संदीप कुमार मिश्र: सनातन धर्म में हिन्दू पंचांग के
अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा या फिर रास
पूर्णिमा कहते हैं। ज्योतिषविज्ञान के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात सालभर में
इकलौती ऐसी रात होती है जब चंद्रमा पूरे सोलह कलाओं से पूर्ण होता है।
माता लक्ष्मी का जन्मोत्सव यानी
शरद पूर्णिमा क दिन
चांद की मनभावन सुंदरा किसे नहीं
अपनी ओर आकर्षिक कर लेती है,कहते हैं कि शरद पूर्णिमा का संबंध सांवरे सलोने कृष्ण
कन्हैया के महारास से है साथ ही माता लक्ष्मी के जन्म से भी संबंधीत है।वर्षा ऋतु
का समापन और शीत ऋतु का आगमन हमारे जीवन में उत्सवों को लेकर आता है,आनंद को लेकर
आता है। दरअसल ये पावन त्योहार परिवर्तन का सूचक है।सौंदर्य का प्रतिविम्ब है।शरद
पूर्णिमा का खास महत्व हमारे स्वास्थ्य से भी है,आयूर्वेद की माने तो इस खास मौसम(शीत
ऋतु) में गर्म दूध का सेवन हमारी सेहत के लिए अच्छा होता है।जैसा कि हम सब जानते
है कि बरसात के मौसम में दूध का सेवन हानिकारक होता है तो ऐसे में शीत ऋतु के
प्रारंभ से ही हमें दूध का सेवन करना चाहिए।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के
दिन चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है,इसीलिए इस खास अवसर पर खीर बनाने और खाने की परंपरा
हमारे सनातन धर्म में है।
शरद पूर्णिमा का खास महत्व-मान्यताओं
के अनुसार धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के ही दिन हुआ था।इसलीए हमारे देश
के अनेक हिस्सों में आज के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है। पुराणों में ऐसा भी कहा
गया है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में आज ही के दिन हुआ
था और लक्ष्मी जी का अवतरण इस धराधाम पर राधा रानी के रुप में हुआ।तभी से नंद के
लाला श्रीकृष्ण और राधारानी की अद्भुत रासलीला आरंभ हुई और इस दिन को संसार में
शरद पूर्णिमा के रुप में मनाया जाने लगा। इस दिन सुंदर वर प्राप्त करने के लिए
कन्यायें व्रत भी रखती हैं और चंद्रमा की पूजा भी रखती है।कहते हैं इसी दिन कुमार
कार्तिकेय का जनम हुआ था।इसलिए इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है।हिन्दु
मतावलंबीयों के अनुसार या नारदपुराण की माने तो शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी
अपने हाथ में वर और अभय लिए विचरण करती है,और अपने जागते हुए भक्त धनधआन्य से
परिपूर्ण रहने का आशिर्वाद देती है।
शरद पूर्णिमा का व्रत विधान- संसार
में सुख संपत्ति की मित्रों किसे चाह नहीं होती,इसलिए शरद पूर्णिमा के दिन मां
लक्ष्मी की पूजा विधि विधान से करनी चाहिए।चंद्रमा के उदय होने पर दीपक(सोने,चांदी
या मिट्टी के दिये)जलाना चाहिए। साथ ही घर में खीर बनाकर छत पर रखना चाहिए और
रात्री के एक पहर बीत जाने के बाद उस खीर से माता लक्ष्मी को भोग लगाना चाहिए।
एक कथानुसार किसी साहूकार कि दो
पुत्रियां थी,और दोनो ही पूर्णिमा का व्रत रखती थी।जिस वर्त को बड़ी लड़की ने विधिसंमत
संपन्न किया और दोटी लड़की ने व्रत को अधूरे में छोड़ दिया।जिसके परिणामस्वरुप
छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे,कहते हैं कि एक बार बड़ी लड़की पुण्य
स्पर्श से छोटी लड़की का बालक जीवित हो गया,तभी से इस व्रत को विधिनुसार मनाया
जाने लगा। कहते हैं माता लक्ष्मी की आज के दिन विधि विधान से पूजा करने से सभी
मनोंकामना पूर्ण होती है।
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