संदीप कुमार मिश्र:आस्था का महापर्व नवरात्र।जिसका शुभारंभ13 अक्टूबर से और समापन 22 अक्टूबर को होगा ।सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है।हमारे देश में दो मुख्य ऋतुओं के योगकाल का यह समय सनातन संस्कृति में शक्ति संचय का कहा जाता है। हमारी संकल्पशक्ति को बल देने वाला नवरात्रि का व्रत शक्ति के समस्त उपासकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। नवरात्रि के नौ दिनों में हमारे शरीर और बाहरी मौसम का तापमान लगभग एक समान होता है। ऐसे में सांसारीक और आध्यात्मिक स्तर पर आंतरिक और बाह्य जगत के एकाकार में सहजता रहती है।
ऐसे तो साल में नवरात्रि व्रत का अवसर दो बार आता है। पहला, चैत्र की नवरात्रि जो नव विक्रम संवत की शुरूआत होता है।जिसे हम हिन्दू नववर्षोत्सव के रूप में मनाते हैं। वहीं दूसरा, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि होती है,जिसे शारदीय नवरात्रि के रूप में देश भर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि यानी सर्दीयों की शुरुआत में पड़ने वाली नवरात्रि में दिन छोटे होते हैं और उनमें शीतलता बढ़ रही होती है।जबकि चैत्र नवरात्रि में दिन बड़े हो रहे होते हैं और उनमें शुष्कता बढ़ रही होती है।
हमारे हिन्दू धर्म में जप तप व्रत का संर्पूण पूजन विधान उपलब्ध है। बावजूद इसके भक्तों को यह सुलभता है कि वह पूजा और व्रत अपनी क्षमता और आवश्यकतानुसार कर सके। ऐसे में मांता के भक्त अपनी निज संकल्पशक्ति के अनुसार यह व्रत रखते हैं। नवरात्रि में कुछ भक्त पहला और अंतिम यानी नवमीं को व्रत रखकर इसे पूर्ण कर लेते हैं, तो कुछ नौ दिनों तक निराहार या फलाहार पर ही रहते हैं। दोस्तों इस बार नवरात्रि दस दिनों की है। ऐसे में सभी भक्तों को मां का ध्यान बड़े ही नियम पूर्वक करना चाहिए।
मां दुर्गा की साधना का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष होता है भोजन की सात्विकता। कहा भी गया है-जैसा खाएंगे अन्न, वैसा ही बनेगा हमारा मन। व्रत के दौरान लंबी साधना करने वालों को अभ्यास पर जोर देना चाहिए ताकि लंबी बैठक के दौरान वे असहज न हों और ध्यान में बाधा न पड़े। नवरात्रि व्रत मन-वचन-कर्म की शुद्धि के लिए विशेष महत्व रखता है। विचारों की इसमें बड़ी भूमिका होती है। आसपास के वातावरण को आध्यात्मिक और सात्विक बनाएं। साधकों के लिए संभव हो तो अवकाश लेकर गुरु आश्रम या शक्तिपीठ स्थल जाना बेहतर होगा।आध्यात्मिक ऊर्जा हमें हर परिस्थिति का सहज सामना करने में सहायक होती है। यह शारिरिक बल से कहीं महत्वपूर्ण और प्रभावशाली होती है। इसलिए मनसा वाचा कर्मणा मां आदिशक्ति का ध्यान करें।क्योंकि मां बड़ी दयालू हैं अपने भक्तों की मनोकामना अवश्य पूर्ण करती हैं।
नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा का विधान है। पहले दिन से लेकर नौवें दिन तक क्रमश:शैलपुत्री,ब्रम्हचारिणी,चंद्रघंटा,कुष्मांडा,स्कंदमाता,कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना होती है।नवरात्र का विशेष अर्थ नौ रातों से होता है।जिसमें पहले तीन दिनो में माता पार्वती के तीन रुपों की पूजा होती है,उसके बाद तीन दिनों तक माता लक्ष्मी के तीन रुपों की और अंतिम तीन दिनों में माता सरस्वती के तीन रुपों की पूजा होती है।
नवरात्र के पावन पर्व पर शर्ति की साधना के साथ ही आध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। माता की स्तुति के साथ ही कलश स्थापना,धुपदीप,आरती,शंखनाद और धंटियों की आवाज से संपुर्ण वातावरण भक्तिमय हो जाता है। सच में आस्था और विश्वास का अद्भुत संहम है मां की साधना का महापर्व नवरात्र।मां दुर्गा की पवित्र भक्ति से संसार के समस्त प्राणीयों को सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। साथियों इस पवित्र और पावन नवरात्र में मां आदिशक्ति आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें,आपके समस्त रोग शोक क्लेश को खत्म करें आप नितनई ऊंचाईंयों को पाने में सफल हों,आपके सपनों को पंख लगे।यही कामना और मां दुर्गा से प्रार्थना करता हुं।नवरात्रि के महापर्व की आप सभी को हार्दिक बधाई।।जय माता दी।।
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