जब
जब पृथ्वी पर अन्याय और अत्याचार बढ़ता है...तब तब ईश्वर मानव जाति और रक्षा के
लिए इस धरा पर अवतार लेते हैं...जिससे कि संपूर्ण सृष्टी सुरक्षित रह सके...भगवान
शिव सृजन करता भी हैं और संहारक भी..शिव के ही स्वरुप हैं गुरु गोरक्षनाथ...
अहमेवास्मि गोरक्षो,मद्रूपं तन्निबोधत।
योग मार्ग प्रचाराय,मयारुपमिदं धृतम्।।
मैं
ही गोरक्ष हूं...और इन सब को मेरा ही स्वरुप जानो...योग मार्ग के प्रचार के लिए ही
मैने धारण किया है ये स्वरुप...ऐसा स्वयं आदि देव महादेव भगवान शिव ने नाथ साधुओं
के संबंध में कहा है। और नात संप्रदाय का विश्व का सबसे बड़ा पीठ है गोरक्षनाथ पीठ,गोरखनाथ मंदिर जो कि उत्तर प्रदेश के
गोरखपुर शहर में स्थित है...।।
बाबा
गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा...गुरु शिष्य परंपरा की आधार ये
पीठ...जिसकी स्थापना स्वयं शिव स्वरुप गुरु गोरक्षनाथ ने की है।जिसके पीछे की
कहानी जानने के लिए आपको चलना होगा देवभूमि हिमाचल प्रदेश जहां विराजती है
आदिशक्ति स्वरुपा मां ज्वाला जी।
कहते
हैं धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जब बाबा गोरक्षनाथ जी महाराज ज्वाला देवी पहुंचे
तो स्वयं मां ज्वाला देवी ने उन्हें आतिथ्य स्विकार करने को कहा...जिसके जवाब गोरखनाथ जी ने कहा कि कि वह स्वयं की मांगी हुई
भिक्षा का ही भोजन करेंगे...ये कहते हुए बाबा ने मां से कहा कि आप अग्नि जलाकर
पात्र में जल गरम करें और वो भिक्षा मांगकर अन्न ले आते हैं।एक तरफ तो देवी जी जल
अग्नि पर चढ़ाकर गर्म करने लगी तो वहीं दूसरी तरफ गोरक्षनाथ जी भिक्षा
मांगते-मांगते गोरखपुर में आकर तपस्या में लीन हो गए...प्रमाणस्वरुप आप स्वयं जाकर
ज्वाला जी में गोरख डिब्बी देख सकते हैं जहां आज भी जल उबल रहा है।इस प्रकार से
गोरक्षपीठ की स्थापना स्वयं आदियोगी शिव के अंश गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज ने की जो
कि नाथ संप्रदाय का सबसे बड़ा पीठ है...गोरखनाथ मंदिर से ही विश्व भर में नाथ
संप्रदाय के पीठों का संचालन किया जाता है...।
क्या है मंदिर का इतिहास
कहते
हैं नाथ परंपरा गुरु मच्छेंद्र नाथ द्वारा स्थापित की गई...ये वही स्थान है जहां
पर वर्तमान में गोरखनाथ मंदिर स्थित है।इसी स्थान पर गुरु जी तपस्या किया करते थे
और उनको श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए ही गोरखनाथ मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर
का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर रखा गया...जिन्होंने अपनी तपस्या का ज्ञान
मत्स्येंद्रनाथ से लिया था,
जो नाथ सम्प्रदाय (मठ का समूह) के
संस्थापक थे...अपने शिष्य गोरखनाथ के साथ मिलकर, गुरु मच्छेंद्र नाथ ने योग स्कूलों की स्थापना की...जो योग अभ्यास के
लिये बहुत अच्छे स्कूल माने जाते थे...।
गोरखनाथ
मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि मुगल शासकों ने मंदिर को कई बार नष्ट करने की
कई बार कोशिश की थी। खिलजी ने 14वीं सदी में गोरखनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था।
क्या
है नाथ संप्रदाय
हमारे
हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना में 'नाथ
संप्रदाय' का प्रमुख स्थान बताया गया है...
संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देखरेख गोरखनाथ
मंदिर से ही होती है...नाथ संप्रदाय के अनुसार शिव के साक्षात स्वरूप 'श्री गोरक्षनाथ जी' सतयुग में पेशावर (पंजाब) में, त्रेतायुग में गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, द्वापर युग में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में
गोरखमधी, सौराष्ट्र में आविर्भूत हुए थे...
वर्तमान
समय में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यंत कीमती आध्यात्मिक
सम्पत्ति है...मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है...मंदिर के भव्य व गौरवपूर्ण
निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत
दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज
थे, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय
वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ...।
गोरखनाथ
मंदिर की स्थापना के बाद से ही यहां पीठाधीश्वर या महंत की परंपरा रही है...गुरु
गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित
किया जाता रहा है...गोरखनाथ मंदिर के प्रथम महंत श्री वरद्नाथ जी महाराज कहे जाते
हैं, जो गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य
थे...जिसके बाद क्रमश: परमेश्वर नाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों
में प्रमुख बुद्ध नाथ जी (1708-1723 ई), बाबा
रामचंद्र नाथ जी, महंत पियार नाथ जी, बाबा बालक नाथ जी, योगी मनसा नाथ जी, संतोष नाथ जी महाराज, मेहर नाथ जी महाराज, दिलावर नाथ जी, बाबा सुन्दर नाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीर नाथ जी, बाबा ब्रह्म नाथ जी महाराज, ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजय नाथ जी
महाराज, महंत श्री अवैद्यनाथ जी महाराज और
वर्तमान में मगुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन करते हुए अब महंत आदित्यनाथ जी महाराज
गोरक्ष पीठाधीश्वर के पद पर अधिष्ठित हैं...।
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