संदीप
कुमार मिश्र: काश! हमारी सोच बदल जाती।भेदभाव के उस
संकिर्ण मानसिकता से हम बाहर निकलते...उस बेबस मासूम को ये ना कहना पड़ता...कि
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो... काश!.....बड़ा अच्छा लगता है जब देश के पीएम
नारा देते हैं...बेटी बचाओ,
बेटी पढाओ का...इस अभियान की सराहना भी
होती है...वहीं तब और भी अच्छा लगता है जब सेल्फ़ी विथ डॉटर की बात कही जाती है..अच्छा लगता है ना सुनने में ये सब...बेटियों की रक्षा और
सुरक्षा के लिए सरकारे खुब पैसे भी खर्च कर रही है...लेकिन क्या इसका असर हमारे
समाज पर पड़ रहा है...हमारी सोच बदल रही है..हम बदल रहे हैं...?
दरअसल
जब प्रधानमंत्री मोदी जी सपेरों के देश को माउस चलाने वाले इक्कीसवीं सदी के भारत
की बात करते हैं तो क्या हमारे समाज में बैठे बेटों की चाह में आधी आबादी पर
अत्याचार करने वाले लालचियों को ये बात समझ में नहीं आती कि देश के विकास और
उत्थान में जितनी बेटों की भागीदारी है उतनी ही बेटियों की भी।
या
फिर हम रुढीवादी मानसिकता के ऐसे शिकार हैं कि हमारी सोचने समझने की क्षमता ही
खत्म हो गयी है...या फिर हमें ये भी नजर नहीं आता कि किस प्रकार महज अपने सुख के
लिए जिस बेटे की चाह में हम बेटियों की कोख में ही हत्या कर दे रहे हैं, वही बेटा
जब जवान हो जाता है तो अपने एशोआराम के लिए अपने मां-बाप को वृद्ध आश्रम में छोड़
देता या फिर दर बदर की ठोकरें खाने को...।
ख्वाहिश
बेटों की,सेवा बेटियों से...फिर क्यों हो रहा है महापाप !
कुछ
दिनों पहले की ही बात है,पंजाब का एक युवक अपने दोस्तों साथ मिलकर एक महिला को
बेरहमी से पीट रहा था...वो चीख रही थी, चिल्ला रही थी,लेकिन हैवान बन चुके युवक
लगातार उसे पीट रहे थे...।
दरअसल
आपको जानकर हैरानी होगी कि उश बेबस महिला की जान का दुश्मन कोई गुंड़ा बदमाश नहीं
बल्कि उसका खुद का अपना देवर था...जो सजा अपनी भाभी को इस बात की दे रहा
था...जिसके लिए वो महिला खुद जिम्मेदार नहीं थी...जानते हैं उस महिला का गुनाह का
क्या था...बस यही कि...की उस महिला ने बेटी को जन्म दिया था।
खैर
ये कोई पहला मामला नहीं है...इस तरह के अनगिनत मामले हमारे समाज में आसपास देखने
को मिल ही जाते हैं...जो रौंगटे खड़े कर दे...लेकिन आवाज कम ही निकल पाती है..क्योंकि
कहीं ना कहीं, या यूं कहें कि ज्यादातर लोग ऐसी ही मानसिकता से पीड़ित हैं।
दिल
दहला देने वाली एक और खबर जो मानवियता को शर्मसार कर दे, वो भी पंजाब से ही थी...
दरअसल इस घटना में उस गर्भवती महिला को उसके पति और देवर ने इसलिए जान से मार दिया
कि कहीं वो बेटी को फिर से ना जन्म दे दे...क्योंकि उसकी पहले से ही एक बेटी
थी...। दूसरी बार जब वो महिला गर्भवती हुई तो लिंगपरीक्षण करवा कर उसे गर्भपात
करवाने को कहा गया था।ये घटना इतनी दर्दनाक थी कि कलेजा मूंह को आ जाए...।पति और
देवर ने महिला को बांधकर उसके पेट पर जोर से प्रहार किया,जिस वजह से सात महिने का
भ्रूण बाहर आ गया और महिला की मौत हो गई।
अफसोस
कि बेटे की चाह में इंसान इस क़दर अंधा हो जाता है कि ईश्वर के दिए हुए बेटी रुपी अनमोल उपहार को भी तिरस्कार कर दे रहा हैं।वंश
चलाने की ये कमीनी जल्दबाजी और बेटों की ख्वाहिश बेटियों की ज़िंदगी पर आज के
जमाने में भी भारी पड़ती जा रही है।
टीवी
पर हमें ये देखना तो बहुत अच्छा लगता है कि बेटों के मुकाबले बेटियों विश्व में अपने
देश का परचम फैला रही हैं..चाहे वो सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल,
गीता, बबीता फोगट हो या फिर महिला क्रिकेट को पहचान दिलाने वाली मिताली राज
हों...बेटियों कामयाबी के नए मुकाम हासिल कर रही हैं...राजनीति,खेल, उद्योग से लेकर इंटरटेनमेंट की दुनिया में भी भारत की बेटियां देश का
नाम लगातार रौशन कर रही हैं।
लेकिन
अफसोस की बेटों की चाह में कन्या भ्रूण हत्याएं लगातार जारी हैं...यकिनन जब तक ये
दूषित मानसिकता खत्म नहीं होगी कि बेटों से ही वंश चल सकता है...तब तक सरकार की
तमाम कोशिशों के बावजूद देश में बेटियां ऐसे ही संसार देखने से पहले ही मरती
रहेंगी।
याद
रखना चाहिए कि बेटियां हमें गौरवान्वित कराती है,घर संवारती हैं, बेटियां
तो खुशियां हैं,वो हैं तो ज़िंदगियां हैं...इन्हें संसार में आने से ना
रोकें..आने दें..बस...खुशियों के संग आने दें...। यकिन मानिए जींदगी संवर
जाएगी...।
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