संदीप कुमार
मिश्र: दोस्तों आज आपको लेकर चलते हैं एक ऐसे रमणीक,मनोहारी
जगह,जहां ईश्वर भक्ति का आपको मिलेगा ऐसा प्रमाण जहां भक्त ही नहीं प्रकृति भी
नित्य,हरपल करती है आदिदेव महादेव का जलाभिषेक। देवभूमि उत्तराखण्ड।जहां है हिमालय और यहीं देवाधिदेव भगवान महादेव का है निवास स्थान।शायद इसीलिए देवताओं को ही नहीं भक्तों को भी देवभूमि हमेशा ही पसंद ती रही है।गंगा, यमुना
और सरस्वती जैसी नदियों का उद्गमस्थल होने के साथ-साथ भगवान नारायण और कैलाशपति
भगवान शिव सहित अनेक देवी-देवताओं का
निवास स्थान होने से इस भूमि को पावन
देवभूमि के रूप में पुकारा गया है।
उत्तराखण्ड की
राजधानी देहरादून।जहां की खूबसूरत वादियों में स्थित है एक धार्मिक
स्थल। जो भगवान शिव के प्रमुख धाम टपकेश्वर के नाम से
जाना जाता है।यह
मंदिर देहरादून के गढ़ी कैंट क्षेत्र में नदी के किनारे स्थापित है।मंदिर में स्थित गुफा में भगवान शिव के शिवलिंग
रूप के दर्शन किए जाते हैं।जहां
यह शिवलिंग स्थापित है उस स्थान पर एक चट्टान से जल कि बूंदे हमेशा ही शिवलिंग पर
टपकती रहती हैं।इस अद्भुत
चमत्कार के कारण ही इसे टपकेश्वर कहा जाता है।
मित्रों टपकेश्वर महादेव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है।जो पौराणिक तीर्थस्थल है।यहां पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग टपकेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हैं।सभी शिव भक्तों के लिए यह एक महत्वपूर्ण स्थान है।मंदिर में अनेक उत्सवों का आयोजन किया जाता है।जिसमें दूर-दूर से भक्त लोग शामिल होने के लिए
आते हैं।मंदिर में प्रत्येक माह की त्रयोदशी के समय
टपकेश्वर महादेव का विशेष रूद्राक्षमय श्रृंगार दर्शन किया जाता है।।
देहरादून की खूबसूरत वादियों में स्थित प्रसिद्ध
टपकेश्वर महादेव मंदिर का श्रद्धालुओं में विशेष महत्व है।
देहरादून के गढ़ी कैंट क्षेत्र में नदी के किनारे
बने इस मंदिर में भगवान शिव के शिवलिंग और उस पर चमत्कारिक रूप से टपकती पानी की
बूंदों के दर्शन होते हैं।इस
मंदिर में जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना है। दरअसल उसके ठीक ऊपर की चट्टान से हमेशा ही पानी की
बूंदें शिवलिंग पर टपकती रहती हैं।इस अद्भुत चमत्कार के कारण ही शिव जी के इस मंदिर को टपकेश्वर महादेव
मंदिर कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह स्थान गुरु
द्रोणाचार्य की साधना स्थली भी रहा है।उन्हीं के द्वारा यहां शिवलिंग की स्थापना किये जाने की लोक कथाएं
प्रचलित हैं।मंदिर
के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि भारत भ्रमण के दौरान गुरु द्रोणाचार्य इस
स्थान पर आये।यहां
उनकी भेंट एक महर्षि से हुई।द्रोणाचार्य
जी ने महर्षि से भगवान शिव के दर्शन करने की इच्छा जाहीर की।इस अभिलाषा को पूरी करने के लिए महर्षि ने उन्हें
ऋषिकेश की ओर प्रस्थान करने का परामर्श दिया और कहा कि ऋषिकेश यात्र के दौरान ही
नदी के किनारे एक दिव्य स्थान पर वो शिवलिंग के दर्शन कर पायेंगे।
द्रोणाचार्य महर्षि के कहने के अनुसार ऋषिकेश जा
पहुंचे
और भगवान
महादेव की तपस्या में लीन हो गये। द्रोणाचार्य की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिये और
वर मांगने को कहा।द्रोणाचार्य
जी ने शिव जी से धनुर्विद्या का ज्ञान पाना चाहा।भगवान शिव ने उन्हें धनुर्धर का ज्ञान दिया और द्रोणाचार्य की पत्नी कृपी को पुत्र प्राप्ति
का आशीर्वाद भी दिया।भगवान
की कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।बालक का नाम अश्वस्थामा रखा गया।लेकिन मां कृपी पुत्र को दूध पिलाने में असमर्थ थीं।इस कारण बालक के लिए दूध का प्रबंध करने के लिए
गुरु द्रोण गाय लेने राजा द्रुपद के पास गये।लेकिन राजा ने उन्हें गाय देने से मना
कर दिया।इस पर गुरु द्रोण निराशा भरे मन से पुत्र
अश्वस्थामा को समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि समस्त गाय भगवान शिव के पास हैं।इसलिए उनकी कृपा से ही तुम्हें दूध की प्राप्ति
हो पायेगी।तब
बालक ने मन में शिव की आराधना करने का दृढ़ निश्चय किया। भगवान भोलेनाथ बालक की अराधना से प्रसन्न हुए और जब शिव के सामने बालक रोने लगा और उसके आंसुओं की
कुछ बूंदें अनजाने में ही शिवलिंग पर गिरीं।जिससे शिवलिंग का अभिषेक हो गया।इससे भगवान शिव द्रवित हो गये।कहा जाता है तभी से शिवलिंग के ऊपर की एक चट्टान से जलधारा
बहने लगी।
टपकेश्वर
महादेव के इस
प्राचीन मंदिर की सिढ़ीयों पर चढ़ते हुए श्रद्धालुओं का उद्देश्य सिर्फ भोले बाबा
के दर्शन करना है।प्राकृतिक
सुंदरता से भरपुर इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है।मंदिर का मुख्यद्वार बड़े ही सुंदर तरीके से बनाया गया है।सुनहरे रंग से लिखा हुआ टपकेश्वर महादेव का नाम दूर से ही नज़र आने लगता है।मंदिर में आने वाले भक्तों को भोलेनाथ के अनेंको
रूप के दर्शन होते हैं।यमकेश्वर
महादेव,ओंमकारेश्वर महादेव और भी ना जाने महादेव के कितने रूप के दर्शन भक्तों को
होते हैं।गुफा में चलते हुए भक्त टपकेश्वर महादेव के दर्शन
करते हैं,जो पिंड़ी रूप में यहां विराजमान हैं और साथ में ही एक विशाल त्रिशुल,डमरू
भगवान आशुतोष के होने की अनुभूती कराते हैं।बड़े श्रद्धा भाव से लोग यहां आकर बाबा को नारियल का प्रसाद चढ़ाते हैं
और हाथ जोड़कर बाबा से प्रार्थना करते हैं।महादेव के साथ-साथ मंदिर में और भी देवी देवताओं के मंदिर हैं।
इस
मंदिर की एक खास बात ये है कि यहां आने वाले भक्त गुफा में प्रवेश करते ही झुक
जाते हैं और सबसे खास बात ये कि गुफा की दिवारों से पानी की बुंदे गिरती रहती हैंय़ये पानी कहां से आता है,ये कोई नहीं जानता।आश्चर्य कर देनें वाला ये दृश्य हमारे मन में
आस्था और भक्ती को और मजबूत कर
देती है।पहाड़ों से गिरती हुई यही पानी की बुंदें महादेव
के पिंड़ी रूप पर गिरती है।
भगवान
भोलेनाथ की महिमा अद्भुत है।हमारी जितनी आस्था। भगवान के उतनें रूप और हर रूप निराला।तभी तो उत्तराखण्ड को देवभूमी कहते हैं, जहां
देवी-देवताओं का वास होता है।प्राकृतिक
रूप से सम्पन्न हिमालय की सुंदर घाटियों में बसे देहरादून में बाबा का ये मंदिर
यहां की सुंदरता को और बढ़ा देता है।
यहीं पर स्थित है संतोषी माता का मंदिर।जिसके पास ही एक जगह ऐसी
भी है जहां निरंतर बारीष होती रहती है,जो किसी आश्चर्य से कम नहीं है।ऐसा अद्भुत नजारा सिर्फ देवभूमी की
हरी भरी वादियों में ही देखनें को मिल सकता है।
संतोषी माता मंदिर की सिढ़ीयां चढ़ते
ही हमें कपिल मुनी महाराज की कुटीया नज़र आ जाती है और मंदिर के मुख्य द्वार पर एक
बड़ी विशाल प्रतिमा महावीर हनुमान की है।जो भगवान शिव के अवतार हैं।मारूती नंदन की मुर्ति देखते ही बनती
है।मंदिर में होनें वाली महादेव की भव्य आरती देखते ही बनती है।दोस्तों
मंदिर
में आने वाले भक्तों के लिए प्रसाद की दुकानें भी यहां पर हैं।जहां पूजा के लिए ज़रूरी सामान भक्तों को मिल
जाता है। इसके अलावा यहां की दुकानों पर धार्मिक पुस्तकें भी मौजुद
हैं।जिसका अध्ययन करके हम यहां के इतिहास से रूबरू हो सकते हैं।टपकेश्वर महादेव का ये मंदिर
सिद्धपीठ माना जाता है।लोकमान्यता है कि जो कोई श्रद्धालू सच्चे मन से इस स्थान पर विधिवत
पूजा कर भगवान शिव से प्रार्थना करता है।उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
साथियों
पर्यटन के साथ अगर दर्शन का सुनहरा अवसर भी मिल जाए तो क्या कहने।फिर देर किस बात
की।इस बार छुट्टीयां देहरादून में बीताकर कर देंगे।देवभूमि में देवाधिदेव के दर्शन
का मिलेगा सौभाग्य।होगी मनोकामना पूरी और प्रकृति से होगा आपका साक्षात्कार।।
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