Sunday 16 October 2016

करवा चौथ: जाने व्रत,पूजन विधि और मुहूर्त का शुभ समय

संदीप कुमार मिश्र: (करवा चौथ-19 अक्टूबर,दिन बुद्धवार)। अपने पति की लंबी आयू की कामना के लिए हमारी भारतिय संस्कृति में सुहागिन महिलाएं कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखती हैं जिसे हम करवा चौथ कहते हैं।
छांदोग्य उपनिषद् में कहा गया है कि चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैंमहान और कठोर व्रत करवा चौथ को विवाहित स्त्रियां अपने पति परमेश्वर की रक्षा के लिए निराहार रहकर निर्जला व्रत रखती हैं...जिससे उनकी सहनशक्ति,समर्पण और त्याग का पता चलता है।
करवा चौथ पर विशेष रुप से भगवान शिव,माता पार्वती,कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा आराधना का विधान है।इस विशेष त्योहार पर महिलाएं चंद्रमा के उदय पर अर्घ्य देती हैं और पूजा करती हैं। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, चावल, रखकर अपनी सास या सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करती हैं।
जानिए करवा चौथ की पूजन सामग्री
मिट्टी, चॉदी, सोने या पीतल आदि किसी भी धातु का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, कुंकुम, शहद, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, हलुआ, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, श्रद्धा स्वरुप दान के लिए दक्षिणा।  
करवा चौथ का व्रत धारण करने के लिए प्रात: स्नान ध्यान करके साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें,श्रृंगार करें।करवा की पूजा करने के साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करें क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था।यही वजह है कि इस विशेष दिन में शिव-पार्वती की पूजा का विधान है।वहीं करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का हमारे धर्म शास्त्रों में महत्व तो बतलाया ही गया है साथ ही इसका ज्योतिष महत्व भी बताया गया है।
करवा चौथ पूजा समय
पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 05 बजकर 46 मिनट से 06 बजकर 50 मिनट तक।
करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 08.50 बजे ।
करवा चौथ पूजन विधि-
नारद पुराण में कहा गया है कि करवा चौथ के दिन दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
पूजन के समय का मंत्र-
''मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये
सांयकाल के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाएं। माता पार्वती का सुहाग की सामग्री से श्रृंगार करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति भाव से आराधना करनी चाहिए और साथ ही करवे में पानी भरकर पूजा करनी चाहिए।इस दिन सुहागन महिलाएं र्निजला व्रत रखते हुए कथा सुने और फिर चंद्रमा के दर्शन करके पति के द्वारा जल और अन्न ग्रहण करें।

Thursday 13 October 2016

जाने करवा चौथ के व्रत का विधान और पूजा-मुहूर्त

संदीप कुमार मिश्र: करवा चौथ हिन्दू धर्म का एक मुख्य त्योहार है जिसे सुहागन औरते अपने पती की लंबी आयू के लिए रखती हैं। करवा चौथ का व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान किया जाता है। इस दिन हमारी भारतिय महिलाएं नीराजल रहकर अपने पती की दीर्घ आयू के लिए शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की पूजा अर्चना करती हैं।साथ ही शादीशुदा महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा अर्चना करती हैं और चंद्रमा के दर्शन करके और अर्घ देकर अपने व्रत को तोड़ती हैं। करवा चौथ का अत्यंत ही कठोर व्रत होता है।
करवा चौथ समय व मुहूर्त
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 05:43 से 06:59
अवधि – 1 घंटा 16 मिनट्स
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय – 08:51
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – 18/11/2016 को 08:47 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त - 07/11/2016 को 07:32 बजे
करवा चौथ पूजन व्रत विधान
करवा चौथ व्रत के दिन प्रातः नित्यकर्म और स्नानादि से निवृत होकर वाहित महिलाओं को संकल्प लेकर करवा चौथ व्रत शुरु करना चाहिए। गेरू और पिसे चावलों के घोल से करवा बनाना चाहिए। पीली मिट्टी से माँ गौरी और उनकी गोद में गणेशजी को बनाना चाहिए।माता गौरी की मूर्ति के साथ भगवान शिव और गणेशजी को लकड़ी के आसन पर बिठा कर माता गौरी को चुनरी बिंदी आदि सुहाग सामग्री से सजाना चाहिए।साथ ही पूजा स्थल पर जल से भरा हुआ लोटा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं, गौरी-गणेश की पूजा करें और कथा का श्रवण करें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और उन्हें करवा भेंट करें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति से आशीर्वाद लेकर व्रत को खोलें।इस प्रकार व्रत पूर्ण होता है।
करवा चौथ पर सरगी का विशेष महत्व
करवा चौथ पर सरगी सास के द्वारा अपनी बहू को दी जाती है।जिसका सेवन महिलाएं सूर्योदय से पहले तारों की छांव में खाकर व्रत की शुरुआत करती हैं।सरगी के रुप में सास अपनी बहू को हर प्रकार के खाने की सामग्री के साथ ही वस्त्र देती हैं। सरगी को हमारे हिन्दू धर्म में सौभाग्य और समृद्धि का प्रतिक माना जाता है।
पौराणिक दृष्टि में करवा चौथ  

करवा चौथ का पौराणिक महत्व महाभारत में भी बताया गया है।एक कथा के अनुसार वनवास के समय अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं।दूसरी तरफ पांडवों पर संकटों का पहाड़ टूट पड़ता है,जिसे देख द्रौपदी चिंता में पड़ जाती है और भगवान श्री श्रीकृष्ण से मुक्ति पाने का उपाय जानने की प्रार्थना करती है।जिसपर भगवान कृष्ण द्रौपदी से कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत करने को कहते हैं।इस प्रकार से द्रौपदी ने पूर्ण निष्ठा और भाव से व्रत किया और पाण्डवो के सभी कष्ट दूर हो गए।तभी से ये परंपरा निरंतर चली आ रही है और महिलाएं अपनी पती दीर्घ आयू के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं।

शरद पूर्णिमा की रात होगा रोग का नाश


योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, “पुष्णामि चौषधि: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्यमक:।। अर्थात 'मैं रसस्वरूप, अमृतमय चंद्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं

संदीप कुमार मिश्र:  शरद पूर्णिमा की रात्रि के संबंध में भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है उसकी पुष्टि विज्ञान भी करता है।एक रिसर्च के अनुसार शरद पूर्णिमा की विशेष रात्रि में औषधियों की स्पंदन क्षमता बढ़ जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि महान पंडित, विद्वान लंकाधिपति रावण भी शरद पूर्णिमा की रात्रि किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था।ऐसा करने से उसे पुनर्योवन की शक्ति प्राप्त होती थी।विज्ञान भी कहना है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को चांदनी रात में 10 बजे से लेकर से मध्यरात्रि के 12 बजे तक कम वस्त्रों में भ्रमण करने वाले व्यक्ति को अक्षय ऊर्जा की प्राप्ती होती है।ज्योतिष के अनुसार कहा जाता है कि सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है, और बसंत में निग्रह होता है।इस प्रकार से शरद पूर्णिमा का महत्व हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है,जिसकी भारतिय जनमानस बड़े ही भक्ति भाव और नियम पूर्वक पालन करता है।

 वहीं एक शोध में ये भी कहा गया है कि दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है जो कि चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है।साथ ही चावल में स्टार्च होने के कारण शोषण की प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है।यही वजह है कि ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का नियम विधान बताया है।जिसकी पुष्टि विज्ञान भी करता है।

 विज्ञान के शोध के अनुसार शरद पूर्णिमा पर खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए।क्योंकि चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है।जिससे कि विषाणु दूर होते हैं।इस दिन हल्दी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।शरद पूर्णिमा पर कहा जाता है कि रात्रि 10-12 बजे तक कम से कम आधे घंटे तक स्नान करना चाहिए।

शरद पूर्णिमा- 15 अक्टूबर2016,शनिवार

संदीप कुमार मिश्र : धर्म और आस्था हमारी संस्कृति वो मजबूत नींव है जो हमारी भारतिय सभ्यता को और भी संबृद्ध बनाती है।त्योहारों और परंपराओं का देश है भारत।एक के बाद एक त्योहार हमें निरंतर एक दूसरे से जोड़ने का कार्य करते हैं।नवरात्र और दशहरा के शुरुआत से ही त्योहारों का सिलसिला शुरु हो जाता है।इन दोनो त्योहार के बाद जो मुख्य त्योहार पड़ता है वो है शरद पूर्णिमा। इस बार शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर (शनिवार) को देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाएगी। आपको बता दें कि कई वर्षों के बाद इस बार शरद पूर्णिमा और शनिवार का विशेष संयोग बना है। शरीवार को चंद्रमा का पूर्ण दर्शन होने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहा जा रहा है। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है।जिससे कि शरद पूर्णिमा का महत्व बढ़ जाता है ।
हिन्दू धर्म शास्त्रों ऐसा कहा गया है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान कृष्ण ने रासलीला की थी।इसलिए शरद पूर्णिमा को रासपूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन के विशेष महत्व के तौर पर आम जनमानस खीर(तस्मई) बनाकर रात्रि में चंद्रमा की रोशनी में रख ते हैं। जिससे कि उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं और उस खीर का सेवन करने से मनुष्य का मन, मस्तिष्क और शरीर चाजगी और स्फुर्ति से भर जाता है,उत्साह और उमंग की वृद्धि होती है।

शरण पूर्णिमा पर क्या करें
शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए गाय के दूध से खीर बनाकर उसमें घी और चीनी मिलाकर रात्रि में चंद्रमा की रोशनी में छत पर रख दें।शरद पूर्णिमा के अगले दिन प्रात: इसी खीर का भगवान को भोग लगाकर अपने पूरे परिवार के साथ खीर का सेवन करें।