संदीप कुमार मिश्र: एक
डाकू,जिसके जीवन उद्धेश्य लोगों के प्राणों का हरण करना था,सत्संग और संतों का प्रभाव
देखिए कि जिसके जीवन का उद्धेश्य ही मार काट का रहा हो,वो कैसे बन गया महाकवि।जिसे
संसार में महर्षि बाल्मीकि के नाम से जाना जाने लगा।पुराणों में कहा गया है कि
नागा प्रजाति में जन्में बाल्मीकि जी का पहले नाम रत्नाकर था जो एक डाकू थे।कहते
हैं कि एक समय ऐसा भी था जब जंगल से गुजर रहे साधुओं की टोली को रत्नाकर जान से
मारने की धमकी दिया करते थे।एक समय की बात है जब किसी साधु को बाल्मीकि जी डरा
धमका रहे थे तब साधु ने रत्नाकर से पुछा कि आप ये लूटखसोट किसलिए कर रहे हो।तब
बाल्मीकि जी ने कहा कि परिवार के लिए।इस पर संतों ने कहा कि इस पाप के भागी तुम
स्वयं होगे ना की परिवार वाले,पाप में कोई हिस्सेदार नहीं होगा।यकिन ना आए तो
परिवार से जाकर पुछ लो।जिसके बाद बाल्मीकि जी के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई और
वो परिवार के पास जाकर पुछने लगे और उनकी पत्नी और बच्चों ने भागीदारी की बात पर
असहमती जता दी।इस बात से बाल्मीकि जी का मन आहत हुआ और संतों से इस पाप से मुक्ति
का मार सुझाने के लिए कहा।संतो महात्माओं ने सबसे पहले तो यूवा बाल्मीकि को श्रमा
किया और तमसा नदी के तट पर राम नाम का भजन करने की सलाह दी जिससे कि मुक्ति और
भुक्ति दोनो प्राप्त हो सके।दोस्तों विडंबना देखिए,और राम नाम की महिमा देखिए कि
बाल्मीकि जिन्होने राम नाम कहने की बजाय मरा-मरा कहना प्रारंभ किया और नाम महिमा
के प्रभाव से मुख से राम राम निकले लगा।जिसके बाद घोर तपस्या में लीन रत्नाकर
बाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हो गए और रामायण महाकाव्य की रचना कर डाली।जो कि 'वाल्मीकि रामायण' के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
दोस्तों
संगती का बड़ा प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। महर्षि बाल्मीकि नारदमुनि के संपर्क
में जब आए तब ज्ञान और भक्ति की पराकाष्ठा को छुआ और जगत में एक महान ऋषि, ब्रम्हर्षि
बने, जिसके
बाद ‘रामायण’महाकाव्य
की रचना की, जिसका
साक्षी संपूर्ण संसार है।रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जिसे दूसरे देशों के लोग भी सुविधानुसार
अपनी-अपनी भाषाओं में पढ कर ज्ञान अर्जित करते हैं।राम चरित की व्याख्या जिस
प्रकार से बाल्मीकि ने रामायण में की,उसके चिंतन से निश्चत ही हमारा जीवन सुधर और
निखर सकता है।महर्षि वाल्मीकि कृत ‘रामायण’
संस्कृत भाषा का
पहला महाकाव्य है।इसलिए रामायण महाकाव्य को ‘आदि-काव्य’ यानी
की‘प्रथम
काव्य’ कहा
जाता है और महर्षि बाल्मीकि को प्रथम कवि की उपाधी से सुशोभित किया जाता है।
कहते हैं कि अपने डाकू के जीवनकाल
के दौरान महर्षि बाल्मीकि ने एक बार देखा कि एक बहेलिए ने सारस पक्षी के जोड़े में
से नर पक्षी का वध कर दिया,जिसे देखकर मादा पक्षी करुणा से जोर-जोर से विलाप करने
लगी।इस विलाप को सुन वाल्मीकि जी का मन करुणा से ङर गया और वो अत्यंत दुखी हो उठे। आहत और व्यथित मन से उनके मुंह से
अचानक ही एक श्र्लोक निकल गया- 'मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।' अर्थात्- अरे बहेलिए, तूने काम मोहित होकर मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है, अब तुझे कभी भी प्रतिष्ठा प्राप्त
नहीं होगी।
ये ऐसा श्र्लोक था जिसने वाल्मीकि जी के जीवन में अद्धूत ज्ञान दिया और उन्होने 'रामायण' जैसे प्रसिद्ध महाकाव्य की रचना कर दी। जिसे आम जनमानस 'वाल्मीकि रामायण' के नाम से जानता है।ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जो प्रभू श्रीराम जी के सत्यनिष्ठ, पिता प्रेम और उनका कर्तव्य पालन और अपने माता तथा भाई-बंधुओं के प्रति प्रेम-वात्सल्य से हमें साक्षात्कार करवाता है साथ ही सत्य और न्यायरुपी धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
ऐसे महान संत और आदिकवि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।ऐसे महान संत,ज्ञानी महापुरुष महर्षि वाल्मीकि को कोटि कोटि नमन।
ये ऐसा श्र्लोक था जिसने वाल्मीकि जी के जीवन में अद्धूत ज्ञान दिया और उन्होने 'रामायण' जैसे प्रसिद्ध महाकाव्य की रचना कर दी। जिसे आम जनमानस 'वाल्मीकि रामायण' के नाम से जानता है।ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जो प्रभू श्रीराम जी के सत्यनिष्ठ, पिता प्रेम और उनका कर्तव्य पालन और अपने माता तथा भाई-बंधुओं के प्रति प्रेम-वात्सल्य से हमें साक्षात्कार करवाता है साथ ही सत्य और न्यायरुपी धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
ऐसे महान संत और आदिकवि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।ऐसे महान संत,ज्ञानी महापुरुष महर्षि वाल्मीकि को कोटि कोटि नमन।
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