संदीप कुमार मिश्र : जब जब इस पावन धरा पर धर्म का नाश
होता है,मानवता का ह्रास होता है.तब तब आदिकाल से महान गुरु संतो का अवतरण इस पावन
धरा धाम पर होता रहा है। कहते हैं गुरू का हमारे जीवन में वही स्थान होता है जो
ईस्वर का होता है।वेद ग्रंथ भी गुरु की महिमा का बखान करते नहीं थकते हैं।गुरु ही
हैं जिनकी महिमा हर धर्म, संप्रदाय में गाई गई है।गुरु गीता में भी कहा गया है कि-
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
न गुरोरधिकं ज्ञानं तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥गुरु गीता ७७॥
कार्तिक पूर्णिमा का हमारे हिन्दू धर्म
में विशेष महत्व है,इस दिन को दिपोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है।क्योंकि आज के
ही पावन दिन गुरु नानक देव जी का अवतार इस धराधाम पर हुआ था।भारतवर्ष में जिस समय
गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय विदेशी आक्रमणकारी हमारे देश में लूट खसोट
मचा रखे थे।जिन मर्दन गुरु नानक देव जी ने किया। भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि इस
संसार के प्राणियों की त्राहि-त्राहि को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस धरती पर
गुरु नानक को पहुंचाया, 'सुनी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग महि पठाइया।' उनके इस धरती पर आने पर 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधू जगि
चानणु होआ' सत्य है, नानक का जन्मस्थल अलौकिक ज्योति से भर उठा था। उनके मस्तक के पास तेज आभा फैली
हुई थी।
गुरु नानक देवजी सिख धर्म के संस्थापक
ही नहीं,वरन समस्त मानव धर्म के संरक्षक भी थे। वे केवल किसी धर्म विशेष के ही अगुआ गुरु नहीं,बल्कि
संपूर्ण भारतवर्ष और सृष्टी के रक्षक थे।
'नानक शाह फकीर। हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर।
गुरु नानक देव जी का जन्म पूर्व भारत की
पावन धरती पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 को लाहौर से करीब 40 मील दूर स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कल्याणराय
मेहता और माता का नाम तृपताजी था।कहते हैं कि बचपन से ही गुरु नानक देव जी का मन
आध्यात्मिक ज्ञान एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता था। बैठे-बैठे ही देव जी ध्यान
मग्न हो जाया करते थे और कभी कक्षी तो ध्यान अवस्था में गुरु नानक देव जी समाधिलीन
हो जाते थे। भारत की पावन धरा संत-महात्मा की धरा है।गुरु नानक देव जी ऐसे ही एक
अलौकिक अवतार हैं,जिन्होने मानव के उत्थान के लिए अवतार लिया था।
भारतीय जनमानस और मानवता के उत्थान के
लिए ही गुरू नानक देव जी ने समय समय पर क्रान्तिकारीरुप भी धरा,और समाज सुधार और
राष्ट्रवादी गुरू की भुमिका निभायी। गुरू नानक देव जी के व्यक्तित्व का एक खास गुण
जो ता वो था समाज सुधार का। वे दार्शनिक थे तो योगी भी थे, गृहस्थ थे तो
सर्व धर्म के रक्षक भी थे।देशभक्ति और विश्वबंधु
की भावना रु नानक देव जी का विशेष गुण रही। हर प्रकार की रुढ़ीवादी परम्पराओं को
दूर करने के लिए गुरु नानक देव जी ने अतक प्रयास किया और मानव जाति को लकीर का
फकीर बनने से रोका,जिससे की समाज और मानक जाति का उत्तान हो सके। गुरु नानक देव जी
ने समाज से उंच नीच का भेद खत्म किया और जनमानस को बताया कि जब हम सब एक ही ईश्वर
की संतान हैं तो भेद कैसा...।
गुरुनानक देव जी की महानता का आभास का इससे ही लगा सकते हैं
कि समाज से उंच नीच,और भेदभाव को समाप्त करने के लिए लंगर की परम्परा प्रारंभ
की।जिससे की हर छोटा बड़ा,उंच नीत एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करे और भेदभाव को
खत्म करने में सहयोगी बने।
कहते हैं कि अपने जीवनकाल में विश्व भर
की यात्रा करने के बाद गुरू नानक देव जी अपने जीवन के अंतिम चरण में परिवार सहित
करतारपुर में बस गए और वहीं पर गुरू नानक देव जी ने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्यागा दिया।कहा जाता है कि जब नानक देव जी का निधन हुआ तब उनकी
अस्थियों की जगह मात्र फूल प्राप्त हुए थे और उन फूलों का आदर सत्कार से हिन्दू और
मुसलमान सभी अनुयायियों ने अपनी-अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार
किया था।
गुरुनानक देव जी के सिद्धांत सिख धर्म के अनुयायियों द्वारा आज भी प्रासंगिक
है :
* ईश्वर एक है।
* एक ही ईश्वर की उपासना करनी चाहिए।
* ईश्वर, हर जगह व हर प्राणी में मौजूद है।
* ईश्वर की शरण में आए भक्तों को किसी प्रकार का डर नहीं होता।
* निष्ठा भाव से मेहनत कर प्रभु की उपासना करें।
* किसी भी निर्दोष जीव या जन्तु को सताना नहीं चाहिए।
* हमेशा खुश रहना चाहिए।
* ईमानदारी व दृढ़ता से कमाई कर, आय का कुछ भाग जरूरतमंद को दान करना
चाहिए।
* सभी मनुष्य एक समान हैं, चाहे वे स्त्री हो या पुरुष।
* शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन आवश्यक है, लेकिन लोभी व लालची
आचरण से बचें है।
गुरु नानक जयंती के दिन सिख समुदाय बेहद
हर्षोल्लास और श्रद्धाभाव के साथ मनाता है।गुरु नानक देव जी की जयंती दिवाली जैसी समस्त
देश में मनाई जाती है। इस दिन देस ही विदेश में भी समस्त गुरुद्वारों में
शबद-कीर्तन किए जाते हैं। जगह-जगह लंगरों का आयोजन किया जाता है और गुरुवाणी का
पाठ किया जाता है।
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