संदीप कुमार मिश्र: मित्रों आस्थाओं के इस देश में मान्यताओं की बड़ी अहमियत है।हमारा प्रकृति से
बेहद पुराना संबंध है,संस्कृतियों के विकास से लेकर उत्थान और पतन तक सब कुछ कहीं
ना कहीं हमारी आस्था,परम्परा और मान्यताओं के इर्दगिर्द ही रहती है।मां गंगा हम भारतवासियों
के लिए सिर्फ एक नदी का नाम नही है,बल्कि ये हमारी सांस्कृतिक विविधता और समन्वय की
परिचायक भी है।सदियों से पतितपावनी मां गंगा अपनी निर्मल जल धारा से लोगों के पाप
हरती रही हैं।गंगा के पानी से अभिसिंचित भारतभूमि दुनियाभर के देशों के लिए तीर्थ है।हजारों मील दूर से लोग मां
गंगा के निर्मल जल से अपने अंत:करण की कलुषता को दूर करने के लिए आते रहते हैं।देवभूमि
उत्तराखंड के लिए ये गौरव की बात है। उसे मां गंगा की उद्गम
स्थली के तौर पर जाना जाता है।उत्तराखंड के चार धामों में एक- गंगोत्री ही वो पावन
स्थली है, जहां मां गंगा ने पहली बार पृथ्वी को स्पर्श किया था।गंगोत्री, जिसके
नाम लेने मात्र से ही मन में शांति, रहस्य, रोमांच और श्रद्धा के भाव एक साथ उमडने
लगते हैं।बिना किसी छल और प्रपंच के अपनी दिशा में बहता मां गंगा का पानी और यहां
का प्राकृतिक सौंदर्य हर किसी को अपनी तरफ खीचता है।इन खूबसूरत वादियों को देखकर
आंखों को तृप्ति मिल जाती है।
अनंतकाल से ही गंगोत्री मां गंगा की पूजा-अर्चना का
धार्मिक स्थल रहा है।यहां मां गंगा की वही स्थिति है, जो वैदिक संस्कृति में ज्ञान
और साधना की है।सदियों से साधु, संन्यासी, मुनि, और श्रद्धालु यहां मुक्ति की आस
में आते रहे हैं।ये देश के उन पवित्र धामों में एक है, जहां प्राकृतिक सौंदर्य और
संस्कृति का अदभुत संगम देखने को मिलता है।
यूं कहें कि गंगा की महिमा का कोई अंत नही है तो गलत नहीं होगा।ऐसा कोई भाव
नहीं, जिसमें गंगा का रुप न समाया हो।पुराणों के अनुसार पाप बढ़ने के कारण कलयुग
में जब सभी देवी-देवता अंतर्ध्यान हो जाएंगे, तब मां गंगा ही जगत का उद्धार करेगी।साक्षात
शक्तिस्वरुपा मां गंगा अपने भक्तों को अपने आंचल में समेट लेती हैं।गंगा के उसी
ममतामयी रुप के साक्षात दर्शन होते हैं,गंगोत्री मंदिर में।समुद्र तल से 3042
मीटर की ऊंचाई पर
स्थित मां गंगा को समर्पित ये मंदिर लाखों-करोड़ो लोगों की आस्था को समेटे हुए हैं।मंदिर
की भव्यता और शुचिता देखकर भक्त हतप्रभ रह जाते हैं।लोकपरंपराओं में भी मंदिर और
इससे जुड़ी मान्यताओं का रंग गहरा बसा हुआ है।मंदिर के चारो तरफ का वातावरण रमणीय
होने के साथ-साथ अध्यात्म और दर्शन को भी परिभाषित करता है।
यहां शांति को कई रुपों
में रुपांतरित होते देखा जा सकता है।मंदिर से देखने पर आकाश में टुकड़े-टुकडे बादल
ऐसे प्रतीत होते हैं, मानों, स्वर्ग की नौकाएं तैर रहे हों।इस अदभुत दृश्य को
देखकर श्रद्धालुओं को असीम शांति का एहसास होता है।गंगा मैया के मंदिर का निर्माण
गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया
गया था।बाद में जयपुर राजघराने द्वारा इस मंदिर का पुर्नउद्धार किया गया।गंगोत्री
मंदिर का प्रांगण प्रशस्त और समतल है।मंदिर का निर्माण एक पवित्र शिला पर हुआ है,
जहां परंपरागत रूप से राजा भागीरथ,आदि देव महादेव की पूजा किया करते थे।ये वर्गाकार भवन 12 फीट ऊंचा ।दूसरे पहाडी मंदिरों की तरह इस मंदिर का शीर्ष भी गोलाकार
है।जिसके ऊपर खरबूजे की शक्ल का तुर्की टोपी की तरह शिखर है।मंदिर का
निर्माण सफेद रंग के चित्तीदार ग्रेनाइट को तराशकर उत्तराखंड की पगोडा शैली में किया
गया है।मंदिर के बरामदे के स्तम्भ राजस्थानी और पहाड़ी शैली के मिश्रण से बने हैं।मंदिर के आसपास की शिलाओं से लोग
प्रकृति के अदभुत रुप का साक्षात्कार करते हैं।शिलाओं पर ऊं का अंकन है।चारो ओर भक्ति
का रुप दिखाई देता है।कोई अपने शरीर पर भस्म लगाए मां गंगा की भक्ति में लीन है,
तो कोई शंख में मां गंगा के जल से भगवान सूर्य को अर्ध्य देता है।मंदिर के पास मुख्य
स्नान गृह और पूजा स्थल है।गंगा में स्नान कर लोग अपने जन्म-जन्म के पापों से
मुक्त हो जाते हैं।विदेशी भी मां गंगा के पावन जल का स्पर्श कर अपने को धन्य मानते
हैं।गंगोत्री के धार्मिक महत्व को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं।कहा जाता है, कि कपिल मुनि
के शाप से भस्म हुए राजा सगर के 60 हजार
पुत्रों की मुक्ति के लिए भागीरथ की
तपस्या के बाद मां गंगा गंगोत्री में ही धरती पर अवतरित हुई। महाभारत में गरुड़ ने गालव ऋषि को बताया कि
यहीं आकाश से गिरती गंगा को शिव ने अपनी जटा पर धारण किया था।शास्त्रों में
गंगोत्री को मोक्षदायिनी बताया गया है। गंगोत्री में स्नान से मनुष्य जन्म-मृत्यु
के फेर से पृथक हो जाता है।इसी मान्यता के आधार पर ही लाखों श्रद्धालु हर वर्ष
गंगोत्री पहुंचकर अपने को धन्य समझते हैं।
साथियों मां गंगा और गंगोत्री की बात हो और भागीरथ का जिक्र
न हो ऐसा संभव नही है।क्योंकि उनकी साधना और तपस्या से ही मां गंगा पृथ्वी पर
अवतरित हुई है।गंगोत्री में स्मारक के तौर पर गंगोत्री मंदिर के पास ही भागीरथ जी
का मंदिर भी बना है।मंदिर में भागीरथ की करबद्ध प्रतिमा प्रतिष्ठित है।भक्त उनके योगदान को याद कर
श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।भागीरथ मंदिर के पास ही है,सिद्धि विनायक गणेश जी
का मंदिर।मंदिर में भगवान गणेश की बड़ी ही मनोहारी प्रतिमा है।उनकी सुसज्जित
प्रतिमा की छवि श्रद्धालुओं के आंखों में बस जाती है।गणेश जी की दोनो तरफ उनकी
पत्नियां रिद्धि और सिद्धि विराजमान हैं।इन तीनों के दर्शन पाकर भक्तों की सारी
मनोकामना पूरी हो जाती है।सिद्धि विनायक गणेश जी के मंदिर के निकट ही हनुमान जी का
मंदिर है।लाल रंग के बने इस मंदिर में हनुमानजी की बड़ी ही अदभुत प्रतिमा है।भगवान
के इस रुप के दर्शन पाकर भक्त भाव-विभोर हो जाते हैं।गंगोत्री के प्रमुख स्थानों में मंदिर
की सीढियों से उतरते ही नदी के दायें तट पर भगीरथ शिला स्थित है,शास्त्रों में कहा
गया है, कि इसी शिला पर भागीरथ ने मां गंगा की आराधना की थी।
हमारे शास्त्रों,पुराणों में गंगा के जल की महिमा अवर्णनीय बताई गई है,कहा
जाता है कि मां गंगा के दर्शन से 100 जन्मों और स्नान से 1000 जन्मों के पापों का
क्षय हो जाता है।यहां आने वाले श्रद्धालु
भागीरथ शिला पर अपने अपने पितरों का तर्पण भी करते हैं। गंगोत्री मंदिर से कुछ
दूरी पर ताम्र आभा लिए चट्टान को काटती
हुई मां गंगा झरना बनाते हुए गिरती है।इससे यहां करीब 20 फुट गहरी झील बन गई है।झील में शिवलिंग आकृति का
पत्थर आस्था का केंद्र है।कहते हैं यहीं मां गंगा भगवान शिव को पहला जलाभिषेक करती है।शिवलिंग के रूप में एक
नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का जलस्तर
काफी नीचे चला जाता है, तभी उस पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है।यह दृश्य अत्याधिक
मनोहर अलौकिक और आकर्षक प्रतीत होता है।जिसे देखने से दैवीय शक्ति की प्रत्यक्ष
अनुभूति होती है।
ऐसी मान्यता है,कि मुखबा गांव गंगाजी का मायका है।अक्षय तृतीया से एक दिन पहले गंगाजी की डोली
मुखबा से गंगोत्री के लिए प्रस्थान करती है।अक्षय तृतीया के दिन मंदिर को दुल्हन
की तरह सजाया जाता है।इस दिन मंदिर की भव्यता और शोभा देखने लायक होती है।पूरा
मंदिर हर-हर गंगे के घोष से गुंजायमान रहता है।क्योंकि इसी दिन गंगोत्री मंदिर के पतित
पावन कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं।इस दिन धूप, अगरबती और प्रसाद के थाल लिए भक्त मां गंगा की एक झलक पाने के लिए बेताब
दिखाई देते हैं और मां गंगा के दर्शन से उनके जिज्ञासु मन को शांती मिल जाती है।इस
पुनित अवसर पर मंदिर में भंड़ारे का भी आयोजन किया जाता है।जिसमें साधु-संन्यासी
से लेकर मां गंगा के दर्शन को आए श्रद्धालुओं को भोजन कराया जाता है।
सेना के जवान
बड़ी ही तन्मयता से लोगों को भोजन परोसते हैं।गंगोत्री मंदिर के पट सुबह सवा छह
बजे से दोपहर दो बजे और दोपहर 3 बजे से रात के साढ़े 9 बजे तक खुले रहते हैं।मंदिर
में रोजाना मां गंगा की आरती की जाती है।अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुले इस
मंदिर के कपाट दीपावली के दिन बंद कर दिए जाते हैं।गंगोत्री मंदिर के पास ही गंगोत्री
बाजार है।जिसकी रौनक देखने लायक होती है।
दोस्तों सचमुच में गंगोत्री मंदिर और इसके आसपास के नजारे को रुह से महसूस
किया जा सकता है।इसकी सुंदरता को लफ्जों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।बड़े-बड़े
पत्थरों से बहती इस नदी का शीतल जल और चारो तरफ फैला विराट सुंदरता का साम्राज्य
के दर्शनों के लिए श्रद्धालु ईश्वर का
धन्यवाद करते हैं।ऐसी छटाओं को देखने और मां गंगा के निर्मल जल में स्नान करने के
बाद श्रद्धालुओं के मन की सारी वेदना खत्म हो जाती है।जय मां गंगे।
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