संदीप कुमार मिश्र : दोस्तों एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश की यात्रा पर भारत-रुस के
रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए निकलते हैं और दूसरी तरफ देश की सियासत में लंबे
समय से चले आ रहे कीर्ति जेटली के विवाद पर विराम लगाते हुए बीजेपी ने कीर्ति को
पार्टी से आज़ाद कर दिया।जी हां आज शाम ढ़लते ही इस ख़बर ने मीडिया के लिए जहां
प्राइम टाइम का मुद्दा दे दिया वहीं एक बहस को और जन्म दे दिया कि जिस भ्रस्टाचार
के मुद्दे पर कांग्रेस के 10 साल के कुशासन पर प्रहार करके बीजेपी ने प्रचंड बहुमत
से केंद्र की सत्ता हासील की,क्या सत्ता मद अब बीजेपी पर हावी हो गई है...?
माना कि कीर्ति ने अनुशासन
तोड़ कर देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली पर बड़े-बड़े आरोप लगाए,यहां तक की उन्हें
नपुंसक तक कह दिया।जो निश्चित तौर पर नाकाबिले बर्दास्त है, और किसी भी पार्टी के
कार्यकर्ता हों या सांसद यह ठीक नहीं।जिस तरह से देश में लोकतंत्र का सम्मान होना
चाहिए,उसी तरह से पार्टी में भी अनुशासन होना चाहिए।और शायद पार्टी ने यही किया।
लेकिन ये क्या..? बीजेपी ने सिर्फ इसलिए कीर्ति को आज़ाद कर दिया कि उन्होने पार्टी के सबसे
पावरफुल मंत्री पर उंगली उठा दी थी..? क्या पार्टी में अब यही चलेगा...?क्या किसी बड़े नेता के खिलाफ आवाज उठाना,भ्रस्टाचार को उजागर करना गुनाह है..? क्या देस में विकास का यही पैमाना है..?इसी तरह से होगा देश का
विकास..?
क्या ये जरुरी नहीं
था कि DDCA में तथाकथित घपले,घोटाले का जो आरोप कीर्ति ने वित्त
मंत्री जी पर लगाये थे,उसकी जांच तक पार्टी धैर्य रखती,एक बार पाक साफ हो जाने पर
पार्टी भले ही कीर्ति झा साब को आजाद कर देती..? सवालों की फेहरिस्त लंबी
है,देश में कीर्ति की आजादी के बाद बीजेपी ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
क्या बीजेपी ने बैठे
बिठाए विपक्ष को एक नया मुद्दा नहीं दे दिया,मतलब साफ है कि संसद के शीतकालीन सत्र
में गर्मी का एहसास कराने के बाद भी विपक्ष सियासत की गर्मी मोदी सरकार के साथ देश
को दिखाती रहेगी।आपको बता दें कि बीजेपी की पार्लियामेंट्री बोर्ड ने पार्टी गतिविधियों
में शामिल गोने का आरोप लगाया और कीर्ति को पार्टी से सस्पेंड कर दिया।
अब तो कांग्रेस,आम
आदमी पार्टी के साथ अन्य विपक्षी पार्टीयों को बोलने का मौका दे दिया सरकार ने। अब
देकना बड़ा दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी बिहार चुनाव के दौरान लगातार पार्टी का
विरोध करने वाले अपने सांसद शत्रुधन सिन्हा को भी सस्पेंड करती है..क्योंकि बिहारी
बाबू ने भी लगातार पार्टी में बगावत के सुर मुखर कर रखे हैं।यहां तक कि कीर्ति
मामले में भी शत्रुधन सिन्हा ने कहा कि जब तक जेटली जी अपने उपर लगे आरोपों से बरी
नहीं हो जाते तब तक आडवाणी जी की तरह ही मंत्री पद से इस्तिफा दे दें क्योंकि उनका
कद मंत्री पद से कहीं उंचा है,लेकिन आपको याद होगा कि विहारी बाबु के निशाने पर
बिहार चुनाव से पहले ही पार्टी के कई बड़े नेता निशाने पर रहे हैं।
बड़ा सवाल कि अब
कीर्ति साब की इस आज़ादी को कौन सी पार्टी लपकना चाहेगी,क्या कांग्रेस कीर्ति के
लिए रेड कार्पेट बिछाएगी या फिर तथाकथित इकलौती इमानदार पार्टी आप का दामन थामेगे,या
फिर बिहार की सत्ता पर काबिज सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार से गलबहिंया करेंगे,या
फिर अभी कुछ दिन मौन धारण करके इंतजार करेंगे।
अंतत: किसी भी पार्टी में अनुशासन अवश्य होना चाहिए,कार्यवाही भी होनी चाहिए,लेकिन भ्रस्टाचार
को नज़रअंदाज करके नहीं।देश में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रस्टाचार का है और रहेगा
भी...इसे जड़ से खत्म करने की जरुरत है,चाहे जो भी हो,देश को विकास की राह पर आगे
बढ़ाना है तो हर उस मुद्दे से लड़ना होगा जो देस के विकास में बाधक है ना कि
साधक...।राजनीति....बड़े राज के नीति है दोस्तों..आगे आगे देखिये होता है क्या..?
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