संदीप कुमार मिश्र: आस्था और धर्म का संगम भारत ।जहां पूजा-अर्चना,यज्ञ- हवन निरंतर
होते रहते हैं।ईश्वर
की भक्ती और ध्यान का एक सुलभ और सरल माध्यम है हमारा आस्थावान होना।ईश्वर की भक्ती एक तरफ जहां हमारे विश्वास को
मजबूत करती है।वहीं
हमें सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।ऐसी ही मान्यताओं,श्रद्धा और विश्वास से सराबोर है महाबली हनुमान जी की की भक्ति।हनुमान जी की भक्ती, कहते है सर्व फलदायी है।अंजनी के लाल के स्मरण मात्र से मनुष्य के सभी
दुख दूर हो जाते हैं।धौलपुर,राजस्थान
का एक ऐसा जिला जहां धर्म की पताका सदैव ऊंची रही है।यहां पुरानी छावनी में हनुमान जी की स्वयं प्रकट
हुई मूर्ति आज भी लोगों की श्रद्धा और अटूट आस्था का केन्द्र है।धौलपुर की छावनी वाले हनुमान जी का मंदिर राजा
कीरथ सिंह की भक्ति की ऐसी धरोहर है,जहां भक्तों पर वैभव की बरसात होती है।
धौलपुर
राज्य
के
शासकों
की
धर्मपरायणता
का
ज्वलंत
प्रमाण
प्राचीन
और
मध्य
काल
में
निर्मित
प्रसिद्ध
धार्मिक
स्थल
हैं।यह
मंदिर
न
केवल
राज्य
की
खुशहाली
का
सबब
हैं बल्कि देश
के
धार्मिक
पर्यटन
के
मानचित्र
में
राजस्थान
प्रदेश
की
धर्म
पताका
फहरा
रहे
हैं।रियासत
के
पहले
राजा
कीरथ
सिंह
की
धर्म
परायणता
की
तो
बात
ही
निराली
है।महाराज
कीरथ
सिंह
श्री
हनुमान
जी
महाराज
के
अनन्य
भक्त
थे।उनकी
भक्ति
का
ही
प्रताप
था
कि
भक्तवत्सल
श्री
हनुमान
जी
स्वयं
राजा
की
पुरानी
छावनी
में
प्रकट
हो
गए। ऐसी मान्यता
है कि छावनी
वाले
हनुमान
जी
के
दरबार
में भूले-बिसरे
और
भटककर
आने
वाले
भक्तों
की
झोलियों
में
भी खुशियों की
बौछार
हो
जाती
है।यहां
आने
वाले
भक्तों
का
कहना
है
कि छावनी वाले
हनुमान
जी
के
दरबार
में
वैभव
की
बरसात
होती
है। विश्व की
सबसे
लम्बी
अरावली
पर्वत
श्रृंखलाओं
और
प्रकृति
के
मनोरम
दृश्यों
से
भरा
हुआ
धौलपुर
जिला पहले ग्वालियर
की
सिंधिया
रियासत
का
हिस्सा
था।
कहते हैं महाराज कीरथ सिंह भगवान आशुतोष के
ग्यारहवें रुद्र अवतार श्री हनुमान जी महाराज के अनन्य सेवक थे।इसका प्रमाण किले में स्थित हनुमान जी का
मंदिर है। बताते हैं कि अपने इष्ट की पूजा अर्चना के
ध्येय से किले वाले हनुमान जी के मंदिर का निर्माण भी राजा कीरथ सिंह ने ही कराया
था।राजा कीरथ सिंह के 21 वर्षीय एक मात्र
पुत्र पोप सिंह का इसी किले में निधन हो गया।धौलपुर के राजा पर यह वज्रपात था।लेकिन वह पुत्र वियोग से उभरकर श्री हनुमान
जी महाराज की सेवा में लगे रहे।इस हृदय विदारक घटना
के बाद ही छावनी वाले हनुमान जी के प्रादुर्भाव और चमत्कारों का प्रसंग शुरू होता है।छावनी वाले हनुमान जी के प्रादुर्भाव को
लेकर जनसाधारण और इतिहासविदों की राय में थोड़ा सा फर्क है।लेकिन सभी पक्ष छावनी वाले हनुमान जी के
चमत्कारों के आगे नतमस्तक हैं।पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद अहम्,इस आस्था
के केंद्र के प्रादुर्भाव को लेकर सभी की मान्यता एक है।इस मान्यता के अनुसार लगभग दो सौ वर्ष
पूर्व हनुमान जी का यह स्वरूप प्रकट हुआ। बताते हैं कि पुत्र
बिछोह के बाद राजा कीरथ सिंह का शेरगढ़ किले से दिल उचट गया।यह किला उन्हें असहनीय पीड़ा देने लगा और
राजा कीरथ सिंह यहां से अन्यत्र अपना महल बनाने का विचार करने लगे।इसी मध्य राजा के आराध्यदेव श्री हनुमान जी
ने महाराज कीरथ सिंह को स्वप्न दिया कि शेरगढ़ किले से लगभग आठ किमी दूर पश्चिम की
ओर उनका विग्रह मिट्टी में दबा है।इसलिए वो उसे निकलवा
कर वहीं स्थापित करें और मेरा मंदिर निर्माण कराएं। कहा जाता है कि उस स्वप्न के बाद राजा
कीरथ सिंह ने शेरगढ़ किले से आठ किलोमीटर दूर पश्चिम में लाव-लश्कर के साथ डेरा
डाला। इस खुदाई में श्री हनुमान जी की अद्भुत
मूर्ति प्राप्त हुई।महाराज कीरथ सिंह ने पूरी वैदिक रीति से
अपने प्रभु के इस विगृह की स्थापना कराई।चूंकि शेरगढ़ किले से
पुत्र बिछोह के कारण राजा का मन पहले ही उचट चुका था।इसलिए अपने इष्ट का विग्रह स्थापित करने के
बाद राजा ने इसी के पास अपने महल का निर्माण कराया। महल के बाहर जल विहार के लिये राजा ने पक्की नहर का निर्माण
कराया।इससे कुछ दूर राजकाज संचालन करने वाले
कारिंदों की रिहायश बसा दी और इस जगह का नाम कीरथपुर हो गया।वर्तमान में यह स्थान पुरानी छावनी के नाम
से जाना जाता है।
महाराजा कीरथ सिंह को पूरे सत्रह वर्ष बाद भक्ति का प्रसाद मिला।महाराज ने हनुमान जी की ऐसी सेवा की कि
भक्त वत्सल रुद्र के अवतार उनकी भक्ति पर रीझ गए।महाराज की सेवा से खुश हनुमान जी ने उनका
दामन खुशियों से भर दिया।चमत्कार ऐसा हुआ कि पूरे राज्य की प्रजा
इससे झूम उठी।महाराज को फिर से पुत्ररत्न की प्राप्ति हो
गई।इस चमत्कार से धौलपुर रियासत की पूरी प्रजा
छावनी वाले हनुमान जी की दीवानी हो गई।फिर तो इस दरबार में
जिसने जो मांगा मिलने में देर नहीं हुई।कोढ़ी को स्वस्थ काया, नेत्रहीनों को ज्योति
तक मिली।महाराज कीरथ सिंह की खुशी का तो पार ही
नहीं था।श्रद्धा और विश्वास का यह संगम इस दरबार
में आज भी विद्यमान है।पुत्र प्राप्त होते ही महाराज की वंशावली
शुरू हो गई।भला इससे भी बड़ा चमत्कार और क्या होगा?प्रभु श्रीराम का
छावनी में आना,ऐसी पौराणिक मान्यता है कि जहां हनुमान जी होंगे वहां प्रभु श्री
राम का वास तो होना सुनिश्चित है।
हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि हनुमान जी को खुश
करने के लिए श्रीराम का जाप अचुक हथियार है।बताते हैं कि महाराज
कीरथ सिंह की कीर्ति जब प्रभु श्रीराम के कानों तक पहुंची तो माता जानकी और अनुज
लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम धौलपुर, भरतपुर और करौली के बार्डर पर खुदाई में
प्रकट हो गए।यह तीनों ही विगृह अष्टधातु की और
विक्रमादित्य के काल की हैं।जैसे ही यहां की रियासतों को इन मूर्तियों
के बारे में पता चला,राजा तुरंत उस स्थल पर पहुंच गये,जहां यह
प्रतिमाऐं खुदाई में निकलीं थी और जिसके हाथ जो
प्रतिमा लगी ले गया।परिणाम स्वरुप माता जानकी करौली पहुंच गई। लक्ष्मण भरतपुर और प्रभु श्रीराम छावनी
वाले अपने भक्त हनुमान के पास आ गए।महाराज कीरथ सिंह ने
बिना देर किये हनुमान जी के मंदिर के एकदम सामने श्रीराम का दरबार बनवाकर मूर्ति
स्थापित कर दी।
इस तरह भक्त हनुमान के साथ महाराज कीरथ
सिंह के मंदिर में प्रभु श्री राम भी जम गये। श्रीराम जी की मूर्ति अष्टधातु की हैं,कहते हैं महाराज
कीरथ सिंह सन1836 में प्रभु श्रीराम के दरबार में पूजा अर्चना के बाद जैसे ही भगवान
को प्रणाम करने के लिए झुके तो उनके प्राण निकल गए।यहीं उनकी अंतिम सांस निकली।महाराज कीरथ सिंह के बाद युवराज भगवंत सिंह
ने गद्दी संभाली।इस वंश के अंतिम शासक महाराज उदयभान सिंह
हुए जिनकी धर्म परायणता पर प्रजा मुग्ध थी। साधु संतों के
चितेरे महाराज प्रतिदिन दस हजार राम नाम मंत्र का जाप करते थे। 22 अक्टूबर 1954 को महाराज उदयभान का देहान्त
हो गया।उनके कोई संतान नहीं थी।अत: यहीं से राजमहल और रियासत पर कब्जों को
लेकर झगड़े फसाद शुरू हो गये।इन झगड़ों से राज महल खण्डहर में तब्दील
होते गए।शासक के अभाव में चोरों की गिद्ध दृष्टिभगवान
श्रीराम की बेशकीमती एवं दुर्लभ मूर्ति पर
पड़ी।साल 1972 में एक दिन अचानक यह मूर्ति चोरी
हो गई। इस चोरी से राजस्थान सरकार की तन्द्रा भंग
हुई। धौलपुर तब भरतपुर जनपद का हिस्सा था।जिले के तत्कालीन एस.पी.आर.एन. गौड़ ने
छावनी वाले हनुमान जी के समक्ष प्रतिज्ञा की, यदि एक माह में यदि
मूर्ति बरामद नहीं कर सका तो वर्दी त्याग दूंगा।हनुमान जी ने कृपा की और एक माह के भीतर ही
दिल्ली एयरपोर्ट पर यह मूर्ति बरामद कर ली गई। तब से छावनी वाले मंदिर में मूर्ति कड़े
पहरे में है।यहां मूर्ति के फोटो तक खींचने पर पाबंदी
है।वर्तमान में यह मंदिर सरकार के देवस्थान
विभाग के संरक्षण में है।
मंदिर को जाने के लिये धौलपुर-जयपुर बाईपास से पश्चिम की ओर लगभग पांच किमी का रास्ता है।मंदिर के मुख्य दरवाजे के एकदम सामने श्रीराम दरबार है। इसके सामने छावनी वाले हनुमान जी का दरबार है। दोनों मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए सरकारी पुजारी नियुक्त हैं।मंदिर में यूं तो हर मंगलवार और शनिवार को श्री हनुमान जी के अन्य मंदिरों की भांति यहां भी भक्तों की भीड़ होती है।लेकिन यहां आने वाले भक्तों में ज्यादातर वही हैं जिनमें श्रद्धा और विश्वास कूट-कूट कर भरा है। प्रतिदिन सुबह भोर में श्री हनुमान जी
महाराज और उनके आराध्यदेव प्रभु श्रीराम का वैदिक रीति से मंत्रोचारण के साथ
अभिषेक उसके बाद, भगवान का श्रृंगार, सुबह
7 बजे आरती।दोपहर 12 से तीन बजे विश्राम और फिर शाम का अभिषेक।मंदिर
की शाम की आरती का समय भी अन्य मंदिरों की तरह पूर्व निर्धारित है।शाम 6.30 बजे। छावनी वाले हनुमान जी और उनके प्रभु
श्रीराम के रात्रि शयन का समय देश के अन्य मंदिरों से थोड़ा भिन्न है।सर्दियों में 8.30बजे और गर्मियों में
रात्रि नौ बजे।दोनों समय आरती का समय सुनिश्चित है दस
मिनट। श्री हनुमान जी के मंदिर में बाबा की कृपा
से खुशियां पाने वालों के बीजक भी लगे हैं।
जहां राजस्थान की सुनहरी रेत के रंग सूरज के उगते ही लाल पत्थरों पर चमकते
हों।म.प्र. की लोक संस्कृति के संस्कार,जहां की
हवाओं में तैरते हों, और उत्तर प्रदेश की गंगा-जमुनी संस्कृति के बादल,जहां हरदम
छाये नजर आते हों।ऐसा ही मनोरम नगर हैआगरा (उ.प्र.) और
ग्वालियर (म.प्र.) के ठीक मध्य में आगरा से मात्र 60 किमी. की दूरी पर बसा यह छोटा
सा शहर धौलपुर प्राचीन काल से ही
बेहद खास रहा है।
धौलपुर नगर से लगभग 8 किमी. दूर स्थित पुरानी छावनी में हनुमान जी का एक
भव्य मंदिर है।लगभग 200 वर्ष पूर्व कीरत सिंह द्वारा इस
मंदिर का निर्माण करवाया गया था।इस मंदिर में स्थापित
हनुमान जी की मूर्ति अद्भुत है। लगभग 7 फुट ऊंची एक
हृष्ट-पुष्ट मल्ल योद्धा जैसी इस मूर्ति का रंग मानव शरीर के समान ही गेहुंआ है।मानव शरीर के समान ही इस प्रतिमा की संरचना
है।प्रतिमा के हाथों और पैरों में रक्त की धमनियां और उनमें रक्त प्रवाह मानव की
भांति स्पष्ट चमकती है।घुटने के नीचे तीर का निशान भी स्पष्ट नजर
आता है।संजीवनी लाते समय जब हनुमान जी अयोध्या के
ऊपर आकाश से गुजरे तो भरत जी ने उन्हें मायावी असुर समझ कर उन पर बिना नोक का तीर
चलाया था।उसी तीर का निशान हनुमान जी की इस प्रतिमा
के पांव पर हैं।इस प्रतिमा की एक और विशेषता यह है कि आम परम्परा के समान इस पर
सिंदूर का चोला नहीं चढ़ाया जाता है।इसका केवल वस्त्र
श्रृंगार होता है। वह भी मौसम के अनुकूल। हनुमान जी का बायां चरण अहिरावण की
कुलदेवी कामदा यानि की चण्डी के ऊपर है।हनुमान जयंती पर यहां
विशाल उत्सव होता है।जो तीन दिनों तक चलता है।
दोस्तों अपरम्पार है अंजनी के लाल की महिमा।महाबली हनुमान आपकी सभी मनोंकामनाओं को पूरा करें और आपकी सभी मन्नतें मुरादें पूरी
हों।इसी मंगल कामन के साथ।।जय श्री
राम।।
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