संदीप कुमार मिश्र : साल 2016 के स्वागत को लोग अलग अलग अंद़ाज में मनाते है।कुछ पार्टी में जाकर,कुछ भगवान
के दरबार में जाकर तो कुछ घर पर रह कर नये साल का स्वागत करते है।हम आपको आज ऐसे
दरबार के बारे में बताते हैं जहां लोग नए साल में श्रद्धा भाव से ओतप्रोत भक्ती
भाव में रमें हुए नजर आते हैं जी हां बटुक भैरव जिन्हें दिल्ली का कोतवाल कहा जाता
है। दिल्ली के नेहरू पार्क में स्थित बटुक भैरव का मंदिर भक्तों की अटूट आस्था का
केन्द्र है।यहां आने वाले भक्त दिल्ली के कोतवाल के दरबार में अर्जी लगाना नहीं भुलते।
यहां बटुकभैरव का विधिवत श्रृंगार किया
जाता है,सजाया संवारा जाता है।ये मंदिर हर तरह से खास है।इस दरबार में आया हर
श्रद्धालु बाबा के दर पर बड़े ही श्रद्धा भाव से सिर झुकाता है।बटुकभैरव के इस
दरबार में हजारों की तादात में हर मंगलवार और रविवार को भक्तों का तांता लगा रहता
है।खास अवसरों पर श्रद्धालु यहां इकट्ठा होते हैं और एक साथ बैठकर बटुक भैरव की
पूजा अर्चना करते हैं।मंत्रोच्चार के साथ बाबा को भोग लगाया जाता है। भैरव का अर्थ
होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला।ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के
तीन अक्षरों में ब्रह्मा,
विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है।भैरव शिव के गण और
पार्वती के अनुचर माने जाते हैं।पुराणों में कहा गया है कि शिव के रूधिर से भैरव
की उत्पत्ति हुई,बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और
दूसरा काल भैरव ।भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है।भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को
भैरवनाथ भी कहा जाता है।नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।
'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन: ।
ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे ।।'
अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना
कल्पवृक्ष के समान फलदायी है...बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है...इन्हें आनंद भैरव
भी कहते हैं....इस स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है...यह कार्य में सफलता के लिए
महत्वपूर्ण है...इस आराधना के लिए मंत्र है-
।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
भैरव आराधना की आराधना से ही शनि का
प्रकोप शांत होता है... आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है... पुराणों के
अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है।आराधना से पूर्व
जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं।पवित्र होकर
ही सात्विक आराधना करें।इस मंदिर में श्रद्धालू,पूजा हवन में शामिल होकर बड़े ही
सादगी से बाबा की पूजा करते हैं।श्रद्धा और विश्वास के प्रतिक बटुकभैरव मंदिर की
प्राचीनता और मनोंकामनापूर्ती करनें की मान्यता नें इसे और भी खास बना दिया है।
भैरव तीन अक्षरों का प्यारा नाम
जिसका अर्थ है
"भ " यानि विश्व का भरण करने वाले
"र "यानि विश्व में रमण करनें वाले
और
"व " से वमन अर्थात सृष्टि का पालन पोषण करने वाले ।
बाबा अपनें भक्तों की सभी मनोंकामना
पूरी करते हैं,तभी तो इन्हें भैरव बाबा के नाम से जाना जाता है। भैरव को शिव का
अवतार माना गया है।इसलिए वे शिव-स्वरूप ही हैं-
भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्यपरात्मन:।
मूढास्तेवैन जानन्तिमोहिता: शिवमायया ॥
तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख
भी मिलता है जो इस प्रकार है -
1-असितांग भैरव, 2-रूरू भैरव, 3-चंद्र भैरव, 4-क्रोध भैरव, 5-उन्मत भैरव,6- कपाल भैरव,7- भीषण भैरव और 8-संहार भैरव
भैरव आपत्तिविनाशक और मनोकामना पूर्ति
के देवता हैं।भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति में भी भैरव उपासना फलदायी होती है।कलयुग
में भैरव की लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हर गांव के पूर्व
में स्थित देवी-मंदिर में स्थापित सात पीडियों के पास आठवीं पिड़ी भैरव-पिंडी भी
अवश्य होती है।नगरों के देवी-मंदिरों में भी भैरव विराजमान रहते हैं।देवी प्रसन्न
होने पर भैरव को आदेश देकर ही भक्तों की कार्यसिद्धि करा देती हैं।ऐसी प्रचलीत
मान्यता हमारे समाज और गांव दिहात में पुरानें जमानें से चली आ रही है।
नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क
में बटुकभैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है।कहते हैं यह सर्वकामना पूरक
सर्व आपदानाशक है।यह प्राचीन मूर्ति इस तरह ऊर्जावान है कि भक्तों की यहां हर
सम्भव इच्छा पूर्ण होती है।इस मंदिर में बटुक भैरव की मूर्ति की एक विशेषता है कि
यह एक कुएं के ऊपर स्थापित है।न जाने कब से, एक क्षिद्र के माध्यम से पूजा-पाठ
और भैरव स्नान का सारा जल कुएं में जाता रहा है पर कुंआ अभी तक नहीं भरा।पुराणों
के अनुसार भैरव की मिट्टी की मूर्ति बनाकर भी किसी कुएं के पास उसकी पूजा की जाय
तो वह बहुत फलदायी होती है।यही कारण है कि कुएं पर स्थापित यह भैरव इतने ऊर्जावान
हैं।
भगवान भैरव की साधना वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए
भैरव साधना की जाती है...इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के
प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती,दिया हुआ रूपया नहीं लौटता,रोग या विघ्न
बाधाओं से पीड़ा अथवा बेकार की मुकदमेबाजी में धन की बर्बादी हो सकती है।इस प्रकार
की शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी है।भैरव भगवान शिव के बारहवें
अवतार हैं।भैरव की साधना में ध्यान का अधिक महत्व है।इसी को ध्यान में रखकर
सात्विक, राजसिक और तामसिक स्वरूपों का ध्यान किया जाता है।ध्यान के बाद इस मंत्र का जप
करने का विधान है-
।।ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।।
ऎसा कहा जाता हैं मुकदमे या कारागार से
मुक्ति के लिए भी इस मंत्र की साधना करने से लाभ होता है।भगवान बटुक भैरव के
सात्विक स्वरूप का ध्यान करने से आयु में वृद्धि और रोग-व्याधि से भी मुक्ति मिलती
है।इनके राजस स्वरूप का ध्यान करने से सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति संभव हो
जाती है।इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से शत्रु नाश, सम्मोहन, वशीकरणादि का प्रभाव समाप्त होता है।व्याधि से मुक्ति के लिए और भैरव के तामस
स्वरूप की साधना करना हितकर है।
।।कंकाल: कालशमन:कला काष्ठातनु:कवि:।।
।। त्रिनेत्रोबहुनेत्रश्च तथा पिङ्गललोचन:।।
।। शूलपाणि:खड्गपाणि:कंकाली धू्म्रलोचन:।।
।।अभीरुर्भैरवोनाथो भूतयो योगिनी पति:।।
भैरव के इस स्तुति को गाकर भक्त उन्हें
खुश करते हैं और अपनी कामनापूर्ती करते है।
हमारे देश के हर
प्रांत में भैरव बाबा की पूजा बड़े ही विधि विधान से की जाती है।हम तो यही कामना
करते हैं कि भगवान बटुक भैरव आपकी सभी मनोंकामना पूर्ण करें।
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