संदीप कुमार मिश्र : दोस्तों कहते हैं दिल मिले ना मिले ना मिले हाथ मिलाते
रहिए।कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है भारत-पाक रिश्ते में भी।क्योंकि आतंक की जननी
पाकिस्तान से भी भारत ने सकारात्मका की उम्मीद करते हुए बातचीत की नई शुरुआत की
है।दरअसल बातचीत का सिलसिला पेरिस में ही उस वक्त शुरु हो गया था जब दोनो देशों के
समकक्ष मिले,जिसकी पहल खुद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही की।इस पहल को
विश्व के हर देश ने सराहा और उम्मीद जताई की बातचीत से ही किसी भी मसले का ह
निकाला जा सकता है।खैर जलवायु परिवर्तन के सिलसिले में जहां विश्व के सभी
राष्ट्राध्यक्ष इकट्ठे हों वहां मुलाकात सम्भव थी।
लेकिन भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बैंकॉक में हुई
छह दिसंबर की मुलाकात की अप्रत्यासित खबर ने सबको चौंका दिया।इस मुलाकात में सूसे
मजे की बात ये रही कि मीडिया के कोजी कैमरे को इसकी भनक तक नहीं लगी।पता तो तब चला
जब भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई,जिसमें दोनो
देशों के NSA की
मुलाकात की तस्वीरें साझा की गई।जिसके बाद ये पता चला कि भारत के एनएसए अजीत डोवाल
और उनके पाकिस्तान के एनएसए नसीर खान जनजुआ के बीच बैठक हुई है। जिसमें सबसे
ज्वलंत मुद्दा आतंकवाद के साथ ही कश्मीर और कई अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई। इस मुलाकात में एक
और अहम बात ये रही कि जब ये वार्ता हो रही थी तब दोनों देशों के विदेश सचिव भी
मौजूद थे।
जब बात गुपचुप तरीके से हो तो जनाब सियासत कैसे ना होती तो इस अहम बैठक को
लेकर विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर सवाल उठा दिए कि अगस्त 2015 के बाद से ऐसा क्या बदल
गया कि दोनों देश बातचीत के लिए एक मंच पर आ गए।वहीं विपक्ष का ये भी कहना था कि
सीमा पार से आतंकवाद और घुसपैठ की घटनाएं जब लगातार जारी हों तो ऐसे में पाकिस्तान
के साथ बातचीत करने का औचित्य क्या है। अब साब विपक्ष को तो एक बहाना चाहिए था सो कांग्रेस
ने इस बातचीत को देश के साथ धोखा तक बता दिया।अब बोलने में क्या हर्ज है जनाब,कुछ
भी बोल दिजिए।
लेकिन एक बात तो है
वो ये कि कहीं ना कहीं विपक्षी दलों की बात में दम भी नजर आता है क्योंकि पीएम मोदी हमेशा
कहते रहे हैं कि गोलीबारी और बातचीत एक साथ नहीं चल सकती। बातचीत के लिए उपयुक्त
माहौल का बनना जरूरी है,लेकिन दोनो देशों में हुई NSA लेबल की बातचीत ने हर किसी को चौंका दिया।कुछ ने स्वागत किया तो कुछ ने शंकाएं
व्यक्त की।लेकिन एक बात तो तय थी कि NSA लेबल की इस बातचीत ने वार्ता के रास्ते जरुर खोल दिए थे।
दरअसल 2016 में सार्क सम्मेलन होने हैं जो पाकिस्तान में होना प्रस्तावित है। इस सम्मेलन
में हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी को पाकिस्तान की यात्रा करनी होगी,जिसके लिए एक
बेहतर माहौल की जरुरत होगी और मुलाकात का शुरु हुआ ये सिलसिला उसी जमीन को तैयार
करने की क सार्थक कोशिश है। ये बात हर कोई जानता है कि पाकिस्तान की विदेश नीति और
राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों पर पाकिस्तान की सेना का हर प्रकार से दखल होता है।और सेना की
मर्जी के खिलाफ सरकार कुछ नहीं कर पाती है।आपको बता दें कि पाकिस्तान के जनरल
राहील शरीफ ने अक्टूबर में रिटायर हुए लेफ्टिनेंट जनरल नसीर खान जनजुआ को
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया।कहा ये भी जाता है कि जनजुआ पाकिस्तानी जनरल के
काफी करीब हैं। जिस वजह से डोवाल के साथ जनजुआ की बातचीत का अगर मतलब निकाला जाए
तो मोदी सरकार एक कोशिश सीधे रावलपिंडी के साथ बातचीत करना भी हो सकती है।
पाकिस्तान की नवाज सरकार के साथ ही वहां के सैन्य हुक्मरानों को भी बातचीत में शामिल
रखना मोदी सरकार की एक कूटनीतिक पहल हो सकती है।फिलहाल हम आप कयास ही लगा सकते
हैं। इसी कड़ी में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी पाकिस्तान की दो दिवसीय यात्रा पर
हैं।
अंतत: दोनो मुल्कों में
वार्ता से यदि सकारात्मका झलकती है तो वार्ता जरुर होनी चाहिए लेकिन सतर्कता
नितांत आवश्यक है क्योंकि हमारे पड़ोसी पाक के इमान पर भरोसा करना तोड़ा कठीन
हैं,दरअसल ये हम नहीं इतिहास कहता है,बहरहाल दोस्ती की नयी शुरुआत की मोदी सरकार
को शुभकामनाएं।
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