श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि। श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता
हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता
हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ।
कितना आसान है इस देश में कुछ भी
लिखना,बोलना और करना और शायद यही भारत की खूबसूरती भी है।तभी किन्ही शब्दों पर
हमारा समाज एक हो जाता है और कभी बंट जाता है।मजे की बात ये कि लोकप्रियता पाने के
लिए,और सुर्खियो में बने रहने के लिए हम कुछ भी कर जाते हैं। दरअसल ऑल इंडिया
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक वरिष्ठ सदस्य की किताब में दावा
किया गया है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में नहीं, बल्कि पाकिस्तान में
हुआ था। वहीं किताब में यह भी लिखा गया है कि रामजन्मभूमि विवाद अंग्रेजों के समय
की देन है।'फैक्ट्स ऑफ अयोध्या एपिसोड (मिथ ऑफ राम जन्मभूमि)' शीर्षक वाली यह किताब जनाब अब्दुल रहीम कुरैशी ने लिखी है। आपको बता दें कि सुप्रीम
कोर्ट में चल रहे बाबरी मस्जिद केस में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी एक पक्ष है और जनाब कुरैशी बोर्ड के महासचिव और प्रवक्ता हैं।
साहेबान कुरैशी की कलम और किताब और क्या
कहती है वो भी जान लिजिए।किताब में लिखा गया है कि वेद या पुराण में गंगा के मैदान
पर कहीं भी राम के जन्म या उनके साम्राज्य का उल्लेख नहीं मिलता है।भगवान राम का
राज्य सप्त सिंधू में था,
जो हरियाणा और पंजाब से लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक
फैला हुआ था।एक कदम और आगे बढ़ते हुए जनाब कुरैशी ने भगवान राम के त्रेतायुग में जन्म
लेने पर भी सवाल उठाए।उनके मुताबिक, हिंदू युग पद्धति की गणना के
अनुसार, भगवान राम चौबीसवें या अठाईसवें त्रेतायुग में सामने आए।और वर्तमान में हम कलयुग
के अठाईसवें चक्र में जी रहे हैं।इस तरह भगवान राम अब से करीब 1.80 करोड़ वर्ष पूर्व हुए थे। दुनिया में कहीं भी इतने साल पुराने जीवन का प्रमाण
नहीं मिलता हैं। कुरैशी साब आगे बढ़ते हुए लिखते हैं कि रामायण के आधार पर राम के
जन्म का अनुमान 5561 बीसी या 7323 बीसी में लगाया गया है, लेकिन यूपी के अयोध्या या अन्य
क्षेत्रों में 600 बीसी से पूर्व कोई जीवन नहीं पाया गया। इसके लिए उन्होने पूर्व एएसआई अधिकारी
जस्सू राम के लेखन का हवाला दिया और लिखा कि वास्तव में राम का जन्म पाकिस्तान के
डेरा इस्माइल में हुआ था।वहां आज भी एक स्थान का नाम रहमान देहरी है। जिसे पहले
राम देहरी कहा जाता था।
मित्रों लगता है देश में शायद अब यही
कमी रह गई थी,क्योंकि मुद्दे तो बिहार चुनाव के साथ खत्म हो गए।लगता तो ऐसा ही है
कि अब सहिष्णुता का राग मंदा पड़ रहा है,बीफ का मुद्धा भी तो चुनाव में ही जगेगा
ना,और कलबुर्गी की आत्मा भी शांत हो गयी होगी,और एफटीआईआई,अखलाख सम्मान लौटाने
जैसे मुद्दों से कहीं ज्यादा दम खम रामजन्मभूमि के मुद्दे में है।खैर जनाब कुरैशी
साहब ने कमी पूरी कर दी।आपलोग भी कुरैशी साब को बधाई दें कि जो काम बड़े बड़े इतिहासकार
नहीं कर पाए,जिन आंकड़ों की गड़ना महान रचयिता नहीं कर पाए उसे कुरैशी साब ने कर
दिखाया।सदियों से हम तो यही जानते आए थे कि राम जी का अवतार अवधधाम में ही हुआ
था,करोड़ो-करोड़ो जनमानस के आराध्य प्रभू श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या ही है
लेकिन कुरैशी साब ने लगता है नई बहस की बीज अंकुरित कर दिया है।
बहरहाल साधुवाद! के पात्र हैं जनाब कुरैशी
साब। क्योंकि कुछ और हो ना हो किताब का प्रमोशन बढ़िया हो गया और हो रहा है।अब तो
किताब जरूर बिकेगी। इस किताब में बिकने-बिकाने के सारे मिर्च-मसाले विद्यमान हैं।खैर
गुजारिश और उम्मीद है कि जनाब कुरैशी साब की पुस्तक पर परशुराम बनने की बजाए
मर्यादापुरुषोत्तम प्रभू श्रीराम की तरह प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी,मर्यादा का
पूरा ख्याल रखा जाएगा।क्योंकि ये कुरैशी साब का मत हो सकता है,जरुरी नहीं है कि
उसे आप अमल में ही लाए।
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