संदीप कुमार मिश्र : सनातन धर्म,सभ्यता
संस्कृति,तीज त्योहार हमारी भारतीय संस्कृति को और भी विशाल बना देते हैं।दोस्तों कार्तिक
का पावन महीना हमारे हिंदू पंचांगानुसार साल का आठवां मास कहा जाता है और कार्तिक
मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। धर्म शास्त्रों और पुराणों
में कार्तिक पुर्णिमा के दिन स्नान,व्रत और तप का विशेष महत्व बताया गया है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा-स्नान,दीपदान,किया जाता है। कहा गया है कि इस पुण्यदायक
दिन क्षीरसागर दान का अनंत महत्व है।तात्पर्य है कि 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़ा जाए। कार्तिक
पूर्णिमा का उत्सव दीपावली की भांति ही दीप जलाकर सायंकाल में विधि विधान से मनाया
जाता है। कहते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन कृतिका में भगवान आशुतोष के दर्शन
करने से भक्त सात जन्मो तक ज्ञानी और धनवान बने रहता है।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार
मास के लिए योगनिद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को उठते हैं और पूर्णिमा
से कार्यरत हो जाते हैं। इसीलिए दीपावली को लक्ष्मीजी की पूजा बिना विष्णु, श्रीगणेश के साथ की जाती है। लक्ष्मी की अंशरूपा तुलसी का विवाह विष्णु स्वरूप
शालिग्राम से होता है। इसी खुशी में देवता स्वर्गलोक में दिवाली मनाते हैं इसीलिए
इसे देव दिवाली कहा जाता है।
सफलता प्राप्त करने का विशेष मंत्र
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदम...पूर्णात, पूर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय.....पूर्णमेवावशिष्यते
विधि-विधान
अक्षत, गंध,कलावा, तुलसी, पुष्प, नारियल, पान, सुपारी, आंवला, पीपल के पत्तों से गंगाजल से रूजन करें। पूजा गृह, नदियों, सरोवरों, मन्दिरों में दीपदान करें। घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में मिट्टी का दीपक
अवश्य जलाएं। इससे हमेशा संतति सही रास्ते पर चलेगी। धन की कभी भी कमी नहीं होगी।
सुख, समृद्धि में बढ़ोतरी होगी।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत विधान
कार्तिक पूर्णिमा तिथि को हमारे सनातन
हिन्दू धर्म में शुभ और फलदायी कहा जाता है। वैशाख, माघ और कार्तिक माह की
पूर्णिमा स्नान-दान के लिए भविष्यपुराण में अति श्रेष्ठ बताई गई है।आज के दिन साधक
को बड़े ही श्रद्धा भाव से पवित्र गंगा नदी में स्नान करना चाहिए और सृष्टी के
पालनहार भगवान विष्णु की भक्ति भाव से पूजा व आरती करनी चाहिए।आज के पावन दिन में
साधक को मात्र एक समय भोजन करना चाहिए। ऐसा कहा गया है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन
ब्राह्मणों को दान तो देना ही चाहिए साथ ही बहन, भांजे, बुआ आदि को भी दान देने से अतिपुण्य फल प्राप्त होता है।भक्ति भाव से साधक को
संध्याकाल में मंत्रोच्चार से चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए:
वसंतबान्धव विभो शीतांशो स्वस्ति न: कुरु।
कहते हैं कि सृष्टि के प्रारंभ से ही
कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू धर्मो में विशेष महत्व बताया गया है।ऐसा नही है कि वैष्णव
भक्तों के लिए इस दिन का महत्व है बल्कि शैव भक्तों के लिए आज के दिन का विशेष
महत्व है।हमारे पुराणों में कहा गया है कि भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक
महाबलशाली असुर का वध कार्तिक पुर्णिमा के ही दिन किया था।कहते हैं कि तभी से
भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक
है। भगवान विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का
पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली रूप
में थे।भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। जिससे कि सृष्टि का
निर्माण कार्य आसान हो सके।
पवित्र कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्री
सत्यनारायण व्रत की कथा सुनी और सुनायी जाती है।साथ ही संध्या में देवालय, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी जी के पौधों के पास दीपक जलाना अतिशुभ है। कार्तिक
पूर्णिमा से आरम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत और जागरण करने से सकल मनोरथ
सिद्ध होते हैं। ऐसा हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है।
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