संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों राजनीति का अपना अलग ही मजा है,और अगर आप गलती से कभी सत्ता के करिब
पहुंच जाएं तो फिर क्या कहने,जुबान किसी बहती सरिता की तरह धारा प्रवाह बहने लगती
है,क्योंकि लोकतंत्र में आपको बोलने की स्वतंत्रता है,अभिव्यक्ति की आजादी जो
है।आजादी झूठ बोलने की भी है और सच बोलने की भी साथ ही आरोप और प्रत्यारोप लगाने
की भी।
अब देखिए ना,बेचारा कोटला
स्टेडियम...क्या करे दो की गुगली में फंसकर सियासत के खेल को त्रिकोणीय बना दिया..ट्राफी
बन गया गया है कोटला का मैदान।और खिलाड़ियों के क्या कहने साब..हैं तो वो दो लेकिन
क्या कहने जनाब..एक सत्ता पाकर भी आंदोलन का बादशाह बने रहते हैं तो दूसरा खामोशी
से प्रहार...! मतलब साफ है खिलाड़ी
दोनो आलराउंडर है,अंतर बस इतना ही है कि एक अभी राज्य स्तरीय मैच ही खेल पा रहा है
तो दूसरा अन्तर्राष्ट्रीय खेल खेलने भी ट्राफी पा चुके हैं..।लेकिन राज्य स्तरीय
खिलाड़ी को भागने में महारत हासिल है...जी हां वो कहीं से कभी भी भाग सकता है..।जनता
भी पूरा मैच बड़ी ही दिलचस्पी से देख रही है,क्योंकि ऐसा मैच कम ही देखने को मिलता
है..।
दरअसल दोस्तों कन्फ्यूज मत होईए आप...हम
बात कर रहे हैं देश की सियासत में उपजे ताजा मुद्दे को लेकर,जो केंद्र और दिल्ली
की केजरी सरकार के बीच जारी है।टकराहट इस कदर की आप सोच भी नहीं सकते।आरोप तो अब
ऐसे लगाए जा रहे हैं,कि जी खोलकर जो चाहो बोलो...हिम्मत है क्या कि कोई कुछ कर
लेगा...बुरा तो लग रहा है मित्रों लिखते समय,लेकिन क्या करें ऐसा ही देखने को मिल
रहा है आजकल...देश को आगे जो ले जाना है..और खासकर देश की राजधानी दिल्ली को...!क्योंकि राजधानी में “आप” की इमानदारी जो है...क्यों..!
खैर संसद नहीं चल पा रही है,जिसका मुख्य
कारण या आरोप किसी एक पार्टी पर मढ़ा जाए तो ठीक नहीं होगा,इसके सत्ता पक्ष और
विपक्ष दोनो जिम्मेदार हैं।हां कोई कुछ कम तो कोई कुछ ज्यादा...बस अंतर इतना ही है...।अब
साब दिल्ली के मुख्यमंत्री महोदय अरविंद केजरीवाल को
देख लिजिए...जिन्होने उन्मादी भाषा का इस्तेमाल ऐसे किया कि जैसे दोस्तों के साथ
हंसी मजाक कर रहे हों...अब साब हम तो यही कहेगें कि सार्वजनीक जीवन में शब्दों का
चयन बहुत ही सोच समझकर करना चाहिए।
खैर छोड़िए ये चर्चा इसलिए की जा रही है
कि कुछ दिनो पहले क ही बात है कि, दिल्ली सरकार के एक सचिव की तलाशी ली गई
और कथित तौर पर उसे रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा गया और उसे गिरफ्तार किया गया। आपको
बता दें साब कि इस अभियान को सीबीआई ने अंजाम दिया था। जिसका केजरी बाबू की दिल्ली
सरकार ने स्वागत किया था।लेकिन वहीं कुछ दिन बाद जब केजरीवाल के एक और नजदीकी
अधिकारी की भी केजरीवाल शासन से पहले हुए एक कथित धोखाधड़ी के मामले में तलाशी ली
गई तो मुख्यमंत्री केजरी बाबू उबल पड़े। और कहने लगे कि ये संविधान के संघीय ढांचे
का उल्लंघन है।साथ ही मुख्यमंत्री महोदय ने देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ भी जमकर अभद्र भाषा का प्रयोग
किया।वहीं केजरी सरकार ने CBI जांच के उद्देश्य पर ही सवाल खड़े कर दिए।और इस पूरी घटना का रुख ही मोड़
दिया...और यहीं से कहानी में ट्वीस्ट लाते हुए केजरी बाबू ने कोटला मैदान को पेश
किया...और मामले को त्रिकोणीय बना दिया..मतलब की दिल्ली क्रिकेट बोर्ड से जोड़ दिया
और अपने अधिकारी के कथित भ्रष्टाचार पर से ध्यान हटाने की शानदार कोशिश की।
अनेकों सवाल हैं...जवाब भी हैं...अब अर्थ आप जैसा चाहें लगा
लें...आप स्वतंत्र हैं जैसे अरविंद केजरीवाल साहब...लेकिन क्या आपको कभी सा नहीं
लगता कि दब कोई मामला खुद पर हो तो लोगों का ध्यान हटाने के लिए एक गुगली दूसरे की
तरप फेक दी जाए...जिससे रात को नींद आ जाए और सोचने का समय मिल जाए...क्योंकि ऐसा
तभी संभव है जब आपके पास बाहुबल, धनबल और पावर हो...। ऐसा इसलिए कि केजरी सरकार
नें वित्त मंत्री अरुण जेटली पर आरोप उस समय लगाए जब उनके एक खास अधिकारी आरोपों
के घेरे में फंस चुके थे।क्योंकि इस पूरे मामले पर जेटली साब का भी कहना है कि “दिल्ली के मुख्यमंत्री
ने मुझको केंद्र-बिंदु में लाने की कोशिश की है। उन्होंने इस बात को कई बार
दोहराया कि मैंने दिल्ली के छापे को लेकर संसद को अंधेरे में रखा और उन्होंने मेरे, दिल्ली की क्रिकेट संस्था - डीडीसीए के अध्यक्ष के कार्यकाल को लेकर मुझपर
आरोपों की श्रृंखला छेड़ दी. कांग्रेस भी क्षणिक लाभ के लिए श्री केजरीवाल की
कंपनी में शामिल हो गई क्योंकि कई कारणों से उसके अपने नेतागण संकट में हैं।
भले ही, मैं 2013 से क्रिकेट प्रशासन से अलग हूँ, पर संसद के एक सदस्य के रूप में
दिल्ली के क्रिकेट मामलों को लेकर कई सरकारी संस्थाओं को लिखता आ रहा हूं.
कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार ने मौके का लाभ उठाया और पूरे मामले को एसएफआईओ (SFIO) को भेज दिया जिसने पूरे मामले की कई दिनों तक जांच की और 21 मार्च 2013 को इस मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश किया. इस रिपोर्ट ने डीडीसीए, जो कंपनी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत है, के संबंध में यह निष्कर्ष निकाला
कि -
'इस तरह से, संक्षेप में, कुछ अनियमितताएँ/गैर-अनुपालन या तकनीकी खामियां है, लेकिन कोई धोखाधड़ी नहीं देखी गई, जैसा कि दावा किया जा रहा था.' जो तकनीकी और प्रक्रियागत खामियाँ थीं, वह भी वह समाधान कर लेने वाली थी
और आरोपित सदस्यों द्वारा वह खामियाँ भी दूर कर ली गई. एसएफआईओ (SFIO) ने कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार के शासन के वक्त, इस मामले की जांच की
थी और उसे मेरे खिलाफ एक सबूत नहीं मिला था।“
मित्रों इस प्रकार से केजरीवाल साब के
आरोपों का जवाब वित्त मंत्री महोदय ने दिया।गौर करने वाली बात ये थी कि शब्दों
में,जुबान पर एक मर्यादा तो थी ही जिये आप भी खारीज नहीं कर सकते,लेकिन दिल्ली
सरकार के बुद्धीजिवी और इकलौते इमानदार मुखिया ने जो जवाब दिया वो मेरी नजर में
अमर्यादीत ही कही जाएगी।एक ऐसे अल्फाज किसी मुख्यमंत्री के नहीं हो सकते।
अब केजरी साब के ताजे बयान को ही देख
लिजिए,उन्होने अपनी चिरईया पर(ट्वीटर )कहा कि- केंद्र सरकार ने सीबीआइ को विपक्षी
पार्टियों को खत्म करने के आदेश दिए हैं।और ये भी कहा कि उन्हें यह जान जानकारी
सीबीआइ के एक अधिकारी ने दी है।
अंतत: दोस्तों एक शानदार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को तैयार रहें आप..क्योंकि सियासत
के इस मुकाबले में बड़ा ही ट्वीस्ट है,नया खिलाड़ी एक साथ कई तीर चला रहा है,जिससे
कई विकेट गिर भी सकते हैं और नहीं भी गिरे तो छोड़कर भागने का रिकार्ड तो नए
खिलाड़ी के नाम है ही...।।
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