Wednesday 21 October 2015

और कितने रावण...?


संदीप कुमार मिश्र: असत्य पर सत्य के विजय का दिन विजयादशमी,अधर्म पर धर्म की जीत का दिन विजयादशमी यानी दशहरा।अगर और सरल शब्दों में व्याख्या करें तो उत्साह और उमंग का पर्व,नैतिकता और न्याय,शक्ति की आराधना का पर्व विजयादशमी यानी दशहरा। प्रभू श्री राम ने दशहरे के दिन ही लंकापति रावण का वध कर भूलोक में राम राज्य की स्थापना की थी।तब से लेकर आज तक रावण हमारे समाज में जलाया जाता है,उसका दहन किया जाता है।यह पर्व हमें हमेशा संदेश देता रहा है कि जब जब अत्याचार,अन्याय और अनैतिकता रुपी दानव अपने पांव पसारेगा तब तब उसका दमन होता रहेगा।संसार की चाहे जितनी ही शक्ति क्यों ना लगा दी जाए, लेकिन समाज और संस्कारों के विपरीत जब जब आसूरी शक्तियां उत्पन्न होंगी,तब तब श्रीराम अवतार लेंगे और रावण का नाश करेंगे।
लेकिन दोस्तों बड़ा सवाल ये उठता है कि आज के आधुनिक यूग का या यूं कहें की 21 सदी का रावण कौन है, जिसने हमें लाचार और बेबस कर दिया है।बड़ा सवाल ये भी उठता है कि ये रावण कैसे मरेगा और कौन मारेगा इसे..?क्या राम जी फिर अवतार लेंगे..?
बचपन से हमें यही सिखाया जाता रहा है कि राक्षसराज रावण के साथ ही जब आसुरी शक्तियों से देवगण त्रस्त हो गए, तब त्राहीमाम करते हुए भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और रावण के वध के लिए याचना करने लगे।जिसके बाद जगत के पालनहार श्रीहरी भगवान विष्णु जनहित के लिए,लोकहित के लिए, लोक कल्याण के लिए, इस धराधाम को राक्षस विहीन करने के लिए,चक्रवर्ती  राजा दशरथ के यहां पुत्र रुप में राम जी ने अवतार लिया। अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करते है प्रभु श्रीराम।

लेकिन आज के कलयुग में ना जाने ऐसे कितने रावण कुंडली मारकर बैठे हैं,जो मानवता के नाम पर कलंक हैं,सर्वधर्म समाव की भावना वाले इस देश में हमारी एकता और अखंडता को चुनौती दे रहे है।रावण ने एक बार ही गलती की थी जिसका परिणाम ये हुआ कि त्रेतायुग से आज तक जलाया जाता है,लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता कि आज के हमारे समाज बैठे रावण उस रावण से ज्यादा घातक हैं। आज के रावण का डर इस कदर आम जनमानस के अंदर बैठा हुआ है कि हर कोई डरा सहमा हुआ है।दोस्तों आप जानते हैं कौन है आज का रावण-नहीं तो जान लिजिए-आज का रावण है- बलात्कार,गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी,अशिक्षा, कुपोषण, आतंकवाद,  भ्रष्टाचार, नक्सलवाद।यही वो रावण हैं जिनकी जड़े हमारे समाज में गहरी होती जा रही है।बड़ा सवाल उठता है कि इस रावण को हम कब जलाएंगे...?

दरअसल साथियों आज का रावण बाहर ही नहीं झूठ और फरेब, स्वार्थ, कपट, लोभ, वासना, बेईमानी, कायरता, आलस, क्रोध, के रुप में हमारे अंदर भी मौजूद है। जी हां दोस्तों मन के इस रावण को मारे बगैर समाज के रावण खत्म नहीं होंगे। इसलिए जरुरू है कि सबसे पहले मन के रावण को मारा जाए।
शक्ति की आराधना और विजय का प्रतिक है दशहरा का पर्व।क्या ऐसे में जरुरी नहीं कि मन  में बैठे राम को बाहर लाया जाय और समाज की भलाई के लिए कार्य किया जाय,जिससे समाज में फैले रावण के प्रतिकों का अंत हो सके।हमारा देश सभ्यता संस्कृति का देश है,आदर्शों का देश है,जहां राम,कृष्ण की जननी है भारत।इस पावन धरा पर गौतम, नानक, महावीर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, महर्षि अरविंद, रामानुज, ने मानवता का पाठ पढ़ाया। रावण हमारे समाज के अंदर है,हमारी चेतना में छुपा हुआ है। अगर हमने रावण को नहीं हराया या फिर उसे समाप्त नहीं किया तो वो हमारे दिलोदिमाग का मेहमान बन जाएगा। जब तक हम खुद को जिम्मेदार नहीं बनाएगें तब तक हम समाज में फैले रावण को नहीं मार पाएंगे।

बड़े ही अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि रावण लगातार अपना पैर पसार रहा है । कभी अमर्यादा के रुप मे तो कभी कुसंस्कार के रुप में। ना जाने धरती पर जन्म लेने से पहले ही सीता को क्यों मार दिया जाता है।और अगर बच गयी तो धरती पर प्रकट होते ही ना जाने कितने दुशासन चीरहरण को तैयार रहते है।बुरा मत मानना साथियों लेकिन कब तक हम नकली रावण जलाते है रहेंगे,कब तक धर्म के ठेकेदार अपनी दुकानदारी चलाते रहेंगे और कब तक देश की आधी आबादी खुद को असुरक्षित महसुस करती रहेगी...?आखिर कब तक..?


खैर दोस्तों क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगता कि रावण तो शायद मरा ही नहीं था,हम तो सिर्फ उसका पूतला ही दहन करके खुश हो लेते हैं,और असली रावण को मारना तो अभी बाकी है। जी हां और वो तभी मर पाएगा जब समाज से असमानता,भेदभाव,तेरा-मेरा का चक्कर खत्म होगा। मतलब साफ है कि जब तक हमारा समाज अनेकों तरह की असमानताओं से घिरा रहेगा, तब तक रावण जीवित रहेगा।जब तक मासुमों पर,देश की आधी आबादी पर अत्याचार होते रहेंगे तब तक रावण जिंदा रहेगा।

आईए हम सब मिलतक विजयादशमी के इस पावन पर्व पर संकल्प लें कि समाज और खुद के मन मे बैठे रावण का हम अंत करेंगे और एक बार फिर रामराज्य की स्थापना करेंगे।जय श्री राम।


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