संदीप कुमार मिश्र: देश की सियासत नित नए रंग बदल रही है।देश की आवाम भी नए नए रिसर्च कर रही
है,कभी किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनवार केंद्र की सत्ता पर काबिज कर
देती है तो कभी बिहार में महागठबंधन की प्रचंड बहुमत की सरकार बनवा देती है।ये
पब्लिक है सब जानती है।स्वाभिमान तक तो ठीक है,लेकिन अभिमान बर्दास्त नहीं करती
जनता।जिसका परिणाम आपने,हमसबने दिल्ली में देखा और फिर बिहार में...अब बिहार के
बाद बाद कई सवाल उठने लाजमी है कि क्या महागठंधन की तर्ज पर देश के अन्य राज्यों
में भी इस फार्मूले का इस्तेमाल किया जाएगा...खासकर देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर
प्रदेश में...?
दरअसल बिहार की तिकड़ी(नीतीश+लालू+राहुल=महागठबंधन) ने देश की सियासत में
एक नई बहस छेड़ दी है या यूं कहें कि हलचल पैदा कर दी है।क्योंकि अगर देश भर में
यही ट्रेंड चलता रहा तो बीजेपी के लिए महामुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।क्योंकि बिहार
में लालू औरनीतीश की जोड़ी ने जो धमाल मचाया है उससे कहीं ना कहीं अन्य राज्यों
में बीजेपी विरोधी पार्टियों को ब जरुर मिला है,और उन्हे एक उम्मीद भी बंधी है। जैसा
कि हम सब जानते है 2014 के आम चुनाव के बाद बीजेपी का अश्वमेध का घोड़ा लगातार एक
के बाद एक राज्य फतह कर रहा था लेकिन दिल्ली और फिर बिहार आते आते घोड़े पर लगाम
लग गयी।अब इसे आप क्या कहेंगे कि बीजेपी की छवी या यूं कहें कि नरेंद्र मोदी की
छवी धूमिल हो रही है..?आप सोचने के लिए स्वतंत्र हैं।लेकिन व्यक्तिगततौर पर मेरी राय में सच यही है
कि मोदी की छवी आज भी बैसी ही है जैसी पहले थी।लेकिन हां महागठबंधन की जीत राजनीति
में बदलाव का प्रतीक है इसे भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।
भविष्य की सियासत की कल्पना करें तो
क्या देश की राजनीति में बिहार चुनाव के परिणाम एक ताकतवर राष्ट्रीय नेता के कमजोर
होने का आभास है ?या फिर अब बिहार देश की सियासत में नया अध्याय लिखेगा।ये
भी सोचना लाजमी है कि अब देश के अन्य राज्यों में भी होने वाले चुनावों पर बिहार
जैसे ही परिणाम आ सकते हैं ?वहीं देश के सर्वप्रिय नेता की बात करें तो क्या इस चुनाव के
नतिजों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति गिरता जनाधार कहेंगे ? क्या यह बीजेपी और नरेंद्र मोदी की हार है ? सवाल बहुत सारे हैं,आप भी सोचिए।लेकिन इन सभी सवालों के बीच यह तय है कि इस चुनाव परिणाम के बाद गैर भाजपा दलों का
भरोसा और पुख्ता होगा कि बीजेपी को हराया जा सकता है। विपक्ष अब खुद में ज्यादा आत्मबल
महसूस करेंगे कि बीजेपी को हराया जा सकता है।साथ ही ये भी कि ‘बीजेपी अजेय’ नहीं है,उसे भी सियासी पटकनी दी जा सकती है।
ऐसे में क्या कहेंगे आप कि बीजेपी की
हार के क्या कारण थे..? क्या बिहार में मुख्यमंत्री की घोषणा ना करना, नीतीश कुमार की बिहार में सुशासन
बाबू की छवी, महागठबंधन का विकास का एजेंडा, राष्ट्रीय स्तर पर असहिष्णुता का
मुद्दा, राष्ठ्रीय स्तर पर कलाकारों, लेखकों और अन्य क्षेत्र की नामी
हस्तियों का पुरस्कार लौटाना, संघ प्रमुख मोहन भागवत का आरक्षण पर पुनर्विचार करने
की सलाह देना या फिर पिछड़ी जातियों का एनडीए के खिलाफ एकजुट होना,या गाय, गोमांस और पाकिस्तान के मुद्दे।
दोस्तों कारण चाहे जो रहे हों लेकिन एक
बात तो तय है कि जनता ने सांप्रदायिक राजनीति को सिरे खारिज कर दिया।ऐसे में बिहार
में मिले निर्णायक जनादेश को अब सभी विपक्षी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ अपने राज्य में आजमाना चाहती
हैं जिससे की मजबूत किलाबंदी हो सके। महागठबंधन की जीत देश के अन्य राज्यों में
बीजेपी विरोधी दलों के लिए संजीवनी का भी काम करेगी।आने वाले समय में पश्चिम बंगाल,
उत्तर प्रदेश, समेत कई राज्यों में एक साल के बाद चुनाव होने वाले हैं।लेकिन सबसे ज्याद नजर
सियासी पंडितों की उत्तर प्रदेश पर ही होगी,क्योंकि कयासों के बाजार गर्म हैं।अब
देखना होगा कि क्या मायावती, मुलायम सिंह यादव के साथ हाथ मिलाती हैं और कांग्रेस
फिर एक बार यूपी में उसी तरह खुश होता है जिस तरह बिहार में या फिर कुछ और गणित
लगाई जाती है।
अंतत: राजनीति में ना तो कोई स्थायी दोस्त होता है ना ही कोई दुश्मन।जिसका परिणाम
बिहार चुनाव कहें तो गलत नहीं होगा।क्योंकि जंगलराज के महानायक कहे जाने वाले जिस
लालू प्रसाद को कभी पानी पी पी कर कोसने वाले नीतीश कुमार आज उन्ही के साथ
महागठबंधन कर गलबहिंया कर रहे हैं।ऐसे में राजनीति में कुछ भी हो सकता है।ताज्जुब
की बात नहीं कि ये फार्मूला अन्य राज्यों में भी सफल हो जाए। लेकिन शर्त एक ही है
चाहे गठबंधन हो,महागठबंधन हो या फिर कुछ और....जनता के हितों का सम्मान होना
चाहिए,उसकी जरुरते पूरी होनी चाहिए।।
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