संदीप कुमार मिश्र : इच्छा म़त्यु की
बातें आपने सुनी होगी,शायद देखी भी हो..क्योंकि इन्सानों में एसा संभव है।लेकिन
जानवरों में ऐसा पहली बार देखने को मिला।दरअसल इंदौर के कमला नेहरू चिड़ियाघर में
बीते दो वर्षो से लकवाग्रस्त सोनू नाम के भालू को विश्व में पहली बार दया मृत्यु
दी गई। भालू सोनू के दया मृत्यु की प्रक्रिया सुबह 11.22 बजे शरू हुई। जिसके लिए
बाकायदा चिड़ियाघर में भालू को ‘दया मृत्यु’, मरने से पहले 11 पंडितों द्वारा गीता के श्लोक सुनाया गया,और फिर इच्छा मृत्यु की प्रक्रिया प्रारंभ करते हुए स्पेशल इंजेक्शन दिया गया। इंदौर के चिड़ियाघर में जन्मे 33 साल का सोनू (भालू)
पिछले दो साल से लकवाग्रत हो गया था।
इंदौर जू अथारिटी के अधिकारी उत्तम यादव
मुताबिक भालू बेहद तकलीफ में था। खा-पी नहीं रहा था। दो साल से उसका इलाज चल रहा
था। 33 साल का हिमालयन भालू सोनू ढाई साल से पैरालिसिस से जूझ रहा था और उसके शरीर
के 80% हिस्से को लकवाग्रस्त हो गए थे ।
जिसके बाद महामंडलेश्वर लक्ष्मणदास जी
महाराज की मौजूदगी में 11 पंड़ितों ने सोनू को गीता के श्लोक सुनाए।और फिर गंगाजल के
साथ तुलसी दल दिया गया।भालू को पिंजरे में मेकसेल्फ नामक केमिकल के तीन इंजेक्शन
लगाए गए और फिर कुछ देर के लिए पिंजरा ढंक दिया गया। पूरी तरह से बेहोश होने के
बाद सोनू को पिंजरे से निकालकर बाहर लाया गया।सलाइन के ज़रिए मैग्निशियम सल्फेट
(मौत की दवाई) चढ़ाया गया।करीब एक घंटे बाद सोनू की धड़कने थम गईं।इसके बाद भालू
सोनू का पोस्टमार्टम किया गया और उसे जू में ही दफना दिया गया।
पिछले दो सालों से असहनीय दर्द से कराह
रहा सोनू आकिरकार इस दुनिया से विदा हो गया।ऐसा कम ही सुनने और देखने को मिलता है
कि किसी भालू के लिए हवन यज्ञ किया जाए।जहां बड़े से लेकर बच्चे हर कोई गमगीन
हो।आंखों में नमी भी हो और एक सूकून भी।क्योंकि जिस दर्द से सोनू कराह रहा था उससे
हर कोई चाहता था कि चाहे जैसे भी हो उसकी मौत हो जाए।
अंतत: ईश्वर सोनू (भालू)की आत्मा को शांति दें,और फिर किसी बेजूबान की ऐसी हालत ना
हो,जिसकी आंखों में आंसू तो हो,शरीर में असहाय वेदना भी हो लेकिन बताने के लिए
जुबान ना हो।
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