संदीप कुमार मिश्र: साथियों पिछले लेख में
हमने धर्म नगरी हरिद्वार के बारे में जानने की कोशिश की।एक सरल और सुलभ प्रयास
करने की सार्थक पहल की।लेकिन हरि अनंत हरि कथा अनंता।ठीक ऐसी ही हमारी धर्म
संस्कृति इतनी अद्भुत और विशाल है,कि इसका कोई और-छोर नहीं है।यही हमारी पहचान भी
है।सरलता,मधुरता,ज्ञान और धर्म की संस्कृति ही हमें विश्व गुरु बनाती है। सर्वधर्म
समभाव की भावना ही हमे अनेकता में एकता का संदेश देती है।
खैर,हरिद्वारा के संबंध में कुछ और जानकारी आपको देने का प्रयास कर रहा
हुं,ईश्वर की कृपा और आपलोगों के स्नेह से-
धर्म और दर्शन की नगरी हरिद्वार: भक्ति, आस्था और श्रद्धा की
पावन नगरी हरिद्वार में अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं।इन्हीं में से एक मायादेवी
का मंदिर है।मायादेवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। शहर के
बीचोबीच स्थित ये मंदिर एक सिद्धपीठ है।ये देश का एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां भगवती के विखंडित अंग नहीं बल्कि भक्तों को मां
के सर्वांग दर्शन मिलते हैं।
हरिद्वार के विल्व पर्वत पर स्थित मां मनसा देवी का
मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए खास महत्व रखता है।इस मंदिर को भी सिद्धपीठ का दर्जा
हासिल है।मनसा देवी मां दुर्गा का ही रुप हैं।मंदिर में मां मनसा देवी की तीन मुख
और पांच भुजाओं वाली अष्टनाग वाहिनी मूर्ति है। मां के मंगलकारी रुप का दर्शन पाकर
भक्त धन्य-धन्य हो जाते हैं।मंदिर के आसपास का पूरा वातावरण भक्तिमय है।जिसे मां
के दर्शन को आने वाले भक्त भी महसूस करते हैं। यहां आकर ऐसा लगता है, मानों यहां की हर चीज मां की आराधना में डूबी हुई है।पहाड़ी
पर बसे मनसा देवी मंदिर तक जाने के लिए पहले तो थोड़ी मुश्किल होती थी, लेकिन अब इस मंदिर तक तक रोप-वे के जरिए आसानी से
पहुंचा जा सकता है।जिसे देवी उड़नखटोला कहा जाता है।पहाड़ की चोटी से हरिद्वार का
खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है।
वहीं हरिद्वार में ही नील पर्वत पर चंडी देवी का मंदिर भी है।ये मंदिर सात सौ
मीटर की उंचाई पर स्थित है।कहते हैं इस मंदिर का निर्माण कश्मीर के राजा सुचेत
सिंह ने 1929 ई. में करवाया था।कहा जाता है, कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में चंडी देवी की मूल प्रतिमा यहां
स्थापित करवाई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार सिद्धिदाता चंडीदेवी ने इसी स्थान पर
शुंभ और निशुंभ का वध किया था। और आज यहां पहुंचने वाले भक्त मां चड़ी के दर्शन कर
अपने अंदर की आसुरी प्रवृतियों का खात्मा करते है।मां गंगा के किनारे ऊंचे-ऊंचे
पहाड़ो की तलहटी में भी कई मंदिर स्थित है।जहां प्रकृति और आध्यात्म का तादात्म
देखने को मिलता है।
हरिद्वार के ही कनखल नगर के दक्षिण में स्थित है दक्ष महादेव
मंदिर। इस मंदिर का निर्माण माता सती के पिता महाराज दक्ष की याद में बनवाया गया
था।पौराणिक कथा के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहां एक विशाल यक्ष का आयोजन
किया था।जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था।अपने पति का ये अपमान माता
सती बर्दाश्त नहीं कर सकी और यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी
गणों ने उत्तेजित हो कर दक्ष की हत्या कर दी।जिसे
बाद में भगवान शिव ने पुनर्जीवित कर दिया। शास्त्रों में भी दक्ष महादेव
मंदिर को मुख्य तीर्थस्थल कहा गया है।
स्कंदपुराण के केदारखंड में भगवान शिव ने कहा है, कि जो मनुष्य दक्षेश्वर महादेव के दर्शन किए बिना
तीर्थाटन करेंगे उनकी यात्रा निष्फल होगी। इसे शिव की ससुराल और दक्ष नगरी भी कहते
हैं। हरिद्वार में सबसे पावन कुछ है, तो वो हैं मां गंगा।मां गंगा के घाट पर कई पौडियां बनी हुई हैं।जिसमें सबसे
प्रसिद्ध हर की पौड़ी है।यह स्थान भारत के सबसे पवित्र घाटों में एक है।मान्यता है, कि यहां स्नान करने से जन्म-जन्म के पाप मिट जाते
हैं।हर की पौड़ी के चारो तरफ कई मंदिर है।जिसमें एक मंदिर मां गंगा का है। मां
गंगा के अलावा यहां भगवान विष्णु,
भगवान शिव
और ब्रह्माजी का भी मंदिर हैं।हर की पौड़ी पर मां दुर्गा का मंदिर भी श्रद्धालुओं
के लिए आस्था का केंद्र है।इस पवित्र घाट पर शाम को महाआरती का आयोजन होता है।जिसका
नजारा अदभूत होता है।इस दौरान गंगा नदी में प्रवाहित असंख्य दीपों की शोभा देखने
लायक होती है।
हर की पौड़ी के दक्षिण में स्थित है,कुशावर्त घाट।जो हरिद्वार का एक
महत्वपूर्ण पौराणिक तीर्थ है।कहा जाता है, कि महर्षि दत्तात्रेय ने इसी जगह पर एक पैर पर होकर घोर तपस्या की थी।इस घाट
का निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने कराया था।कुशावर्त घाट पर स्नान के साथ ही
पिण्डदान का विशेष महत्व है। यही बजह है, कि यहां श्रद्वालु मुंडन कर्म के साथ-साथ पितरों को पिण्ड अर्पित करने आते हैं।पुण्य
अर्जन के लिए यहां लोगो को गौ माता को चारा खिलाते भी देखा जाता है।हरिद्वार की एक
और पवित्र स्थली है-सप्तऋषि आश्रम।ये आश्रम हरिद्वार से दो कोस की दूरी पर
सप्तसरोवर घाट के पास स्थित है।इस आश्रम के समीप गंगा सात धाराओं में बहती है।इस
कारण इस स्थान को सप्तसरोवर भी कहा जाता है।सप्तऋषि आश्रम में सप्तऋषि मंदिर के
अलावा दूसरे कई देवताओं के भी मंदिर है।जिसमें गंगेश्वर महादेव का मंदिर सबसे
प्राचीन है।सप्तऋषि आश्रम में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए चालीस से भी ज्यादा कुटीर
बने हुए हैं, जहां के प्राकृतिक
सौंदर्य को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है।
अंतत: साथियों धर्म और दर्शन
की नगरी के संबंध में लिखकर जब मन भाव और भक्ति से सराबोर हो जाता है तो आप समझ
सकते हैं कि हरिद्वार जाकर किसी श्रद्धालू को कैसा महसूस होता होगा।धन्य है भारत
भूमि और धन्य है हमारी सभ्यता संस्कृति।कोटिश: नमन।
धर्म और दर्शन में आगे भी आप सभी इष्ट मित्रों तक सार्थक और सुंदर जानकारी
पहुंचाने का प्रयास आप की प्रेरणा से जारी रहेगा,आपके उत्साहवर्धन का आकांक्षी...संदीप
कुमार मिश्र।
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