संदीप कुमार मिश्र: अटकलों का बाजार गर्म
है,कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या 2012 में गुजरात,2014 में लोकसभा और 2015 में
बिहार की सियासत में अपनी कुटनीति की धमक दिखाने के बाद क्या प्रशांत किशोर का
जलवा देश के सबसे बड़े उत्तर प्रदेश में भी दिखेगा। क्या एक बार फिर प्रशांत किशोर
यूपी के विधान सभा चुनाव में मोदी सरकार और बीजेपी के चाणक्य अमित शाह के लिए
सिरदर्द बनेंगे।हैरत की बात नहीं कि प्रशांत किशोर ने जिस प्रकार नीतीश कुमार का
चुनाव प्रबंधन की बागडोर संभाली थी...ठीक उसी प्रकार यूपी में भी बड़ी भूमिका अदा
करें।
दोस्तों उड़ती उड़ती जो सुगबुगाहट सुनने में आ रही है कि यूपी में कांग्रेस की
डुबी हुई नैया को पार लगाने के लिए प्रशांत किशोर उनके चुनाव प्रबंधन की कमान संभाल सकते हैं। इस सिलसिले में कहा जा रहा है
कि प्रशांत किशोर से कांग्रेस कुछ बड़े नेताओं ने संपर्क भी साधा है।अगर ऐसा होता
है तो कहना गलत नहीं होगा कि जिस प्रकार की टीआरपी प्रशांत किशोर नें देश और फिर
बिहार में बटोरी है उससे कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के
लिए कुछ मुश्किल जरुर खड़ी हो जाएगी।
कयासों के बाजार में अटकलें इस बात की
भी है कि यूपी चुनाव से पहले प.बंगाल में चुनाव होने है जिसके लिए ममता दीदी यानि
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने भी प्रशांत से संपर्क साधा है।इतना ही नही तमिलनाडु
की एआईएडीएमके भी प्रशांत किशोर के संपर्क में है और कांग्रेस यूपी के साथ ही आसाम
चुनाव के लिए भी प्रशांत के संपर्क में है।
यानि की सभी बातों का लुब्बेलुबाव ये है
कि देश की राजनीति में प्रशांत एक सेलिब्रिटी हो गए हैं।जिनका संपर्क जिस पार्टी
से होता है उसकी जीत निश्चित हो जाती है ! कहना ये भी गलत नहीं होगा कि राजनीतिक पार्टियों को अपने काम पर भरोसा नहीं
रहा,वो मानकर बैठी हैं कि वो जनता के साथ न्याय नहीं करती है,पांच साल सिर्फ सत्ता
सुख प्राप्त करने के लिए राजनीति करती हैं और चुनाव आते ही किसी बड़ी एजेंसी को
हायर करके चुनाव जीत लेंगे।
सवाल उठता है कि आखिर ऐसी नौबत क्यूं,
नेता जी ने काम किया है तो जनता उनको वोट देगी और नहीं किया है तो नहीं।खैर
प्रशांत किशोर की दुकान तो अब निकल पड़ी है,देखना होगा कि अगर प्रशांत कांग्रेस का
यूपी में हाथ थामते हैं तो क्या राहुल बाबा की भी निकल पड़ती है...ऐसा इसलिए कि
यूपी की सियासत में कांग्रेस फिलहाल तो कमजोर कड़ी के ही रुप में नजर आ रही
है,यूपी में असल परीक्षा कांग्रेस की नहीं प्रशांत की ही होगी,क्योकि अगर प्शांत
कांग्रेस के खेवनहार बनते हैं तो उनकी रणनीति का लोहा राजनीतिक पंड़ित और विश्लेशक
भी मान लेंगे नही तो ये कहते भी देर नहीं लगेगी कि केंद्र और बिहार की जीत में
मोदी और नीतीश का विकास ही काम आ था,और ये कहने की बात है कि प्रशांत की रणनीति की
वजह से जीत हुई थी।
अंतत: दोस्तों प्रशांत किशोर भी ये भलीभांति जानते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में रास्ता यूपी से ही होकर निकलेगा और 2017 में यूपी के विधानसभा चुनाव के बाद स्थिति बहुत हद तक साफ हो जाएगी।दोस्तों आप भी देखिए
हम भी देखते हैं कि सियासत कौन-कौन से रंग बदलती है...लेकिन दिलचस्प होगा भाईयों
यूपी चुनाव.....क्योंकि प्रशांत किशोर का ट्विस्ट है ना...सही पकड़े हैं... ।
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