टूकड़े टूकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा,
इसको दोनो पक्षों ने ही तोड़ा है।
संदीप कुमार मिश्र : दरअसल ये अंधायुग जिसे धरमवीर भारती जी ने लिखा है उसकी चंद
लाइने हैं,जिन्हे पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे कि इस देश का आम आदमी आजादी के बाद फिर
से एक नए अंधेयूग में आ गया है,जहां कौरव और पांडवो की तरह ही हमारे नेता सत्ता
पाने की ज़द्दोज़हद में अपनो के ही दुश्मन बन गए हैं।लेकिन विडंबना देखिए कि इस
दुश्मनी का खामियाजा किसी और को नहीं जनता जनार्दन को बनना पड़ रहा है।ये जानकर
बड़ी हैरानी होगी आपको कि संसद की कार्यवाही एक मिनट ना चलने से ढ़ाई लाख रुपये का
नुकसान होता है।
दरअसल लोकतंत्र का
मंदिर होता है संसद,जहां जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधी,जनता की सहुलियतों और बुनियादी
सुविधाओं को पूरा करने के लिए बहस करते हैं और सरकार से मांग कर क्षेत्र और देश के
विकास में सहभागी बनते है।लेकिन विड़ंबना देखिए कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक
देश भारत जहां कि संसद में सांसद अपने काम के लिए कम,हंगामे के लिए ज्यादा पहचाने
जाने लगे हैं।ये बातें हम सब को जानना बहुत जरुरी है,क्योंकि राह चलते किसी आम
आदमी से आप पूछ लें की संसद की कार्वाही ना चलने से आपका क्या नुकसान होता है तो
उसे पता नहीं होगा।जिसे जानना हर किसी को बेहद जरुरी है कि आपका कितना नुकसान होता
है।तो दोस्तों जान लिजिए संसद की कार्यवाही 1 मिनट ना चलने से ढ़ाई लाख रुपये का
शुद्ध नुकसान आम आदमी का होता है।
संसद में शायद ही
ऐसा कोई नेता होगा या सांसद होगा जो करोड़पती नहीं होगा।इसलिए उनके लिए हंगामा
करने से कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन आम आदमी जो एक एक रोटी के लिए दिन रात एक कर
के मेहनत करता है उससे कोई ढ़ाई लाख के रुपये के महत्व के बारे में आप पूछें तो यकीन
मानिए एक आदमी की रोजी रोटी का अच्छा जुगाड़ इन ढ़ाई लाख रुपयों से हो सकता है।ऐसे में आप किसी आदमी से
जाकर कहें कि संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट ढाई लाख रुपये खर्च होता है और वो
पैसा आपकी कमाई से जाता है,जिसका सांसद नुकसान कर रहे हैं तो हर कोई हैरान हो
जाएगा।
इतना जानने के बाद आपके मन में एक उत्सुकता जरुर होगी कि आखिर ये ढाई लाख रुपये
का आंकड़ा कहां से आया।तो साब आपको बता दें कि साल 2012 में उस वक्त की यूपीए सरकार ने
सदन को यही बताया था कि संसद की प्रति मिनट कार्यवाही पर ढ़ाई लाख रुपये खर्च होते
हैं। संसद की एक घंटे की कार्यवाही पर ड़ेढ़ करोड़ रुपये और पूरे दिन के काम पर
करीब नौ करोड़ रुपये खर्च होते हैं।अब यहां गौर करने वाली बात ये है कि ये आंकड़ा सन 2012 का है,जब
केंद्र में यूपीए की सरकार थी।जरा सोचिए कि 2012 से लेकर 2015 तक देश में महंगाई किस
स्तर पर पहुंच चुकी है।ऐसे में समय के साथ संसद की कार्यवाही का खर्च भी बढ़ चुका
होगा। लेकिन हमारे माननीय सांसद
लगता है कि ढाई लाख के आंकड़े को भूल चुके
हैं।
15वीं लोकसभा का हाल देखने के बाद आम जनमानस को ये उम्मीद थी कि इस लोकसभा में
हालात में सुधार होगा।और संसद में कार्य सुचारु रुप से चलेगा लेकिन अब तक ऐसा नजर
नहीं आया।दरअसल 16वीं लोकसभा में अब तक नुकसान पर नजर ड़ालें तो - पहले सत्र में हुए हंगामे के
कारण 16
मिनट बर्बाद हुए यानी 40 लाख का नुकसान हुआ।वहीं दूसरे सत्र में 13 घंटे 51 मिनट बर्बाद हुए यानी 20 करोड़ 7 लाख का नुकसान।तीसरे
सत्र में 3 घंटे, 28 मिनट काम नहीं हुआ यानी 5 करोड़ 20 लाख का नुकसान। चौथे सत्र में 7 घंटे, 4 मिनट बर्बाद हुए यानी 10 करोड़ 60 लाख रुपये का नुकसान।पांचवे
सत्र में 119 घंटे बर्बाद हुए यानी 178 करोड़ 50 लाख का नुकसान हुआ।
छठवें और वर्तमान सत्र में भी काम बड़ी ही धिमी गती से हो रहा है।जिसकी वजह से
हमारी और आपकी जेब से हर मिनट ढाई लाख रुपये की बर्बादी हो रही हैं।एक मिनट में
ढाई लाख रुपये का नुकसान हमारा आपका हो जाए तो रातों की नींद और दिन का चैन उड़
जाता है लेकिन अफसोस कि हमारे नेता जी लोगों को ये बात समझ नहीं आती।
बहरहाल संसद में जिस प्रकार से प्रतिदिन हंगामा हो रहा है,उससे देश के अधिकांश
लोगों में निराश और उदासी हैं। सियासी
बयानबाजियों के बीच आखिर संसद में काम कब होगा, कोई नहीं जानता। कब सांसद उनके
ऊपर होने वाले प्रति मिनट ढाई लाख के खर्च का ऐहसास करेंगे, कोई नहीं जानता।ये बात विपक्ष और
सरकार दोनो को समझनी होगी कि आपकी लड़ाई में आखिर नुकसान किसका हो रहा हैजिसके आप
प्रतिनिधि हैं,जिनको आपसे ढ़ेरों उम्मीदे हैं।
अंतत : जरा सोचिए कि गरीब लोगों के पसीने की गाढ़ी कमाई को बर्बाद करने वाली हमारे नेताओं की
प्रवृत्ति देश को किस दिशा में ले जा रही है।जनप्रतिनिधि यानि हमारे सांसदो के
उग्र और बेतुके रवयै को देखकर मन में हजारों सवाल उठते हैं,कि कभी तो देश हित में भी
सोच लिया करो। बड़े दुख से मन में कुछ सवाल उठते हैं कि क्या सांसदों और हंगामा
पार्टी वालों को देश की जनता को आश्वस्त करने की कोई ईमानदार कोशिश नहीं करनी
चाहिए? कि हम जनता के प्रतिनिधि
जनता के हित के लिए ही कार्य करेंगे,अन्यथा हमें जनप्रतिनिधि बने रहने का कोई हक
नहीं है...?
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