संदीप कुमार मिश्र : रक्षाबंधन पर्व पर
जहाँ बहनों को भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बाँधने का बेसब्री से इंतजार है, वहीं
दूर-दराज बसे भाइयों को भी इस बात का इंतजार है कि उनकी बहना उन्हें राखी भेजें।रक्षा बंधन के महत्व को समझने के लिये सबसे पहले इसके अर्थ को समझना होगा। "रक्षाबंधन " रक्षा+बंधन दो
शब्दों से मिलकर बना है।अर्थात एक ऎसा बंधन जो रक्षा का वचन लें। इस दिन भाई अपनी बहन को
उसकी दायित्वों का वचन अपने ऊपर लेते है।
हमारे वर्तमान समाज में हम सब के सामने जो सामाजिक कुरीतियां
सामने आ रही है। उन्हें दूर करने में रक्षा बंधन का
पर्व बेहद मददगार साबित हो सकता है। एक तरफ
जहां पाश्चात्य संस्कृति हमारे देश,हमारे समाज में घर करती जा रही है।ऐसे में हम
अपने संबंधों के प्रति कितने समर्पित हैं,और कितना निभा रहे हैं हम रिश्तों की इस
अनमोल डोर को।ये बन्धन सिर्फ भाई बहन के रिश्तों को ही मजबूत नहीं करता बल्कि एक
सशक्त समाज का निर्माण करने में भी सहयोग प्रदान करता है।
यकिनन अगर हम वर्तमान
परिप्रेक्ष में रक्षा-बंधन की आवश्यकता और महत्व को देखें
तो इसके दो रूप हमें देखने को मिलते हैं...
एक तरफ तो आज भी लोगों का
एक समूह अपनी इस परंपरा में गहरी आस्था रखता है। उनके
लिए ये पर्व भाई -बहन के रिश्तों की अटूट डोर का
प्रतीक है।भारतीय परम्पराओं का एक
ऐसा पर्व है, जो भाई- बहन के स्नेह के साथ- साथ हर सामाजिक संबंध को मजबूत
करता
है। इस लिए ये पर्व भाई-बहन को आपस में जोड़ने के साथ-साथ सांस्कृ्तिक,
सामाजिक महत्व भी रखता है।
वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग
भी हैं जो हमारे सामने मॉडर्न होने का दावा करते हैं और उनकी नज़र में रक्षा-बंधन का ये पवित्र धागा एक ब्रेसलेट से ज़्यादा महत्व नहीं रखता है।ऐसे
लोगों से प्रभावित होकर आज के युवा भी राखी जैसे पवित्र बंधन से थोड़े-बहुत विमुख ज़रूर हुए हैं पर राखी का ये बंधन अटूट होता है।इतनी आसानी से
लोग इसे तोड़ नहीं सकते।तभी तो युगों-युगों से इसकी महत्ता और चमक आज भी फिकी नहीं
हुई है।आज भी समय के साथ पर्व की
शुभता में कोई कमी नहीं आई है,
बल्कि इसका महत्व और बढ गया है।
अगर इस दिन बहन -बहन, भाई-भाई को
राखी बांधता है तो इस प्रकार की समस्याओं से निपटा जा सकता है।यह
पर्व सांप्रदायिकता और वर्ग-जाति की दिवार को गिराने में भी मुख्य भूमिका निभा सकता है।जरुरत
है तो केवल एक कोशिश की।
रक्षा-बंधन की कैसे हुई शुरुआत...?
1. भविष्य
पुराण में इसके बारे में लिखा गया है कि सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज
इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके
रक्षा सूत्र बंधा था। इससे सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए।
2. शिशुपाल
के वध के समय भगवान श्री कृष्ण की उंगली कट गई थी... तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का
आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी। भगवान
श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वो आंचल के एक-एक सूत का कर्ज
उतारेंगे। द्रौपदी के चिरहरण के समय श्री कृष्ण ने इसी वचन को निभाया।
3. आधुनिक
समय में राजपूत रानी कर्मावती की कहानी काफी प्रचलित है। राजपूत रानी ने अपने
राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राजपूत रानी को
बहन मानकर राखी की लाज रखी और उनके राज्य को शत्रु से बचाया।
पवित्र रिश्तों की डोर इसी प्रकार से
निरंतर हमारे जीवन और समाज को मजबूती प्रदान करे,हमें सदैव यही कामना करनी चाहिए।
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