Tuesday 13 October 2015

नवरात्र का दूसरा दिन: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा


संदीप कुमार मिश्र: नवरात्र में दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है।मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है, जिसके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल विराजमान है। यह अक्षय माला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ सम्पन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं।
माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं. इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया. जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी ।इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है, उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है।  जो व्यक्ति भक्ति भाव से दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है।
मां ब्रह्मचारिणी का रूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अति सौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं। नवरात्र के दूसरे दिन सांयकाल के समय देवी के मण्डपों में ब्रह्मचारिणी दुर्गा का स्वरूप बनाकर उसे सफेद वस्त्र पहनाकर हाथ में कमंडल और चंदन माला देने के उपरांत फल, फूल एवं धूप दीप, नैवेद्य अर्पित करके आरती करने की परंपरा है।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करते समय उनका ध्यान इस मंत्र से करें-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
इसके बाद माता ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए स्तोत्र का पाठ और कवच का पाठ भी अवश्य करें...यह पाठ अतिशीध्र फलदायी है-
माता ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ :
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
माता ब्रह्मचारिणी की कवच :
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।


इसके अलावा नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं....जो अत्यन्त हितकारी है।।जय माता दी।।

No comments:

Post a Comment