Saturday, 14 November 2015

आतंक का कोई मजहब नहीं होता



आंखों से अब अश्कों का सैलाब नहीं चलेगा,
बहुत हो चुका नफरत का तेजाब नहीं चलेगा,
आतंकवाद नहीं चलेगा
संदीप कुमार मिश्र: पहले 9/11(अमेरिका)फिर 26/11(भारत)….और अब 13/11(फ्रांस)। सैकड़ों,हजारों की तादाद में लाशें ही लाशें...रक्तरंजित शरीर...फिजाओं में बारुद की गंध...भागते दौड़ते लोग...कानो में सुनाई देता करुण क्रंदन...बिलख-बिलख कर,रोने की आवाजें..ह्रदय को चीर देने वाला सन्नाटा...तड़..तड़..तड़..तड़... धांय..धांय..बम..आहहह..हे गाड...हे राम...या अल्लाह...वाहे गुरु...की जुबान से निकलती अंतिम आवाजें..मित्रों आतंकवाद हमें यही देता है,इससे कहीं ज्यादा घाव हमें देता है,जिसे भरने में सदियां गुजर जाती है,लोग नए पुराने हो जाते हैं,लेकिन नीं मिटती है जहन से तो वो है सिर्फ दर्दनाक यादें।क्या अमेरिका के लोग दशक बाद भी भूल पाए होंगे 9/11 का वो भयावह दृश्य,जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर धू-धू कर जल रहा था,टूट रही थी जब पेंटागन की दिवारें,जिसके मलबे को ही निकालने में सालों साल गए थे...या फिर भूल गए हम 26/11 के उस दर्द को जिसे पाकिस्तान से आए आतंकियों ने अमन चैन के इस मुल्क में दहशत फैला दी,कल्पना करने भर से मन कांप सा जाता है कि कैसे आतंकी मुम्बई के होटल ताज में अटैक करते हैं और पूरी मुंम्बई को कौन कहे दिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।लाशों के उस मंजर को कैसे भूल सकते हैं हम...इन दोनो घटनाओं की पुनरावृति एक बार फिर आतंकीयों और दहशतगर्दों ने फ्रांस के पेरिस में 13/11 के रुप में कर दी,जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई।

मतलब साफ है कि आतंकवाद का ना तो कोई मजहब होता,ना ही कोई इमान,ना ही कोई धर्म..अतंकवाद तो सिर्फ इंसानीयत का दुश्मन मात्र है..अच्छा आतंकवाद और बुरा आतंकवाद नहीं होता...आतंकवाद तो सिर्फ और सिर्फ बुरा ही होता है।हम सब जानते हैं आतंकवाद की शरणगाह कौन है,समूचा विश्व इस आतंकवाद से पीड़ित है,बावजूद इसके हम गुड टेररिज़म और बेड टेररिज़म की बात करते हैं,जो सर्वथा अनुचित है।मुझे कहने में जरा ङी संकोच और डर नहीं है कि इन आतंकवादीयों को धरती से सदैव के लिए नष्ट करने का समय आ गया है।नही तो हमारी सियासतें गुड और बेड के चक्कर में ही पड़ी रहेंगी और मानवता यूं ही धमाकों में नष्ट होती रहेगी।जब आतंकी सिर्फ गोली की भाषा समझते हों तो भला उन्हे गीता,बाईबिल और कुरान का पाठ पढ़ाने की क्या आवश्यकता।जिस भाफा में बात करते हैं उन्हे उसी भाषा में जवाब दिया जाए,शायद तभी मानवता के साथ न्याय किया जा सकेगा।वरना कौन जाने कब किस देश का नंबर आ जाए।।

जरा कल्पना किजिए कि विश्व का क्या ई ऐसा देश है जो आतंकवाद से पीड़ित नहीं है...आप कहेंगे शायद नहीं..इस आतंक ने विश्व के हर हिस्से में दहशतगर्दी का माहौल बना रखा है,जिसको जड़ से खत्म करने की जरुरत अब आ गयी है।रोज रोज के झगड़े टंटे से अच्छा है कि एक ही दिन,महिने में इन आतंकियों को चिन्हीत करके इनको नष्ट कर दिया जाए,अन्यथा हर दो,चार महीने या साल में एक ना एक बार मानवता के जख्म को हरा करने और अपनी ताकत के सात ही अपनी नापाक हसरतो का मंजर ये आतंकी दिखाते रहेंगे।और हम-बहुत बुरा हुआ,हम पूरजोर विरोध करते हैं कहेंगे या फिर मौन रहकर कैंडल मार्च कर लेंगे। लेकिन... लेकिन मानवता के रक्षकों,महाशक्तियों,और सियासय के सर्वोच्च शिखर पर बैठे विश्व के समस्त महाशासकों ये मत भूलें आप की तार-तार मानवता होती है,शर्मसार इंसानियत होती है,जिसे बचान,दुरुस्त करना,चैन और खुशहाली कायम करना आपकी जिम्मेदारी और नैतिक कर्तव्य दोनो है।

सवाल तो उठेंगे ही,कि क्या चंद आतंकियों की वजह से समूची मानवता को बारुद के ढ़ेर पर बैठने के लिए हम छोड़ सकते हैं क्या..?आज विश्व का हर देश परमाणु शक्ति संपन्न बनना चाहता है,हर प्रकार के आधुनिक हथियारों,मिसाइलों से लैश होना चाहता है,कुछ ऐसे भी देश हैं जो परमाणु संपन्न भी हैं और आतंकवाद के जन्मदाता भी।ऐसे में आप सोच सकते हैं कि अगर मानव जाति के सबसे बड़े दुश्मनो के हाथ ये हथियार लग जाएं तो क्या संभव नहीं कि इन आतंकियों के द्वारा एक बार फिर हिरोशिमा और नागासाकी दोहराया जाय,अगर ऐसा है तो क्यों नहीं पहले ही ही हम खबरदार हो जाएं,समझदार हो जाएं,सावधान हो जाएं..।

अंतत: यही कहुंगा चाहे अमेरिका का 9/11 हो या फिर भारत का 26/11 और फ्रांस का 13/11 इन तीनो ही घटनाओं में शहीद होने वालों का रक्त लाल ही था,कोई किसी का बेटा-बेटी था तो कोई किसी का भाई-बहन और कोई किसी का पती या पत्नी,मां या फिर पिता।संबंध और रिश्ते एक जैसे,गम और आंसू भी एक जैसे,दर्द और खामोशी भी एक जैसी,रक्त भी एक जैसा....फिर क्यूं नजरिया एक जैसे नहीं होता...क्या सरहदें,सिमाएं हमारी सोच और प्रेम की अभिव्यक्ति को अलग-अलग तरह से पारिभाषित करती हैं।अगर नहीं करती हैं तो आतंकवाद के प्रति नजरिया क्यों नहीं बदलता,और अगर बदलता है तो फिर आतंकवादी क्यों मानवता को कलंकित और शर्मसार कर रहे हैं।मिल कर सोचना होगा,समाधान करना होगा, रास्ता निकालना होगा।  

प्यार चलेगा साथ हमारे मोहब्बत की सौगात चलेगी,
सुनलो अब ऐ अमन के दुश्मन आतंकवाद नहीं चलेगा,नहीं चलेगा
आतंकवाद नहीं चलेगा




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