Saturday, 17 October 2015

नवरात्र का छठा दिन: मां कात्यायनी की पूजा



चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
संदीप कुमार मिश्र: नवरात्र के छठवें दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप की पूजा मां कात्यायनी के रुप में होती है।मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं।नवरात्र के छठे दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सबकुछ न्यौछावर कर देता है और भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त रहता है।
मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करने से  सभी प्रकार के संकटों का नाश होता है।मां कात्यायनी दानवों और पापियों का नाश करने वाली हैं।देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है।श्री कात्यायनी मां की आराधना से भक्तों का हर काम सरल और सुगम हो जाता है।चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है,श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है,ऐसी असुर संहारकारिणी देवी  मां कात्यायनी सबका कल्यान करें।
माता कात्यायनी देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं।महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के स्वरूप में पालन-पोषण किया और साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया। मां कात्यायनी दानवों असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है। कात्यायनी देवी ने महिषासुर के बाद तीनों लोकों को शुम्भ और निशुम्भ के राक्षस साम्राज्य से मुक्त कराकर देवताओं को महान प्रसन्नता से आर्विभूत कराया।वैदिक युग में यह ऋषि-मुनियों को कष्ट देने वाले प्राणघातक दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थीं।


मां कात्यायनी का पूजा विधान
मां कात्यायनी की पूजा विधि भी पहले की ही तरह है। जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं,उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन मां कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए।फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने के लिए मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए।मां कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें। फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें,जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विराजमान हैं।इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है।पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है।
इसके बाद  माता कात्यायनी का स्तोत्र पाठ और देवी कात्यायनी के कवच का पाठ साधक को अवश्य करना चाहिए। नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाना भक्तों के लिए बेहद लाभदायक होता है।

स्तुति

वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

स्तोत्र

कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्त्किात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।
विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कांन्तुता॥
कांकारहद्दषणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै करूठरूछरूस्वाहारूपणी॥

कवच

कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।
ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्यसुंदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

देवी की पूजा के बाद भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा करें।सबसे अंत में ब्रह्मा जी के नाम से जल,फूल,अक्षत सहित सभी सामग्री हाथ में लेकर ॐ ब्रह्मणे नम:”कहते हुए सामग्री भूमि पर रखें और दोनों हाथ जोड़कर सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें और अन्त में मां दुर्गा  की  आरती करें।जय माता दी।



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