Thursday, 3 November 2016

देवोत्थान(देवउठवनी) एकादशी सरल पूजा विधान/10/11/2016

संदीप कुमार मिश्र: हिन्दू धर्म शास्त्रों में एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है।जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।एकादशी व्रत साधक को मनसा वाचा कर्मणा बड़े ही भक्ति भाव से करनी चाहिए।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थापनी एकादशी या देवप्रबोधनी या देवउठवनी एकादशी कहा जाता है।जो कि इस बार 10/11/2016 को है।और फिर अगले दिन यानि पारण के दिन (11/11/2016)  तुलसी जयंती मनाई जाएगी।कहते हैं कि देवोत्थापनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महिने की नींद से जागते हैं।
इस पावन और पूनीत अवसर पर सरल और सुलभ तरीके से भगवान श्री हरि की साधना और पूजा विधान जाने-
एकादशी के इस खास अवसर पर साधक बड़े भक्ति भाव से व्रत,उपवास रखें। भगवान विष्णु को विशेष रुप से  धूप,दीप,नैवेद्य,फूल,गंध,चंदन,फल का अर्ध्य दें और सच्चे मन से श्रीहरि की साधना करें।साथ ही मृदंग,शंख,घंटों को बजाएं और निम्न मंत्रों का जाप करें-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद निद्रा जगत्पते।त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।

इसके बाद फूल अर्पित करें और भगवान की आरती गाएं।और समस्त देवी देवताओं का ध्यान करें और प्रसाद वितरण करें।
हमे धर्म शास्त्रों में समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी देवप्रबोधिनी एकादशी से यानी भगवान विष्णु की पूजा अर्चना से शुरु हो जाती है।एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि भाद्रपद मास यानी भादो की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर दैत्य का वध किया था।कहते हैं कि शंखासुर बड़ा ही बलशाली और पराक्रमी दैत्य था।जिससे लंबे समय तक भगवान विष्णु का घमासान युद्ध चला और अंतत: शंखासुर का वध हुआ।इस भिषण युद्ध में भगवान अत्यधिक थक गए थे।जिसके बाद क्षीरसागर में आकर विश्राम करने लगे और चार माह के पश्चात कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे।यही कारण है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी या देवउठवनी एकादशी कहा जाता है।
देवप्रबोधिनी एकादशी का मूल भाव है स्वयं में देवत्व को जगाना ।वहीं प्रबोधिनी एकादशी की बात करें तो तातपर्य है कि मनुष्य नींद से जाग जाए,सतकर्म की ओर बढ़े और भगवान श्रीहरि का अभिनंदन,स्वागत करे।

भगवान विष्णु की भक्ति तभी सार्थक है जब हम अपने मन में किसी भी जीव के द्वेश और ईष्या का भाव ना रखें,किसी को भी मनसा,वाचा,कर्मणा कष्ट ना पहुंचाएं।सत्य के सारथी बने,स्वाध्यायी बने।अंधकार से प्रकाश की ओर कदम बढ़ाएं।ज्ञान और विवेक का दीपक जलाएं।दयालु प्रभु दीनानाथ,जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु आप सभी का कल्याण करें।।ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं।।  


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