Monday 14 December 2015

अटल बिहारी वाजपेयी


संदीप कुमार मिश्र : कदम मिलाकर चलना होगा।ये बात उतनी ही सच है जितनी ये धरती, आकाश और जीवन।ये कविता उस महान कवि द्वारा रचित है,जिनको देश तहेदिल से प्यार करता है।जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं देश के पूर्व प्रधानमंत्री, भारतीय जनता पार्टी के संस्‍थापक सदस्‍य,महान  कवि और 11 भाषाओं के ज्ञाता अटल बिहारी वाजपेयी की।जिन्हें पक्ष विपक्ष यहां तक की दुश्मन भी सम्मान देते थे। वाकपटुता के धनी और भारतीय राजनीति में सबसे प्रतिष्ठित नेता वाजपेयी जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं ।जन- जन के प्रिय राजनेता राष्ट्रहित एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर पूर्व प्रधानमंत्री,महान कवि,भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनेताओं में नैतिकता के प्रतीक हैं।


सर्वप्रिय जननेता अटल जी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को में ग्वालियर में हुआ था।अजल जी के जन्म के संबंध में कहते हैं कि पुत्र होने की खुशी में एक तरफ जहां घर में फूल की थाली बजाई जा रही थी तो वहीँ पास के गिरजाघर में घंटियों और तोपों की आवाज के साथ प्रभु ईसामसीह का जन्मदिन भी मनाया जा रहा था।अटल जी के बाबा श्यामलाल वाजपेयी ने ही उनका नाम अटल रखा था।जिसे प्यार और दुलार से उनकी माता कृष्णादेवी उन्हे अटल्ला कहकर बुलाया करती थी।अटल जी के पिता का नाम पं. कृष्ण बिहारी वाजपेयी था जो हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी तीनो भाषाओं के विद्वान थे साथ ही पं. कृष्णबिहारी वाजपेयी जी सम्मानित कवि भी थे।कहना गलत नहीं होगा कि अटल जी को कवि रूप विरासत में मिला है।
आपको बता दें कि ग्‍वालियर के सरस्‍वती शिशु मंदिर प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वायपेयी जी ग्‍वालियर के विक्‍टोरिया कॉलेज जो अब लक्ष्‍मीबाई कॉलेज है से हिन्‍दी, अंग्रेजी और संस्‍कृत विषय में डिस्‍टिंगशन के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी की।और बाद मे कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्‍त्र में प्रथम स्‍थान के साथ एमए की उपाधि प्राप्‍त की।

शिक्षा अध्ययन के बाद वायपेयी जी आरएसएस की विचारधाराओं से प्रभावित होकर उसके सदस्य बन गए।लेकिन शिक्षा के प्रति अपने लगाव की वजह से लॉ की पढ़ाई भी शुरु की जिसे बीच में ही छोड़कर पत्रकारिता में आ गए।जिस दौर में वायपेयी जी ने पत्रकारिता का चुनाव किया उस समय पूरे देश में आजादी की लहर चल रही थी। उसी दौर में वायपेयी जी ने 'राष्‍ट्रधर्म' (मासिक हिन्‍दी), 'पाञ्चजन्‍य' (साप्‍ताहिक हिन्‍दी), 'स्‍वदेश' (रोजाना) तथा 'वीर अर्जुन' (रोजाना) पत्रिका का संपादन शुरु किया । 
वायपेयी जी के देश के प्रति आजादी का जूनुन ही था कि संघ के अन्‍य सदस्‍यों की तरह ही वाजपेयी ने भी विवाह नहीं किया। समय के साथ बाजपेयी जी की ख्याती देश भर में फैल रही थी जिसके बाद वायपेयी जी ने  1942 में राजनीति में आने का फैसला किया।ये वो दौर था जब देश में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वायपेयी जी के बड़े भाई को 23 दिनों के लिए जेल में डाल दिया गया था।राजनीति में सक्रियता की बात करें तो 1951 में वाजपेयी जी ने आरएसएस के मार्गदर्शन और सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई, जिसमें श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे बड़े नेता शामिल हुए थे।
दोस्तों अटल जी स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी हैं। कहते हैं मिठाई तो उनकी सबसे बड़ी कमजोरी रही है।ये निर्विवाद सत्य है, कि अटल जी नैतिकता का पर्याय हैं। पहले कवि और साहित्कार तद्पश्चात राजनीतिज्ञ हैं। उनकी इंसानियत कवि मन की कायल है। नैतिकता को सर्वोपरि मानने वाले अटल जी कहते हैं कि-

छोटे मन से कोई बङा नही होता, टूटे मन से कोई खङा नही होता।
मन हार कर मैदान नही जीते जाते, न मैदान जीतने से मन ही जीता जाता है।


मित्रों अटल बिहारी बाजपेयी जी एक सादगी भरे सच्चे इंसान के साथ ही लोकप्रिय जननायक हैं। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से परिपूर्ण, सत्यम-शिवम्-सुन्दरम् के पक्षधर अटल जी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण 1955 में हुआ था। इससे पहले देशप्रेम की अलख को जागृत करते हुए अटल जी 1942 में जेल गए थे। अटल जी अपने सादा जीवन उच्च विचार और सत्यनिष्ठा एवं नैतिकता के कारण ही अपने विरोधियों में भी अत्यन्त लोकप्रिय रहे हैं। 1994 में अटल जी को सर्वश्रेष्ठ सांसदएवं 1998 में सबसे ईमानदार व्यक्तिके रूप में सम्मानित किया गया। 1992 में पद्मविभूषणजैसी बड़ी उपाधी से अलंकृत अटल जी को 1992 में ही हिन्दी गौरवके सम्मान से नवाजा गया। अटल जी ही ऐसे पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मे हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था और राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का मान बढाया था। जिस संबंध में अपनी कविता के माध्यम से ही अटल जी कहते हैं-
गूँजी हिन्दी विश्व में, स्वपन हुआ साकार।राष्ट्र संघ के मंच से, हिन्दी का जयकार।।
हिन्दी का जयकार, हिन्द हिन्दी में बोला।देख स्वभाषा प्रेम, विश्व अचरज से डोला।।

भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और उस संकल्प को पूरी निष्ठा से आज तक निभाया। सन् 1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1957 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। सन् 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में अटल जी सन् 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि को निखारा।
भारतीय लोकतंत्र के सजग प्रहरी श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1997 में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। 19 अप्रैल, 1998 को पुनः प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, और 13 दलों की गठबंधन सरकार ने पांच वर्षों में देश को प्रगति के रास्ते पर अग्रसर किया। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे। जिन्होने गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। ये उपलब्धी बाजपेयी जी के कुशल नेतृत्व  क्षमता का परिचय देती है।

आपको बता दें कि परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की नाराजगी से विचलित हुए बिना अटल जी ने अग्नि-2 और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी और सराहनीय कदम भी उठाये। सन् 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की CIA को भनक तक नहीं लगने दी। आज अटल जी करोङों लोगों के लिए विश्वसनियता तथा सहिष्णुता के प्रतीक हैं। इतनी महान सख्सियत होने के बावजूद अजल जी कहते थे कि-
मेरे प्रभु, मुझे कभी इतनी ऊंचाई मत देना,
गैरों को गले न लगा सकुं, इतनी रुखाई कभी मत देना।
आत्मियता की भावना से ओत-प्रोत, विज्ञान की भी जय जयकार करने वाले, लोकतंत्र के सजग प्रहरी, राजनीति के मसीहा अटल जी को ईश्वर स्वस्थ दीर्घायु प्रदान करें,देश यही प्रार्थना करता है।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने देश की जरुरतों को पहचाना और शास्त्री जी के नारे को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जय जवान जय किसान जय विज्ञान। अटल जी का कहना है कि किसी भी मुल्क को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक साझदारी का हिस्सा होने का ढोंग नहीं करना चाहिए , जबकि वो आतंकवाद को बढाने ,उकसाने , और प्रायोजित करने में लगा हुआ हो।

आप समझ सकते हैं कि उनका इशारा कहां था।साथ ही वो ये भी कहा करते थे कि हमारे परमाणु हथियार विशुद्ध रूप से किसी विरोधी के परमाणु हमले को हतोत्साहित करने के लिए हैं ना की हमला करने के लिए।अटल जी का कहना था कि पाकिस्तान के साथ तब तक कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती जब तक कि वो आतंकवाद का प्रयोग अपनी विदेशी नीति के एक साधन के रूप में करना नहीं छोड़ देता।अटल जी का की विदेश नीति कैसी थी इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वो अक्सर कहा करते थे कि आप मित्र बदल सकते हैं पर पडोसी नहीं।

अंतत: वाजपेयी जी एक प्रेरणादायी कविता जो हमेशा हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है-
क्या हार में क्या जीत में,किंचित न हो भयभीत हो,

कर्तव्य पथ पर जो मिला,यह भी सही वह भी सही

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