संदीप कुमार मिश्र: मानो तो मैं गंगा मां हुं,ना मानो तो बहता पानी। दोस्तो बात तो फिल्मी है,लेकिन सच है।तभी तो मां गंगा के अब प्रदुषित हो चुके जल में भी करोड़ो लोग डुबकी लगाने को लालायित रहते हैं।और लगा
भी रहे हैं।हालांकि ऐसा नहीं की शासन और सरकार इस बात से वाकिब नहीं लेकिन सरकार का तो जब तक बात बिगड़ न जाये कुछ करने में यकीन नहीं होता।गंगा में आज भी तमाम नाले
गिर रहे हैं और सरकार के लाख दावों के बाद भी केवल इलाहाबाद में
गंगा में 57 छोटे बड़े नाले गिर रहे हैं।
गंगा के किनारे पर बसे दो बड़े शहर हैं बनारस और कानपुर। कानपुर से 43.5 करोड लीटर सीवेज हर
रोज निकलता है।वहां मौजूद प्लांट हर रोज केवल 16.2 करोड़ लीटर पानी ही
साफ कर पाता है। शहर का केवल 39% हिस्सा ही प्लांट से जुड़ा है। बाकी के घरों से निकलने वाला
प्रदूषित पानी नालियों द्वारा गंगा में छोड़ दिया जाता है।बनारस में मात्र 30 प्रतिशत घर ही सीवेज
लाइनों से जुड़े हुए हैं।बनारस से भी हर रोज तकरीबन 30 करोड़ लीटर सीवेज
निकलता है।बाकी यहां के प्लांट में भी केवल 10.2 करोड़ लीटर प्रदूषित पानी ही साफ करने की क्षमता है।और बाकी
पानी गंगा में छोड़ दिया जाता है और ये क्रम बस ऐसे ही चलता रहता है।इस परियोजना के
अंतर्गत जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने अब तक केवल वेस्ट ट्रीटमेंट
प्लांट को ही लगाया जो पिछले गंगा एक्शन प्लान में प्रस्तावित थे।इस दौरान इस कार्यक्रम
पर कई बैठकें की गईं लेकिन काम नहीं के बराबर किया गया।
ये आंकड़े जितना हैरान करते हैं,उससे कहीं ज्यादा तकलीफ देते हैं की मां गंगा अपने उन करोड़ों भक्तों की गन्दगी ढोने को मजबूर है,जो उसकी पूजा करते हैं और अब हालात ये है की उसकी सांसे उखड़ने लगी हैं।उसकी अविरलता और निर्मलता तो पहले ही दम तोड़ चुकी हैं।आखिर कब होगी गंगा स्वच्छ
और कब करेंगे श्रद्धालू स्वच्छ जल में स्नान कह पाना मुश्किल है।
पुण्य सलिला सुरसरी, पतितपावनी, जगतउद्धारिणी मां गंगा।जिसका हर भारतवासी से जन्म से लेकर मरण तक
का अटूट नाता है।जिसे श्रद्धा से गंगा
मैया कह कर हम बुलाते हैं और
जो ना जाने कितनी संस्कृतियों की साक्षी और इतिहास की गवाह है।जिसके तट पर संस्कृतियां जन्मी,जिसने सदियों से जमाने का हर दर्द सहा,
फिर भी लोगों में बांटती रही अमृत।वह गंगा जिसके बारे में कहा जाता है-गंगा ही हिंदुस्तान है,और
हिंदुस्तान ही है गंगा।सच
कहें तो इस देश की पहचान है गंगा।आज
उसी गंगा की पहचान खो रही है।सदियों
से भारतवर्ष की जीवनरेखा रही सुरसरी की अपनी सांसें फूल रही हैं।घुट रहा है उसका दम।
गंगोत्री से लेकर गंगासागर
तक गंगा में घोला जा रहा है जहर।और
वह अब प्रदूषण के पंक में डूब कर अपनी पहचान ही खोती जा रही है।साल दर साल सिकुड़ता जा रहा है उसका आंचल।
कानपुर में चमड़े का शोधन करने वाली टेनरियां हों,या गंगा किनारे बसे कुल 2073 कस्बे
और शहर।सभी के गंदे नालों का
पानी बिना शुद्ध किये सीधा गंगा में जाता है।शहरों-कस्बों
की इस गंदगी ने गंगा के 75 प्रतिशत
पानी को प्रदूषित कर दिया है।इसके
अलावा उसमें पड़ने वाले औद्योगिक कचड़े,इससे
अमृत जैसे पानी को
विष में बदल गहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार ऋषिकेश से लेकर गंगासागर तक का गंगा का पानी मनुष्य के पीने लायक
नहीं रहा।यहां तक कि मनुष्य इसमें
स्नान तक नहीं कर सकता।वैज्ञानिक मानते हैं कि
इसमें नहाने से कैंसर व अन्य बीमारियों के होने का खतरा है।वही गंगाजल जिसके बारे में यह प्रसिद्ध था कि इसे वर्षों रखे रहें तो भी इसमें कीड़े नहीं पड़ते।वो
आज विषैला हो गया है।औद्योगिक विकास की अंधी दौड़ का खामियाजा बाकायदे मां गंगा भोगने को विवश है।
नमामि गंगे परियोजना के लिए प्रधानमंत्री
की मंशा सराहनीयता साधुवाद की परिचायक है,लेकिन गंगा को अकाल मौत से बचाने के लिए कोई सार्थक प्रयास नितांत
आवश्यक है।क्योंकि इसके बिना गंगा नहीं बचेगी और अगर गंगा के अस्तित्व पर संकट आया तो
यह संकट देश पर भी होगा। दरअसल मोदी सरकार आने के बाद गंगा की साफ सफाई पर अब तक 1900 करोड रुपए खर्च किए
जा चुके हैं।लेकिन अफसोस इस बात पर है कि इतना पैसा बहाने के बावजूद भी ये परियोजनाएं
असफल हो जाती हैं।
मां गंगा की साफ सफाई और देखभाल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट
'नमामी गंगे परियोजना' को चलते हुए अब एक साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है,वहीं
इस परियोजना के लिए केन्द्र सरकार ने 2037 करोड़ रुपये का बजट भी आवंटित किया था।जिसमे गंगा के आसपास
के घाटों का निर्माण शामील था, और सौंदर्यीकरण के लिए अलग से 100 करोड़ का बजट निर्धारित
किया गया था।इस काम को अंजाम देने के लिए वाराणसी, पटना, केदारनाथ, इलाहाबाद,हरिद्वार, कानपुर
और दिल्ली में किया
जाना तय किया गया था। अगर पिछले तीन दशकों की बात करें तो गंगा की देखभाल और संरक्षण
के लिए जितनी धन राशी खर्च की गई उससे चार गुना ज्यादा नमामि गंगे के लिए राशी आवंटीत
की गई।काश ये परियोजना कागजों में जितनी आकर्षक दिखाई दे रही है अगर उसका सही तरीके
से पालन किया जाए तो मां गंगा की स्वच्छता बनायी जा सकती है,लेकिन अफसोस अब तक नमामि
गंगे कागज पर ही नजर आ रही है।
दरअसल ये परियोजनाएं लगता है कि इसलिए असफल हुईं क्योंकि अमल करने की ठोस नीति
नहीं थी।आम जनमानस को भी आगे आना होगा।जब
तक गंगा को प्रदुषित करने वाले लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी।तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है।संत समाज ने भी एक अरसे से गंगा विमुक्ति का अभियान छेड़ा हुआ है।गंगा को प्रदुषित करने वालों के खिलाफ कड़े
कानून की मांग कर रहा है।
आज ना जाने कितने सवाल
हैं जो आज देश की जनता के जेहन में हैं,वह
गंगा को तिल-तिल
कर मरता देख रही है,और सोच रही है कि आखिर
वे कौन से खलनायक हैं।जिन्होंने गंगा को इस
हाल तक पहुंचने दिया है।हम
आज गंगा के शुद्धीकरण की बात करते हैं।वही
गंगा जो औरों को तारती है।आज
खुद अशुद्ध है।गंगा नदी नहीं एक पावन सरिता है,वह जीवनधारा है,जीवन शैली है।
ऋषियों मुनियों ने इसमें जप तप कर मोक्ष पाया।सदियों से यह पतित पावनी और सुरसरि यानी
देव सरिता कहलाती रही है।इसे
वही सम्मान मिलना चाहिए।यह
मां है,और इसे बचाना हर देशवासी
का कर्तव्य है।अब तक जो भूल हुई है उसका
दुष्परिणाम हमारे सामने है।हम
पूण्य सलिला गंगा को कीचड़ और गलीज से सनी
नदी के रूप में बदलते देख रहे हैं,और
दुखी हो रहे हैं। यह सोच कर कि एक संस्कृति, एक जीवनधारा एक समृद्ध, पुनीत इतिहास हमारे सामने धीरे-धीरे विलुप्त होने की दिशा में बढ़ रहा है।भगीरथ कठिन तप कर गंगा को धरा पर लाये थे... ताकि उनके पूर्वज सगर पुत्र तर सकें।उनकी लायी सुरसरी उसके बाद से सदियों से
जगत को तार रही है।लेकिन हमने इसकी रक्षा
नहीं की और यह सूखी तो फिर कोई भगीरथ नहीं आयेगा।धरती पर गंगा को दोबारा लाने के लिए।
माफ किजिएगा दोस्तों लेकिन जीवनदायिनी
गंगा के प्रति हम भी कम उदासीन नहीं है।गंगा जो इस देश का आधार और इसकी संस्कृतियों
की संवाहक है।खैर इस अंधेरे में भी प्रकाश की किरणें नजर आ
रही हैं, जो सुखद संकेत है।देश के विभिन्न हिस्सों में गंगा के प्रदूषण
के प्रति जनमानस में चिंता जगाने, उन्हें
गंगा की रक्षा में प्रवृत्त करने की दृष्टि से कई प्रयास किये जा रहे हैं।जैसे गंगा आरती,जो हरिद्वार के परमार्थ आश्रम में वर्षों से होती आ रही है,बनारस में भी होती है, हावड़ा के रामकृष्णपुर घाट में भी हो रही है। जिसका उद्देश्य गंगा के प्रदूषण के बारे में जन जागरण फैलाना है।कम से कम ऐसे प्रयास से गंगा की दुर्दशा
के बारे में देश में चिंता जगाने का काम तो किया ही जा सकता है,जो संभव है।
देश के हर नागरिक को गंगासेवक
बनना होगा।और गंगा को नुकसान न पहुंचे, इसके लिए चौकस रहना होगा।ऐसा
न हुआ तो गंगा का अस्तित्व मिट जायेगा,
फिर न पूजा के लिए इसका शुद्ध जल उपलब्ध
होगा और न इसके तट पर किसी
पावन पर्व में स्नान किया जा सकेगा।शायद
वह दिन कोई सच्चा हिंदुस्तानी नहीं देखना चाहेगा।मां गंगा भारत भूमि पर अपने स्वच्छ अमृतमय जल के साथ अनवरत काल
तक अबाध प्रवाहमान रहें।हमें यही कामना
और प्रार्थना करनी चाहिए और सरकार को सकारात्मक और ठोस प्रयास।नमामि गंगे।
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