संदीप कुमार
मिश्र: आज है मां कूष्मांडा का दिन।मां दुर्गा के चौथे स्वरूप
का नाम कूष्मांडा है,कहते हैं जो भक्त श्रद्धा पूर्वक इस देवी की उपासना दुर्गा पूजा
के चौथे दिन करता है, उसके सभी प्रकार के कष्ट,रोग,शोक का अंत हो जाता है और साधक
को आयु एवं यश की प्राप्ति होती है।
सूरा
सम्पूर्ण कलशं रुधिरा प्लुतमेव च ।
दधानां
हस्त पदमयां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ।।
नवरात्र के
चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है। धर्म ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि देवी
ने अपने मंद हास्य द्वारा ब्रह्माण्ड की उत्पति की थी और यही कारण है कि इनका नाम कूष्मांडा
पड़ा। अष्ट भुजाओं वाली मां कूष्मांडा का निवास सुर्य के भितरी लोक में रहता है।इसलिए
दसों दिशाएं इन्हीं की तेज़ से प्रकाशित है। नवरात्र पूजन के चौथे दिन सिंह पर सवार
देवी कूष्मांडा के स्वरूप की ही उपासना और साधना की जाती है।इस दिन साधक का मन अनाहक चक्र में होता है। भक्तों को
नवरात्र के चौथे दिन पवित्र एवं उज्जवल मन से देवी के स्वरूप का ध्यान करना चाहिए
और पूजा उपासना करनी चाहिए। क्योंकि माँ कूष्मांडा बड़ी ही सरलता से अपने भक्तों
की भक्ति से प्रसन्न होती हैं।कहा जाता है कि मां की उपासना भवसागर से पार उतारने के
लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयष्कर मार्ग है।जैसा की दुर्गा सप्तशती के कवच में लिखा गया
है-
कुत्सित: कूष्मा
कूष्मा-त्रिविधतापयुत:
संसार: ।
स अण्डे
मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या:
सा कूष्मांडा ।।
इसका अर्थ है कि “वह देवी
जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित
है वह कूष्माण्डा हैं।देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं।जब सृष्टि
की रचना नहीं हुई थी।उस समय अंधकार का साम्राज्य था।“
देवी कूष्मांडा अष्टभुजा
से युक्त हैं इसीलिए
इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से
भी जाना जाता है।देवी अपने हाथों में क्रमश:
कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का
फूल, अमृत
से भरा कलश, चक्र और गदा धारण करती हैं।वहीं देवी के आठवें हाथ
में कमल फूल के बीज
की माला है।यह माला भक्तों को
सभी प्रकार की ऋद्धि सिद्धि देने वाली है।देवी अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार हैं।जिस प्रकार ब्रह्मांड के गहन अंधकार के गर्भ से सृष्टि का सृजन नव ग्रहों के रूप में हुआ वैसे ही मनुष्य के जीवन का सृजन भी माता के गर्भ में नौ महीने के अंतराल में होता है।मानव योनि के लिए गर्भ के ये नौ महीने नवरात्र
के समान होते हैं।जिसमें आत्मा मानव शरीर धारण करती है। वास्तव में नवरात्र का अर्थ शिव और शक्ति के उस नौ दुर्गा के स्वरूप से भी है जिन्होंने आदिकाल से ही इस संसार को जीवन प्रदायिनी ऊर्जा प्रदान की है और प्रकृति
और सृष्टि के निर्माण में स्त्री शक्ति की
प्रधानता को सिद्ध किया है।
मां दुर्गा स्वयं सिंहवाहिनी होकर अपने शरीर में नवदुर्गाओं के अलग-अलग स्वरूप को समाहित किए हुए हैं। मां भगवती के इन नौ स्वरूपों की चर्चा महर्षि मार्कंडेय जी को ब्रह्मा जी द्वारा जिस क्रम में बताया गया था उसी क्रम
के अनुसार नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है।
श्रीमद् देवी भागवतमहापुराण मे भगवती के
पृथ्वी पर आगमन और विस्तार का वर्णन है।कहा जाता हैं की काशी के राजा ने अपनी कन्या
का विवाह सुदर्शन नामक साधारण युवक से करा दिया था। जिससे रूष्ट होकर सभी राजाओं ने
युद्ध के लिए सुदर्शन को ललकारा जिसके बाद सुदर्शन ने भगवती की प्रार्थना और तपस्या
की। तब प्रसन्न होकर भगवती ने सभी राजाओं को युद्ध में हरा दिया और वर भी दिया की वो
काशी में ही रहेंगी।
देवी पूराणानुसार ब्रम्हा जी ने देवी मां
की स्तुती में स्वयं कहा है कि आप जगजननी हैं,सृष्टी धारण करती हैं,आप ही जगतमाया देवी,सृष्टी
स्वरूपा और आप ही कल्पांतसंहारी हैं।नवरात्रि महोत्सव पर हजारों की संख्या मे श्रद्धालुओं
का मंदिरों में तांता लगा रहता है।क्योंकि मां जगतजननी जगदम्बा विपदा और संकट मे घिरे
भक्तों के लिए तारणहार है,मुक्तिकारक है,मनोकामना पूरी करने वाली हैं।
मां कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए सबसे पहले उनका ध्यान करना
चाहिए और फिर स्त्रोत मंत्र से मां कूष्मांडा की आराधना करनी चाहिए,और फिर उपासना
मंत्र।जो क्रमश:इस प्रकार है:-
ध्यान मंत्र
सुरा
संपूर्ण रुधिराप्लुतमेव च
दधानां
हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे ।
स्तोत्र मंत्र
ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रर्घकृत शेखराम।
सिंहरुढ़ा
अष्टभुजा कूष्मांडा यशस्नीम्घ।
भास्वर
भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम।।
कमण्डलु चाप,बाण,पदमसुधाकलश चक्त्र
गदा जपवटीघराम्घ।
पटाम्वर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या
नानालंकार भूषीताम।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल
मण्डिताम।।
प्रफुल्ल वदनं नारु चिकुकां कांत
कपोलां तुंग कूचाम।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि
निम्ननाभि नितम्बनिम् घ् स्तोत्र दुर्गतिनाशिनी तंवमहि दारिद्राहि विनाशिनीम्।
जयदां धनदां कूष्मांडे
प्रणमाम्हम्घ्।
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रुपणीम्।
चराचरेश्र्वरी कूष्मांडे
प्रणमाम्यहम्ध्।
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दुरुख शोक
निवारिणांम्।
परमानंदमयी कूष्मांडे प्रणमाम्यहम्ध्
कवच हसरै मे शिररु पातु कुष्मांडे भवनाशिनीम।
हसलकरीं नेत्रथ,हसरौश्र्च ललाटकम्घ्।
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही
उत्तरे तथा।।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी
दक्षिणे मम।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं
सर्वदावतुघ।।
उपासना मंत्र
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च
दधानां हस्तपद्भ्यां कूष्मांडा
शुभदास्तुमे।।
ये सभी मंत्र श्रीदेवीभागवत और दुर्गा सप्तशती से लिए गए हैं,जिनका
भक्तिभाव से नित्य पाठ करना सदैव कल्याणकारी होता है।।जय माता दी।।
No comments:
Post a Comment