भगवान विष्णु
को तुलसी अर्पित कर करें प्रसन्न
संदीप कुमार
मिश्र: हमारे धर्म
शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठवनी
एकादशी को भगवान विष्णु यानी शालिग्राम ठाकुर जी का माता तुलसी से विवाह हुआ
था।इसलिए ही भगवान श्री हरि विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय हैं। जनसामान्य में भी
ठाकुर जी यानी शालिग्राम को तुलसी चढ़ाई जाती है।जिसके पीछे भाव यही होता है कि भगवान
विष्णु प्रसन्न होंगे।
धर्म
शास्त्रों के अनुसार कुछ विशेष अवसरों पर तुलसी दल नहीं तोड़न चाहिए।जैसे- रविवार,
एकादशी और सूर्य ग्रहण या फिर चंद्र ग्रहण काल में।ऐसे भी अनावश्यक रूप से तुलसी के
पत्ते तोड़ना वर्जित बताया गया है।कहा जाता है कि संध्या काल मे तुलसी जी को दीपक
जलाने से घर में लक्ष्मी का वास होता है।खासकर कार्तिक के पावन महिने में तुलसी जी
का विधि विधान से पूजा पाठ किया जाता है। घर परिवार में सुख-शांति और सम्बृद्धि के
लिए शास्त्रों के अनुसार नित्य सुर्योदय के समय कार्तिक माह में स्नान करके तुलसी
जी पर जल चढ़ाना चाहिए।
शालिग्राम
अर्थात भगवान विष्णु पर चढ़ाए तुलसी,परिवार में बढ़ेगा सुख-समृद्धि और वैभव
भगवान श्रीहरि
विष्णु की पूजा और तुलसी पूजा से लाभ-
शादी विवाह
में आ रही रुकावट को दूर करने के लिए कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी को तुलसी जी की
पूजा करनी चाहिए।
ऐसा कहा जाता
है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल चढ़ाने का फल दस हज़ार
गोदान के बराबर प्राप्त होता है।
संतान
प्राप्ति के लिए भी तुलसी जी की पूजा करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ती हो जाती है।
तुलसी जी की
पूजा का विशेष महात्म्य
जिस दिन भगवान
विष्णु निद्रा से जागते हैं,उस पवित्र दिन को देवउठनी एकादशी के रुप से हिन्दू
धर्म के अनुयायी मनाते है।इसी दिन से सभी प्रकार के मांगलिक कार्य का प्रारंभ हो
जाता है।यह अति विशेष दिन और भी खास इसलिए हो जाता है क्योंकि इस दिन ही तुलसी जी
की विशेष पूजा भी की जाती है। वास्तव में ये दिन समर्पित है भगवान के उस स्वरूप को,
जिसमें वे संपूर्ण जगत के सुखों के लिए एक पतिव्रता नारी के
श्राप के भागी बने।
एक कथा के
अनुसार कहते हैं कि – असुरों
का राजा जालंधर अत्यंत क्रूर और निर्दयी दैत्य था।जो कि अपनी पत्नी ‘वृंदा’ के तपोबल के कारण अजेय बना हुआ था।जालंधर के प्रकोप से जब देवों
ने त्रस्त होकर भगवान विष्णु की शरण ली तब श्रीहरि ने जगत के कल्याण के लिए छल का
सहारा लिया।प्रभु ने सबसे पहले ‘वृंदा’ के तप को भंग किया, जिसका परिणाम निकला कि जालंधर युद्ध में मारा जाता है।इस
बात का पता जब वृंदा को लगा कि भगवान विष्णु के छल से उसका पती मारा गया तो वृंदा ने
भगवान विष्णु को श्राप दे दिया, जिससे कि भगवान पत्थर के बन गए।जिसके परिणामस्वरुप हल ये
निकला कि भगवान विष्णु ने वृंदा से विवाह किया और श्राप मुक्त हुए।भगवान विष्णु से
विवाह के उपरांत ही वृंदा ‘तुलसी’ कहलाईं।
भगवान श्रीनारायण की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।ऊं नमों भगवते
वासुदेवाय।
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