संदीप कुमार मिश्र: भद्रकाली मां दुर्गा का ही एक नाम है।मां
भद्रकाली मंदिर में स्थित पवित्र कूप सती कूप और देवी कूप के नाम से विख्यात हैं।इस
पीठ की पौराणिक मान्यता है कि महाराज दक्ष के यज्ञ में अपने पति भगवान शंकर का भाग
न देखकर और अपने पति भोलेनाथ की निंदा सुनकर दुखी और क्रोधित होकर माता सति ने यज्ञ
कुण्ड में ही अपनी देह का त्याग कर दिया था।कहते हैं सच्चे मन से जो भी इस पीठ पर शीश
झुकाता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है।मां के प्रति अटूट आस्था और विश्वास का संगम
है मां भद्रकाली मंदिर।ये ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा का एक मात्र सिद्ध शक्तिपीठ है।जहां
मां भद्रकाली शक्ति के रूप में विराजमान हैं।वामन पुराण और ब्रह्मपुराण में कुरुक्षेत्र के संदर्भ में चार कूपों का वर्णन हैं।जिसमें चंद्र कूप ,विष्णु कूप, रूद्र कूप और देवी
कूप हैं।मां भद्रकाली शक्ति पीठ की बात करें तो शिव पुराण में इसका वर्णन मिलता है।
मां भद्रकाली शक्तिपीठ महात्म्य
कहा जाता है कि एक बार माता सती के पिता
दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया और इस अवसर पर भगवान भोलेनाथ को छोड़कर सभी देवताओं,ऋषी
मुनियों को आमंत्रित किया गया।इस बात का पता जब माता सती को चला तो माता सती अपने पिता
के घर पहुंची और इस बारे में बात की।उनके पिता महाराज दक्ष ने शिव जी की घोर निंदा
की,इस बात से आहत होकर क्रोध में माता सति ने स्वयं को यज्ञ कुंड में डाल दिया।भगवान
शिव जब सती की मृत देह को लेकर ब्रम्हांड में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन
चक्र से सती के शरीर को 52 हिस्सों में बांट दिया।जहां जहां सती माता के अंग गिरे उस
जगह पर शक्ति पीठ स्थापित हुए।नैना देवी, कामाख्या देवी, ज्वाला जी आदी सभी बावन शक्तिपीठ
मां के प्रिय निवास स्थान हैं।मां वहां साक्षात रूप में विराजमान रहती हैं।
मां भद्रकाली शक्ति पीठ में मां के दाहिने
पांव की एड़ी गिरी थी।इस सिद्धशक्ति पीठ के संबंध में कहा जाता है कि कौरवों और पांडवों का महाभारत युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों सहित
विजय प्राप्ति के लिए मां भद्रकाली का पूजन किया था।कहा जाता है कि पांडवों ने विजय
के पश्चात यहां घोड़े दान किए थे।तभी से ऐसी मान्यता है कि श्रद्धालूजन की मनोंकामनाएं
जब पूरी हो जाती हैं, तो वो यहां आकर घोड़े की मूर्तियां चढ़ाते हैं।मां के इस सुंदर
दरबार में आकर हर कोई धन्य हो जाता है।विशेष उत्सवों पर इस मंदिर को सजाया संवारा भी
जाता है।दूर दूर से श्रद्धालू इस पवित्र स्थान के दर्शन के लिए आते हैं और अपनी खाली
झोली मां के दरबार से भरकर जाते हैं।
पीपल का वृक्ष जिसके नीचे भगवान श्री
कृष्ण और बलदाऊ का हुआ मुंडन संस्कार
मां भद्रकाली मंदिर से और भी पौराणिक मान्यताएं
जुड़ी हुईं हैं।मंदिर के प्रांगण में ही भव्य पीपल का वृक्ष है और पवित्र शिवलिंग भी।मान्यता
ऐसी भी है कि शिवलिंग के सामने पूजन कर पवित्र पीपल के वृक्ष के नीचे ही श्री कृष्ण
और बलदाऊ का मुडंन संस्कार हुआ था।ऐसा श्रीमद्भागवत पुराण में कहा गया है।बड़े बड़े
सिद्ध महात्माओं ने यहां आराधना करके भगवती की कृपा से अभीष्ट सिद्धियां प्राप्त की
हैं।जनमानस की आस्थाएं इस जगह से जुड़ी हुईं हैं।मंदिर में एक पवित्र गुफा है जिसके
प्रारंभ में मां दुर्गा पिण्डी के रूप में विराजमान हैं और जब आप गुफा से बाहर निकलते
हैं तो सामने ही भगवान विष्णु और भोलेनाथ की विशाल प्रतिमा बनी हुई है जो ये दर्शाती
हैं कि किस प्रकार शिव जी माता सती को लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे और भगवान विष्णु
ने उनका उद्धार किया।इस स्थान पर मां के शयन कक्ष को भी बड़ी ही सुंदरता के साथ सजाया
गया है।श्री भद्रकाली मंदिर के सतसंग भवन में भगवान श्री कृष्ण जी का विराट स्वरूप,श्री
राधा कृष्ण औऱ श्री राम दरबार के अलौकिक दर्शन होते हैं।जिसे देखकर मन में शांति और
सुकून का संचार होने लगता है।नवरात्र में माता की कृपा पाने के लिए भक्तों का यहां
तांता लगा रहता है।मां अपने सभी भक्तों का कल्याण करें।जय माता दी।
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