Thursday, 26 November 2015

26/11: दर्द के वो सात साल


काश खत्म हो जाता आतंकवाद,
हर तरफ बहती अमन और सूकुन की फिजा,
ना रहता कोई रंज-ओ-गम,
क्योंकि लहू का रंग तो सबका लाल ही है।
संदीप कुमार मिश्र : लेकिन क्या करें साब 26/11की वो काली रात आज भी एक ऐसे नासूर की तरह सालती रहती है।दर्द के वो सात साल याद आते ही शरीर में एक सिहरन सी उठती है और याद आता वो मंजर,गोलियों की आवाजें,चिख पुकार,धुओं का गुव्वार,भागते दौड़ते लोग...काश ऐसा ना हुआ होता।

दरअसल 26 नवंबर 2008 की वो भयावह काली रात,जब अचानक माया नगरी मुंबई शहर गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज से दहल उठा। नापाक इरादों के साथ मानवता के दुश्मन उन क्रुर हमलावरों ने मुंबई के पांच सितारा होटलों,रेलवे स्टेशन के साथ ही मुंबई के एक यहूदी केंद्र को निशाना अपना निशाना बनाया।किसी ने सोचा भी नहीं था कि इतना बड़ा आतंकी हमला देश की आर्थिक राजधानी पर हो सकता है।

मुंबई के लियोपोल्ड कैफे के साथ ही छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से शुरू हुआ आतंक का नंगा नाच  होटल ताजमहल में जाकर समाप्त हुआ।आतंकीयों के नापाक मंसूबे को खत्म करने के लिए हमारे देश वीर जवानो को तकरीबन 60 घंटे से भी ज्यादा का समय लगा और सबसे बड़े इस (26/11) आतंकी हमले में 160 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

कौन भूल सकता है होटल ताजमहल का वो मंजर...जब होटल ताजमहल के गुंबद में लगी आग, और वो आसमान की ओर बढ़ता धुएं का गुब्बार...सात साल बाद भी देश के दिलोदिमाग में वो दृश्य आज भी ताजा हैं। 100 साल से भी ज्यादा समय से अपने शानदार वजूद को कायम किए हुए गेटवे ऑफ इंडिया के पास खड़ी पुरानी इमारत को कब्जे में लेकर आतंकवादियों ने उसे आग के हवाले कर दिया। विदेशी पर्यटकों में खासा लोकप्रियता लिए मुंबई की आन-बान और शान कहे जाने वाला होटल ताजमहल धुधु कर जल रहा था और आतंकीयों का नंगा नाच चल रहा था । बड़ी शानो शौकत से पर्यटक होटल ताजमहल से समुद्र का बेहद खूबसूरत और विहंगम नजारा देता करते थे..लेकिन इस धटना ने सबको सकते में डाल दिया था।

जिस वक्त होटल में आतंकियों ने डेरा डाला उस वक्त होटल के पास खुब चहलपहल थी और सरकारी आंकड़ो के अनुसार तकरीबन 31 लोगों को होटल ताजमहल में अपनी जान गंवानी पड़ी थी,और इस पूरे आपरेशन में होटल ताजमहल में चार आतंकवादियों को मार गिराया गया था।
देश के व्यापारिक तबके के बीच खासा लोकप्रिय ओबेरॉय होटल में भी आतंकवादी जिस समय गोला-बारूद लेकर पहुंचे थे उस समय होटल में साढे तीन सौ से भी ज्यादा लोग मौजूद थे। आतंकियों ने यहां भी खूब तांडव मचाया,कईयों को बंधक बनाया और जब तक राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के जवानों ने दोनों हमलावरों को मार गिराया,उससे पहले ही आतंकीयों ने 32 निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी।

आतंकवादी ये जानते थे कि छत्रपति शिवाजी टर्मिनल देश के सबसे व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक है जहां आतंकियों ने खूनी खेल को सबसे खौफनाक तरिके से अंजाम दिया।जिस वक्त आतंकियों ने यहां हमला किया उस वक्त स्टेशन पर बड़ी संख्या में रेल यात्री मौजूद थे।स्टेशन पर हुई गोलीबारी में आतंकवादी अजमल आमिर कसाब और इस्माइल खान शामिल थे। दोनों आतंकियों ने यहां अंधाधुंध गोलियां चलाईं और  छत्रपति शिवाजी टर्मिनल में 58 लोगों की मौत हुई। लेकिन अजमल आमिर कसाब पकड़ा गया और उसे फांसी दी गई।

दूसरी तरफ चार हमलावरों ने एक पुलिस वैन को ही अगवा कर लिया और उसके बाद लगातार गोलीबारी करते हुए कामा अस्पताल में भी घुस गए। इसी कामा अस्पताल के बाहर ही मुठभेड़ में आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, मुंबई पुलिस के अशोक काम्टे और विजय सालस्कर आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।

विदेशी पर्यटकों के बीच लोकप्रिय लियोपोल्ड कैफे को भी अपना निशाना बनाया।कैफे में बैठे लोग कुछ समझ पाते उससे पहले ही दो गुटों में आए आतंकियो ने 10 लोगो की जान ले ली थी । आतंकवादियों ने शहर के नरीमन हाउस को भी निशाना बनाया। यहां अक्सर यहूदी पर्यटक ठहरते थे। नरीमन हाउस में पहुंचने के लिए एनएसजी कमांडो को हेलिकॉप्टर की मदद से बगल वाली इमारत में उतरना पड़ा। एनएसजी ने आतंकीयों को तो मार गिराया लेकिन किसी भी बंधक को नहीं बचाया नहीं जा सका और सात निर्दोष लोगों की मौत हो गई।

अंतत: आतंकवाद मानवता के नाम पर कलंक है, इसपर पूर्णविराम लगना बेहद जरुरी है,नही तो मानवता तार-तार होती रहेगी।खून बहते रहेंगे,धरती अपने लाल के रंग से लाल होती रहेगी और आतंकियों के आका धर्म मजहब की दुहाई देकर आतंकवाद फैलाते रहेंगे। आखिर कब तक 9/11…26/11…13/11 जैसी घटनाएं होती रहेंगी..? अब बहुत हो चुका।

 26/11 में शहीद हुए शहीदों को शत-शत नमन व श्रद्धांजलि 




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