजन के खिलाफ दो केस दर्ज हुए।
साल 2012 में मुंबई पुलिस ने यह अनुमान लगाया कि छोटा राजन
हजारों करोड़ का मालिक है। उसके गैर-कानूनी पैसे भवन-निर्माण और जमीनों में भी लगे
हुए हैं। उसकी पत्नी सुजाता ने मुंबई में जो खुशी डेवलपर्स नाम की कंपनी खड़ी की
है, उसमें
भी उसके पैसे लगे हैं। खुशी छोटा राजन की सबसे छोटी बेटी का नाम है। यह कंपनी
मुंबई और पुणे में भवन-निर्माण व भूमि विकास का काम करती है। 2005 में मकोका के तहत एक केस दर्ज हुआ और राजन का भाई
और उसके दो सहयोगी दबोचे गए। तलाशी अभियान से 37 बैंक खातों का पता चला। सलीम
कुर्ला, मोहम्मद
जिंदरान, मनीष
लाला की हत्याओं के पीछे भी राजन का हाथ बताया जाता है।इस तरह से छोटा राजन पर
तकरीबन 65-70 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके थे।छोटा राजन के रसुख का अंदाजा आप इसी
बात से लगा सकते हैं कि साल 2014 में उसकी मां का जब देहांत हुआ तक उनकी
अंत्येष्टि में राजनीतिक जगत से लेकर मायानगरी और कारोबारी भी शामिल हुए थे।
अब एक तरफ जहां अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गिरफ्तारी से हमारी सरकार
उत्साहित है।तो वहीं सवाल उठता है की डी कंपनी का मुखिया दाउद इब्राहिम गिरफ्त में
कब। इस सवाल पर सरकार अपनी प्रतिबद्धता तो जताती है लेकिन कब ये नहीं पता। केंद्रीय
गृह राज्य मंत्री रिजिजू ने तो साफ इशारा किया कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम भी
जल्द ही भारत की गिरफ्त में होगा और दाऊद को पकड़ने के लिए भारत सरकार ने अमरीका
की सुरक्षा एजेंसियों से जानकारी भी साझा की है।दरअसल रविवार को ऑस्ट्रेलियाई और
इंडोनेशियाई पुलिस की एक संयुक्त टीम ने बाली शहर में छोटा राजन को गिरफ्तार कर
लिया था। 55 वर्षीय राजेंद्र सदाशिव निकालजे उर्फ मोहन कुमार उर्फ छोटा राजन को उस
वक्त गिरफ्तार किया गया था,जब वह सिडनी से इंडोनेशियाई के शहर बाली पहुंचा था।
बहरहाल अब इंतजार है तो खौफ के उस चेहरे का जिसके आतंक ने कभी मुंबई की आबोहवा
में बारुद की गंध धोल दी थी।जिसका असर आज भी देखने को मिलता है।सरकार की असल
कामयाबी और प्रतिबद्धता तो तब देखने को मिलेगी जब आतंक की फैक्ट्री से जबरन दाउद
को निकालकर लाया जाएगा और 1993 के बम धमाकों में मारे लोगों के परिजनों के घावों
पर मरहम लगेगा।हम जानते हैं कि ये इतना आसान नहीं है लेकिन निजाम बदला है और नियत
भी बदली है,ऐसे में उम्मीद तो कर ही सकते हैं....।
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