संदीप कुमार मिश्र: मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम '' चन्द्रघण्टा '' है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह
का पूजन आराधना की जाती है।इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक
में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र
है। इसी कारण इस देवी का नाम चन्द्रघण्टा पड़ा है।इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला
है।इनका वाहन सिंह है।
हमें मन वचन कर्म और शरीर से शुद्ध होकर, विधि विधान के अनुसार मां चन्द्रघण्टा की शरण लेकर उनकी उपासना और आराधना करनी चाहीए।इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
हमें मन वचन कर्म और शरीर से शुद्ध होकर, विधि विधान के अनुसार मां चन्द्रघण्टा की शरण लेकर उनकी उपासना और आराधना करनी चाहीए।इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
मातृ रूपी दिव्यता या पवित्र चेतना ही सभी रूपों में समायी हुई है।एक दिव्यता को सब रूप और नाम में पहचानना ही नवरात्रि का उत्सव है।समस्त भक्त जनों को देवी चंद्रघंटा की वंदना करते हुए कहना चाहिए-
या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
अर्थात देवी ने चन्द्रमा को अपने सिर पर घण्टे के समान सजा रखा है, उस महादेवी, महाशक्ति चन्द्रघंटा को मेरा प्रणाम है,बारम्बार प्रणाम है।इस प्रकार की स्तुति और प्रार्थना करने से देवी चन्द्रघंटा की कृपा प्राप्त होती है।
जो साधक योग साधना कर रहे हैं,उनके लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस दिन कुण्डलनी जागृत करने के लिए स्वाधिष्ठान चक्र से एक चक्र आगे बढ़कर मणिपूरक चक्र का अभ्यास करते हैं, इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है।
तीसरे दिन की पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है, जो दूसरे दिन की पूजा का है।पूजा करते समय मां चन्द्रघंटा का ध्यान, मंत्र,स्तोत्र पाठ और कवच का पाठ अवश्य करना चाहीए। नवरात्रि के तीसरे दिन दूध या दूध से बनी मिठाई,खीर का भोग मां को लगाकर ब्राह्मण को दान करना चाहीए।इससे दुखों की मुक्ति होकर साधक को परम आनंद की प्राप्ति होती है।
भोले शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने कठीन तप व्रत किया था।महादेव की पूजा भी आदर पूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि इनकी पूजा करने से देवी की कृपा जल्द ही प्राप्त होती है।इनकी आराधना से मनुष्य के हृदय से अहंकार का नाश होता है,और वह असीम शांति की प्राप्ति कर प्रसन्न होता है,मां चन्द्रघण्टा मंगलदायनी है,और भक्तों को निरोग रखकर उन्हें वैभव,ऐश्वर्य प्रदान करती है।
चन्द्रघण्टा की पूजा अर्चना देवी के मण्डपों में बड़े उत्साह और उमंग से
की जाती है।कहते हैं मां के स्वरूप के उत्पन्न होने से दानवों का अन्त होना आरंभ हो
गया था।चन्द्रघण्टा की पूजा उस समय की जाती है,जब आकाश में एक लकीरनुमा चन्द्रमा सांयकाल
के समय उदित हो रहा हो।जय माता दी।
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