Tuesday 3 November 2015

वंशदायी हनुमान जी महाराज धौलपुर


संदीप कुमार मिश्र: आस्था और धर्म का संगम भारत जहां  पूजा-अर्चना,यज्ञ- हवन निरंतर होते रहते हैंईश्वर की भक्ती और ध्यान का एक सुलभ और सरल माध्यम है हमारा आस्थावान होनाईश्वर की भक्ती एक तरफ जहां हमारे विश्वास को मजबूत करती हैवहीं हमें सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैंऐसी ही मान्यताओं,श्रद्धा और विश्वास से सराबोर है महाबली हनुमान जी की की भक्ति।हनुमान जी की भक्ती, कहते है सर्व फलदायी हैअंजनी के लाल के स्मरण मात्र से मनुष्य के सभी दुख दूर हो जाते हैंधौलपुर,राजस्थान का एक सा जिला जहां धर्म की पताका सदैव ऊंची रही हैयहां पुरानी छावनी में हनुमान जी की स्वयं प्रकट हुई मूर्ति आज भी लोगों की श्रद्धा और अटूट आस्था का केन्द्र हैधौलपुर की छावनी वाले हनुमान जी का मंदिर राजा कीरथ सिंह की भक्ति की ऐसी धरोहर है,जहां भक्तों पर वैभव की बरसात होती है

धौलपुर राज्य के शासकों की धर्मपरायणता का ज्वलंत प्रमाण प्राचीन और मध्य काल में निर्मित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं।यह मंदिर केवल राज्य की खुशहाली का सबब हैं बल्कि देश के धार्मिक पर्यटन के मानचित्र में राजस्थान प्रदेश की धर्म पताका फहरा रहे हैं।रियासत के पहले राजा कीरथ सिंह की धर्म परायणता की तो बात ही निराली है।महाराज कीरथ सिंह श्री हनुमान जी महाराज के अनन्य भक्त थे।उनकी भक्ति का ही प्रताप था कि भक्तवत्सल श्री हनुमान जी स्वयं राजा की पुरानी छावनी में प्रकट हो गए। ऐसी मान्यता है कि छावनी वाले हनुमान जी के दरबार में भूले-बिसरे और भटककर आने वाले भक्तों की झोलियों में भी खुशियों की बौछार हो जाती है।यहां आने वाले भक्तों का कहना है कि छावनी वाले हनुमान जी के दरबार में वैभव की बरसात होती है। विश्व की सबसे लम्बी अरावली पर्वत श्रृंखलाओं और प्रकृति के मनोरम दृश्यों से भरा हुआ धौलपुर जिला पहले ग्वालियर की सिंधिया रियासत का हिस्सा था।

कहते हैं महाराज कीरथ सिंह भगवान आशुतोष के ग्यारहवें रुद्र अवतार श्री हनुमान जी महाराज के अनन्य सेवक थेइसका प्रमाण किले में स्थित हनुमान जी का मंदिर है बताते हैं कि अपने इष्ट की पूजा अर्चना के ध्येय से किले वाले हनुमान जी के मंदिर का निर्माण भी राजा कीरथ सिंह ने ही कराया थाराजा कीरथ सिंह के 21 वर्षीय एक मात्र पुत्र पोप सिंह का इसी किले में निधन हो गयाधौलपुर के राजा पर यह वज्रपात थालेकिन वह पुत्र वियोग से उभरकर श्री हनुमान जी महाराज की सेवा में लगे रहेइस हृदय विदारक घटना के बाद ही छावनी वाले हनुमान जी के प्रादुर्भाव और चमत्कारों का प्रसंग शुरू होता हैछावनी वाले हनुमान जी के प्रादुर्भाव को लेकर जनसाधारण और इतिहासविदों की राय में थोड़ा सा फर्क हैलेकिन सभी पक्ष छावनी वाले हनुमान जी के चमत्कारों के आगे नतमस्तक हैं।पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद अहम्,इस आस्था के केंद्र के प्रादुर्भाव को लेकर सभी की मान्यता एक हैइस मान्यता के अनुसार लगभग दो सौ वर्ष पूर्व हनुमान जी का यह स्वरूप प्रकट हुआ बताते हैं कि पुत्र बिछोह के बाद राजा कीरथ सिंह का शेरगढ़ किले से दिल उचट गयायह किला उन्हें असहनीय पीड़ा देने लगा और राजा कीरथ सिंह यहां से अन्यत्र अपना महल बनाने का विचार करने लगेइसी मध्य राजा के आराध्यदेव श्री हनुमान जी ने महाराज कीरथ सिंह को स्वप्न दिया कि शेरगढ़ किले से लगभग आठ किमी दूर पश्चिम की ओर उनका विग्रह मिट्टी में दबा हैइसलिए वो उसे निकलवा कर वहीं स्थापित करें और मेरा मंदिर निर्माण कराएं कहा जाता है कि उस स्वप्न के बाद राजा कीरथ सिंह ने शेरगढ़ किले से आठ किलोमीटर दूर पश्चिम में लाव-लश्कर के साथ डेरा डाला इस खुदाई में श्री हनुमान जी की अद्भुत मूर्ति प्राप्त हुईमहाराज कीरथ सिंह ने पूरी वैदिक रीति से अपने प्रभु के इस विगृह की स्थापना कराईचूंकि शेरगढ़ किले से पुत्र बिछोह के कारण राजा का मन पहले ही उचट चुका थाइसलिए अपने इष्ट का विग्रह स्थापित करने के बाद राजा ने इसी के पास अपने महल का निर्माण करायामहल के बाहर जल विहार के लिये राजा ने पक्की नहर का निर्माण करायाइससे कुछ दूर राजकाज संचालन करने वाले कारिंदों की रिहायश बसा दी और इस जगह का नाम कीरथपुर हो गयावर्तमान में यह स्थान पुरानी छावनी के नाम से जाना जाता है।
महाराजा कीरथ सिंह को पूरे सत्रह वर्ष बाद भक्ति का प्रसाद मिलामहाराज ने हनुमान जी की ऐसी सेवा की कि भक्त वत्सल रुद्र के अवतार उनकी भक्ति पर रीझ गएमहाराज की सेवा से खुश हनुमान जी ने उनका दामन खुशियों से भर दियाचमत्कार ऐसा हुआ कि पूरे राज्य की प्रजा इससे झूम उठीमहाराज को फिर से पुत्ररत्न की प्राप्ति हो गईइस चमत्कार से धौलपुर रियासत की पूरी प्रजा छावनी वाले हनुमान जी की दीवानी हो गईफिर तो इस दरबार में जिसने जो मांगा मिलने में देर नहीं हुईकोढ़ी को स्वस्थ काया, नेत्रहीनों को ज्योति तक मिलीमहाराज कीरथ सिंह की खुशी का तो पार ही नहीं थाश्रद्धा और विश्वास का यह संगम इस दरबार में आज भी विद्यमान हैपुत्र प्राप्त होते ही महाराज की वंशावली शुरू हो गईभला इससे भी बड़ा चमत्कार और क्या होगा?प्रभु श्रीराम का छावनी में आना,ऐसी पौराणिक मान्यता है कि जहां हनुमान जी होंगे वहां प्रभु श्री राम का वास तो होना सुनिश्चित है
हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि हनुमान जी को खुश करने के लिए श्रीराम का जाप अचुक हथियार हैबताते हैं कि महाराज कीरथ सिंह की कीर्ति जब प्रभु श्रीराम के कानों तक पहुंची तो माता जानकी और अनुज लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम धौलपुर, भरतपुर और करौली के बार्डर पर खुदाई में प्रकट हो गएयह तीनों ही विगृह अष्टधातु की और विक्रमादित्य के काल की हैंजैसे ही यहां की रियासतों को इन मूर्तियों के बारे में पता चला,राजा तुरंत उस स्थल पर पहुंच गये,जहां यह प्रतिमाऐं खुदाई में निकलीं थी और जिसके हाथ जो प्रतिमा लगी ले गयापरिणाम स्वरुप माता जानकी करौली पहुंच गई लक्ष्मण भरतपुर और प्रभु श्रीराम छावनी वाले अपने भक्त हनुमान के पास आ गएमहाराज कीरथ सिंह ने बिना देर किये हनुमान जी के मंदिर के एकदम सामने श्रीराम का दरबार बनवाकर मूर्ति स्थापित कर दी

इस तरह भक्त हनुमान के साथ महाराज कीरथ सिंह के मंदिर में प्रभु श्री राम भी जम गयेश्रीराम जी की मूर्ति अष्टधातु की हैं,कहते हैं महाराज कीरथ सिंह सन1836 में प्रभु श्रीराम के दरबार में पूजा अर्चना के बाद जैसे ही भगवान को प्रणाम करने के लिए झुके तो उनके प्राण निकल गएयहीं उनकी अंतिम सांस निकलीमहाराज कीरथ सिंह के बाद युवराज भगवंत सिंह ने गद्दी संभालीइस वंश के अंतिम शासक महाराज उदयभान सिंह हुए जिनकी धर्म परायणता पर प्रजा मुग्ध थी साधु संतों के चितेरे महाराज प्रतिदिन दस हजार राम नाम मंत्र का जाप करते थे 22 अक्टूबर 1954 को महाराज उदयभान का देहान्त हो गयाउनके कोई संतान नहीं थीअत: यहीं से राजमहल और रियासत पर कब्जों को लेकर झगड़े फसाद शुरू हो गयेइन झगड़ों से राज महल खण्डहर में तब्दील होते गएशासक के अभाव में चोरों की गिद्ध दृष्टिभगवान श्रीराम की  बेशकीमती एवं दुर्लभ मूर्ति पर पड़ीसाल 1972 में एक दिन अचानक यह मूर्ति चोरी हो गई इस चोरी से राजस्थान सरकार की तन्द्रा भंग हुई धौलपुर तब भरतपुर जनपद का हिस्सा थाजिले के तत्कालीन एस.पी.आर.एन. गौड़ ने छावनी वाले हनुमान जी के समक्ष प्रतिज्ञा की, यदि एक माह में यदि मूर्ति बरामद नहीं कर सका तो वर्दी त्याग दूंगाहनुमान जी ने कृपा की और एक माह के भीतर ही दिल्ली एयरपोर्ट पर यह मूर्ति बरामद कर ली गई तब से छावनी वाले मंदिर में मूर्ति कड़े पहरे में हैयहां मूर्ति के फोटो तक खींचने पर पाबंदी हैवर्तमान में यह मंदिर सरकार के देवस्थान विभाग के संरक्षण में है

मंदिर को जाने के लिये धौलपुर-जयपुर बाईपास से पश्चिम की ओर लगभग पांच किमी का रास्ता है।मंदिर के मुख्य दरवाजे के एकदम सामने श्रीराम दरबार है। इसके सामने छावनी वाले हनुमान जी का दरबार है। दोनों मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए सरकारी पुजारी नियुक्त हैं।मंदिर में यूं तो हर मंगलवार और शनिवार को श्री हनुमान जी के अन्य मंदिरों की भांति यहां भी भक्तों की भीड़ होती है।लेकिन यहां आने वाले भक्तों में ज्यादातर वही हैं जिनमें श्रद्धा और विश्वास कूट-कूट कर भरा है। प्रतिदिन सुबह भोर में श्री हनुमान जी महाराज और उनके आराध्यदेव प्रभु श्रीराम का वैदिक रीति से मंत्रोचारण के साथ अभिषेक  उसके बाद, भगवान का श्रृंगार, सुबह 7 बजे आरतीदोपहर 12 से तीन बजे विश्राम और फिर शाम का अभिषेकमंदिर  की शाम की आरती का समय भी अन्य मंदिरों की तरह पूर्व निर्धारित हैशाम 6.30 बजे छावनी वाले हनुमान जी और उनके प्रभु श्रीराम के रात्रि शयन का समय देश के अन्य मंदिरों से थोड़ा भिन्न हैसर्दियों में 8.30बजे और गर्मियों में रात्रि नौ बजेदोनों समय आरती का समय सुनिश्चित है दस मिनट श्री हनुमान जी के मंदिर में बाबा की कृपा से खुशियां पाने वालों के बीजक भी लगे हैं।

जहां राजस्थान की सुनहरी रेत के रंग सूरज के उगते ही लाल पत्थरों पर चमकते होंम.प्र. की लोक संस्कृति के संस्कार,जहां की हवाओं में तैरते हों, और उत्तर प्रदेश की गंगा-जमुनी संस्कृति के बादल,जहां हरदम छाये नजर आते होंऐसा ही मनोरम नगर हैआगरा (उ.प्र.) और ग्वालियर (म.प्र.) के ठीक मध्य में आगरा से मात्र 60 किमी. की दूरी पर बसा यह छोटा सा शहर धौलपुर प्राचीन काल से ही बेहद खास रहा है।
धौलपुर नगर से लगभग 8 किमी. दूर स्थित पुरानी छावनी में हनुमान जी का एक भव्य मंदिर हैलगभग 200 वर्ष पूर्व कीरत सिंह द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया थाइस मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ति अद्भुत हैलगभग 7 फुट ऊंची एक हृष्ट-पुष्ट मल्ल योद्धा जैसी इस मूर्ति का रंग मानव शरीर के समान ही गेहुंआ हैमानव शरीर के समान ही इस प्रतिमा की संरचना है।प्रतिमा के हाथों और पैरों में रक्त की धमनियां और उनमें रक्त प्रवाह मानव की भांति स्पष्ट चमकती हैघुटने के नीचे तीर का निशान भी स्पष्ट नजर आता हैसंजीवनी लाते समय जब हनुमान जी अयोध्या के ऊपर आकाश से गुजरे तो भरत जी ने उन्हें मायावी असुर समझ कर उन पर बिना नोक का तीर चलाया थाउसी तीर का निशान हनुमान जी की इस प्रतिमा के पांव पर हैं।इस प्रतिमा की एक और विशेषता यह है कि आम परम्परा के समान इस पर सिंदूर का चोला नहीं चढ़ाया जाता हैइसका केवल वस्त्र श्रृंगार होता है वह भी मौसम के अनुकूल हनुमान जी का बायां चरण अहिरावण की कुलदेवी कामदा यानि की चण्डी के ऊपर हैहनुमान जयंती पर यहां विशाल उत्सव होता हैजो तीन दिनों तक चलता है।


दोस्तों अपरम्पार है अंजनी के लाल की महिमामहाबली हनुमान आपकी सभी मनोंकामनाओं  को पूरा करें और आपकी सभी मन्नतें मुरादें पूरी होंइसी मंगल कामन के साथ।।जय श्री राम।।

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