संदीप कुमार मिश्र: आस्था और विश्वास का
महापर्व है छठ पूजा।सात्विक विचार और भाव के साथ 36 घंटे का निर्जला व्रत
करते हुए व्रती छठी मईया की पूजा अर्चना करते हैं,साथ ही सूर्य देव की आराधना करते
हैं।उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और इस प्रकार से आस्था के पूनीत और
पावन पर्व का समापन होता है।
मित्रों ये परंपरा ये अनादिकाल से चली आ
रही है।सूर्य देव की पूजा आराधना का महत्व हमारे वेद ग्रंथों में बड़े ही सरल भाव
से बताया गया है।सूर्य देव ही एकमात्र प्रत्यक्ष देव हैं जो हममें उर्जा का संचार
करते हैं।हमें शक्ति प्रदान करते हैं। सूर्योदय की पहली किरण यानी ऊषा और संध्या
यानी सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को धठ पूजा पर व्रती अर्घ्य देकर दोनों को नमन
करते हैं और अपनी पूजा संपन्न करते हैं। दरअसल सूर्य देव की शक्तियों का मुख्य आधार
उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं और छठ पूजा के पावन अवसर पर सूर्य देव के साथ ऊषा
और प्रत्यूषा की संयुक्त रुप से पूजा आराधना की जाती है।
सूर्योपासना का उल्लेख ऋगवेद में मिलता
है।वहीं वेदों और उपनिषदों में भी सूर्यदेव की पूजा का वर्ण देखने को मिलता है।
पौराणिक काल से ही सूर्यदेव को आरोग्य का देवता कहा जाता हा है। सूर्य की किरणों
में रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है।हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया
है कि गायत्री मंत्र के रचयिता ऋषिवर विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र कार्तिक
शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को ही निकला था।
महाभारत काल की बात करें तो कहा जाता है
कि जब पांडवों ने अपना संपूर्ण राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ का पवित्र
व्रत किया था।जिससे छठी मईया प्रसन्न हुई और पांण्डवों को राजपाट वापस मिल सका। वहीं
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पूजा का की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य की
पूजा कर की थी।
रामायण की बात करें तो तो प्रभु श्री
राम लंका विजय के पश्चात रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान
राम और माता सीता ने व्रत,उपवास किया और सूर्यदेव की अर्चना की थी।मान्यताओं के
अनुसार छठी मईया, सूर्यदेव की बहन हैं,
यही कारण है कि छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न
करने के लिए भगवान भास्कर यानी सूर्य देव को पूजा आराधना की जाती है।जिससे कि
सूर्य देव प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करे।ऊं सूर्याये नम:।जय छठी मईया।
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