संदीप कुमार मिश्र : एक ऐसी शख्सियत जो ना रुकता है,ना थकता है,ना डरता है ना ही
आगे क्या होगा उस बात की चिंता करता है...।उस शख्स को डर है तो सिर्फ ईश्वर
से।राजनीति में कम ही देखने को मिलते हैं ऐसे लोग।जो शख्स अपने ज्ञान,बहुमुखी
प्रतिभा से हर भ्रस्टाचारी की जुबान बंद कर दे,जिसके कार्य करने के रवैये से आपको
लगने लगे कि ये इन्सान खुद में पूरी इन्वेस्टीगेशन टीम है।तो समझ लिजिए वो कोई और
नहीं बीजेपी के धाकड़ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ही हैं...।
दोस्तों दरअसल सुब्रमण्यम स्वामी हमारे भारतिय राजनीति में एक ऐसी शख्सियत हैं,
जोएक बार को कौन
कहे...बार-बार अपने विरोधियों को गलत साबित करते रहे हैं।मित्रों एक बेहतरीन शिक्षक, महान अर्थशास्त्री, गणितज्ञ,शानदार राजनीतिज्ञ, सुब्रमण्यम स्वामी का जन्म एक तमिल ब्राह्मण बुद्धिजीवि
परिवार में हुआ। सुब्रमण्यम स्वामी की शख्सियत ऐसी है जो आसानी से हार नहीं मानते
हैं और वो उन चंद लोगों में से हैं, जिनकी स्मरण शक्ति का कायल हर कोई है।
जब शख्सियत इतनी महान हो तो उसके बारे में जानने की जिज्ञासा हर किसी की जरुर
बढ़ जाती है। सुब्रमण्यम स्वामी जिनके बारे में अधिकतर भारतीय
शायद ही जानते हैं कि उनके पिता एक प्रसिद्ध गणितज्ञ
थे।सुब्रमण्यम स्वामी का जन्म 15 सितंबर, 1939 को म्य्लापोरे, चेन्नई, में हुआ।उनके पिता सीताराम
सुब्रमण्यम भारतीय सांख्यिकी सेवा में अधिकारी पद पर थे और इसके उपरांत उन्होंने
केंद्रीय सांख्यिकी संस्थान के निर्देशक के रूप में कार्यभार संभाला।स्वामी ने
हिन्दू कॉलेज से गणित में स्नातक डिग्री प्राप्त की और दिल्ली विश्वविद्यालय में
तीसरे स्थान पर रहे थे।ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि स्वामी के सितारे शुरू से
ही बुलन्द थे। वह सिर्फ 6 महीने के थे जब उनके पिता ने अपनी नौकरी बदली और चेन्नई से
दिल्ली आ गए। वही लूटियन की दिल्ली जहां से देश की सियासत गढ़ी जाती है।
सुब्रमण्यम स्वामी अपनी आगे की पढ़ाई यानि पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दिल्ली से
कोलकाता चले गए और यहां से उनकी पहली ज़मीनी लड़ाई की शुरुआत हुई। उस समय संस्थान के
प्रमुख पीसी महालनोबिस थे जो कि स्वामी के पिता सीताराम सुब्रमण्यम के पेशेवर
प्रतिद्वंद्वी थे और जब महालनोबिस को स्वामी के पृष्ठाधार के बारे में पता चला तो सुब्रमण्यम
स्वामी को परीक्षाओं में कम ग्रेड मिलने शुरू हो गए थे। आपको बता दें कि महालनोबिस ही थे, जिन्होंने योजना आयोग की
परिकल्पना की थी। और वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दशकों बाद योजना
आयोग को विघटित कर नीति आयोग बना दिया।
सुब्रमण्यम स्वामी जो छात्र जीवन से ही अपनो में प्रिय थे,कोई भी छात्र उनसे
किसी भी प्रकार द्वेष नहीं रखता था। सुब्रमण्यम स्वामी की विद्वता के
कायल अमेरिकी अर्थशास्त्री हेंड्रिक भी थे। हेंड्रिक एकोनोमेट्रिका में प्रकाशित समाचार पत्र से भी जुड़े हुए थे। और
उन्हीं के प्रयास से हार्वर्ड विश्वविद्यालय में की गई सिफारिश से स्वामी को
हार्वड में पढ़ने का अवसर मिला। आपको जानकर हैरानी होगी कि मात्र 24 साल की उम्र में सुब्रमण्यम
स्वामी ने हार्वर्ड से पीएचडी पूरी की। सन 1960 में गणित विषय में दक्षता अर्जित करने और महज़ 24 साल की आयु में डॉक्टर
की उपाधि से विभूषित होने के बाद स्वामी 1964 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में
अर्थशास्त्र के संकाय में शामिल हो गए। बाद में वह वहां के अर्थशास्त्र विभाग में
छात्रों को पढ़ाने लगे।
स्वामी ने पहले अमेरिकन नोबेल मेमोरियल पुरस्कार विजेता के साथ संयुक्त लेखक
के रूप में एक थ्योरी प्रस्तुत की और पॉल सैमुअल्सन के साथ संयुक्त लेखक के रूप
में इण्डैक्स नम्बर थ्योरी का अनुपूरक अध्ययन प्रस्तुत किया।जो अध्ययन 1974 में प्रकाशित हुआ। इतना
ही नहीं 1975 में सुब्रमण्यम स्वामी ने एक किताब लिखी
जिसका शीर्षक था “इकनोमिक ग्रोथ इन चाइना एंड इंडिया,1952-1970: ए कम्पेरेटिव अप्रैज़ल”। मात्र 3 महीने में सुब्रमण्यम स्वामी ने
चीनी भाषा सीखी।
जब स्वामी एसोसिएट प्रोफेसर थे तो उन्हें अमर्त्य सेन ने दिल्ली स्कूल ऑफ
इकोनॉमिक्स में चीनी अध्ययन प्राध्यापक पद का न्योता दिया।और स्वामी ने अमर्त्य
सेन के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। 1969 सुब्रमण्यम स्वामी ने आईआईटी के छात्रों को अर्थशास्त्र पढ़ाया। वह
अक्सर हॉस्टल में छात्रों से मिलने और राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय विचारों पर उनसे
चर्चा करने के लिए जाते थे। सुब्रमण्यम स्वामी ने सुझाव
दिया कि भारत को पंचवर्षीय योजनाओं से दूर रहना चाहिए और बाह्य सहायता पर निर्भर
नहीं रहना चाहिए।स्वामी का कहना है कि 10% विकास दर हासिल करना संभव है।आपको बता दें कि भारत
के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्रियों में से एक, इंदिरा गांधी ने 1970 बजट के बहस के दौरान सुब्रमण्यम
स्वामी को अवास्तविक विचारों वाला सांता
क्लॉस करार दिया था।शायद यह पहली बार था कि इंदिरा गांधी जैसे व्यक्तित्व के
राजनीतिज्ञ ने स्वामी का मजाक उड़ाया हो।लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी ने इन
टिप्पणीयों पर ध्यान न देते हुए अपने कार्य को लगातार जारी रखा।
दोस्तो ये बात हम सब
जानते हैं कि स्वामी और विवाद एक दूसरे के पूरक हैं और यही वजह है कि स्वामी को आईआईटी की
नौकरी से हाथ धोना पड़ा। उन्हें दिसंबर 1972 में अनौपचारिक रूप से बर्खास्त कर दिया गया। सबसे मजे की बात ये रही कि 1973 में गलत तरीके से बर्खास्तगी के
लिए सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रतिष्ठित संस्थान पर मुकदमा ठोक दिया और 1991 में मुकदमा जीत भी लिया। और अपनी बात को साबित करने
के लिए वह इस्तीफा देने से पहले संस्थान में केवल एक दिन के लिए ही शामिल हुए और
अपनी बात सच करके दिखा दी ।
सुब्रमण्यम स्वामी ने 1974 में सक्रीय रुप से राजनीतिक
पारी की शुरुआत की। दरअसल अपनी पत्नी, छोटी बेटी और कोई नौकरी न होने की वजह से सुब्रमण्यम
स्वामी ने अमेरिका वापस लौटने का फैसला कर लिया था।तभी भाग्य ने सुब्रमण्यम स्वामी
का राजनीति में प्रवेश करा दिया। हुआ यूं की उस समय जनसंघ के वरिष्ठ नेता नानाजी
देशमुख के एक फोन कॉल से स्वामी का जीवन ही बदल गया। उन्हें राज्यसभा में पार्टी
का नेतृत्व करने के लिए चुना गया ।और 1974 में वह संसद के लिए निर्वाचित हुए। विभाजन के बाद जो आजादी और सकल मानव त्रासदी सामने आई उसे
स्वामी ने करीब से देखा था। वह उन कर्कश दिनों के गवाह थे जब विभाजन के बाद लोग
दैनिक संघर्षों से जूझते दिखे।आपातकाल की स्थिति (1975-77) ने उन्हें एक राजनीतिक हीरो के
रूप में खड़ा किया। स्वामी गिरफ्तारी वारंट को नकारते हुए पूरे 19 महीने की अवधि के लिए
टालते रहे।
आपातकाल के दौरान अमेरिका से भारत वापस आना, संसद के सुरक्षा घेरे को तोड़ना,
10 अगस्त 1976 में लोकसभा सत्र में
भाग लेना और देश से पलायन कर अमेरिका वापस लौटना उनके सबसे साहसी कृत्यों में गिने
जाते हैं।स्वामी जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसने 1977 में इंदिरा गांधी के
आपातकाल शासन को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया। बाद के दिनों में जनता पार्टी
सामर्थ्यहीन हो गई, लेकिन स्वामी का दबदबा कायम था। वह 1990 से लेकर जनता पार्टी के भाजपा
में विलय होने तक पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। विपक्ष अक्सर खिल्ली उड़ाता था कि
स्वामी जनता पार्टी को आगे बढ़ा रहे हैं, एक ऐसे सेनापति के रूप में जिसकी सेना है ही नहीं।
लेकिन सच तो यह है कि वह लंबे समय से ऐसा करते आए हैं।
आपको जानकर गर्व
होगा कि 1990-91 में प्रधानमंत्री के रूप में चंद्रशेखर के संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान देश
के वाणिज्य और कानून मंत्री के रूप में स्वामी ने एक ब्लू प्रिंट तैयार कर भारत में आर्थिक सुधार की नींव रखी। डॉ मनमोहन सिंह, तत्कालीन वित्त मंत्री ने कांग्रेसी प्रधानमंत्री
नरसिम्हा राव के तहत 1991-92 के लिए अंतरिम बजट पेश किया।यह स्वामी का ही ब्लू प्रिंट
था, जिसे
प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के तहत वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने लागू किया था,
ताकि देश में
नेहरूवादी समाजवाद कायम किया जा सके। 1994 में वह प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार के
कार्यकाल के दौरान “श्रम मानकों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आयोग के अध्यक्ष”, एक कैबिनेट मंत्री के पद
पर रहे।
राजनीति के मैदान से लंबे समय तक गायब रहने के बाद, स्वामी ने 2008 में प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह से मोबाइल स्पेक्ट्रम बैंड के अवैध आवंटन पर ए. राजा पर मुकदमा चलाने
की अनुमति मांग कर 2 जी घोटाले का पर्दाफाश किया था।साथ ही सुब्रमण्यम स्वामी के अथक प्रयास का ही
परिणाम है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारत और चीन की सरकारों के बीच एक
समझौता हो सका है।2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद नेशनल हेराल्ड मामले
से लेकर राहुल गांधी की दिदेशी नागरिकता और भी तमाम मामले को उजागर कर सुब्रमण्यम
स्वामी ने देश के सामने रखा और भ्रस्टाचार
का पर्दाफाश किया और कर रहे हैं।
अंतत:
निश्चित
तौर पर सुब्रमण्यम स्वामी देशहित में एक सराहनीय काम कर रहे हैं जिसे जानना देश के
आम नागरीकों का हक है।इतना ही नहीं स्मी जिस पार्टी में है उसके खिलाफ भी लगातार
बोलते रहते हैं और कुछ भी गलत करने से रोकते रहते हैं।जो राजनीति में होना बहुत
जरुरी है...।।
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