संदीप कुमार मिश्र: साथियों कहते हैं कि अगर आपके पास धन हो तो आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती
हैं। धन, स्वास्थ्य संपन्नता के लिए जरुरी है कि लक्ष्मी जी का आपके घर में वास हो।
धनतेरस। जिसे हम धन त्रयोदशी और धनवंतरी के तौर पर भी जानते हैं।शीत
ऋतु के प्रारंभ होते ही हमारे देश में त्योहारों की रौनक लोगों के चेहरों
पर देखने को मिल जाती है।दशहरे से शुरु हुआ त्योहारों का सिलसिला लगातार लोगों में
उत्साह का संचार करता है।दीपावली से ठीक दो दिन पहले धनतेरस यानि की पैसे खर्च करने
का दिन होता है।इस दिन हर कोई कुछ न कुछ खरीददारी जरूर करता है।ऐसा कहा जाता है कि
जो धनतेरस वाले दिन ज्यादा से ज्यदा पैसे खर्च करता है।मां लक्ष्मी उन पर कुछ ज्यादा
ही मेहरबान होती है।यानि की उन पर होती है धन की वर्षा।धनतेरस पर हर कोई अपनी हैसियत
के अनुसार कुछ न कुछ खरीददारी जरूर करता है।समाज के सभी वर्गो के लोग धनतेरस के इस
पर्व का बड़ा बेसब्री से इंतजार करते हैं।पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष
को धनतेरस मनाया जाता है।धन तेरस जो कि नाम से ही स्पष्ट है।धन यानि की इस दिन धन की
पूजा की जाती है।लेकिन मित्रों असली धन है हमारी सेहत,हमारा स्वास्थ्य। अगर हमारा स्वास्थ्य अच्छा है तो हम धन कमा
सकते है,और मेहनत से हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं।
कहते हैं पहला सुख निर्मल हो काया, तभी तो हमारी भारतीय
संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है।स्वास्थ्य के ऊपर तो कई कहावतें
भी प्रचलित हैं। जैसे स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है,ये भी कहा गया है कि
पहला सुख निरोगी काया , दूजा सुख घर में हो माया और घर में
माया तभी आएगी जब घर के सभी लोग तन्दरूस्त होंगे।इसलिए तो दीपावली के शुभ अवसर पर धनतेरस
को अहम महत्व दिया जाता है,जो भारतीय संस्कृति के अनुकूल है। दीवाली से दो दिन पहले
धनतेरस का पावन त्योहार मनाया जाता है।इस दिन चांदी खरीदना बड़ा ही शुभ माना जाता है।सोने
का तो हमेशा महत्व रहा है,लेकिन चांदी का विशेष महत्व इसलिए कहा गया है क्योंकि ये
शिव के नेत्र से पैदा हुई है।चांदी अपनी अर्थ को मजबूत करती है और सोना भौतिक सम्पदा
को मजबूत करता है।अगर दीपावली और लक्ष्मी पूजन को देखा जाए तो इन चार पांच दिनों का
अपना ही महत्व होता है।हमारे धर्म ग्रंथों में लक्ष्मी के तीन भाग बताए गए हैं। पहला
है शोभा यानि कि साफ सफाई,स्वच्छता और सुन्दरता। दूसरा है सम्पति यानि कि धन भी उस
घर में आता है जहां साफ सफाई होती है,और तीसरे स्थान पर आता है पदमा सुख।पदम यानि कि
कमल,ये फूल है हमारी हंसी और प्रसन्नता का प्रतीक।ये तीनों आदि भौतिक, आदि दैहिक और अध्यात्मिक तीनों के प्रतीक है।इसलिए हमे भौतिक प्रगति के रूप
में सोना चांदी जरूर खरीदना चाहिए।धनतेरस पर तो इनका बड़ा ही महत्व है।
हमारी भारतीय परम्परा है ही कुछ ऐसी जो आपसी भाईचारे
और समझ को बढ़ाती है।जो आपसी रिश्तों को बनाती है सृदढ और समबृद्ध।भारत में मनाए जाने
वाले सभी त्यौहार हम सब में आपसी भाईचारे को मजबूत करने और जोड़ने का काम करतें हैं।इसी
कड़ी में धनतेरस भी बड़ा ही सुन्दर पर्व है। धनतेरस का प्रतीक भी बड़ा ही सुन्दर है।इस
दिन हम दीपदान करते हैं।इन दीपकों को हम घर में न जगा कर घर से बाहर जलातें हैं।हम
दीपदान घर से बाहर करते हैं।घर से बाहर जब हम दीपदान करते हैं तो बरसात और गर्मी की
वजह से जो कीटाणु पैदा हुए होतें हैं उनका क्षमन होता है।दीपक से निकलने वाली गंघ से
यानि के दीपक के जलने से छोटे छोटे कीटाणुओं का नाश होता है।ये तो आयुर्वेद का मानना
है।ऐसे में अब सवाल पैदा होता है कि इसका सामाजिक महत्व क्या है।हमारे धार्मिक ग्रंथ
भी हमें दीपक घर के बाहर दान करने को कहते हैं।ये दीपदान कचरे, कूड़े की पेटी के पास,चौराहे पर,कुएं, तालाब में करना चाहिए।इन सभी चीजों को कोई एक व्यक्ति
तो इस्तेमाल नहीं करता बल्कि पूरा समाज कर रहा होता है।दीपदान करने की इस भावना में
छिपा होता है सर्व धर्म समभाव की भावना।जिससे की पूरे समाज का भला हो सके।हम पूरे समाज
को स्वच्छ,सुन्दर और निरोग देखना चाहते हैं।
यमराम देवताओं में मृत्यु के देवता कहे गए हैं।जब
किसी की मौत होती है तो कहते है कि यम आ गया।यानि यमदूत आ गये या आयू को खत्म करने
वाले आ गए। दीपावली और धनतेरस को देखे तो इसमें स्वच्छता पर ध्यान दिया गया है।हमारे
शास्त्रों में कहा गया है कि यमदीप दान बाहर करना चाहिए।चौराहे पर पड़े कचरे को हटा
देना।हर तरह की गन्दगी को हटाना इस दिन बेहद जरुरी होता है।कहा जाता है कि इस दिन आटे
का दिया बना कर जलाना चाहिए।चार दीपक, चार दिशाओं के लिए जलाएं,जो की शुभता
का प्रतिक माना जाता है।दीपावली पर तो आप दिए जलाएंगे ही,लेकिन इस दिन दिए जलाने का
महत्व और भी बढ़ जाता है।कुछ लोगों का मानना है कि तिजोरी के पास दिया जलाने से धन
बढ़ता है,साथ ही इसे घर के बाहर जलाने से इसकी महत्ता और बढ़ जाती है।धनतेरस के संबंध
में एक लोक कथा प्रसिद्ध है।
धनतेरस की लोक कथा
कहते हैं एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि क्या
प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय आपके मन में दया नही आती है,तो यमदूतों
ने यमदेवता के भय से कह दिया कि वो तो अपना कर्तव्य निभाते हैं और उनकी आज्ञा का पालन
करते हैं।वहीं जब यम देवता ने दूतों का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा
हेमा के ब्रहम्चारी पुत्र के प्राण लेते समय उसकी नवविवाहित पत्नी का विलाप सुनकर उनका
हृदय पसीज गया।लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सके।एक दूत
ने हिम्मत करके बातों ही बातों में यमराज से पूछ लिया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई
उपाय है क्या ? इसके जवाब में यम देवता ने कहा कि जो धनतेरस
की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दिया जलाकर रखता है।उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती
है।इसी मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम को लोग यम देवता के नाम का दीप घर के आंगन
में जला कर रखतें हैं।धनतेरस के दिन धन्वंतरी की पूजा करें और अच्छे स्वास्थ्य और सेहतमंद
रहने के लिए भगवान धन्वंतरी से हमें प्रार्थना करनी चाहिए।
धनतेरस के दिन पूजा का समय
धनतेरस पूजा मुहूर्त-05:50 से07:06
समय- 1 घंटा 15 मिनट
प्रदोष काल-05:26 से 08:06
वृषभ काल-05:50 से 07:46
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ = 8नवम्बर2015 को 04:31 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त = 9नवम्बर2015 को 07:06 बजे
धनतेरस या धनत्रयोदशी के दौरान लक्ष्मी पूजा को प्रदोष
काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे
24 मिनट तक रहता है।
आज इक्कीसवीं सदी में हमारी भागदौड़ भरी जिंदगी,जहां
थकना मना है।ऐसे में विज्ञान भी आयुर्वेद की ओर धिरे-धिरे उन्नमुख हो रहा है।कहते हैं
आयुर्वेद के जनक धन्वंतरी का जन्म तब हुआ था,जब समुंद्र मंथन हुआ था।14 रत्नों में
एक रत्न धन्वंतरी थे,जिनकी उत्पत्ती समुद्र मंथन से हुई थी।जब देव और असुरों में समुंद्र
का मंथन किया गया तो ये रत्न पैदा हुआ,और इसके सम्मान को ध्यान में रखते हुए भगवान
विष्णु ने आज के दिन इनकी पूजा करने का विधान बताया।आयुर्वेद को समझने की बात है,ये
सिर्फ पूजा करने तक ही सीमित नहीं है।हम यम दीप दान करते है या धन्वंतरी की पूजा करते
तो दिया जलाते हैं। चार दिशाओं में चार दीपक जलाते है या चतुर्वर्ग में।ये सब हमारे
जीवन के प्रतीक हैं।हमारे जीवन को चार अवस्थाओं में बांटा गया है।बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था।साथ
में पांच चीजों से इनकी पूजा करतें हैं जो है आयुर्वेद का प्रतीक।धन्वंतरी की पूजा
करते हैं तो जल का अर्पण करते हैं।क्योंकि जल जीवन को बढ़ाता है।पूजा में रोरी का प्रयोग
करते हैं,और रोरी विजय का प्रतीक माना गया है।चावल भोजन का प्रतीक है और गुड़ का तो
आयुर्वेद में अहम महत्व है ही।गुड़ का भोग लगाते है।पांचवी चीज़ है सुगंध।सफेद पुष्प
जो सुगंधित हो।ये पांचों वस्तुएं आयुर्वेद से जुड़ी है।जिनकी हम प्रतीक रूप में पूजा
करते है।प्राचीन कथाओं के अनुसार धन्वंतरी का जन्म हाथों में अमृत कलश लिए हुए हुआ
था।इसीलिए इन्हें पीयूषपाणि धन्वंतरि से भी जाना जाता है।धन्वंतरि को भगवान विष्णु
का अवतार माना जाता है।।
धनतेरस पर बाजारों की रौनक देखते ही बनती है। सुन्दर
सुन्दर बर्तनों से बाजार सज जाते हैं।वहीं सोने ,चांदी के गहनों
की दुकानों की सजावट के तो क्या कहने।इस त्यौहार को हर अमीर- गरीब अपनी हैसियत के अनुसार
कुछ न कुछ खरीददारी जरूर करता है।कहाते हैं इस दिन पीतल और चांदी जरूर खरीदनी चाहिए।लोग
सोने चांदी के गहनों के अलावा बर्तन खरीदना भी नहीं भूलते।
इस दिन पीतल और चांदी खरीदना बड़ा ही शुभ शगुन माना
जाता है।क्योंकि पीतल भगवान धन्वंतरी की धातु है,पीतल खरीदने से घर में आरोग्य,सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। ऐसा भी माना जाता है कि
इस दिन धन खरीदने से यानि सम्पति खरीदने से धन में बढ़ोतरी होती है।किसान धनतेरस वाले
दिन धनिए के बीज भी खरीदते हैं और दीवाली के बाद इन बीजों को अपने खेतों में बो देते
हैं।
महंगाई के इस दौर में अगर आप सोने , चांदी के सिक्के या गहने
नहीं खरीद सकते हैं,तो आप कोई बर्तन शगुन के तौर पर खरीद सकते हैं।नया बर्तन खरीदना
सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।कुछ लोग पूराने बर्तन बेच कर नए खरीदते हैं,तो
ये धारणा गलत है,और ये भ्रांति भी है कि हमें पुराने बर्तन नहीं बेचने चाहिए।हमें केवल
वे ही बर्तन बेचने चाहिए जो बर्तन टूटे फूटे हों।क्योंकि टूटे फूटे बर्तनों से दोष
उत्पन्न रहने की संभावना अधिक रहती है।इसलिए ऐसे बर्तनों को दे देना और इनका विसर्जन
कर देना ही बेहतर होता है।नए बर्तनों को लेना स्वच्छता की निशानी है। इसलिए नई और सुन्दर
चीज़ें अपने घर लाने चाहिए।धनतेरस पर धन्वंतरी की कृपा आप पर बनी रहे और आप पर हमेशा
धन की वर्षा होती रहे।सब सुखी रहें और सुख समृद्धि भरा खुशहाल जीवन जिएं।
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