Tuesday, 24 November 2015

इमरान देश को तुम पर गर्व है

कुछ ऐसा करके दिखा कि,लोग तुझे याद रखें,
कल खेल में हम हों ना हों,गर्दिश में तारे रहेंगे सदा।


संदीप कुमार मिश्र: ये चंद पंक्तियां जीवन की उस कड़वी सच्चाई को उजागर करती हैं,जिससे हमें जीवन के संघर्ष पथ पर निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।ये चंद लाइने अलवर के इमरान पर खुब जंचती है।भई डंचे भी क्यों ना,अरे कहीं आप भूल तो नहीं गए इमरान को।भई ये वही इमरान भाई हैं जिनकी नाम देस के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विदेसी सरजमी पर हजारों की तादाद में बड़े गर्व से जो लिया था।मोदी जी को इमरान का नाम लेने में फक्र महसुस हो रहा था और होना भी चाहिए था,क्योंकि इमरान है ही इतने कमाल के।

चलिए जानने की कोसिस करते है इमरान की दिलचस्प कहानी कि आकिर इमरान रातों रात देस के रियल सुपर स्टार कैसे हो गए।दरअसल राजस्थान का एक छोटा-सा जिला है अलवर। और अलवर के ही खारडा गांव में इमरान का जन्म हुआ था।जिनके परिवार में उनके अलावा चार भाई और तीन बहने हैं।इमरान के पिता सुलेमान जी विशुद्ध रुप  किसान थे। आपको जानकर जरा भी हैरानी नहीं होगी कि इमरान के करीबी सभी दोस्त फौज में हैं।

मेरा मानना ही आप संकल्प ले लें और उसे करने की ठान लें तो मंजील नजर आने लगती है। कुछ ऐसा ही हुआ इमरान के पिता सुलेमान के साथ,जिन्होनें अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इमरान की प्रारंभिक शिक्षा तो गांव के ही प्राइमरी स्कूल में हुई।लेकिन उनके गांव खारडा में पांचवीं कक्षा के बाद स्कूल नहीं था।जिसकी वजह से पृथ्वीपुरा गांव के स्कूल में इमरान ने दाखिला लिया और 10वीं तक की पढ़ाई की।

बड़ी दिलचस्प है दोस्तों इमरान की कहानी।इमरान के गांव में बिजली नहीं थी बावजूद इसके पढ़ाई में हमेशा वो पहले पायदान पर रहे,यही वजह थी कि दसवीं में 82 फीसदी और 12वीं में 79 फीसदी अंकों के साथ इमरान जिला टॉप कर गए। इमरान की इंजीनियर बनना चाहत एसी ती कि उनके शिक्षकों को भी हमेशा लगता था कि इमरान आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठे, तो बड़े ही आसानी से सफल हो जाएगा।लेकिन समय का पहिया घूमा और 12वीं पास करते ही इमरान का निकाह कर दिया गया । ये वो वक्त था जब इमरान मात्र 17 वर्ष के थे। खैर ऐसा कहा जाता कि समय,परिस्थिति और काल का दास होता है इन्सान।जैसा कि इमरान के साथ भी हुआ।सपने अधूरे रह गए इमरान के लेकिन हौंसलो की उडान अभा बाकी थी सो दो साल का टीचिंग कोर्स करने के बाद इमरान गणित के टीचर बन गये।जींदगी की गाड़ी चल रही थी लेकिन कुछ करने का जो ख्वाब इमरान ने बुन रखा था कहीं ना कहीं वो चैन से सोने नही दे रहा था।खैर इमरान का छोटा भाई जिसने साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी वो गुडगांव चला गया,जिसके बाद घर पर पड़े छोटे भाई के कंप्यूटर पर पर शौकिया तौर पर इमरान ने वीडियो गेम खेलना शुरु किया।सात ही गूगल अध्ययन के माध्यम से एक वेबसाईट जीकेटाक बनाई,जिसका इतना व्यापक प्रभाव छात्रों पर पड़ा कि 60-70 हजार हिट्स रोज मिलने लगे।इस दौरान एक बड़ी ही दिलचस्प घटना इमरान से घटी।दरअसल इमरान की वेबसाईट पर उनका फोन नंबर और पता भी दिया हुआ था सो एक दिन डीएम साहब का संदेश मिला, जिसमे दफ्तर में आकर मिलने की बात कही गई थी।इस बात से इमरान घबरा गए और सोचने लगे कि आखिर डीएम साब नें क्यों बुलाया है ?खैर डरे- सहमे इमरान डीएम के सामने पहुंचे जहां डीएम के कंप्यूटर पर उनकी वेबसाइट खुली हुई थी।डीएम साब ने कहा कि कैसे मान लूं कि यह वेबसाइट तुमने बनाई है?जिसके बाद इमरान ने एडमिन राइट दिखाए,जिसके बाद डीएम को यकीन हुआ।

इमरान को डीएम साहब ने ही सलाह दी कि वो छात्रों के लिए ऐप बनाएं,लेकिन समस्या थी कि इमरान पहले कोई ऐप नहीं बनाये थे। लेकिन घर आकर गूगल पर ऐप के बारे में जानकारी इकट्ठी की और छोटे भाई की इंजीनियरिंग की किताबों की मदद ली और बना डाले कई ऐप। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इमरान ने कभी भी कंप्यूटर ट्रेनिंग नहीं ली।बावजूद इसके इमरान अब तक 52 ऐप बना चुके हैं।इमरान की निष्ठा और समर्पण के क्या कहने कि उन्होने सारे ऐप छात्रों को समर्पित कर दिए।यही वजह थी कि अलवर के जिला प्रशासन ने उन्हें शिक्षा से संबंधित एकता प्रोजेक्ट से जोड़ा दिया।

समय का चक्र घूमा और इमरान की ख्याति एक गांव,शहर,नगर होते हुए राजधानी दिल्ली में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय तक पहुंची और उन्हें दिल्ली बुलाया गया।जब बड़े बड़े आला अधिकारियों ने उनके बनाए ऐप देखे, तो उनके होश उड़ गए कि एक साधारण टीचर, जिसका आईटी क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं, ऐसे ऐप भी बना सकता है। लेकिन इमरान की महानता देखिए कि इमरान ने कभी इन ऐप्स से कमाई करने के बारे में सोचा तक नहीं। उनका मानना है कि- हर काम पैसे के लिए नहीं किया जाता। स्कूल से जितनी तनख्वाह मिलती है, उससे परिवार का पालन-पोषण आसानी से हो जाता है। मेरे लिए बड़ी बात यह है कि मेरे ऐप से छात्रों को फायदा हो रहा है।

अंतत:इमरान कहते हैं कि मैं गांव में पला-बढ़ा हूं, इसलिए अच्छी तरह से जानता हूं कि गांव और कस्बों में रहने वाले बच्चे ऐप खरीदकर पढ़ाई नहीं कर सकते, इसीलिए मैंने फ्री में ऐप जारी किए। यह किसी पर एहसान नहीं है। वहीं इमरान ने प्राइमरी, प्रतियोगी परीक्षाओं और एनसीईआरटी के लिए ऐप बनाए हैं। उनके ऐप को 30 लाख से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है। फिलहाल वह बालगुरु सॉफ्टवेयर पर काम कर रहे हैं। इस ऐप की मदद से टीचर को यह पता चल सकेगा कि उनका छात्र किस विषय में कमजोर है और किस विषय में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।धन्य हैं वो मां जिसने इमरान जैसी प्रतिभा को जन्म दिया।जिनके ज्ञान और खोज से देश का यूवा लाभान्वित हो रहा है।धन्य है भारत भूमि जहां इमरान जैसे गुदड़ी के लाख रहते हैं जिन्हे सिर्फ एक अवसर की तलाश है।



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