योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में
कहा है, “पुष्णामि चौषधि: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्यमक:।।
अर्थात 'मैं रसस्वरूप, अमृतमय चंद्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता
हूं ”।
संदीप कुमार मिश्र: शरद पूर्णिमा की रात्रि के संबंध में भगवान
कृष्ण ने गीता में कहा है उसकी पुष्टि विज्ञान भी करता है।एक रिसर्च के अनुसार शरद
पूर्णिमा की विशेष रात्रि में औषधियों की स्पंदन क्षमता बढ़ जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि महान पंडित, विद्वान
लंकाधिपति रावण भी शरद पूर्णिमा की रात्रि किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि
पर ग्रहण करता था।ऐसा करने से उसे पुनर्योवन की शक्ति प्राप्त होती थी।विज्ञान भी
कहना है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को चांदनी रात में 10 बजे से लेकर से मध्यरात्रि के 12 बजे तक कम वस्त्रों में भ्रमण
करने वाले व्यक्ति को अक्षय ऊर्जा की प्राप्ती होती है।ज्योतिष के अनुसार कहा जाता
है कि सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता
है, और बसंत में निग्रह होता है।इस प्रकार से शरद पूर्णिमा का महत्व हमारे धर्म
शास्त्रों में बताया गया है,जिसकी भारतिय जनमानस बड़े ही भक्ति भाव और नियम पूर्वक
पालन करता है।
वहीं एक शोध में ये भी कहा गया है कि दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है जो कि चंद्रमा
की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है।साथ ही चावल में स्टार्च होने
के कारण शोषण की प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है।यही वजह है कि ऋषि-मुनियों ने
शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का नियम विधान बताया है।जिसकी
पुष्टि विज्ञान भी करता है।
विज्ञान के शोध के
अनुसार शरद पूर्णिमा पर खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए।क्योंकि चांदी में रोग
प्रतिरोधकता अधिक होती है।जिससे कि विषाणु दूर होते हैं।इस दिन हल्दी का प्रयोग
नहीं करना चाहिए।शरद पूर्णिमा पर कहा जाता है कि रात्रि 10-12 बजे तक कम से कम आधे
घंटे तक स्नान करना चाहिए।
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