Thursday 17 November 2016

गायत्री मंत्र: शांति और शुभता का अचूक मंत्र

संदीप कुमार मिश्र: माता गायत्री को वेद माता कहा जाता है।जीवन में शांति और शुभता का प्रतिक हैं माता गायत्री। गायत्री मंत्र का जप और पाठ जल्द फलदायक है।जीवन में सुख,स्वास्थ्य,संपन्नता को पाने के लिए जरुरी है कि गायत्री मंत्र का हम सही तरीके से पाठ करें।आईए जानते हैं गायत्री मंत्र के जप साधना की सही और सामान्य विधि के साथ ही हम इसके पाठ से कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं...
-गायत्री मंत्र-
।।ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।।
भावार्थ- सृष्टि की रचना करने वाले, प्रकाशमान परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, परमात्मा का यह तेज हमारी बुद्धि को सही मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
v  गायत्री मंत्र पूजा विधि
जब भी हम गायत्री मंत्र का पाठ करें तो हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि मंत्र का जप शांत और  पवित्र स्थान पर करें। नित्य कर्म से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, इसके बाद माता गायत्री की मूर्ति या चित्र के सामने कुश के आसन पर बैठकर जप करें।गायत्री मंत्र के जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए।ऐसे तो अपनी सुलभता और आस्था से और पूरी श्रद्धा के साथ हम जितना भी पाठ करें उचित है।
v  गायत्री मंत्र का पाठ करते समय रखें ध्यान
v  गायत्री मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला से ही करें।सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ठ मंत्र में से एक है गायत्री मंत्र।आस्थावन साधक तीन बार गायत्री मंत्र का जप कर सकते हैं।
v  गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल- सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए।
v  मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर- दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
v  तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त से कुछ देर पहले- सूर्यास्त से पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
गायत्री मंत्र का पाठ करते समय शांत रहना चाहिए और तेज ध्वनि में पाठ नहीं करना चाहिए।पवित्र गायत्री पाठ से हममें सकारात्म उर्जा और उत्साह का संचार होता है,मन से बुराईंया दूर होती हैं।व्यक्ति सत्संगी बनता है।

Thursday 10 November 2016

भगवान विष्णु को तुलसी क्यों की जाती है अर्पित, क्या तुलसी पूजा का महत्व? जाने

भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित कर करें प्रसन्न
संदीप कुमार मिश्र:  हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठवनी एकादशी को भगवान विष्णु यानी शालिग्राम ठाकुर जी का माता तुलसी से विवाह हुआ था।इसलिए ही भगवान श्री हरि विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय हैं। जनसामान्य में भी ठाकुर जी यानी शालिग्राम को तुलसी चढ़ाई जाती है।जिसके पीछे भाव यही होता है कि भगवान विष्णु प्रसन्न होंगे।
धर्म शास्त्रों के अनुसार कुछ विशेष अवसरों पर तुलसी दल नहीं तोड़न चाहिए।जैसे- रविवार, एकादशी और सूर्य ग्रहण या फिर चंद्र ग्रहण काल में।ऐसे भी अनावश्यक रूप से तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित बताया गया है।कहा जाता है कि संध्या काल मे तुलसी जी को दीपक जलाने से घर में लक्ष्मी का वास होता है।खासकर कार्तिक के पावन महिने में तुलसी जी का विधि विधान से पूजा पाठ किया जाता है। घर परिवार में सुख-शांति और सम्बृद्धि के लिए शास्त्रों के अनुसार नित्य सुर्योदय के समय कार्तिक माह में स्नान करके तुलसी जी पर जल चढ़ाना चाहिए।
शालिग्राम अर्थात भगवान विष्णु पर चढ़ाए तुलसी,परिवार में बढ़ेगा सुख-समृद्धि और वैभव
भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा और तुलसी पूजा से लाभ-
शादी विवाह में आ रही रुकावट को दूर करने के लिए कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी को तुलसी जी की पूजा करनी चाहिए।
ऐसा कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल चढ़ाने का फल दस हज़ार गोदान के बराबर प्राप्त होता है।
संतान प्राप्ति के लिए भी तुलसी जी की पूजा करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ती हो जाती है।
तुलसी जी की पूजा का विशेष महात्म्य
जिस दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं,उस पवित्र दिन को देवउठनी एकादशी के रुप से हिन्दू धर्म के अनुयायी मनाते है।इसी दिन से सभी प्रकार के मांगलिक कार्य का प्रारंभ हो जाता है।यह अति विशेष दिन और भी खास इसलिए हो जाता है क्योंकि इस दिन ही तुलसी जी की विशेष पूजा भी की जाती है। वास्तव में ये दिन समर्पित है भगवान के उस स्वरूप को, जिसमें वे संपूर्ण जगत के सुखों के लिए एक पतिव्रता नारी के श्राप के भागी बने।
एक कथा के अनुसार कहते हैं कि – असुरों का राजा जालंधर अत्यंत क्रूर और निर्दयी दैत्य था।जो कि  अपनी पत्नी वृंदाके तपोबल के कारण अजेय बना हुआ था।जालंधर के प्रकोप से जब देवों ने त्रस्त होकर भगवान विष्णु की शरण ली तब श्रीहरि ने जगत के कल्याण के लिए छल का सहारा लिया।प्रभु ने सबसे पहले वृंदाके तप को भंग किया, जिसका परिणाम निकला कि जालंधर युद्ध में मारा जाता है।इस बात का पता जब वृंदा को लगा कि भगवान विष्णु के छल से उसका पती मारा गया तो वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया, जिससे कि भगवान पत्थर के बन गए।जिसके परिणामस्वरुप हल ये निकला कि भगवान विष्णु ने वृंदा से विवाह किया और श्राप मुक्त हुए।भगवान विष्णु से विवाह के उपरांत ही वृंदा तुलसीकहलाईं।

भगवान श्रीनारायण की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।ऊं नमों भगवते वासुदेवाय।

Monday 7 November 2016

कार्तिक माह धन-समृद्धि दायक: करें पूजा आराधना होगी मनोकामना पूरी

संदीप कुमार मिश्र: सनतान संस्कृति में हर दिन,माह और हर क्षण का विशेष महत्व हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है।भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है,जहां के रहन सहन,बोली भाषा,मौसम और ऋतुओं में सबसे ज्यादा भिन्नताएं हैं।जो जनसामान्य के लिए हितकारी हैं।ऐसा ही पवित्र माह है कार्तिक। मनुष्य के मोक्ष का द्वार भी कार्तिक मास को कहा गया है। कार्तिक माह हमारे हिंदू धर्म में पवित्रता और शुभता का प्रतिक है।गोवर्धनधारी भगवान कृष्ण को भी कार्तिक माह अतिप्रिय है।  

 कार्तिक माह हिन्दू पंचांग का आठवां माह है।इस पवित्र माह में दामोदर भगवान की पूजा करने का विशेष महत्व हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है।शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक के समय को कार्तिक माह कहा जाता है ।कार्तिक के पावन माह में भक्ति भाव से ईश्वर की साधना,आराधना करने वाले को मनोवांछित फल प्राप्त होता है। कहते हैं कि अपने कुटुंब में सुख शांति और संबृद्दि के लिए कार्तिक में विशेष रुप से पूजा आराधना करनी चाहिए।
आईए जानते हैं कुछ खास उपाय और विधान जिससे परम पिता परमात्मा की आप पर बरसेगी कृपा-
·         कार्तिक माह में ब्रम्हचर्य का करें पालन।सत्संगी और भजनानंदी बने।
·         भगवान विष्णु की विशेष रुप से करें पूजा अर्चना।सरसो के तेल,देशी घी,तिल के तेल का दीपक जलाएं।
·         जीवन में अज्ञानता रुपी अंधियारे,और सुख संपदा के लिए माता लक्ष्मी के सामनें दीपक अवश्य जलाएं।कार्तिक माह में घर के अलावा मंदिर,नदी के तट पर भी दीपक जलाएं।
·         प्रत: स्नान का भी कार्तिक माह में अति विशेष फल बताया गया है।साथ ही साधक को तुलसी जी की पूजा और तुलसी दान भी करना चाहिए।
·         कहते हैं कि कार्तिक माह में तुलसी जी का पूजन और सेवन करने के से घर में से सभी प्रकार की नकारात्मकता खत्म हो जाती है और घर में सुख-शांति का वास होता है।

·         संयमित भोजन करें और भक्ति भाव से ईश्वर में अपनी आस्था बनाए रखें।

'कपूर' है धन-धान्य वर्धक: जाने कैसे...?

संदीप कुमार मिश्र: हमारे देश में पूजा- पाठ,हवन-किर्तन,यज्ञ आदि में अक्सर हम कपूर का प्रयोग करते हैं।पूजा संपन्न होने के बाद तो भगवान की आरती के समय मुख्य रुप से कपूर का प्रयोग किया जाता है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजा-पाठ के अलावा कपूर हमें धन-धान्य भी प्रदान करता है। शास्त्रों के अलावा विज्ञान भी ये मानता है कि कपूर जलाने से उससे निकलने वाले धुएं से नकारात्मकता खत्म होती है।
आईए जानते हैं स्वास्थ्य के लिए कपूर के कुछ विशेष प्रयोग से कैसे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होगा-

v  हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि बुद्धि एवं धन की प्राप्ती के लिए बुधवार के दिन कपूर के प्रयोग से कुंडली में मौजूद बुध दोष शांत हो जाते हैं।
v  आय से ज्यादा खर्च या फिर अनचाहे खर्च से बचने के लिए सूर्यास्त के समय कर्पूर का दीप जलाएं, उसे सारे घर में घुमाएं और तुलसी जी को आरती दिखाकर घर के देव स्थान या मंदिर में रखें।ऐसा करने से माता लक्ष्मी की कृपा आपपर अवश्य होगी।
v  नित्यप्रति शाम को घर के प्रत्येक शयनकक्ष में कपूर जलाने से रोग-शोक घर में नहीं आते है।परिवार के सभी लोग स्वस्थ रहते हैं और परिवार में धन-संबृद्धि आती है।

v  रोग-शोक-दुख-क्लेश का घर में सबसे बड़ा कारण नकारात्मक उर्जा होती है।इस नकारात्मकता से निजात पाने के लिए पवित्र गंगा जल में कपूर को मिलाकर घर के मेन गेट पर छिड़काव करें।यकिन मानिए किसी भी प्रकार की बुरी नजर और नकारात्मकता से आपका धर परिवार सदैव सुरक्षित रहेगा।


सुंदरकांड का पाठ,करे सभी बाधाओं से मुक्त

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं,दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं,रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3॥
भावार्थ : अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥3॥
संदीप कुमार मिश्र: भगवान राम जी को प्रिय हनुमान जी और हनुमान जी को प्रिय सुंदरकांड।ऐसे तो श्रीरामचरितमानस के हर कांड में प्रभु श्रीराम जी की महिमा का वर्णन है,लेकिन मानस के सभी कांडों में सुंदरकांड को मुख्य अध्याय या कांड माना जाता है।जगत के कल्याण के लिए,जनमानस के उद्धार के लिए सबसे सरल और सुलभ उपाय है सुंदरकांड का पाठ।
जाने कैसे--?
दरअसल  सुंदरकांड में मुख्य चर्चा या विषय माता सीता और हनुमान जी महाराज से जुड़ी हुई है।हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि रावण ने जिस अशोक वाटिका में माता सीता को रखा था था वो सुंदर पर्वत पर ही था। इसी सुंदर पर्वत पर बनी इस खूबसूरत वाटिका में हनुमंत लाला जी महाराज और माता जानकी की मुलाकात हुई थी।यहीं पर माता सीता की हनुमान जी से भेंट हुई,जिसकी चर्चा सुंदरकांड में की गई।
ऐसे तो रामचरितमानस पूर्णरुपेण भगवान राम की महिमा पर आधारित है, लेकिन सुंदर कांड का सीधा संबंध हनुमान जी के ओज,तेज,ज्ञान,पराक्रम,बुद्धिमत्ता से है।इसलिए हनुमान जी महाराज की कृपा पाने के लिए सुंदरकांड का पाठ विशेष फलदायी है।सुंदरकांड के पाठ से सभी प्रकार के ग्रह दोष से इंसान मुक्त हो जाता है और नित्य सुंदरकांड का भक्ति भाव से,श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य की समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाती है ।

सुंदरकांड का पाठ करने में रखें विशेष ध्यान
Ø  ऐसे तो हनुमान जी सबसे सरल और सुलभ देव हैं।लेकिन सुंदरकांड का पाठ स्वच्छता और पवित्रता से करना चाहिए।
Ø  सुंदकांड का पाठ प्रात: 4 बजे या सायं 4 बजे के बाद करना चाहिए।दोपहर में पाठ ना करें।
Ø  सुंदरकांड का पाठ प्रारंभ करने से पहले एक लकड़ी की चौकी पर लाल आसन बिछाकर हनुमान जी की फोटो या मुर्ति स्थापित करें।धी का दीया जलाएं और भोग लगाने के लिए गुड-चना,फल और मिष्ठान हनुमान जी महाराज को चढ़ाएं।
Ø  सुंदरकांड का पाठ प्रारंभ करने के बाद बीच में बोले नहीं,और ना ही पाठ समाप्त करने से पहले उठें।
Ø  पाठ संपन्न करने के बाद प्रभु श्रीराम का ध्यान अवश्य करें। जब सुंदरकांड समाप्त हो जाए, तो भगवान को भोग लगाकर, आरती करें और उनकी विदाई भी करें।


इस प्रकार से करें विदाई
कथा विसर्जन होत है, सुनो वीर हनुमान,
जो जन जंह से आए हैं, ते तह करो पयान।
श्रोता सब आश्रम गए, शंभू गए कैलाश।
रामायण मम हृदय मह, सदा करहु तुम वास।
रामायण जसु पावन, गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ़ पावहिं, बिन विराग जपयोग।।
जब भी आप सुंदरकांड का पाठ करें सात्विक और शाकाहारी रहकर बह्मचर्य का पालन करें।
सुंदरकांड पाठ से विशेष लाभ
Ø  इस कलियुग सुंदरकांड का पाठ सभी प्रकार की परेशानियों और बाधाओं से मुक्त करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिसकी कुंडली में मंगल नीच का है,तमाम पाप ग्रह उसे परेशान कर रहे हैं।मानसिक और शारीरिक पीड़ा को सुंदरकांड का पाठ दूर कर देता है।
Ø  सुंदरकांड का पाठ करने से विद्यार्थीयो को विद्या प्राप्त होती है और जिसपर शनी की साढ़े या ढैय्या हो वो दूर हो जाता है। मन को शांति और सुकून देता है सुंदरकांड का पाठ।
Ø  गृहक्लेश और घर का वातावरण शांतिदायक बनाए रखने के लिए,घर में से नकारात्मकता भगाने के लिए सुंदरकांड का पाठ बेहद जरुरी है।

Ø  सुंदरकांड के पाठ से बुरे सपने, रात को अनावश्यक डर,भूत-प्रेत की छाया, कर्ज से छुटकारा, मुकदमेबाजी से राहत के साथ समस्त कार्यों मे विजय की प्राप्ती होती है।

Saturday 5 November 2016

सदियों पुरानी छठ पूजा की परंपरा: रामायण, महाभारत काल में भी होती थी छठ पूजा

संदीप कुमार मिश्र: आस्था और विश्वास का महापर्व है छठ पूजा।सात्विक विचार और भाव के साथ 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हुए व्रती छठी मईया की पूजा अर्चना करते हैं,साथ ही सूर्य देव की आराधना करते हैं।उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और इस प्रकार से आस्था के पूनीत और पावन पर्व का समापन होता है।
मित्रों ये परंपरा ये अनादिकाल से चली आ रही है।सूर्य देव की पूजा आराधना का महत्व हमारे वेद ग्रंथों में बड़े ही सरल भाव से बताया गया है।सूर्य देव ही एकमात्र प्रत्यक्ष देव हैं जो हममें उर्जा का संचार करते हैं।हमें शक्ति प्रदान करते हैं। सूर्योदय की पहली किरण यानी ऊषा और संध्या यानी सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को धठ पूजा पर व्रती अर्घ्य देकर दोनों को नमन करते हैं और अपनी पूजा संपन्न करते हैं। दरअसल सूर्य देव की शक्तियों का मुख्य आधार उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं और छठ पूजा के पावन अवसर पर सूर्य देव के साथ ऊषा और प्रत्यूषा की संयुक्त रुप से पूजा आराधना की जाती है।
सूर्योपासना का उल्लेख ऋगवेद में मिलता है।वहीं वेदों और उपनिषदों में भी सूर्यदेव की पूजा का वर्ण देखने को मिलता है। पौराणिक काल से ही सूर्यदेव को आरोग्य का देवता कहा जाता हा है। सूर्य की किरणों में रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है।हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि गायत्री मंत्र के रचयिता ऋषिवर विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को ही निकला था।
महाभारत काल की बात करें तो कहा जाता है कि जब पांडवों ने अपना संपूर्ण राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ का पवित्र व्रत किया था।जिससे छठी मईया प्रसन्न हुई और पांण्डवों को राजपाट वापस मिल सका। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पूजा का की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा कर की थी।
रामायण की बात करें तो तो प्रभु श्री राम लंका विजय के पश्चात रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने व्रत,उपवास किया और सूर्यदेव की अर्चना की थी।मान्यताओं के अनुसार छठी मईया, सूर्यदेव की बहन हैं, यही कारण है कि छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए भगवान भास्कर यानी सूर्य देव को पूजा आराधना की जाती है।जिससे कि सूर्य देव प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करे।ऊं सूर्याये नम:।जय छठी मईया।

Thursday 3 November 2016

देवोत्थान(देवउठवनी) एकादशी सरल पूजा विधान/10/11/2016

संदीप कुमार मिश्र: हिन्दू धर्म शास्त्रों में एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है।जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।एकादशी व्रत साधक को मनसा वाचा कर्मणा बड़े ही भक्ति भाव से करनी चाहिए।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थापनी एकादशी या देवप्रबोधनी या देवउठवनी एकादशी कहा जाता है।जो कि इस बार 10/11/2016 को है।और फिर अगले दिन यानि पारण के दिन (11/11/2016)  तुलसी जयंती मनाई जाएगी।कहते हैं कि देवोत्थापनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महिने की नींद से जागते हैं।
इस पावन और पूनीत अवसर पर सरल और सुलभ तरीके से भगवान श्री हरि की साधना और पूजा विधान जाने-
एकादशी के इस खास अवसर पर साधक बड़े भक्ति भाव से व्रत,उपवास रखें। भगवान विष्णु को विशेष रुप से  धूप,दीप,नैवेद्य,फूल,गंध,चंदन,फल का अर्ध्य दें और सच्चे मन से श्रीहरि की साधना करें।साथ ही मृदंग,शंख,घंटों को बजाएं और निम्न मंत्रों का जाप करें-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद निद्रा जगत्पते।त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।

इसके बाद फूल अर्पित करें और भगवान की आरती गाएं।और समस्त देवी देवताओं का ध्यान करें और प्रसाद वितरण करें।
हमे धर्म शास्त्रों में समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी देवप्रबोधिनी एकादशी से यानी भगवान विष्णु की पूजा अर्चना से शुरु हो जाती है।एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि भाद्रपद मास यानी भादो की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर दैत्य का वध किया था।कहते हैं कि शंखासुर बड़ा ही बलशाली और पराक्रमी दैत्य था।जिससे लंबे समय तक भगवान विष्णु का घमासान युद्ध चला और अंतत: शंखासुर का वध हुआ।इस भिषण युद्ध में भगवान अत्यधिक थक गए थे।जिसके बाद क्षीरसागर में आकर विश्राम करने लगे और चार माह के पश्चात कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे।यही कारण है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी या देवउठवनी एकादशी कहा जाता है।
देवप्रबोधिनी एकादशी का मूल भाव है स्वयं में देवत्व को जगाना ।वहीं प्रबोधिनी एकादशी की बात करें तो तातपर्य है कि मनुष्य नींद से जाग जाए,सतकर्म की ओर बढ़े और भगवान श्रीहरि का अभिनंदन,स्वागत करे।

भगवान विष्णु की भक्ति तभी सार्थक है जब हम अपने मन में किसी भी जीव के द्वेश और ईष्या का भाव ना रखें,किसी को भी मनसा,वाचा,कर्मणा कष्ट ना पहुंचाएं।सत्य के सारथी बने,स्वाध्यायी बने।अंधकार से प्रकाश की ओर कदम बढ़ाएं।ज्ञान और विवेक का दीपक जलाएं।दयालु प्रभु दीनानाथ,जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु आप सभी का कल्याण करें।।ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं।।  


Wednesday 2 November 2016

छठ पूजा विशेष : सूर्य उपासना का महापर्व छठ

संदीप कुमार मिश्र: सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा। भगवान सूर्य देव ही ऐसे देव हैं जो प्रत्यक्ष देवता माने गये है।संपूर्ण संसार में शक्ति और उर्जा का संचार करते हैं सूर्य देव।सूर्य के बिना तो इस धरा पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। भगवान सूर्य के प्रति अटूट आस्था,श्रद्धा और विश्वास का ही महापर्व है छठ पूजा।जिसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है।
सूर्यदेव की उपासना का इकलौता ऐसा पर्व है छठ पूजा जिसमें उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संपन्न होने वाला सूर्य-षष्ठी व्रत, छठ पहले तो उत्तर-भारत में ही मनाया जाता था लेकिन धीरे-धीरे इसकी महत्ता बढ़ती गई और अब संपूर्ण देश के साथ ही विश्व के कुछ अन्य राष्ट्रों में भी मनाया जाने लगा।
वास्तविक रुप से हम देखें तो सूर्य उपासना का ये महापर्व प्रकृति को समर्पित है।स्वच्छता और सादगी को समर्पित है।पूराणों और वैदिक महत्व की बात करें तो अनंत काल से ही सूर्य की उपासना का प्रमाण मिलता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि वैदिक युग में जिन देवी देवताओं को सर्वपूज्य माना जाता है, उनमें सूर्य, अग्नि और इंद्र प्रमुख हैं।
छठ पूजा का इतिहास
चार दिनों की छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी से सप्तमी तक मनाई जाती है| चार दिनों के इस पवित्र त्योहार में आस्था और भक्ति का हर रंग मिला होता है। कहते हैं कि छठी माता की पूजा माताएं संतान की रक्षा और उन्नति और खुशहाली के ले करती है।एक पौराणिक कथा के अनुसार-

किसी समय एक राजा को संतान नहीं थी जिससे राजा बहुत दुखी थे। महर्षि कश्यप जब राजा के राज्य में आए तो राजा ने उनकी बहुत सेवा की,जिसके बाद महर्षि ने खुश होकर आशीर्वाद दिया। जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो हुई,लेकिन संतान मृत पैदा हुई।जिससे दुखी होकर राजा रानी ने आत्महत्या करने का निर्णय लिया।लेकिन  जैसे ही वे दोनों नदी में कूदने को हुए उन्हें छठी माता ने दर्शन दिये और कहा कि आप मेरी पूजा करें।आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी। राजा रानी ने विधि-विधान के साथ छठी माता की पूजा की जिससे उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई।तभी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पूजा की शुरुआता हुई।इसके अलावा भी हमारे धर्म शास्त्रों में छठ पूजा का वर्णन है।कहते हैं कि माता सीता ने और द्रोपदी ने भी छठ पूजा की थी। आप सभी इष्ट मित्रों को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं।छठी मईया आप सभी की मनोकामनाओं को पूरा करें और आपको मनोवांछित फल प्रदान करें।जय छठी मईया।।