Tuesday 27 October 2015

अहोई माता: संतान रक्षिणी देवी


संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों मां एक ऐसे वृक्ष के  समान है जो हर तरह से अपने बच्चों की सुरक्षा करती है,हिफाजत करती है,जैसे वृक्ष हमें बरसात ,आंधी , गर्मी  की तपिश से निजात दिलवाते है। उसी तरह मां भी उस वृक्ष के सामान है जो हमें जिन्दगी में आने वाले दुखों से हमेशा हमारी सुरक्षा  करती हैं।मां की शितल छाया का सुख हर कोई पाना चाहता है।मां की महिमा का गुणगान जितना ही किया जाए उतना ही कम है। मां,एक ऐसा शब्द,एक एसा नाम जिसके आंचल मे हर कोई समाना चाहता है।यहां तक कि भगवान भी इस सुख को पाने के ललायित रहते थे।जिसका परिणाम है कि कभी  राम रूप में तो कभी कृष्ण रूप में धरती पर अवतार लिए।हर दुख सहती हैं मां अपने बच्चों को कभी भी अपनें तकलिफों और परेशानीयों का अहसास नहीं होने देती है मां।मां तो मां है जिसका कर्ज  हम ताउम्र नहीं चुका सकते।अपने बच्चों को दुख में देख कर जो पलभर में हो जाती है परेशान वो पावन नाम है मां।हर प्रकार के सुख दुख सहकर और न जाने अपने कितने ही सुखों का  त्याग करती हैं मां अपने बच्चों के लिए।खासकर एसी ही होती हैं भारतीय मां अपने बच्चों के लिए।जिनके जुबान से हमेशा ही दुआएं निकलती है अपने बच्चों की खुशहाली , उन्नति, और अच्छे सौभाग्य के लिए।
इन्हीं दुआओं और आशीर्वाद का प्रतीक है, अहोई अष्टमी का व्रत।जिसे हर मां अपने बेटों की लम्बी आयू के लिए रखती हैं।ये व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है।दीपावली से ठीक एक हफ्ता पहले अष्टमी का व्रत होता है।शास्त्रों के अनुसार जिस वार को दीपावली होती है।उसी वार को अहोई अष्टमी का व्रत होता है।जो दीपावली से एक हफ्ता पहले होता है।कहते हैं कि अहोई अष्टमी के दिन से ही दीपावली का शुभारम्भ हो जाता है। पुत्रवती महिलाएं तो इस व्रत को रखती ही हैं,वो औरतें भी इस व्रत को रखती हैं,जिनके घर कोई औलाद नहीं होती।वो अहोई माता से प्रार्थना करती है-
जय अहोई माता , जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावत विष्णु विधाता ।।
ब्राहमणी , रूद्राणी, कमला तू ही है जगमाता
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता ।
माता रूप निरंजन सुख - सम्पति दाता ।।
जय अहोई माता , जय अहोई माता ।
कौन होगा ऐसा जिसे मां के शितल छांव की चाह नही होगी।भागदौड़ और थकान भरी जिदगी में सुकून के चार पल के लिए कोई महफुज़ जगह है तो वो है...मां का दुलार और प्यार,और उसके ममतामयी आंचल की छांव। महिलाएं इस दिन अपने बेटे की लम्बी आयू के लिए अहोई माता का व्रत रखती हैं और साथ ही माताएं अपने बेटों के लिए मांगती हैं उत्तम विकास और आरोग्यता के लिए देवी मां से वरदान।

अहोई माता की कथा
इस व्रत से भी जुड़ी हैं कई कथाएं।लेकिन एक  कथा जो ज्यादा प्रसिद्ध हैं,वो इस प्रकार है।एक साहूकार  अपनी पत्नी चन्द्रिका,जो बड़ी गुणवती थी और अपनें दोनों बेटों के पूरा परिवार के साथ सुखी जीवन बिता रहा था।एक दिन साहूकार की पत्नी दीपावली के त्योहार को नजदीक आता देखकर घर को लीपने पोतने के लिए मिट्टी लेने गई। इस दौरान जब वो कुदाल से  मिट्टी खोद रही होती है तो सेई के बच्चे मर जाते हैं। वो ऐसा जान बूझ कर नहीं करती,बल्कि ये होता है अनजाने में।इससे वो काफी आहत होती है और व्याकुल होकर घर लौट आती है।लेकिन कुछ दिनों बाद उसकी औलादों की एक एक करके मौत होने लगती है।अपने बच्चों की अचानक हुई मौत से साहूकार और उसकी पत्नी ये सोचकर परेशान होतें हैं कि उन्होंने आज तक कोई ऐसा  पाप नहीं किया, फिर भगवान क्यों उन्हें ये सजा दे रहें हैं।साहूकार की पत्नी अपने बच्चों की मौत पर विलाप करती हुई कहती है कि उसने आज तक जान बूझ कर कोई पाप नहीं किया।हां एक बार अनजाने में उससे सेह के बच्चे मारे गए थे।ये बात सुनकर सभी औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए अष्टमी माता की पूजा करने को कहा। औरतों के कहने पर साहूकार की पत्नी ने सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर अहोई माता की पूजा की और मां से हुए अपराध के लिए क्षमा याचना मांगी।तब देवी मां ने प्रसन्न होकर उसकी होने वाली औलाद को दीर्घ आयू का वरदान दिया।उसी समय से अहोई व्रत की ये परम्परा शुरू हो गई और तब से लेकर अब तक महिलाएं अपने बेटों की लम्बी आयू के लिए अहोई व्रत रखती आ रहीं हैं।

एक अन्य प्राचीन कथा के अनुसार मथुरा जिले में स्थित राधाकुंड में स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है।ऐसा माना जाता है कि अहोई अष्टमी के दिन राधाकुंड में स्नान करने से बड़ा लाभ मिलता है।अहोई माता का व्रत रखने वाली महिलाएं आज के दिन अपने बच्चों की उन्नती और तरक्की के लिए आज के दिन पेठे का दान करती हैं।इसमें हर महिला चाहे वो ग्रामीण आंचल की हो या शहर की।वो अपने बेटे की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं।इस दिन पुत्रवती महिलाएं निराहार व्रत रखती हैं।अहोई माता को औलाद की रक्षा और औलाद देने वाली माता माना जाता है।वो हर किसी की पुकार सुनती हैं।अहोई माता की पूजा करने के लिए सबसे पहले महिलाएं मां के आगे प्रार्थना करती हुई मां से इस संकल्प को पूरा होने के लिए शक्ति देने को कहती हैं।
अहोई माता की पूजा का समय
अहोई अष्टमी का पूजा मुहूर्त - 05:30 से 06:49
अवधि - 1घंटा18मिनट्स
तारों को देखने के लिये शाम का समय -05:59
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय - 24:06+
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 3नवम्बर2015 को 05:20 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - 4नवम्बर2015 को 06:38 बजे


आज की भागमभाग भरी जिन्दगी में हर त्यौहार पर आधुनिकता का रंग चढ़ता जा रहा है। बाजारों मे धूमधाम मची रहती है।दीवाली से आठ दिन पहले माएं अहोई का व्रत रखती हैं। पहले औरतें अहोई माता का चित्र खुद ही बनाती थी। ये चित्र रूई या गेहूं के दानों से ,नीम के पत्तों को पीस कर, मिट्टी के साथ चावलों को पीस कर हल्दी मिलाई जाती थी,इसे रोला कहते थे।ये एक तरह का रंग होता था।इस चित्र में अहोई माता, सेई माता और उसके बच्चों के चित्र  बनाए जाते थे। लेकिन बदलते वक्त के साथ किसी के पास समय ही नहीं है कि वो घर में अहोई माता का चित्र बना सकें।अब तो अहोई माता का चित्र बनाने की बजाए बाजार से अहोई माता का कैलेंडर या बनी बनाई मूर्ति लाई जाती हैं।पहले क्या होता था कि सरसों के तेल से बने पकवानों से देवी माता की पूजा की जाती थी और सभी पकवान सरसों के तेल से घर में ही बनाए जाते थे।लेकिन अब किसी भी महिला के पास इतना समय नहीं है कि वो इन पकवानों को घर में  बना सकें वो इन पकवानों को बाजार से खरीदने में ही अहमीयत देती हैं।खैर जो भी हो,आधुनिकता का रंग चढने के बाद भी हम परम्पराओं और मर्यादाओं की सिमा में बंधे हुए हैं और यही हमारे देश की पहचान है।माता अहोई आप सब की मनोंकामनाओं को पूरा करें।जय अहोई माता।


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