तबला बोला बोली
मृदंग,बोले सितार के तार-तार,
महफिल में कितने
लोग मरे,कुछ मिला नहीं इसका शुमार।
रंग गई रक्त से
रंगभूमि,हाथों में राज फिरंगी के,
इसलिए भैरवी
गाते थे,स्वर आज अजीजन बाई के।
(कवि सुदर्शन
चक्र की कविता से..)
संदीप कुमार मिश्र : कानपुर
की मशहूर खूबसूरत तबायफ (नर्तकी) अजीजन बाई ने सन 1857 की पहली जंगे आजादी में हिस्सा
लेकर अपने प्यारे वतन के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी, और अपने बदनाम पेशे (तबायफ) के दाग को अपनी शहादत के खून से धो डाला था ।
दरअसल अजीजन कुलीन क्षत्रीय खानदान की लड़की थी ।
बचपन में अजीजन अपनी सहेलियों के साथ मेला देखने गई थी । मेले से वापस लौटते वक्त रास्ते
में अंग्रेज सैनिकों के चंगुल में फंस गई । शराब के नशे में चूर अंग्रेज अजीजन और उसकी
सहेली को जबरन बैलगाड़ी में बैठाकर अपने डेरे पर ले जा रहे थे । मौका मिलते ही दोनों
पुल के ऊपर से यमुना जी में कूंद पड़ती हैं । साथ की लड़की मर जाती है लेकिन भाग्य
की धनी अजीजन बच जाती हैं।मुसलमान पहलवान इस लड़की को उठा ले जाता है और 500 रूपए में
कानपुर के एक तबायफ खाने में बेच देता है । यहीं पर उस लड़की का नामकरण होता है और
एक क्षत्राणी अजीजन बाई बन जाती है । समय अपनी गति से आगे बढ़ता है । अजीजन की खूबसूरती , नृत्य
और गायन की ख्याती दूर दूर तक फैलती है और अम्मीजान की दुकान (तवायफ खाना) पर चहल-पहल
बढ़ जाती है ।
अम्मीजान ने कानपुर के रईस नवाब शमशुद्दीन से अजीजन
की मिस्सी (सगाई) करा दी । बड़ी धूमधाम से मिस्सी की रस्म मनाई गई । पूरे कानपुर को
इस मिस्सी रस्म में आमंत्रित किया गया । दूर दूर की तवायफें इस महफिल में शरीक हुईं
। अजीजन की नवाब शमशुद्दीन के साथ सिर्फ मिस्सी हुई थी और निकाह बाकी था । लेकिन दोनों
एक दूसरे से सच्ची मोहब्बत करते थे ।
नाना साहब , तात्या
टोपे, टीका सिंह, अजीमुल्ला
खां और नवाब शमशुद्दीन की एक क्रान्तिकारी पार्टी थी जो विद्रोह कर अंग्रेजी शासन से
भारत को मुक्त करा लेने के लिेए गठित की गई थीं । नाना साहब बिठुर तथा कानपुर के राजा
थे । नवाब शमशुद्दीन ने अपने साथियों की सलाह से अजीजन को भी अपने क्रांतीकारी पार्टी
में शामिल कर लिया । अजीजन के सुपुर्द ये काम किया गया कि वो गाना गाकर, अपना नाच
दिखाकर अंग्रेजी पक्ष के भारतीय सैनिकों को बहला फुसलाकर नाना साहब के पक्ष में करे, अंग्रेजी
सेना की तैयारी और इरादों की गुप्त जानकारी प्राप्त करे और भारतीय मूल के सैनिकों में
देशभक्ति की भावना भरें।
अजीजन ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया । सेनापति तात्या टोपे ,अजीमुल्ला
खां , टीका सिंह , नाना साहब
भी अजीजन से मिलकर बड़े प्रभावित हुए । जब नाना साहब को पता चलता है कि अजीजन मजबूरी
में नर्तकी बनी वैसे वो कुलीन क्षत्रीय जाती की लड़की है तो उन्होंने उसे अपनी बहन
बना लिया ।उसे एक तलवार भेंट की और उससे अपने हाथ में बंधवा ली । अजीजन अंग्रेजों से
अपने अपमान का बदला लेना चाहती थी। जब उसे
क्रांतिकारी पार्टी का सहयोग मिल गया तो उसका उत्साह उसके मन में चल रही प्रतिशोध की
आग और भड़क उठी ।
नवाब शमशुद्दीन की मदद और नाना साहब के आशिर्वाद से
अजीजन ने अपनी एक टोली बना ली, जिसमें 25 नर्तियों ( तवायफ) थी । इस टोली का नाम मस्तानी
टोली रखा जाता है । इस टोली को विधवत शस्त्र शिक्षा,घुड़सवारी,दरिया
में तैरने व अन्य सभी प्रकार के लड़कू तरीकों से अवगत कराया गया और प्रशिक्षण दिया
गया ।इस मस्तानी टोली ने कानपुर में तहलका मचा दिया । इस टोली में बड़े बड़े बहादुरी
के कार्य किए । इस टोली के कारण ही अंग्रेजी फौज के बहुत से सिपाही नाना साहब की फौज
में आ मिले और अंग्रेजी सेना विद्रोही बन गई । अजीजन की मस्तानी टोली ने हजारों अंग्रेजों
को मौत के घाट उतार दिया । इस मस्तानी टोली ने वीवी घर ( लाल बंगला) में रहने वाले
तमाम अंग्रेजों को कत्ल कर दिया ।
इन क्रांतिकारियों के शोर्य और पराक्रम से एक बार
तो पूरे कानपुर से ही अंग्रेजों को भगा दिया गया था । इस घटना से अंग्रेज बौखला गए
थे । फिरंगी अपनी इस हार को सहर्ष स्वीकार करने वाले न थे । अंग्रेज एक बड़ी फौज लेकर
आए और चारों तरफ से कानपुर को घेर लिया और कानपुर के किले पर कब्जा कर लिया । भयानक
लड़ाई हुई । विजय अंग्रेजों को मिली । क्रूर अंग्रेजों ने सैकड़ो भारतीयों को फांसी
पर लटका दिया था और अनगिनत को गोली से उड़ा दिया था । इस भयंकर लड़ाई में अंग्रेज जीत
तो गए लेकिन वीर क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता पाने की जो ललक,आम भारतियों
के दिलो मे जो आग लगा दी वो निरंतर चलती रही ।
अंतत: एक बदनाम पेश में रहते हुए भी अजीजन बाई ने एक ऐसी
मिसाल बना दी कि हर भारतीय नारी में देशभक्ति की भावना भर गई । और आजादी की तरफ अग्रसर
बढ़ते कदम आखिरकार हमें आज़ादी पाने से नही रोक पाए । निश्चित ही वीरांगना, नृत्यांगना
वीरगति को प्राप्त अजीजन बाई की शहादत को स्वतंत्र भारत के लोग कभी नही भुला पाएंगे
और उनकी शहादत को शीश झुकाकर नमन करते रहेंगे ।
पुजारी है वही जो
राष्ट्र का गुणगान करते हैं,
जलाकर देह औरों के
लिए दिनमान करते है।
वहां पर टेकने मत्था
स्वंय भगवान नित आते,
जहां पर वीर माता
के लिए बलिदान करते हैं।
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ReplyDeleteसर सादर नमस्कार।जी सर मैं अपना नंबर आपको व्टास्अप करता हूं।आपको मेरी लेखनी पसंद आई इसके लिए आपका हार्दिक आभार।।धन्यवाद
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